खगड़िया: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जयंती के अवसर पर वैसे तो पूरा देश इस दिन को अहिंसा दिवस के रूप में मनाता है. लेकिन इसी 2 अक्टूबर अहिंसा दिवस के दिन वर्ष 2009 में खगड़िया के अमौसी बहियार में नक्सलियों और अपराधियों की मिलीभगत से खून की होली खेली गई थी. इस नरसंहार कांड में मारे गए 16 किसानों के परिवारों की जिंदगी बदल कर रख दी. एक तरफ जिंदा रहने के लिए जिंदगी की जद्दोजहद दूसरी ओर कोर्ट से बरी किए गए तथाकथित आरोपियों से धमकी मिल रही है. यानि कुल मिलाकर कहें तो नरसंहार के 11 साल बाद भी इचरुआ गांव के लोग अभी भी दहशत के साये में जीवन जी रहे हैं.
40 से 50 की संख्या में आए थे नक्सली
जिले के अलौली थाना के मोरकाही ओपी अंतर्गत अमौसी बहियार में 1 अक्टूबर की रात और 2 अक्टूबर अलसुबह के मध्य समय में 40 से 50 की संख्या में आए नक्सलियों और अपराधियों की टोली ने इचरुआ गांव के 16 किसानों की गोली मारकर हत्या कर दी. यह सभी किसान अमौसी बहियार में रात के समय में अपने खेत की देखभाल और रखवाली के लिए अपने बासा पर रहा करते थे. जमींदारों की जमीन पर कब्जा जमाने को लेकर इस बड़े नरसंहार की पृष्ठभूमि रची गई थी. एक तरफ इचरुआ गांव के किसान थे, जो जमीन खरीद लेने की बात कह रहे थे. वहीं दूसरी ओर नक्सलियों और अपराधियों के गठजोड़ के बूते कुछ ऐसे लोग भी थे, जो अवैध रूप से इस पर कब्जा जमाना चाह रहे थे, जिसका परिणाम अमौसी नरसंहार कांड के रूप में हुआ.
अमौसी नरसंहार के पीड़ितों से जाना गया दर्द
ईटीवी भारत की टीम ने अमौसी नरसंहार में मारे गए इचरुआ गांव के किसानों के परिजनों से मुलाकात की और उनका दर्द जानने का प्रयास किया. खास करके उन माओं से बात की गई जिन माओं ने इस खूनी खेल में अपने लाडले को खो दिया. परिजनों का कहना है बीते 11 वर्ष से हमें संघर्ष करना पड़ रहा है और सबसे बड़ी परेशानी यह है की हाई कोर्ट से बरी किए जाने के बाद तथाकथित आरोपियों और उनके समर्थकों के द्वारा लगातार दहशत फैलाने का प्रयास किया जा रहा है. ऐसे में जब भी नदी पार अमौसी बहियार अपने खेतों के काम से वो जाते हैं तो शाम ढलने के पहले अपने घरों को लौट आते हैं.