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बिहार में नई तकनीक से ज्यादा फलेगी रसीली लीची

मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशालनाथ ने कहा कि नई तकनीक के पालन से किसान एक हेक्टेयर भूमि पर 15 टन लीची का उत्पादन कर सकेंगे. देश के लीची उत्पादन में बिहार की कुल 40 से 50 फीसदी तक हिस्सेदारी है.

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Published : Sep 11, 2019, 1:41 PM IST

नई तकनीक से ज्यादा फलेगी रसीली लीची

मुजफ्फरपुर: देश और विदेश में चर्चित बिहार की लीची अब फिर से ना केवल ज्यादा रसीली होगी, बल्कि उसकी मिठास भी पहले जैसी ही होगी. जलवायु परिवर्तन से लीची के स्वाद में गिरावट आने के बाद राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने नई तकनीक से ना केवल लीची का उत्पादन बढ़ने का दावा किया है, बल्कि इसके आकार में वृद्धि और मिठास भी ज्यादा होने का भरोसा दिया है.

मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशालनाथ ने कहा कि नई तकनीक के पालन से किसान एक हेक्टेयर भूमि पर 15 टन लीची का उत्पादन कर सकेंगे. देश के लीची उत्पादन में बिहार की कुल 40 से 50 फीसदी तक हिस्सेदारी है.

royal litchi of muzzaffarpur
मुजफ्फरपुर की शाही लीची

क्या कहते हैं आंकड़े?
एक आंकड़े के मुताबिक, बिहार में 32 हजार हेक्टेयर जमीन में करीब तीन लाख मीट्रिक टन लीची का उत्पादन होता है. बिहार में मुजफ्फरपुर को लीची उत्पादन का गढ़ माना जाता है. इसके अलावा समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण, वैशाली, बेगूसराय में भी लीची का उत्पादन किया जाता है.
बिहार सरकार की रिपोर्ट बताती है कि करीब दो महीने तक की लीची की फसल से सीधे तौर पर इस क्षेत्र के 50 हजार से भी ज्यादा किसान परिवारों की आजीविका जुड़ी हुई है.

New technique of litchi production
नई विधि से लीची उत्पादन

देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी है मशहूर
मुजफ्फरपुर की शाही लीची अपनी मिठास की वजह से देश-विदेश में प्रसिद्ध रही है. मौजूदा दौर की लीची में हालांकि न पहले जैसी मिठास है और न आकार ही है. विगत 10 सालों में लीची की मिठास में कमी आई है और आकार भी छोटा हुआ है. राज्य में जलवायु परिवर्तन को इसका प्रमुख कारण माना जाता है.

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने बताई नई विधि
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने किसानों को नई विधि से लीची उत्पादन की जानकारी दी है. इसके तहत लीची का पौधा कतार में लगाने का तरीका बताया गया. केंद्र ने पौधों को पूरब से पश्चिम दिशा में लगाने की सलाह दी है. नई तकनीक के मुताबिक, एक से दूसरी कतार की दूरी आठ मीटर और एक से दूसरे पौधे चार मीटर की दूरी पर लगाने का निर्देश दिया जा रहा है. अनुसंधान केंद्र का दावा है कि इस विधि से एक एकड़ में 125 पौधे लगाए जा सकेंगे.

New technique of litchi production to produce more
बिहार में नई तकनीक से ज्यादा फलेगी रसीली लीची

क्या कहते हैं निदेशक?
डॉ. विशालनाथ ने आईएएनएस से कहा, "पूरब से पश्चिम दिशा में लगाने से लीची के हर पौधे को सूरज की रोशनी मिलेगी. इससे पौधा पुष्ट होगा और मजबूत पेड़ तैयार होगा. मजबूत पेड़ में लीची की मिठास और आकार दोनों में वृद्धि होगी. लीची के पेड़ को नियमित सूरज की रोशनी मिलने से उस पर कीट का प्रभाव भी कम पड़ने की संभावना रहेगी और उसे सौर ऊर्जा मिलती रहेगी."

जलवायु परिवर्तन से हो रहा असर
उन्होंने कहा कि इस विधि से तापमान बढ़ने का भी कम प्रभाव पड़ेगा. वे मानते हैं कि पहले लोग वर्गाकार पद्धति से पौधे लगाते थे. उन्होंने कहा कि पहले लोग पेड़ को अपने तरीके से बढ़ने देते थे और पेड़ झंझावत भी झेलते थे. जलवायु परिवर्तन के मौजूदा दौर में पेड़ पर दोतरफा मार पड़ रही है. वर्तमान विधि में पेड़ों को छोटा रखने के बाद किसान इसका प्रबंधन भी ठीक तरीके से कर सकेंगे.

Bihar accounts for 40 to 50 percent of the country's litchi production
देश के लीची उत्पादन में बिहार की कुल 40 से 50 फीसदी तक हिस्सेदारी

अन्य राज्यों में भी होगा प्रयोग
डॉ. विशालनाथ ने कहा कि लीची उत्पादन की इस विधि के लिए संस्थान उन्नत किस्म के पौधे भी तैयार कर रहा है. क्षेत्र विस्तार योजना के तहत राज्य में ही नहीं, अन्य राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भी नई विधि से लीची उत्पादन का प्रशिक्षण दे रहा है.

17 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य
उन्होंने कहा कि आमतौर पर फिलहाल एक हेक्टेयर में करीब सात टन लीची का उत्पदान होता है. डॉ. विशालनाथ का दावा है कि वर्ष 2050 तक देश में लीची का उत्पदान 17 लाख टन करने का लक्ष्य है. वर्तमान समय में लीची का उत्पादन करीब सात लाख टन है.

मुजफ्फरपुर: देश और विदेश में चर्चित बिहार की लीची अब फिर से ना केवल ज्यादा रसीली होगी, बल्कि उसकी मिठास भी पहले जैसी ही होगी. जलवायु परिवर्तन से लीची के स्वाद में गिरावट आने के बाद राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने नई तकनीक से ना केवल लीची का उत्पादन बढ़ने का दावा किया है, बल्कि इसके आकार में वृद्धि और मिठास भी ज्यादा होने का भरोसा दिया है.

मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशालनाथ ने कहा कि नई तकनीक के पालन से किसान एक हेक्टेयर भूमि पर 15 टन लीची का उत्पादन कर सकेंगे. देश के लीची उत्पादन में बिहार की कुल 40 से 50 फीसदी तक हिस्सेदारी है.

royal litchi of muzzaffarpur
मुजफ्फरपुर की शाही लीची

क्या कहते हैं आंकड़े?
एक आंकड़े के मुताबिक, बिहार में 32 हजार हेक्टेयर जमीन में करीब तीन लाख मीट्रिक टन लीची का उत्पादन होता है. बिहार में मुजफ्फरपुर को लीची उत्पादन का गढ़ माना जाता है. इसके अलावा समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण, वैशाली, बेगूसराय में भी लीची का उत्पादन किया जाता है.
बिहार सरकार की रिपोर्ट बताती है कि करीब दो महीने तक की लीची की फसल से सीधे तौर पर इस क्षेत्र के 50 हजार से भी ज्यादा किसान परिवारों की आजीविका जुड़ी हुई है.

New technique of litchi production
नई विधि से लीची उत्पादन

देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी है मशहूर
मुजफ्फरपुर की शाही लीची अपनी मिठास की वजह से देश-विदेश में प्रसिद्ध रही है. मौजूदा दौर की लीची में हालांकि न पहले जैसी मिठास है और न आकार ही है. विगत 10 सालों में लीची की मिठास में कमी आई है और आकार भी छोटा हुआ है. राज्य में जलवायु परिवर्तन को इसका प्रमुख कारण माना जाता है.

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने बताई नई विधि
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने किसानों को नई विधि से लीची उत्पादन की जानकारी दी है. इसके तहत लीची का पौधा कतार में लगाने का तरीका बताया गया. केंद्र ने पौधों को पूरब से पश्चिम दिशा में लगाने की सलाह दी है. नई तकनीक के मुताबिक, एक से दूसरी कतार की दूरी आठ मीटर और एक से दूसरे पौधे चार मीटर की दूरी पर लगाने का निर्देश दिया जा रहा है. अनुसंधान केंद्र का दावा है कि इस विधि से एक एकड़ में 125 पौधे लगाए जा सकेंगे.

New technique of litchi production to produce more
बिहार में नई तकनीक से ज्यादा फलेगी रसीली लीची

क्या कहते हैं निदेशक?
डॉ. विशालनाथ ने आईएएनएस से कहा, "पूरब से पश्चिम दिशा में लगाने से लीची के हर पौधे को सूरज की रोशनी मिलेगी. इससे पौधा पुष्ट होगा और मजबूत पेड़ तैयार होगा. मजबूत पेड़ में लीची की मिठास और आकार दोनों में वृद्धि होगी. लीची के पेड़ को नियमित सूरज की रोशनी मिलने से उस पर कीट का प्रभाव भी कम पड़ने की संभावना रहेगी और उसे सौर ऊर्जा मिलती रहेगी."

जलवायु परिवर्तन से हो रहा असर
उन्होंने कहा कि इस विधि से तापमान बढ़ने का भी कम प्रभाव पड़ेगा. वे मानते हैं कि पहले लोग वर्गाकार पद्धति से पौधे लगाते थे. उन्होंने कहा कि पहले लोग पेड़ को अपने तरीके से बढ़ने देते थे और पेड़ झंझावत भी झेलते थे. जलवायु परिवर्तन के मौजूदा दौर में पेड़ पर दोतरफा मार पड़ रही है. वर्तमान विधि में पेड़ों को छोटा रखने के बाद किसान इसका प्रबंधन भी ठीक तरीके से कर सकेंगे.

Bihar accounts for 40 to 50 percent of the country's litchi production
देश के लीची उत्पादन में बिहार की कुल 40 से 50 फीसदी तक हिस्सेदारी

अन्य राज्यों में भी होगा प्रयोग
डॉ. विशालनाथ ने कहा कि लीची उत्पादन की इस विधि के लिए संस्थान उन्नत किस्म के पौधे भी तैयार कर रहा है. क्षेत्र विस्तार योजना के तहत राज्य में ही नहीं, अन्य राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भी नई विधि से लीची उत्पादन का प्रशिक्षण दे रहा है.

17 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य
उन्होंने कहा कि आमतौर पर फिलहाल एक हेक्टेयर में करीब सात टन लीची का उत्पदान होता है. डॉ. विशालनाथ का दावा है कि वर्ष 2050 तक देश में लीची का उत्पदान 17 लाख टन करने का लक्ष्य है. वर्तमान समय में लीची का उत्पादन करीब सात लाख टन है.

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