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मुंगेर में गरमा सब्जी की खेती के लिए बुआई शुरू, कम लागत में होगा अधिक मुनाफा - ETV BIHAR NEWS

मुंगेर में किसानों ने गरमा फसल के लिए बुआई शुरू कर दी है. किसान अगर पूरी तैयारी के साथ गरमा सब्जियों की खेती (Garma Vegetable Cultivation In Munger) करें तो उन्हें कम लागत में बेहतर लाभ मिल सकता है. पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

गरमा सब्जी की खेती का लाभ
गरमा सब्जी की खेती का लाभ
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Published : Mar 3, 2022, 2:19 PM IST

मुंगेर: बिहार के मुंगेर जिले में गर्मी का मौसम शुरू होने के साथ ही किसान गरमा फसल की बुआई के लिए तैयारी में जुट गए हैं. कई किसान गरमा सब्जियों (Garma Vegetable In Munger) के लिए खेतों में बीजारोपण कर रहे हैं. गरमा सब्जियों की खेती बहुत ही लाभकारी (Benefit of Garma Vegetables Cultivation) मानी जाती है. किसान अगर बीजारोपण, बीज उपचार तथा उचित सिंचाई एवं देखभाल करे तो कम लागत में भी बेहतर उपज ले सकते हैं.

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गरमा की मुख्य सब्जियां: गरमा सब्जी के रूप में भिंडी, फ्रेंच बीन्स, बैगन, कद्दू, नेनुआ, करेला, खीरा, प्याज, ककरी की खेती किसान करते हैं. इसके लिए खेतों में बेहतर तरीके से तैयारी करनी होती है. अधिक उपज के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ अशोक कुमार ने बताया कि, गरमा सब्जी की खेती के लिए किसान ट्रैक्टर चालित रोटावेटर या कल्टीवेटर से मिट्टी को कल्टी करवा सकते हैं एवं पाटा से समतल कर दें. इसके बाद डिबलर, ट्रांसप्लांटर से बीज उपचार के बाद बुआई या पौधा प्रतिरोपण करें.

कार्बनिक या प्लास्टिक मर्च का उपयोग: बता दें कि, उन्नत किसान गरमा फसल में आद्रता खाद एवं पोषक तत्व के वाष्पीकरण को रोकने के लिए कार्बनिक या प्लास्टिक मर्च का उपयोग करते हैं. इसके लिए किसान फसल अवशेष को हैप्पी सीडर, जीरो टिलेज से बुआई की हुई या कृत्रिम रूप से पत्ता या पुआल से पौध के जड़ क्षेत्र के चारों तरफ नमी बचाने के लिए ढंकते हैं. अब कुछ किसान प्लास्टिक मर्च का भी उपयोग करते हैं. प्लास्टिक मर्च के लिए किसान को सरकार प्रोत्साहित करने के लिए ₹14000 प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान भी देती है.

सिंचाई पर विशेष फोकस: गरमा सब्जी के लिए उन्नत सिंचाई विधि के लिए किसान मिनी स्प्रिंकलर या डीप सिंचाई से कर सकते हैं. इस पर भी सरकार 75% छूट देती है. उन्होंने कहा कि किसान गरमा सब्जी में सिंचाई के लिए 5 से 7 दिनों का अंतर रखें. परंपरागत विधि से सिंचाई थाला, नाली, चेक बेसिन के माध्यम से करें. लेकिन मिनी स्प्रिंकलर से सप्ताह में दो या तीन बार भी सिंचाई कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें- अब कनाडा की गोभी का स्वाद चखेंगे चंपारण के लोग, इम्युनिटी बढ़ाएंगी रंग बिरंगी गोभी

20 फरवरी से 15 अप्रैल तक बुआई का समय: गरमा फसल के रूप में मक्का एवं मूंग की खेती भी किसान करते हैं. इसका उचित बुआई का समय 20 फरवरी से 15 अप्रैल तक के बीच है. इसके लिए किसान कल्टीवेटर से या रोटावेटर से खेतों में बुआई कराएं. इसके लिए किसान मूल खेत पलाऊ से जुताई के बाद कल्टीवेटर से बीच के मिट्टी को मिलाई करें. गरमा फसल में मुख्य रूप से मकई एवं मूंग है. मकई की बुआई डिबलिंग विधि से एवं मूंग की बुआई छिट कावां विधि से या जीरो टीलेज से किसान कर सकते हैं.



कृषि वैज्ञानिक की राय: इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर अशोक कुमार ने बताया कि, बुआई के पहले मिट्टी में आद्रता नहीं रहने पर हल्की सिंचाई के बाद की बुआई या प्रतिरोपण करना चाहिए. मकई के बुआई के 20 दिन बाद पहली सिंचाई की जानी चाहिए. इससे किसानों को मकई फसल की अच्छी उपज मिल सकती है.

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मुंगेर: बिहार के मुंगेर जिले में गर्मी का मौसम शुरू होने के साथ ही किसान गरमा फसल की बुआई के लिए तैयारी में जुट गए हैं. कई किसान गरमा सब्जियों (Garma Vegetable In Munger) के लिए खेतों में बीजारोपण कर रहे हैं. गरमा सब्जियों की खेती बहुत ही लाभकारी (Benefit of Garma Vegetables Cultivation) मानी जाती है. किसान अगर बीजारोपण, बीज उपचार तथा उचित सिंचाई एवं देखभाल करे तो कम लागत में भी बेहतर उपज ले सकते हैं.

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गरमा की मुख्य सब्जियां: गरमा सब्जी के रूप में भिंडी, फ्रेंच बीन्स, बैगन, कद्दू, नेनुआ, करेला, खीरा, प्याज, ककरी की खेती किसान करते हैं. इसके लिए खेतों में बेहतर तरीके से तैयारी करनी होती है. अधिक उपज के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ अशोक कुमार ने बताया कि, गरमा सब्जी की खेती के लिए किसान ट्रैक्टर चालित रोटावेटर या कल्टीवेटर से मिट्टी को कल्टी करवा सकते हैं एवं पाटा से समतल कर दें. इसके बाद डिबलर, ट्रांसप्लांटर से बीज उपचार के बाद बुआई या पौधा प्रतिरोपण करें.

कार्बनिक या प्लास्टिक मर्च का उपयोग: बता दें कि, उन्नत किसान गरमा फसल में आद्रता खाद एवं पोषक तत्व के वाष्पीकरण को रोकने के लिए कार्बनिक या प्लास्टिक मर्च का उपयोग करते हैं. इसके लिए किसान फसल अवशेष को हैप्पी सीडर, जीरो टिलेज से बुआई की हुई या कृत्रिम रूप से पत्ता या पुआल से पौध के जड़ क्षेत्र के चारों तरफ नमी बचाने के लिए ढंकते हैं. अब कुछ किसान प्लास्टिक मर्च का भी उपयोग करते हैं. प्लास्टिक मर्च के लिए किसान को सरकार प्रोत्साहित करने के लिए ₹14000 प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान भी देती है.

सिंचाई पर विशेष फोकस: गरमा सब्जी के लिए उन्नत सिंचाई विधि के लिए किसान मिनी स्प्रिंकलर या डीप सिंचाई से कर सकते हैं. इस पर भी सरकार 75% छूट देती है. उन्होंने कहा कि किसान गरमा सब्जी में सिंचाई के लिए 5 से 7 दिनों का अंतर रखें. परंपरागत विधि से सिंचाई थाला, नाली, चेक बेसिन के माध्यम से करें. लेकिन मिनी स्प्रिंकलर से सप्ताह में दो या तीन बार भी सिंचाई कर सकते हैं.

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20 फरवरी से 15 अप्रैल तक बुआई का समय: गरमा फसल के रूप में मक्का एवं मूंग की खेती भी किसान करते हैं. इसका उचित बुआई का समय 20 फरवरी से 15 अप्रैल तक के बीच है. इसके लिए किसान कल्टीवेटर से या रोटावेटर से खेतों में बुआई कराएं. इसके लिए किसान मूल खेत पलाऊ से जुताई के बाद कल्टीवेटर से बीच के मिट्टी को मिलाई करें. गरमा फसल में मुख्य रूप से मकई एवं मूंग है. मकई की बुआई डिबलिंग विधि से एवं मूंग की बुआई छिट कावां विधि से या जीरो टीलेज से किसान कर सकते हैं.



कृषि वैज्ञानिक की राय: इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर अशोक कुमार ने बताया कि, बुआई के पहले मिट्टी में आद्रता नहीं रहने पर हल्की सिंचाई के बाद की बुआई या प्रतिरोपण करना चाहिए. मकई के बुआई के 20 दिन बाद पहली सिंचाई की जानी चाहिए. इससे किसानों को मकई फसल की अच्छी उपज मिल सकती है.

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