किशनगंजः जिले के किसान अब पारम्परिक खेती को छोड़ कैश क्रॉप्स की तरफ रुख कर रहे हैं. यहां के किसान अनानास, ड्रैगन फ्रूट आदि की खेती कर रहे हैं. किसानों को कैश क्रॉप्स की खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि वैज्ञानिक ओल (जिसे सुरन भी कहा जाता है) की खेती करने की सलाह दे रहे हैं.
कृषि वैज्ञानिकों ने किशनगंज स्थित कृषि केंद्र में ऐसे बीज तैयार किए हैं, जिसकी खेती में उर्वरक की जगह सिर्फ जैविक खाद के इस्तेमाल मात्र से अच्छी उपज होगी. साथ ही किसानों को नकद आमदनी भी होगी.
नकदी फसल है सूरन या ओल
सूरन या ओल की खेती भारत में प्राचीन काल से होती आ रही है. अपने गुणों के कारण ये सब्जियों में एक अलग स्थान रखता है. बिहार में इसकी खेती गृह वाटिका से लेकर बड़े पैमाने पर हो रही है. यहां के किसान इसकी खेती आज नकदी फसल के रूप में कर रहे हैं.
ओल में पोषक तत्व के साथ ही अनेक औषधीय गुण पाए जाते हैं. जिनके कारण इसे आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोग किया जाता है. इससे कई तरह की बीमारियां दूर होती है. बवासीर, ट्यूमर, दमा, फेफड़े का सूजन आदी में यह उपयोगी बताया गया है. इसकी खेती हल्के छायादार स्थानों में भी की जा सकती है.
ओल में होती है प्रोटीन की अधिक मात्रा
किशनगंज कृषि केंद्र के वैज्ञानिक डॉ हेमंत कुमार ने बताया कि ओल की खेती पहले से होती आ रही है. लेकिन हमलोगों ने एक अलग तरह का बीज तैयार किया है. जिसमें सिर्फ गोबर के खाद मात्र के उपयोग से अच्छी उपज होगी. उन्होंने बताया कि "ओल" में प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है. इसकी मांग बाजारो मे बहुत ज्यादा है.
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'जल्दी खराब नहीं होता ओल'
डॉ हेमंत कुमार ने कहा कि किशनगंज एक बाढ़ ग्रस्त जिला है और इस जिले को हर साल बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है, जिसमें किसानों की फसल बर्बाद हो जाती है और उन्हें भरी नुकसान का सामना करना पड़ता है. लेकिन ओल की खेती से किसानों को फायदा होगा और ये कम समय में ही तैयार हो जाता है. इसकी बुआई का समय फरवरी से मार्च का है. बरसात के मौसम से पहले फसल तैयार हो जाती है. इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसके फल को खेत से लाकर हम स्टोर कर के रख सकते हैं. ये जल्दी खराब नहीं होता है. और आराम से 6-8 महिने तक रखा जा सकता है.