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मधेपुरा में मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु कराते हैं नाच का आयोजन

जिले में श्रद्धालु मनोकामना पूरी होने पर घाट पर नाच का आयोजन करवाते हैं. यही कारण है कि यहां हर साल दर्जनों से ज्यादा की संख्या में लोग नाच का आयोजन करवाते रहते हैं.

महापर्व छठ
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Published : Nov 4, 2019, 8:24 AM IST

मधेपुराः लोक आस्था का महापर्व छठ समाप्त हो गया है. लेकिन मधेपुरा सहित मिथिला में पर्व के दौरान होने वाला नाच अभी भी चर्चा का विषय बना हुआ है. दरअसल जिले में वर्षो से पर्व के मौके पर श्रद्धालुओं की ओर से नाच का आयोजन किया जा रहा है. इस कारण जिले के सभी छठ घाटों पर श्रद्धालुओं सहित अन्य दर्शकों की गहमा-गहमी लगी रहती है.

मनोकामना पूरी होने पर नाच का आयोजन

समाजसेवी डॉ. सुलेंद्र कुमार कहते है कि यहां जो लोग छठ मईया से मनोकामना मांगते है उसमें यह नाच भी शामिल रहता है. श्रद्धालु मनोकामना पूरी होने पर घाट पर नाच का आयोजन करवाते हैं. यही कारण है कि यहां हर साल दर्जनों से ज्यादा की संख्या में लोग नाच का आयोजन करवाते रहते हैं.

Madhepura
मनोकामना पूरी होने पर नाच का आयोजन करवाते श्रद्धालु

बिहार का कल्चर हिस्सा है यह नाच

उन्होंने यह भी कहा कि खासकर जिनको बाल बच्चे नहीं होता है. वह लोग अधिकतर मनोकामना पूर्ण होने पर इस तरह के नाच का आयोजन करवाते हैं. लड़कियों के भेष में लड़को के इस नाच को लौंडा नाच कहा जाता है. यह नाच बिहार कल्चर का हिस्सा है, जो अब भी देखने को मिलता है.

देखें पूरी रिपोर्ट

मधेपुराः लोक आस्था का महापर्व छठ समाप्त हो गया है. लेकिन मधेपुरा सहित मिथिला में पर्व के दौरान होने वाला नाच अभी भी चर्चा का विषय बना हुआ है. दरअसल जिले में वर्षो से पर्व के मौके पर श्रद्धालुओं की ओर से नाच का आयोजन किया जा रहा है. इस कारण जिले के सभी छठ घाटों पर श्रद्धालुओं सहित अन्य दर्शकों की गहमा-गहमी लगी रहती है.

मनोकामना पूरी होने पर नाच का आयोजन

समाजसेवी डॉ. सुलेंद्र कुमार कहते है कि यहां जो लोग छठ मईया से मनोकामना मांगते है उसमें यह नाच भी शामिल रहता है. श्रद्धालु मनोकामना पूरी होने पर घाट पर नाच का आयोजन करवाते हैं. यही कारण है कि यहां हर साल दर्जनों से ज्यादा की संख्या में लोग नाच का आयोजन करवाते रहते हैं.

Madhepura
मनोकामना पूरी होने पर नाच का आयोजन करवाते श्रद्धालु

बिहार का कल्चर हिस्सा है यह नाच

उन्होंने यह भी कहा कि खासकर जिनको बाल बच्चे नहीं होता है. वह लोग अधिकतर मनोकामना पूर्ण होने पर इस तरह के नाच का आयोजन करवाते हैं. लड़कियों के भेष में लड़को के इस नाच को लौंडा नाच कहा जाता है. यह नाच बिहार कल्चर का हिस्सा है, जो अब भी देखने को मिलता है.

देखें पूरी रिपोर्ट
Intro:मधेपुरा में मनोकामना पूर्ण होने पर छठ घाट पर आयोजित किया जाता है लोंडा नाच।Body:मधेपुरा सहित मिथिला में मनोकामना पूर्ण होने पर छठव्रतियों द्वारा आयोजित करवाया जाता है लौंडा नाच।बता दें कि सभी छठ घाटों पर लौंडा नाच की टीम एक नहीं दर्जनों में रंग रंग नाच कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहते हैं।जिसके कारण छठ घाट पर श्रद्धालुओं सहित अन्य दर्शकों की गहमा गहमी लगी रहती है।धार्मिक जानकार व समाजसेवी डॉ0सुलेन्द्र कुमार कहते हैं कि जो भी लोग छठ मईया से कोई भी मन्नते मांगते हैं तो उसमें लौंडा नाच कराने की भी मन्नते शामिल रहता है,और जब उनकी मन्नते पूरी हो जाती है तो वे छठ पूजा के साथ साथ घाट पर लौंडा नाच भी करवाते हैं।यही कारण है कि सभी छठ घाट पर एक नहीं दर्जनों लौंडा नाच की टीम अपनी अपनी रंगा रंग प्रस्तुति करती है।इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि खासकर जिनको बाल बच्चे नहीं होता है वैसे लोग अधिकतर मनोकामना पूर्ण होने पर छठ पूजा के साथ साथ लौंडा नाच भी करवाते हैं।यह परंपरा आजादी के पूर्व से ही चलता आ रहा है।हैरत की बात तो यह कि आज से सात दशक पूर्व गिने चुने लोग ही छठ पूजा मनाते थे।लेकिन आज समाज के 99 प्रतिशत लोग छठ पूजा करते हैं जो इस पर्व की सबसे बड़ी खूबी है।बाइट 1
डॉ0सुलेन्द्र कुमार छठ पूजा के जानकार सह समाजसेवी मधेपुरा।Conclusion:मधेपुरा से रुद्रनारायण।
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