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बिहुला-विषहरी की तीन दिवसीय पूजा संपन्न, देर रात शुरू होगा प्रतिमाओं का विसर्जन - Bihula-Vishhari worship in Munger

अंग क्षेत्र की लोकगाथा पर आधारित बिहुला-विषहरी की तीन दिवसीय पूजा आज संपन्न हुई. आज देर रात से प्रतिमाओं का विसर्जन शुरू होगा और शुक्रवार की सुबह तक चलेगा.

बिहुला-विषहरी
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Published : Aug 19, 2021, 4:05 PM IST

मुंगेर: अंग क्षेत्र की लोकगाथा पर आधारित बिहुला-विषहरी (Bihula-Vishhari ) की तीन दिवसीय पूजा (Three Days Worship) आज पारंपरिक ढंग से श्रद्धा-भक्ति के साथ सम्पन्न हुई. श्रद्धालुओं ने अलग-अलग मोहल्ले में प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की. पुत्र प्राप्ति और पुत्र की रक्षा के लिए बिहुला-विषहरी की पूजा लंबे समय से होती आ रही है. यह महत्व पिछले 10 वर्षों से अधिक बढ़ा है. 8 स्थानों से बढ़कर अब 15 स्थानों पर माता की प्रतिमा स्थपित होने लगी है. आज देर रात से प्रतिमाओं का विसर्जन शुरू होकर शुक्रवार सुबह तक चलेगा.

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अंग प्रदेश भागलपुर के चंपानगर की बिहुला विषहरी की कहानी पौराणिक मान्यताओं से परिपूर्ण है. बड़ी बाजार विषहरी मंदिर के पुजारी मनीष पाठक का कहना है कि चंद्रधर सौदागर चंपानगर के एक बड़े व्यवसायी थे. वे एक शिवभक्त थे. विषहरी जो भगवान शिव की पुत्री मानी जाती हैं, उन्होंने चंद्रधर पर दबाव बनाया कि वे शिव की पूजा न करके किसी और की पूजा करें. लेकिन चंद्रधर राजी नहीं हुए. इसके बाद आक्रोशित विषहरी ने सौदागर के पूरे परिवार को खत्म कर दिया. चंद्रधर सौदागर के छोटे बेटे जिनका नाम बाला लखेंद्र था. उसकी शादी बिहुला से हुई. उसके प्राणों की रक्षा के लिए सौदागर ने लोहे और बांस से एक घर बनाया ताकि उसमें एक भी छिद्र न रहे. विषहरी ने उसमें प्रवेश कर लखेन्द्र को डस लिया.

देखें वीडियो

सती बिहुला अपने पति के शव को केले की नाव से लेकर गंगा के रास्ते स्वर्गलोक तक पहुंच गयी और अपने पति का प्राण वापस लेकर लौटी. जिसके बाद चन्द्रधर सौदागर ने विषहरी की पूजा बाएं हाथ से करना प्रारंभ किया. तब से लेकर आज तक मां विषहरी की पूजा बाएं हाथ से होती है. सौदागर के बेटे के लिए बनाया हुआ घर आज भी भागलपुर के चंपानगर में मौजूद है.

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बाला लखेंद्र के पिता और सती बिहुला के ससुर चंद्रधर सौदागार भगवान भोलेनाथ की बात सुनकर मनसा देवी की पूजा किये. चंद्रधर ने पूजन के लिए कलश स्थापित किया. इस दौरान स्वर्ग लोक से जया विषहरी, दुतिला विषहरी, पद्मा कुमारी, आदिकसुमिन और मैना विषहरी वहां पहुंच गयी. कलश पर पांचों बहन विराजमान थीं. इसलिए प्रतीक के रूप में कलश पर पांचों बहन विषहरी की आकृति बनाई जाती है. चंद्रधर सौदागर द्वारा शुरू की गयी पूजन की परंपरा आज भी जारी है. कलश के साथ-साथ मनषा देवी की भी पूजा की जाती है.

इस संबंध में विषहरी पूजा समिति के सचिव गोविंद मंडल ने बताया कि कोरोना संक्रमण काल के कारण पिछले 2 वर्षों से छोटे पंडाल में ही पूजा की जाती है. विसर्जन शोभायात्रा में ढोल-नगाड़े ही शामिल होंगे. पहले हाथी घोड़े भी इसमें शामिल होते थे और हजारों लोग विसर्जन में नाचते-गाते जाते थे. लेकिन कोरोना और बाढ़ के कारण पर्व का रौनक फीकी हो गयी है.

मुंगेर: अंग क्षेत्र की लोकगाथा पर आधारित बिहुला-विषहरी (Bihula-Vishhari ) की तीन दिवसीय पूजा (Three Days Worship) आज पारंपरिक ढंग से श्रद्धा-भक्ति के साथ सम्पन्न हुई. श्रद्धालुओं ने अलग-अलग मोहल्ले में प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की. पुत्र प्राप्ति और पुत्र की रक्षा के लिए बिहुला-विषहरी की पूजा लंबे समय से होती आ रही है. यह महत्व पिछले 10 वर्षों से अधिक बढ़ा है. 8 स्थानों से बढ़कर अब 15 स्थानों पर माता की प्रतिमा स्थपित होने लगी है. आज देर रात से प्रतिमाओं का विसर्जन शुरू होकर शुक्रवार सुबह तक चलेगा.

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अंग प्रदेश भागलपुर के चंपानगर की बिहुला विषहरी की कहानी पौराणिक मान्यताओं से परिपूर्ण है. बड़ी बाजार विषहरी मंदिर के पुजारी मनीष पाठक का कहना है कि चंद्रधर सौदागर चंपानगर के एक बड़े व्यवसायी थे. वे एक शिवभक्त थे. विषहरी जो भगवान शिव की पुत्री मानी जाती हैं, उन्होंने चंद्रधर पर दबाव बनाया कि वे शिव की पूजा न करके किसी और की पूजा करें. लेकिन चंद्रधर राजी नहीं हुए. इसके बाद आक्रोशित विषहरी ने सौदागर के पूरे परिवार को खत्म कर दिया. चंद्रधर सौदागर के छोटे बेटे जिनका नाम बाला लखेंद्र था. उसकी शादी बिहुला से हुई. उसके प्राणों की रक्षा के लिए सौदागर ने लोहे और बांस से एक घर बनाया ताकि उसमें एक भी छिद्र न रहे. विषहरी ने उसमें प्रवेश कर लखेन्द्र को डस लिया.

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सती बिहुला अपने पति के शव को केले की नाव से लेकर गंगा के रास्ते स्वर्गलोक तक पहुंच गयी और अपने पति का प्राण वापस लेकर लौटी. जिसके बाद चन्द्रधर सौदागर ने विषहरी की पूजा बाएं हाथ से करना प्रारंभ किया. तब से लेकर आज तक मां विषहरी की पूजा बाएं हाथ से होती है. सौदागर के बेटे के लिए बनाया हुआ घर आज भी भागलपुर के चंपानगर में मौजूद है.

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इस संबंध में विषहरी पूजा समिति के सचिव गोविंद मंडल ने बताया कि कोरोना संक्रमण काल के कारण पिछले 2 वर्षों से छोटे पंडाल में ही पूजा की जाती है. विसर्जन शोभायात्रा में ढोल-नगाड़े ही शामिल होंगे. पहले हाथी घोड़े भी इसमें शामिल होते थे और हजारों लोग विसर्जन में नाचते-गाते जाते थे. लेकिन कोरोना और बाढ़ के कारण पर्व का रौनक फीकी हो गयी है.

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