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किशनगंजः 137 सालों से लगता आ रहा है खगड़ा मेला, 5 फरवरी को DM करेंगे उद्घाटन

स्थानीय लोगों का कहना है कि वर्तमान समय में मेले का स्वरूप धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. मेले की जमीन पर कई सरकारी मकान बन चुके हैं. पहले लोग जिले को खगड़ा मेले के नाम से जानते थे. लेकिन वर्तमान में मेला अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है.

खगड़ा मेला
खगड़ा मेला
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Published : Feb 4, 2020, 9:47 PM IST

किशनगंजः जिले में लगने वाला ऐतिहासिक खगड़ा मेला एक बार फिर से सजने के लिए तैयार है. इस मेले का उद्घाटन 5 फरवरी डीएम हिमांशु शर्मा करेंगे. मेले को लेकर लगभग सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं. जानकार बताते हैं कि इस मेले की शुरुआत 1883 में नवाब सैयद अता हुसैन ने की थी. मेले का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. यह मेला पिछले 137 सालों से जारी है.

'मेले की रौनक हुई कम'
स्थानीय उस्मान गनी बताते हैं कि इस मेले को कभी सोनपुर के बाद एशिया का दूसरे सबसे बड़े पशु मेले के रूप में जाना जाता था. मेले में भारत ही नहीं बल्कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, मलेशिया अफगानिस्तान सहित देशों के व्यापारी यहां आते थे और अपने उत्पादों का स्टॉल लगाकर व्यापार करते थे. मेले की भव्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1950 में इस मेले में पशुओं की बिक्री से 80 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था. लेकिन आज यह मेला जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण अपने गौरवशाली अतीत से कोसों दूर है.

गौरवशाली रहा है खगड़ा मेले का इतिहास

'87 लाख में हुआ मेले का डाक'
मेले के संवेदक अजय कुमार साह बताते हैं कि आज भी यह मेला अपने अंदर कई सुनहरी यादों को संजोए हुए है. इस साल मेले का डाक 87 लाख 50 हजार रुपये में हुआ है. 5 फरवरी को डीएम हिमांशु शर्मा मेले का शुभारंभ करेंगे. मेले में लोगों को अकर्षित करने के लिए मनोरंजन के कई साधनों को मंगवाया गया है. पहले मेले में सर्कस को बुलाया जाता था. हालांकि पशुओं के खेल पर पाबंदी के कारण सर्कस में भीड़ पहले जैसी नहीं रही. लेकिन इस बार देश के कई सर्वश्रेष्ठ सर्कस को मंगवाया गया है. जो लोगों को नए अंदाज में मनोरंजन पेश करेंगे.

'मेले के मैदान पर बन चुका है सरकारी भवन'
स्थानीय लोगों का कहना है कि वर्तमान समय में मेले का स्वरूप धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. मेले की जमीन पर कई सरकारी मकान बन चुके हैं. पहले लोग जिले को खगड़ा मेले के नाम से जानते थे. लेकिन वर्तमान में मेला अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है.

मेले में आए हुए सर्कस
मेले में आया सर्कस

नवाब सैयद अता हुसैन ने शुरू किया था मेला
जानकार बताते हैं कि मेले की शुरुआत तत्कालीन नवाब सैयद अता हुसैन ने किया था. वे इस मेले को लेकर काफी संवेदनशील थे. वे खुद से मेले में आए हुए व्यापारियों की सुरक्षा, साफ- सफाई, सजावट और सुविधाओं पर ध्यान देते थे. नवाब साहब हाथी पर सवार होकर मेले का भ्रमण कर मेले का मुआयना करते थे. वे सबसे अच्छे प्रतिष्ठान को खुद से पुरस्कृत किया करते थे. लोगों का कहना है कि समय के साथ ही इस मेले का स्वरूप घटता जा रहा है. कभी सैकड़ों एकड़ में लगने वाला मेला आज अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद कर रहा है.

किशनगंजः जिले में लगने वाला ऐतिहासिक खगड़ा मेला एक बार फिर से सजने के लिए तैयार है. इस मेले का उद्घाटन 5 फरवरी डीएम हिमांशु शर्मा करेंगे. मेले को लेकर लगभग सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं. जानकार बताते हैं कि इस मेले की शुरुआत 1883 में नवाब सैयद अता हुसैन ने की थी. मेले का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. यह मेला पिछले 137 सालों से जारी है.

'मेले की रौनक हुई कम'
स्थानीय उस्मान गनी बताते हैं कि इस मेले को कभी सोनपुर के बाद एशिया का दूसरे सबसे बड़े पशु मेले के रूप में जाना जाता था. मेले में भारत ही नहीं बल्कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, मलेशिया अफगानिस्तान सहित देशों के व्यापारी यहां आते थे और अपने उत्पादों का स्टॉल लगाकर व्यापार करते थे. मेले की भव्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1950 में इस मेले में पशुओं की बिक्री से 80 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था. लेकिन आज यह मेला जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण अपने गौरवशाली अतीत से कोसों दूर है.

गौरवशाली रहा है खगड़ा मेले का इतिहास

'87 लाख में हुआ मेले का डाक'
मेले के संवेदक अजय कुमार साह बताते हैं कि आज भी यह मेला अपने अंदर कई सुनहरी यादों को संजोए हुए है. इस साल मेले का डाक 87 लाख 50 हजार रुपये में हुआ है. 5 फरवरी को डीएम हिमांशु शर्मा मेले का शुभारंभ करेंगे. मेले में लोगों को अकर्षित करने के लिए मनोरंजन के कई साधनों को मंगवाया गया है. पहले मेले में सर्कस को बुलाया जाता था. हालांकि पशुओं के खेल पर पाबंदी के कारण सर्कस में भीड़ पहले जैसी नहीं रही. लेकिन इस बार देश के कई सर्वश्रेष्ठ सर्कस को मंगवाया गया है. जो लोगों को नए अंदाज में मनोरंजन पेश करेंगे.

'मेले के मैदान पर बन चुका है सरकारी भवन'
स्थानीय लोगों का कहना है कि वर्तमान समय में मेले का स्वरूप धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. मेले की जमीन पर कई सरकारी मकान बन चुके हैं. पहले लोग जिले को खगड़ा मेले के नाम से जानते थे. लेकिन वर्तमान में मेला अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है.

मेले में आए हुए सर्कस
मेले में आया सर्कस

नवाब सैयद अता हुसैन ने शुरू किया था मेला
जानकार बताते हैं कि मेले की शुरुआत तत्कालीन नवाब सैयद अता हुसैन ने किया था. वे इस मेले को लेकर काफी संवेदनशील थे. वे खुद से मेले में आए हुए व्यापारियों की सुरक्षा, साफ- सफाई, सजावट और सुविधाओं पर ध्यान देते थे. नवाब साहब हाथी पर सवार होकर मेले का भ्रमण कर मेले का मुआयना करते थे. वे सबसे अच्छे प्रतिष्ठान को खुद से पुरस्कृत किया करते थे. लोगों का कहना है कि समय के साथ ही इस मेले का स्वरूप घटता जा रहा है. कभी सैकड़ों एकड़ में लगने वाला मेला आज अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद कर रहा है.

Intro:किशनगंजःसोनपुर के बाद एशिया का दुसरा सबसे बड़ा पशु मेला खगड़ा मेला का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है।137 सालों से लगता आ रहा है खगड़ा मेला, कभी सोनपुर के बाद एशिया का सबसे बड़ा पशुमेला हुआ करता था।मेले मे भारत ही नहीं बल्कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, मलेशिया अफगानिस्तान सहित कई मुल्कों के व्यापारी यहां आते थे एवं अपने उत्पादों का स्टाँल लगाकर व्यापार करते थे। आज अपने गौरवशाली अतीत की खुशनुमा यादों का बोझ ढोते हुए किशनगंज का खगड़ा मेला इस वर्ष 5 फरवरी को उद्घाटन होने जा रहे हैं।लेकिन अब मेला का स्वरूप धिरे धिरे कम होता जा रहा है।मुख्य कारन मेले लगने वाले अधिकांश भूमि पर सरकारी ईमारतों का बन जाना है।बुर्जुग बताते हैं कि लोग किशनगंज को खगड़ा किशनगंज के नाम से जानते थे।वहीं खगड़ा जहां के विशाल पशु मेले में तब भारत ही नहीं कई मुल्कों के व्यापारी आते थे।तत्कालीन नवाब सैयद अता हुसैन मेले का ना सिर्फ आयोजन करते थे बल्कि व्यापारियों की सुरक्षा, मेले के साफ सफाई, सजावट व सुविधाओं पर भी खूद ध्यान देते थे।अपने दुकान व प्रतिष्ठानों कि अच्छी सजावट की व्यापारियों मे होड़ रहती थी।नवाब साहब हाथी पर सवार होकर निकल ते थे एवं मेले का मुआयना कर सबसे अच्छे प्रतिष्ठान को पुरस्कृत करते थे।समय के साथ ही इस मेले का स्वरूप भी घटता गया।कभी सैकड़ों एकड़ व कई किलोमीटर के क्षेत्र मे सजने वाला मेला आज अपने अस्तित्व को किसी तरह बचाने जद्दोजहद कर रहा है।


Body:इस मेले का नाम और खगड़ा उसी आधार पर इस क्षेत्र का नामांकन हुआ।किंवदंत है कि यहां खगड़ा नामक घास बहुतायत मे मिल ता था।जिस कारन क्षेत्र का व फिर मेले का नाम खगड़ा पड़ा।वर्ष 2003 मे तत्कालीन जिलाधिकारी के.सेंथिल. कुमार ने मेले के विकास के लिए पहल कि एवं इसके शानदार अतीत को एक स्तूप के शक्ल देकर पंरपरा को जिंदा रखने की कोशिश की।इस स्तूप मे दर्ज जानकारी के अनुसार 1883 मे खगड़ा नवाब सैय्यद अता हुसैन ने तत्कालीन पूर्णया के ब्रिटिश डीएम ए.विक्स के साथ मेले की शुरुआत की।उस वक्त ये मेला विक्स मेला के नाम से जाना जाता था।1956 मे जमीनदारी प्रथा उन्मूलन के बाद यह मेला राजस्व विभाग व जिला प्रशासन के आधीन आ गया।वस वक्त मेला पूरे उफान पर था एवं सोनपुर के बाद एशिया का दुसरा सबसे बड़ा पशु मेला था।मेला का भव्यता इस बात से लगाया जा सकता है कि1950 मे इस मेले में पशुओं की बिक्री से 80 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था।


Conclusion:आज भी ये मेला अपने अंदर कई सुनहरी यादों को संजय है।गाय,कुत्ते, व तरह तरह के पक्षी आज भी यहां बिक्री के लिए आते हैं।अब मेले का डाक होता है एवं मेला संचालक अपने ढंग से मेले की व्यवस्थित करते व सजाते हैं।इस वर्ष के मेला ठेकेदार अजय कुमार साह ने बताया कि मेला का डाक इस वर्ष 87 लाख 50 हजार रुपया मे हुआ है और मेला को लोगों का भीड़ बढ़ाने के लिए सभी मनोरंजन के समानों को मंगाया गया है।हालांकि अब पशुओं के खेल पर पांबदी होने से सर्कस मे भीड़ पहले जैसा नहीं होता है लेकिन इस वर्ष देश के सर्वश्रेष्ठ सर्कस मगाया गया जिसमें कई नये अंदाज में लोगों को मनोरंजन देगा वहीं सैकड़ों दुकान बाहर से आये है।5 फरवरी को जिलाधिकारी हिमांशु शर्मा उद्घाटन करगे जिसके बाद ऐतिहासिक खगड़ा मेला लुप्त आमलोग ले संकगे।

बाइटः उस्मान गनि,जानकर
बाइटः अजय कुमार साह, मेला ठेकेदार
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