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अमौसी नरसंहार में अपने बेटों को खोने वाली मां का छलका दर्द, बोलीं- बाबू अभी भी लगता है डर - Khagaria updtaes news

खगड़िया जिले के अमौसी बहियार में आज ही के दिन वर्ष 2009 में 16 किसानों की निर्मम हत्या कर दी गई थी. यह सभी किसान अमौसी बहियार में रात में अपने खेत की देखभाल करने गए थे. आज 11 साल बीत जाने के बाद भी तथाकथित आरोपियों से धमकी मिल रही है.

अपने बेटों को खोने वाली माओं का छलका दर्द.
अपने बेटों को खोने वाली माओं का छलका दर्द.
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Published : Oct 2, 2020, 6:34 PM IST

खगड़िया: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जयंती के अवसर पर वैसे तो पूरा देश इस दिन को अहिंसा दिवस के रूप में मनाता है. लेकिन इसी 2 अक्टूबर अहिंसा दिवस के दिन वर्ष 2009 में खगड़िया के अमौसी बहियार में नक्सलियों और अपराधियों की मिलीभगत से खून की होली खेली गई थी. इस नरसंहार कांड में मारे गए 16 किसानों के परिवारों की जिंदगी बदल कर रख दी. एक तरफ जिंदा रहने के लिए जिंदगी की जद्दोजहद दूसरी ओर कोर्ट से बरी किए गए तथाकथित आरोपियों से धमकी मिल रही है. यानि कुल मिलाकर कहें तो नरसंहार के 11 साल बाद भी इचरुआ गांव के लोग अभी भी दहशत के साये में जीवन जी रहे हैं.


40 से 50 की संख्या में आए थे नक्सली
जिले के अलौली थाना के मोरकाही ओपी अंतर्गत अमौसी बहियार में 1 अक्टूबर की रात और 2 अक्टूबर अलसुबह के मध्य समय में 40 से 50 की संख्या में आए नक्सलियों और अपराधियों की टोली ने इचरुआ गांव के 16 किसानों की गोली मारकर हत्या कर दी. यह सभी किसान अमौसी बहियार में रात के समय में अपने खेत की देखभाल और रखवाली के लिए अपने बासा पर रहा करते थे. जमींदारों की जमीन पर कब्जा जमाने को लेकर इस बड़े नरसंहार की पृष्ठभूमि रची गई थी. एक तरफ इचरुआ गांव के किसान थे, जो जमीन खरीद लेने की बात कह रहे थे. वहीं दूसरी ओर नक्सलियों और अपराधियों के गठजोड़ के बूते कुछ ऐसे लोग भी थे, जो अवैध रूप से इस पर कब्जा जमाना चाह रहे थे, जिसका परिणाम अमौसी नरसंहार कांड के रूप में हुआ.

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आज भी पीड़ितों को लगता है डर.
16 किसानों की हुई थी हत्याअमौसी बहियार में 16 किसानों की हुई नरसंहार के बाद पूरे बिहार में सियासी बवाल मच गया था. नरसंहार के बाद पुलिस की प्रक्रिया शुरू हुई मामला न्यायालय में गया और हाईकोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया. जिन 16 किसानों की इस नरसंहार में हत्या हुई वो ऐसे लोग थे, जिनके मेहनत मजदूरी के बल पर उनके परिवारों का भरण पोषण होता था. उनकी मौत के बाद उनके पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन अब बूढ़े मां बाप को करना पड़ रहा है.
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अमौसी नरसंहार के पीड़ितों का छलका दर्द.
सरकार की थी सिर्फ घोषणाअमौसी नरसंहार में मारे गए लोगों के परिजनों का मानना है उस समय तो सरकार के स्तर पर कई घोषणाएं और आश्वासन दिए गए थे. लेकिन मामूली रूप से दिए गए मुआवजे की राशि छोड़कर ना सरकारी स्तर पर कोई बड़ी सहायता मिल पाई और ना जीविकोपार्जन के लिए कोई जरिया ही दिया गया. इचरुआ गांव के लोगों को सबसे बड़ी परेशानी यह है की हाईकोर्ट द्वारा सभी आरोपियों को बरी किए जाने के बाद अब इस गांव के लोग दहशत में जी रहे हैं. इन्हें फिर कोई बड़ी अनहोनी की आशंका सता रही हैं.
अमौसी नरसंहार में अपने बेटों को खोने वाली माओं का सूनिए दर्द.


अमौसी नरसंहार के पीड़ितों से जाना गया दर्द
ईटीवी भारत की टीम ने अमौसी नरसंहार में मारे गए इचरुआ गांव के किसानों के परिजनों से मुलाकात की और उनका दर्द जानने का प्रयास किया. खास करके उन माओं से बात की गई जिन माओं ने इस खूनी खेल में अपने लाडले को खो दिया. परिजनों का कहना है बीते 11 वर्ष से हमें संघर्ष करना पड़ रहा है और सबसे बड़ी परेशानी यह है की हाई कोर्ट से बरी किए जाने के बाद तथाकथित आरोपियों और उनके समर्थकों के द्वारा लगातार दहशत फैलाने का प्रयास किया जा रहा है. ऐसे में जब भी नदी पार अमौसी बहियार अपने खेतों के काम से वो जाते हैं तो शाम ढलने के पहले अपने घरों को लौट आते हैं.

खगड़िया: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जयंती के अवसर पर वैसे तो पूरा देश इस दिन को अहिंसा दिवस के रूप में मनाता है. लेकिन इसी 2 अक्टूबर अहिंसा दिवस के दिन वर्ष 2009 में खगड़िया के अमौसी बहियार में नक्सलियों और अपराधियों की मिलीभगत से खून की होली खेली गई थी. इस नरसंहार कांड में मारे गए 16 किसानों के परिवारों की जिंदगी बदल कर रख दी. एक तरफ जिंदा रहने के लिए जिंदगी की जद्दोजहद दूसरी ओर कोर्ट से बरी किए गए तथाकथित आरोपियों से धमकी मिल रही है. यानि कुल मिलाकर कहें तो नरसंहार के 11 साल बाद भी इचरुआ गांव के लोग अभी भी दहशत के साये में जीवन जी रहे हैं.


40 से 50 की संख्या में आए थे नक्सली
जिले के अलौली थाना के मोरकाही ओपी अंतर्गत अमौसी बहियार में 1 अक्टूबर की रात और 2 अक्टूबर अलसुबह के मध्य समय में 40 से 50 की संख्या में आए नक्सलियों और अपराधियों की टोली ने इचरुआ गांव के 16 किसानों की गोली मारकर हत्या कर दी. यह सभी किसान अमौसी बहियार में रात के समय में अपने खेत की देखभाल और रखवाली के लिए अपने बासा पर रहा करते थे. जमींदारों की जमीन पर कब्जा जमाने को लेकर इस बड़े नरसंहार की पृष्ठभूमि रची गई थी. एक तरफ इचरुआ गांव के किसान थे, जो जमीन खरीद लेने की बात कह रहे थे. वहीं दूसरी ओर नक्सलियों और अपराधियों के गठजोड़ के बूते कुछ ऐसे लोग भी थे, जो अवैध रूप से इस पर कब्जा जमाना चाह रहे थे, जिसका परिणाम अमौसी नरसंहार कांड के रूप में हुआ.

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आज भी पीड़ितों को लगता है डर.
16 किसानों की हुई थी हत्याअमौसी बहियार में 16 किसानों की हुई नरसंहार के बाद पूरे बिहार में सियासी बवाल मच गया था. नरसंहार के बाद पुलिस की प्रक्रिया शुरू हुई मामला न्यायालय में गया और हाईकोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया. जिन 16 किसानों की इस नरसंहार में हत्या हुई वो ऐसे लोग थे, जिनके मेहनत मजदूरी के बल पर उनके परिवारों का भरण पोषण होता था. उनकी मौत के बाद उनके पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन अब बूढ़े मां बाप को करना पड़ रहा है.
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अमौसी नरसंहार के पीड़ितों का छलका दर्द.
सरकार की थी सिर्फ घोषणाअमौसी नरसंहार में मारे गए लोगों के परिजनों का मानना है उस समय तो सरकार के स्तर पर कई घोषणाएं और आश्वासन दिए गए थे. लेकिन मामूली रूप से दिए गए मुआवजे की राशि छोड़कर ना सरकारी स्तर पर कोई बड़ी सहायता मिल पाई और ना जीविकोपार्जन के लिए कोई जरिया ही दिया गया. इचरुआ गांव के लोगों को सबसे बड़ी परेशानी यह है की हाईकोर्ट द्वारा सभी आरोपियों को बरी किए जाने के बाद अब इस गांव के लोग दहशत में जी रहे हैं. इन्हें फिर कोई बड़ी अनहोनी की आशंका सता रही हैं.
अमौसी नरसंहार में अपने बेटों को खोने वाली माओं का सूनिए दर्द.


अमौसी नरसंहार के पीड़ितों से जाना गया दर्द
ईटीवी भारत की टीम ने अमौसी नरसंहार में मारे गए इचरुआ गांव के किसानों के परिजनों से मुलाकात की और उनका दर्द जानने का प्रयास किया. खास करके उन माओं से बात की गई जिन माओं ने इस खूनी खेल में अपने लाडले को खो दिया. परिजनों का कहना है बीते 11 वर्ष से हमें संघर्ष करना पड़ रहा है और सबसे बड़ी परेशानी यह है की हाई कोर्ट से बरी किए जाने के बाद तथाकथित आरोपियों और उनके समर्थकों के द्वारा लगातार दहशत फैलाने का प्रयास किया जा रहा है. ऐसे में जब भी नदी पार अमौसी बहियार अपने खेतों के काम से वो जाते हैं तो शाम ढलने के पहले अपने घरों को लौट आते हैं.

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