ETV Bharat / state

मधुबनी में प्राचीन काल से ही किया जाता है जनेऊ का निर्माण, उपयोग के हैं कई फायदे - मधुबनी में जनेऊ का उत्पादन

बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं. इस धागे को जनेऊ के नाम से जाना जाता है. यह एक तीन धागों वाला सूत्र होता है, जो कि हिंदू धर्म के लोग इसका प्रयोग करते हैं. इस जनेऊ का उत्पादन बिहार के मधुबनी जिले में बड़ी संख्या में किया जाता है. इस जिले का जनेऊ इतना प्रसिद्ध है कि विदेशी में भी इसकी मांग की जाती हैं.

woman making janeu
जनेऊ बनाती हुई महिला
author img

By

Published : Jun 29, 2020, 5:43 PM IST

मधुबनी: जनेऊ बनाने का काम प्राचीन काल से महिलाएं करती आ रही हैं. बिहार के मधुबनी जिले के 60 से अधिक गांवों में यह काम बड़े पैमाने पर होता है. वहां के बने जनेऊ खास है, जिससे कि उनकी मांग विदेशों तक होती है. जिले में 100 से अधिक महिलाएं इस काम में स्‍थाई रूप से लगी हुई हैं. कोरोना महामारी के संकट काल में लॉकडाउन के दौरान भी यह काम घर से किया जा रहा है.

लघु-उद्योगों का हो रहा विकास
राजनगर प्रखंड के मंगरौनी गांव की निवासी रीता पाठक जनेऊ बनाती हैं. वे बताती हैं कि करीब 100 वर्ष पुराना चरखा और तकली उन्हें ससुराल में धरोहर के रूप में मिला है. वे प्रतिदिन 30 से 50 जनेऊ बना लेती हैं. लॉकडाउन अवधि में तो उन्‍होंने 1200 जनेऊ तैयार किया है. रीता पाठक बताती हैं कि एक महिला हर साल 12 से 13 हजार तक जनेऊ तैयार कर लेती है. मधुबनी में बने जनेऊ की विदेशों में भी भारी मांग है. इससे लघु-उद्योग का विकास भी हो रहा है. रीता पाठक बताती है कि आय तो अधिक नहीं होती, लेकिन अन्‍य सामानों के साथ इसकी बिक्री होती है. रीता पाठक को सालाना में 50 से 75 हजार रुपये की आमदनी आराम से हो जाती है.

विदेशों में भी मांग
मधुबनी के उम्दा क्वालिटी के इस जनेऊ की मांग विदेशों में भी है. शुभ और मांगलिक कार्यों, लग्न और उपनयन के दिनों में मांग बढ़ जाती है. इसकी आपूर्ति जिले के गांवों से होती है. इसके साथ ही लोग आर्डर देकर भी बनवाते हैं. विदेश से आने वाले अप्रवासी यहीं से जनेऊ लेकर जाते हैं. स्थानीय बाजार में इसकी कीमत 8 से 12 रुपये है, जबकि महानगरों और विदेशों में 30 से 40 रुपये तक होती है.

कब्ज की समस्या से मुक्ति
जनेऊ को मल-मूत्र त्याग के समय कान पर लपेटा जाता है. माना जाता है कि शौच के समय जनेऊ को कान के ऊपर लपेटने से उसके पास से गुजरने वाली उन नसों पर दबाव पड़ता है, जिनका संबंध सीधे आंतों से होता है. इससे कब्ज की समस्या दूर होती है. कान पर दबाव पड़ने से दिमाग की वे नसें भी खुल जाती हैं, जिनका संबंध स्मरण शक्ति से होता है. शौच के समय नसों पर पड़ने वाले इस दबाव के कारण रक्‍तचाप पर नियंत्रण होता है और मस्तिष्‍क आघात का खतरा भी कम हो जाता है. माना जाता है कि जनेऊ जितना पतला होगा, नसों पर दबाव उतना ही अधिक डालेगा.

कम लागत पर उत्पादन
इस खास जनेऊ के निर्माण के लिए मुख्य रूप से चरखा, रूई, सूत और रंग की जरूरत होती है. 10 से 15 हजार की लागत से इसका उत्पादन शुरू किया जा सकता है. वैसे, ये सूत स्थानीय खादी भंडार में भी उपलब्ध हो जाते हैं. वहीं इसके मांग को देखते हुए स्‍थानीय बाजार में भी ऐसे सूत उपलब्‍ध हैं.

मधुबनी: जनेऊ बनाने का काम प्राचीन काल से महिलाएं करती आ रही हैं. बिहार के मधुबनी जिले के 60 से अधिक गांवों में यह काम बड़े पैमाने पर होता है. वहां के बने जनेऊ खास है, जिससे कि उनकी मांग विदेशों तक होती है. जिले में 100 से अधिक महिलाएं इस काम में स्‍थाई रूप से लगी हुई हैं. कोरोना महामारी के संकट काल में लॉकडाउन के दौरान भी यह काम घर से किया जा रहा है.

लघु-उद्योगों का हो रहा विकास
राजनगर प्रखंड के मंगरौनी गांव की निवासी रीता पाठक जनेऊ बनाती हैं. वे बताती हैं कि करीब 100 वर्ष पुराना चरखा और तकली उन्हें ससुराल में धरोहर के रूप में मिला है. वे प्रतिदिन 30 से 50 जनेऊ बना लेती हैं. लॉकडाउन अवधि में तो उन्‍होंने 1200 जनेऊ तैयार किया है. रीता पाठक बताती हैं कि एक महिला हर साल 12 से 13 हजार तक जनेऊ तैयार कर लेती है. मधुबनी में बने जनेऊ की विदेशों में भी भारी मांग है. इससे लघु-उद्योग का विकास भी हो रहा है. रीता पाठक बताती है कि आय तो अधिक नहीं होती, लेकिन अन्‍य सामानों के साथ इसकी बिक्री होती है. रीता पाठक को सालाना में 50 से 75 हजार रुपये की आमदनी आराम से हो जाती है.

विदेशों में भी मांग
मधुबनी के उम्दा क्वालिटी के इस जनेऊ की मांग विदेशों में भी है. शुभ और मांगलिक कार्यों, लग्न और उपनयन के दिनों में मांग बढ़ जाती है. इसकी आपूर्ति जिले के गांवों से होती है. इसके साथ ही लोग आर्डर देकर भी बनवाते हैं. विदेश से आने वाले अप्रवासी यहीं से जनेऊ लेकर जाते हैं. स्थानीय बाजार में इसकी कीमत 8 से 12 रुपये है, जबकि महानगरों और विदेशों में 30 से 40 रुपये तक होती है.

कब्ज की समस्या से मुक्ति
जनेऊ को मल-मूत्र त्याग के समय कान पर लपेटा जाता है. माना जाता है कि शौच के समय जनेऊ को कान के ऊपर लपेटने से उसके पास से गुजरने वाली उन नसों पर दबाव पड़ता है, जिनका संबंध सीधे आंतों से होता है. इससे कब्ज की समस्या दूर होती है. कान पर दबाव पड़ने से दिमाग की वे नसें भी खुल जाती हैं, जिनका संबंध स्मरण शक्ति से होता है. शौच के समय नसों पर पड़ने वाले इस दबाव के कारण रक्‍तचाप पर नियंत्रण होता है और मस्तिष्‍क आघात का खतरा भी कम हो जाता है. माना जाता है कि जनेऊ जितना पतला होगा, नसों पर दबाव उतना ही अधिक डालेगा.

कम लागत पर उत्पादन
इस खास जनेऊ के निर्माण के लिए मुख्य रूप से चरखा, रूई, सूत और रंग की जरूरत होती है. 10 से 15 हजार की लागत से इसका उत्पादन शुरू किया जा सकता है. वैसे, ये सूत स्थानीय खादी भंडार में भी उपलब्ध हो जाते हैं. वहीं इसके मांग को देखते हुए स्‍थानीय बाजार में भी ऐसे सूत उपलब्‍ध हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.