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प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का हाल बेहाल, मरीज नहीं अस्पताल को है इलाज की जरूरत...

जिले में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति दयनीय हो गई है. यह अस्पताल मरीजों का इलाज नहीं बल्कि खुद का इलाज कराने पर मजबूर दिख रहा है. तो आइये जानते हैं इस अस्पताल की क्या है हालत...

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Published : Feb 3, 2021, 1:22 PM IST

प्राथमिकी स्वास्थ्य केंद्र
प्राथमिकी स्वास्थ्य केंद्र

मुजफ्फरपुर: जिले का सकरा ग्रामीण आबादी बेहतर स्वास्थ्य सेवा से वंचित है. सरकार इसके लिए जितने भी दावे करें सब बेकार है. अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र को खुद इलाज की जरूरत है. बदहाली का हाल यह है कि इन अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टर से लेकर नर्स तक का अभाव है. कई उप स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं जहां कभी-कभी ही ताला खुलता है.

बंद पड़े इन केंद्रों का परिसर मवेशियों का चारागाह बना रहता है. सकरा के सीहो स्थित अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद भी चिकित्सक और कर्मी के अभाव में बेकार पड़ा है.

ग्रामीण होते हैं परेशान
ग्रामीणों को इलाज के लिए सकरा और मुजफ्फरपुर जाना होता है. नीम हकीम के चक्कर में फसकर मरीजों को वैसे नर्सिंग होम में भी इलाज कराना होता है जहां डॉक्टर की जगह काम्पाउंडर कार्य करते हैं. इसकी शिकायत पर सिविल सर्जन तक संज्ञान नहीं लेते. जिसके कारण मरीजों को काल के गाल में समा जाना होता है.

डायलिसिस पर है उप स्वास्थ्य केंद्र
सभी उप स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति बदहाल है. इन केंद्रों की जिम्मेवारी एक एएनएम पर है. बदहाली की स्थिति यह है कि यहां की पूरी व्यवस्था को डायलिसिस की जरूरत है. कई उप स्वास्थ्य केंद्र तो केवल टीकाकरण के लिए महीने में दो बार खुलता है. कई उप स्वास्थ्य केंद्र मोबाइल पर ही चलता है. एएनएम की इच्छा हुई तो किसी के दरवाजे पर उप स्वास्थ्य केंद्र लगा दिया और शेष दिनों में उसके झोले में ही उप स्वास्थ्य केंद्र रहता है. कई उप स्वास्थ्य केंद्र तो देखने से कहीं से नहीं लगता है कि यह अस्पताल है.

इसे भी पढ़ें: बक्सर: तबेला बना उपस्वास्थ्य केंद्र, अनजान हैं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी

दवा के नाम पर मिलता है आश्वासन
सरकारी स्तर पर 32 से 56 प्रकार की दवाइयां अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र में उपलब्ध होने के दावे किये जाते हैं. लेकिन अक्सर 6 से 7 प्रकार की दवाइयां ही मरीजों को मिल पाती है. दवा के नाम पर खांसी के लिए गोली एक-दो एंटीबायोटिक और कृमि की दवा ही आम लोगों को मिलती है. बाकी दवाइयों के लिए गरीब मरीजों को बाजार का रुख करना पड़ता है. इस हाल में गरीब मरीज सरकारी पुर्जा समेटकर एक-आध दवा को लेकर घर जाना बेहतर समझते हैं. ऐसे में इन गरीब मरीजों का इलाज अधूरा रह जाता है और स्वास्थ्य के प्रति सरकार के दावे पर सवालिया निशान लग जाता है.

आयुष चिकित्सक के भरोसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र
अधिकतर अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आयुष चिकित्सक के भरोसे से चल रहा है. यह अलग बात है कि यहां आयुर्वेदिक दवा नहीं मिलती है, लेकिन आयुष चिकित्सक दवा जरूर लिखते है. ऐसे में मरीजों का किस तरह का इलाज होता होगा यह आसानी से समझा जा सकता है. जबकि अमूमन सभी अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एलोपैथिक चिकित्सक के पद खाली पड़े हैं. ग्रामीणों की माने तो प्रत्येक अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर 40 से 50 मरीज प्रतिदिन आते हैं. लेकिन डॉक्टर के अभाव में इन मरीजों की चिकित्सा व्यवस्था भगवान भरोसे ही है.

स्वास्थ्य विभाग में कर्मी का अभाव है. आयुष चिकित्सकों को अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दिया गया है. एएनएम को बहुत सारा कार्यक्रम में भाग लेना पड़ता है, जिसके कारण उप स्वास्थ्य केंद्र पर नहीं पहुंच पाते हैं. वैसे रूटीन वर्क में सभी केन्द्रों को खोलना है. - संजीव कुमार, स्वस्थ्य प्रबंधक

मुजफ्फरपुर: जिले का सकरा ग्रामीण आबादी बेहतर स्वास्थ्य सेवा से वंचित है. सरकार इसके लिए जितने भी दावे करें सब बेकार है. अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र को खुद इलाज की जरूरत है. बदहाली का हाल यह है कि इन अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टर से लेकर नर्स तक का अभाव है. कई उप स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं जहां कभी-कभी ही ताला खुलता है.

बंद पड़े इन केंद्रों का परिसर मवेशियों का चारागाह बना रहता है. सकरा के सीहो स्थित अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद भी चिकित्सक और कर्मी के अभाव में बेकार पड़ा है.

ग्रामीण होते हैं परेशान
ग्रामीणों को इलाज के लिए सकरा और मुजफ्फरपुर जाना होता है. नीम हकीम के चक्कर में फसकर मरीजों को वैसे नर्सिंग होम में भी इलाज कराना होता है जहां डॉक्टर की जगह काम्पाउंडर कार्य करते हैं. इसकी शिकायत पर सिविल सर्जन तक संज्ञान नहीं लेते. जिसके कारण मरीजों को काल के गाल में समा जाना होता है.

डायलिसिस पर है उप स्वास्थ्य केंद्र
सभी उप स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति बदहाल है. इन केंद्रों की जिम्मेवारी एक एएनएम पर है. बदहाली की स्थिति यह है कि यहां की पूरी व्यवस्था को डायलिसिस की जरूरत है. कई उप स्वास्थ्य केंद्र तो केवल टीकाकरण के लिए महीने में दो बार खुलता है. कई उप स्वास्थ्य केंद्र मोबाइल पर ही चलता है. एएनएम की इच्छा हुई तो किसी के दरवाजे पर उप स्वास्थ्य केंद्र लगा दिया और शेष दिनों में उसके झोले में ही उप स्वास्थ्य केंद्र रहता है. कई उप स्वास्थ्य केंद्र तो देखने से कहीं से नहीं लगता है कि यह अस्पताल है.

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दवा के नाम पर मिलता है आश्वासन
सरकारी स्तर पर 32 से 56 प्रकार की दवाइयां अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र में उपलब्ध होने के दावे किये जाते हैं. लेकिन अक्सर 6 से 7 प्रकार की दवाइयां ही मरीजों को मिल पाती है. दवा के नाम पर खांसी के लिए गोली एक-दो एंटीबायोटिक और कृमि की दवा ही आम लोगों को मिलती है. बाकी दवाइयों के लिए गरीब मरीजों को बाजार का रुख करना पड़ता है. इस हाल में गरीब मरीज सरकारी पुर्जा समेटकर एक-आध दवा को लेकर घर जाना बेहतर समझते हैं. ऐसे में इन गरीब मरीजों का इलाज अधूरा रह जाता है और स्वास्थ्य के प्रति सरकार के दावे पर सवालिया निशान लग जाता है.

आयुष चिकित्सक के भरोसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र
अधिकतर अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आयुष चिकित्सक के भरोसे से चल रहा है. यह अलग बात है कि यहां आयुर्वेदिक दवा नहीं मिलती है, लेकिन आयुष चिकित्सक दवा जरूर लिखते है. ऐसे में मरीजों का किस तरह का इलाज होता होगा यह आसानी से समझा जा सकता है. जबकि अमूमन सभी अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एलोपैथिक चिकित्सक के पद खाली पड़े हैं. ग्रामीणों की माने तो प्रत्येक अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर 40 से 50 मरीज प्रतिदिन आते हैं. लेकिन डॉक्टर के अभाव में इन मरीजों की चिकित्सा व्यवस्था भगवान भरोसे ही है.

स्वास्थ्य विभाग में कर्मी का अभाव है. आयुष चिकित्सकों को अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दिया गया है. एएनएम को बहुत सारा कार्यक्रम में भाग लेना पड़ता है, जिसके कारण उप स्वास्थ्य केंद्र पर नहीं पहुंच पाते हैं. वैसे रूटीन वर्क में सभी केन्द्रों को खोलना है. - संजीव कुमार, स्वस्थ्य प्रबंधक

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