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कांच पर भारी पड़ रही आर्टिफिशियल चूड़ियां, खत्म होने की कगार पर है चूड़ी मेला का अस्तित्व - आर्टिफिशियल

अब कांच की चूड़ियों ने बाजार में भी आर्टिफिशियल ज्वैलरी के चूड़ियों के सामने दम तोड़ रही हैं. लिहाजा कांच के चूड़ी व्यापार से जुड़े कारोबारी इस धंधे को छोड़कर रोजी रोटी के लिए दूसरे काम करने लगे हैं.

चुड़ियों का बाजार
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Published : Jun 5, 2019, 10:06 AM IST

किशनगंजः जिले के मुस्लिम बहुल इलाके चूड़ीपट्टी में जब चूड़ियों की खनखनाहट सुनाई देती है तो समझो कि ईद के लिए कांच की चूड़ियां बाजारों में सज चुकी हैं. यहां खास बात यह है कि मग्रिब के नमाज के बाद से चूड़ी मेला शुरू होता है और अहले सुबह फज्र की नमाज के बाद समाप्त हो जाता है.

इस दौरान मुस्लिम महिलाएं घर से निकलकर कांच की चूड़ियां लेने चूड़ीपट्टी आती हैं. इस चूड़ी बाजार में 20 रुपये से लेकर 500 रुपये तक के दर्जन की चूड़ियां बिकती हैं. यह परंपरा पुराने समय से आज के आधुनिक समय तक भी चली आ रही हैं.

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चुड़ियों का बाजार

दम तोड़ती कांच की चूड़ियां

चूड़ीपट्टी का नाम इसी चूड़ी बाजार के कारण पड़ा था. एक समय यहां काफी तादाद में चूड़ियों के बाजार हुए करते थे. जहां दूर-दूर से महिलाएं चूड़ियां लेने आती थीं. लेकिन समय के साथ अब कांच की चूड़ियों ने बाजार में भी आर्टिफिशियल ज्वैलरी के चूड़ियों के सामने दम तोड़ रही हैं. लिहाजा कांच के चूड़ी व्यापार से जुड़े कारोबारी इस धंधे को छोड़कर रोजी रोटी के लिए दूसरे काम करने लगे हैं.

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मुस्लिम इलाका चुड़िपट्टी में चुड़ियों का बाजार

मेला सिमट कर रह गया

कुछ दशकों पहले तक यहां काफी संख्या में चूड़ियों की दुकान हुआ करती थी, लेकिन अब नाम मात्र दो-एक दुकानें ही रह गयी हैं. लेकिन आज भी ईद,बकरीद और मुस्लिम त्योहारों में बाहर से आकर यहां कांच की चूड़ियों का मेला लगाते हैं. कभी इस चूड़ी मेला का आकार काफी बड़ा हुआ करता था लेकिन अब चूड़ीपट्टी डाकघर के सामने सड़क किनारे सिमट कर रह गया है.

चुड़ियों का बाजार

अतीत बन कर रह गया चूड़ी बजार

स्थानीय बुर्जुगों ने बताया कि कभी चांद रात में लगने वाले इस चूड़ी मेला में सिर्फ किशनगंज ही नहीं बल्कि आसपास के इलाके से भी महिलाएं आया करती थीं. अब वह अतीत हो चूका है अब सिर्फ नाम मात्र का चूड़ी मेला रह गया है.

किशनगंजः जिले के मुस्लिम बहुल इलाके चूड़ीपट्टी में जब चूड़ियों की खनखनाहट सुनाई देती है तो समझो कि ईद के लिए कांच की चूड़ियां बाजारों में सज चुकी हैं. यहां खास बात यह है कि मग्रिब के नमाज के बाद से चूड़ी मेला शुरू होता है और अहले सुबह फज्र की नमाज के बाद समाप्त हो जाता है.

इस दौरान मुस्लिम महिलाएं घर से निकलकर कांच की चूड़ियां लेने चूड़ीपट्टी आती हैं. इस चूड़ी बाजार में 20 रुपये से लेकर 500 रुपये तक के दर्जन की चूड़ियां बिकती हैं. यह परंपरा पुराने समय से आज के आधुनिक समय तक भी चली आ रही हैं.

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चुड़ियों का बाजार

दम तोड़ती कांच की चूड़ियां

चूड़ीपट्टी का नाम इसी चूड़ी बाजार के कारण पड़ा था. एक समय यहां काफी तादाद में चूड़ियों के बाजार हुए करते थे. जहां दूर-दूर से महिलाएं चूड़ियां लेने आती थीं. लेकिन समय के साथ अब कांच की चूड़ियों ने बाजार में भी आर्टिफिशियल ज्वैलरी के चूड़ियों के सामने दम तोड़ रही हैं. लिहाजा कांच के चूड़ी व्यापार से जुड़े कारोबारी इस धंधे को छोड़कर रोजी रोटी के लिए दूसरे काम करने लगे हैं.

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मुस्लिम इलाका चुड़िपट्टी में चुड़ियों का बाजार

मेला सिमट कर रह गया

कुछ दशकों पहले तक यहां काफी संख्या में चूड़ियों की दुकान हुआ करती थी, लेकिन अब नाम मात्र दो-एक दुकानें ही रह गयी हैं. लेकिन आज भी ईद,बकरीद और मुस्लिम त्योहारों में बाहर से आकर यहां कांच की चूड़ियों का मेला लगाते हैं. कभी इस चूड़ी मेला का आकार काफी बड़ा हुआ करता था लेकिन अब चूड़ीपट्टी डाकघर के सामने सड़क किनारे सिमट कर रह गया है.

चुड़ियों का बाजार

अतीत बन कर रह गया चूड़ी बजार

स्थानीय बुर्जुगों ने बताया कि कभी चांद रात में लगने वाले इस चूड़ी मेला में सिर्फ किशनगंज ही नहीं बल्कि आसपास के इलाके से भी महिलाएं आया करती थीं. अब वह अतीत हो चूका है अब सिर्फ नाम मात्र का चूड़ी मेला रह गया है.

Intro:मुस्लिम बहुल जिला किशनगंज के मुस्लिम इलाका चुड़िपट्टी मे ईद के चांद दीदार होते ही चांदरात मे लगता है चुड़ियों का मैला और खनकती चुड़ियों की आवाज से दूर से ही पता लग जाता है सज चूंकि है चुड़ियों की बाजार। मग्रिब के नमाज के बाद से चुड़ि मैला शुरू होकर अहले सुबह फज्र की नमाज के समय समाप्त हो जाता है।और इस दौरान मुस्लिम महिलाएं घर से निकलकर कांच की चुड़ियां लेने चुड़िपट्टी आती है। इस चुड़ि बाजार मे 20 रुपया से लेकर 500 रुपया तक के दर्जन की चुड़ियां बिक्री हो रही है। कुछ चीजों का दौर कभी खतम नहीं होता।पुराने समय से आज के आधुनिक समय तक भी यह चीजें ठीक वैसे ही इस्तेमाल की जाती है जैसे की पहले पूराने जमाने के ईद के समय होती थी। इन्हीं चीजों की लिस्ट मे से एक है मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली शीशे की चुड़ियां।


Body:चुड़िपट्टी का नाम इसी चुड़ि बाजार के कारन पड़ा था।एक समय यहां काफी तादाद मे चुड़ियों की बाजार हुआ करता था।और महिलाएं चुड़ियां लेने आती थी।जिस कारन इस मुस्लिम इलाके का नाम चुड़िपट्टी पड़ा था।लेकिन समय के साथ साथ कांचकी चुड़ि बाजार भी आर्टिफिशियल ज्वैलरी के चुड़ियों के सामने दम तोड़ दिया और कांच के चुड़ि व्यापार से जुड़े लोग व महिलाएं इस धंधे को छोड़कर रोजीरोटी के लिए दुसरे काम करने लगे। कुछ दशकों पहले तक यहां काफी संख्या मे चुड़ियां की दुकान हुआ करता था लेकिन अब नाम मात्र दो-एक दुकान ही रह गया।लेकिन आजभी ईद,बकरीद व मुस्लिम त्योहारों मे बाहर से आकर यहां कांच की चुड़ियों का मैला लगता है।कभी इस चुड़ि मैला का आकार काफी बड़ा हुआ करता था लेकिन अब चुड़िपट्टी डाकघर के सामने सड़क किनारे समट कर रह गया है। स्थानीय बुर्जुगों ने बताया की कभी चांद रात मे लगने वाले इस चुड़ि मेला मे सिर्फ किशनगंज ही नहीं बल्कि आसपास के इलाके से भी महिलाएं आया करती थी।लेकिन चुड़िपट्टी का शीशा का चुड़ि अतीत हो चूका है अब सिर्फ नाम मात्र चुड़ि मेला रह गया है।


Conclusion:लेकिन जो भी आज भी मुस्लिम महिलाएं बड़ी तादाद मे चांदरात के इस चुड़ि बाजार मे चुड़ि खरीदते नजर आये। यह गोलाकार चुड़ियां हमेशा से ही स्त्रियों की सुदंरी बढ़ाते आरहे है।चाहे वह हाल ही मे जन्मे नन्ही सी गुड़िया हो या फिर सफेद बालों वाली बुर्जुग महिला।छोटे बच्ची से लेकर बुर्जुग महिलाएं भी इस बाजार चुड़ि खरीदते नजर आये। वहीं एक बुर्जुग महिला ने बताया चुड़ियां पहने का शौक हर उमड़ के महिला को होता है।इसके अलावा बदलते दौर मे यह फैशन का भी एक हिस्सा है।इस चुड़ि मैला मे अलग-अलग तरह,रंग की चूड़ियो की वैरायटी आसानी से मिल जाते है।चुड़ियां औरतों के हाथो के खुबसूरत को बढ़ाती है।
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