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इन दिन मनाया जाता है सामा चकेबा, भाई-बहन के अटूट प्रेम का त्योहार

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Published : Oct 19, 2022, 6:31 AM IST

लोक आस्था का महापर्व छठ के समापन के साथ ही गुरुवार से मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व सामा चकेवा (Sama Chakeva) शुरू जाता है. यह पर्व भाई बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलने वाले इस लोक पर्व के दौरान महिलाएं सामा चकेवा की मूर्तियों (Statues of Sama Chakeva) के साथ सामूहिक रूप से गीत गाती हैं. पढ़ें

Sama Chakeva 2022
Sama Chakeva 2022

मधुबनी: 'सामा ऐली कार्तिक महिनमा, संग में चकेबा लय के ना... भैया ऐला पहुना, सामा-चकेबा सनेस लेला ना... एलै कार्तिक के बहार सामा करियौ ने तैयार...' मिथिलांचल की बेटियां सामा-चकेवा (Sama Chakeva in Mithilanchal) पर सुर में सुर लगाकर गीत गा गाती हैं और सामा चकेबा संग खूब मस्ती करती हैं. सात दिनों के इस पर्व की शुरुआत देवोत्थान एकादशी (Devothan Ekadashi) से शुरू होकर समापन गंगा स्नान यानि कार्तिक पूर्णिमा (Karthik Purnima) के दिन होता है. सामा चकेबा पर्व में बहनें भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं.

सात दिनों तक चलता है यह त्योहार : ग्रामीण महिलाए बताती है कि सामा चकेबा त्योहार (folk festival of mithilanchal sama chakeva) में महिलाएं आठ दिनों तक सामा-चकेबा, चुगला और दूसरी मूर्तियां बनाकर उन्हें पूजती हैं. इस त्योहार में महिलाएं और युवतियां पारंपरिक मैथिली लोकगीत गाती हैं. इन गीतों में सामा और चकेवा के रूप में भाई-बहन के प्रेम का वर्णन होता है. आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेवा को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें नदी तालाबों के घाटों तक पहुंचती हैं और पारंपरिक गीतों के साथ सामा चकेवा का विसर्जन हो जाता है. विसर्जन के समय सामा के साथ खाने-पीने की चीजें, कपड़े, बिस्तर और दूसरी जरूरी चीजें दी जाती हैं. महिलाएं विदाई के गीत गाती हैं, जिसे समदाओन कहते हैं.

घुटनों से तोड़ा जाता है सामा चकेबा : ग्राणीन बताती है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन सामा चकेवा की पूजा होती है. भाई को चूड़ा-गुड़ और लड्डू दिया जाता है. इसके बाद बहन सामा और चकेबा को पीला वस्त्र पहनाती है. चूड़ा-दही और गुड़ खिलाकर विदाई करती है. इसके बाद भाई अपने घुटने से सामा चकेवा की मूर्ति को तोड़ता है. और फिर बहन और भाई मिलकर सामा चकेवा को जमीन के अंदर दबा देते हैं.

चुगला का किया जाता है मुंह काला: महिलाएं इस कहानी की खलनायक चुगला और यहां तक कि वृंदावन को भी जला देती हैं. चुगला झूठी बातें फैलाता है. उसी के चलते सामा को कठोर श्राप झेलना पड़ा. इसलिए इस त्योहार में चुगला का मुंह काला किया जाता है.

भगवान कृष्ण से जुड़ी है कथा : मान्यता है कि सामा भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री और सांब पुत्र थे. सामा को घूमने में मन लगता था. इसलिए वह अपनी दासी चुगला के साथ वृंदावन में जाकर ऋषियों के साथ खेलती थी. यह बात दासी दुष्ट चुगला को रास नहीं आयी. उसने सामा के पिता से इसकी शिकायत कर दी. आक्रोश में आकर कृष्ण ने उसे पक्षी होने का श्राप दे दिया. इसके बाद सामा पक्षी का रूप लेकर वृंदावन में रहने लगी. इस वियोग में ऋषि- मुनि भी पक्षी बनकर उसी जंगल में विचरण करने लगे.

मिथिलांचल का लोक पर्व सामा चकेवा: कालांतर में सामा के भाई सांब अपनी बहन की खोज की तो पता चला कि निर्दोष बहन पर पिता के श्राप का साया है. उसके बाद उसने अपने पिता की तपस्या शुरु कर दी. भगवान श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर नौ दिनों के लिए उसके पास आने का वरदान दिया. सामा ने उसी दिन से अपने भाई के दीर्घायु की कामना लेकर बहनों को पूजा करने का आशीर्वाद दिया. तबसे ही मिथिला में सामा-चकेवा पर्व मनाया जाता है.

मधुबनी: 'सामा ऐली कार्तिक महिनमा, संग में चकेबा लय के ना... भैया ऐला पहुना, सामा-चकेबा सनेस लेला ना... एलै कार्तिक के बहार सामा करियौ ने तैयार...' मिथिलांचल की बेटियां सामा-चकेवा (Sama Chakeva in Mithilanchal) पर सुर में सुर लगाकर गीत गा गाती हैं और सामा चकेबा संग खूब मस्ती करती हैं. सात दिनों के इस पर्व की शुरुआत देवोत्थान एकादशी (Devothan Ekadashi) से शुरू होकर समापन गंगा स्नान यानि कार्तिक पूर्णिमा (Karthik Purnima) के दिन होता है. सामा चकेबा पर्व में बहनें भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं.

सात दिनों तक चलता है यह त्योहार : ग्रामीण महिलाए बताती है कि सामा चकेबा त्योहार (folk festival of mithilanchal sama chakeva) में महिलाएं आठ दिनों तक सामा-चकेबा, चुगला और दूसरी मूर्तियां बनाकर उन्हें पूजती हैं. इस त्योहार में महिलाएं और युवतियां पारंपरिक मैथिली लोकगीत गाती हैं. इन गीतों में सामा और चकेवा के रूप में भाई-बहन के प्रेम का वर्णन होता है. आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेवा को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें नदी तालाबों के घाटों तक पहुंचती हैं और पारंपरिक गीतों के साथ सामा चकेवा का विसर्जन हो जाता है. विसर्जन के समय सामा के साथ खाने-पीने की चीजें, कपड़े, बिस्तर और दूसरी जरूरी चीजें दी जाती हैं. महिलाएं विदाई के गीत गाती हैं, जिसे समदाओन कहते हैं.

घुटनों से तोड़ा जाता है सामा चकेबा : ग्राणीन बताती है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन सामा चकेवा की पूजा होती है. भाई को चूड़ा-गुड़ और लड्डू दिया जाता है. इसके बाद बहन सामा और चकेबा को पीला वस्त्र पहनाती है. चूड़ा-दही और गुड़ खिलाकर विदाई करती है. इसके बाद भाई अपने घुटने से सामा चकेवा की मूर्ति को तोड़ता है. और फिर बहन और भाई मिलकर सामा चकेवा को जमीन के अंदर दबा देते हैं.

चुगला का किया जाता है मुंह काला: महिलाएं इस कहानी की खलनायक चुगला और यहां तक कि वृंदावन को भी जला देती हैं. चुगला झूठी बातें फैलाता है. उसी के चलते सामा को कठोर श्राप झेलना पड़ा. इसलिए इस त्योहार में चुगला का मुंह काला किया जाता है.

भगवान कृष्ण से जुड़ी है कथा : मान्यता है कि सामा भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री और सांब पुत्र थे. सामा को घूमने में मन लगता था. इसलिए वह अपनी दासी चुगला के साथ वृंदावन में जाकर ऋषियों के साथ खेलती थी. यह बात दासी दुष्ट चुगला को रास नहीं आयी. उसने सामा के पिता से इसकी शिकायत कर दी. आक्रोश में आकर कृष्ण ने उसे पक्षी होने का श्राप दे दिया. इसके बाद सामा पक्षी का रूप लेकर वृंदावन में रहने लगी. इस वियोग में ऋषि- मुनि भी पक्षी बनकर उसी जंगल में विचरण करने लगे.

मिथिलांचल का लोक पर्व सामा चकेवा: कालांतर में सामा के भाई सांब अपनी बहन की खोज की तो पता चला कि निर्दोष बहन पर पिता के श्राप का साया है. उसके बाद उसने अपने पिता की तपस्या शुरु कर दी. भगवान श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर नौ दिनों के लिए उसके पास आने का वरदान दिया. सामा ने उसी दिन से अपने भाई के दीर्घायु की कामना लेकर बहनों को पूजा करने का आशीर्वाद दिया. तबसे ही मिथिला में सामा-चकेवा पर्व मनाया जाता है.

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