किशनगंज: बिहार के किशनगंज जिला का आज 32 वां स्थापना (32nd Foundation Day of Kishanganj District) दिवस है. 145 वर्षों का लंबा अनुमंण्डलीय जीवन व्यतीत करने के बाद 14 जनवरी 1990 को किशनगंज को जिला का दर्जा मिला था. किशनगंज को जिला बनाने को लेकर स्थानीय समाजसेवियों, व्यापारियों और आम लोगों को दो दशकों तक लंबा संघर्ष करना पड़ा था. जिला की मांग को लेकर 70 और 80 के दशक में सड़क जाम से लेकर रेल रोको और धरना प्रदर्शन का एक लंबा सिलसिला चला था. उस समय जिले की मांग के कारण कई लोगों को जेल यात्रा भी करनी पड़ी थी. इस लंबे आंदोलन और त्याग का नतीजा था कि 14 जनवरी 1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा ने किशनगंज को जिला घोषित कर दिया था.
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बताया जाता है कि मुगलकाल के समय इस क्षेत्रों में एक सन्यासी आये थे किंतु जगह का नाम आलमगंज, बीचोंबीच बहने वाली नदी का नाम रमजान और शासक का नाम फकरुद्दीन देख सन्यासी सीमा से ही बैंरग लोटने लगे. यह खबर जब खगड़ा नवाब फकीरूद्दीन को पता चली तो उन्होंने उस सन्यासी को प्रसन्न करने के लिये आलमगंज के एक भाग का नामकरण कृष्णाकुंज कर दिया. इसी कृष्णाकुंज का तदभव शब्द रूप आज किशनगंज है.
ब्रिटिश हुकूमत कायम होने पर किशनगंज को सन 1845 मे ही दर्जा मिल चुका था. यही नहीं, किशनगंज नगर पालिका का गठन (Formation of Kishanganj Municipality) सन 1868 मे ही कर दिया गया था किंतु 1887 में इसकी अधिसूचना जारी हुई थी. किशनगंज वर्ष 1956 ई. में पश्चिम बंगाल के सोनापुर से लेकर करनदिघी तक विस्तारित था. राज्य पुर्नगठन आयोग की अनुशंसा पर सन 1956 में किशनगंज का 750 वर्गमील काटकर पश्चिम बंगाल को दे दिया गया.
फलतः 13 प्रखंड वाले किशनगंज का छह प्रखंड पश्चिम बंगाल में चला गया. तब यदि ऐसा नहीं हुआ तो आज किशनगंज एक बहुत बड़ा व्यापारिक केंद्र होता. किशनगंज, बाहादुरगंज, ठाकुरगंज, पोठिया, टेढ़ागाछ, कोचाधामन ओर दिघेलबैक नामक सात प्रखंड वाले इस किशनगंज को 145 वर्ष का लंबा अनुमंण्डलीय जीवन व्यतीत करने के बाद 14 जनवरी 1990 को जिला का दर्जा दिया गया था. हालांकि जिला बनने के 32 वर्ष बीत जाने के बावजूद आज भी जिले में कई सरकारी कार्यालय नहीं खुले हैं. कई गांवों में आज तक पुल-पुलियों का निर्माण नहीं हुआ है.
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