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तैराकी में बिहार का डंका बजाने वाले दिव्यांग पंकज गुमनामी का शिकार, आर्थिक स्थिति खराब

पैरा तैराकी में बिहार का डंका बजाने वाले पंकज की जिंदगी बुरे दौर से गुजर रही है. वो इस समय गुमनाम हैं, जिनका घर उनके पास प्रतिभा होने के बावजूद नहीं चल पा रहा है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Sep 9, 2020, 7:08 PM IST

बिहार की ताजा खबर
बिहार की ताजा खबर

खगड़िया: किसी ने सच कहा है, 'मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है. पैरों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.' यह लाइनें पैरा तैराकी के राष्ट्रीय खिलाडी पंकज चौरसिया के ऊपर सटीक बैठती हैं. कई गोल्ड मेडल और प्रतियोगिताओं में बिहार को नंबर वन लाने वाले पंकज चौरसिया खगड़िया के चौथ प्रखंड के मालपा गांव के रहने वाले हैं. आज गुमनामी में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं.

खगड़िया के बागमती नदी में तैराकी करके राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचे पंकज सरकारी उदासीनता के शिकार हैं. तैराकी की प्रतिभा रखने वाले दिव्यांग पंकज का घर उनके खेल से नहीं चल पा रहा है और ना ही उन्हें कोई खास पहचान मिल पा रही है. ऐसे में ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की.

खगड़िया से गौरव की रिपोर्ट

पैरा तैराकी में मिला गोल्ड मेडल
राष्ट्रीय पैरा तैराक खिलाड़ी पंकज चौरसिया ने 2011 में तैराकी सीख. इसके बाद उन्होंने पटना मोइनुल हक स्टेडियम में चल रहे एक एनजीओ में ट्रायल दिया और सलेक्ट हो गये. वहां से पंकज की तैराकी का सिलसिला शुरू हुआ. यहां ट्रेनिंग कर पंकज ने जिला स्तरीय प्रतियोगितओं में अपना परचम फहराया. इसके बाद उन्हें राज्य का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलने लगा. राजस्थान के जयपुर, उदयपुर और कई शहरों में आयोजित प्रतियोगिताओं में पंकज ने बिहार का डंका बजाया.

पंकज को मिले सर्टीफिकेट
पंकज को मिले सर्टीफिकेट

पूर्व सीएम ने किया सम्मानित
राज्य का मान और सम्मान बढ़ाने के लिए पंकज को कई बार सम्मानित किया गया. यही नहीं उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया.

बचपन से दिव्यांग पंकज ने दिव्यांगता को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. उनके दोस्त राजीव कहते हैं, 'पंकज बचपन से ही खेलों में रुचि रखता था और उसका सपना था कि देश के लिए कोई भी खेल, वो खेले. इस वजह से वो पहले दिव्यांग क्रिकेट खेलता था और जिला अस्तर पर क्रिकेट का कप्तान रह चुका है. लेकिन क्रिकेट का किट महंगा होने के वजह से और उचित सुविधा नहीं मिलने उसने यह गेम छोड़ दिया. फिर तैराकी में अपना दबदबा कायम किया.' पंकज के मित्र ने बताया कि अगर कोरोना विपदा नहीं आती, तो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता की तैराकी परीक्षा होने वाली थी, उसमें पंकज भी भाग लेते.

पंकज चौरसिया, पैरा तैराक
पंकज चौरसिया, पैरा तैराक

प्रशासन करेगा मदद
ईटीवी भारत ने पंकज की गुमनामी को लेकर जिला प्रशासन को रूबरू करवाया. डीएम आलोक रजंन घोष ने प्रशासनिक मदद का आश्वासन दिया है. पंकज को 2020 विधानसभा चुनाव में खगड़िया का आइकॉन बनाने की कोशिश की जा रही है. इस मामले में विभाग को पत्र लिखकर आदेश मांगा गया है. पंकज जिले में चुनाव के लिए मतदाताओं को जागरूक करने में अहम भूमिका निभाएंगे.

खगड़िया: किसी ने सच कहा है, 'मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है. पैरों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.' यह लाइनें पैरा तैराकी के राष्ट्रीय खिलाडी पंकज चौरसिया के ऊपर सटीक बैठती हैं. कई गोल्ड मेडल और प्रतियोगिताओं में बिहार को नंबर वन लाने वाले पंकज चौरसिया खगड़िया के चौथ प्रखंड के मालपा गांव के रहने वाले हैं. आज गुमनामी में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं.

खगड़िया के बागमती नदी में तैराकी करके राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचे पंकज सरकारी उदासीनता के शिकार हैं. तैराकी की प्रतिभा रखने वाले दिव्यांग पंकज का घर उनके खेल से नहीं चल पा रहा है और ना ही उन्हें कोई खास पहचान मिल पा रही है. ऐसे में ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की.

खगड़िया से गौरव की रिपोर्ट

पैरा तैराकी में मिला गोल्ड मेडल
राष्ट्रीय पैरा तैराक खिलाड़ी पंकज चौरसिया ने 2011 में तैराकी सीख. इसके बाद उन्होंने पटना मोइनुल हक स्टेडियम में चल रहे एक एनजीओ में ट्रायल दिया और सलेक्ट हो गये. वहां से पंकज की तैराकी का सिलसिला शुरू हुआ. यहां ट्रेनिंग कर पंकज ने जिला स्तरीय प्रतियोगितओं में अपना परचम फहराया. इसके बाद उन्हें राज्य का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलने लगा. राजस्थान के जयपुर, उदयपुर और कई शहरों में आयोजित प्रतियोगिताओं में पंकज ने बिहार का डंका बजाया.

पंकज को मिले सर्टीफिकेट
पंकज को मिले सर्टीफिकेट

पूर्व सीएम ने किया सम्मानित
राज्य का मान और सम्मान बढ़ाने के लिए पंकज को कई बार सम्मानित किया गया. यही नहीं उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया.

बचपन से दिव्यांग पंकज ने दिव्यांगता को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. उनके दोस्त राजीव कहते हैं, 'पंकज बचपन से ही खेलों में रुचि रखता था और उसका सपना था कि देश के लिए कोई भी खेल, वो खेले. इस वजह से वो पहले दिव्यांग क्रिकेट खेलता था और जिला अस्तर पर क्रिकेट का कप्तान रह चुका है. लेकिन क्रिकेट का किट महंगा होने के वजह से और उचित सुविधा नहीं मिलने उसने यह गेम छोड़ दिया. फिर तैराकी में अपना दबदबा कायम किया.' पंकज के मित्र ने बताया कि अगर कोरोना विपदा नहीं आती, तो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता की तैराकी परीक्षा होने वाली थी, उसमें पंकज भी भाग लेते.

पंकज चौरसिया, पैरा तैराक
पंकज चौरसिया, पैरा तैराक

प्रशासन करेगा मदद
ईटीवी भारत ने पंकज की गुमनामी को लेकर जिला प्रशासन को रूबरू करवाया. डीएम आलोक रजंन घोष ने प्रशासनिक मदद का आश्वासन दिया है. पंकज को 2020 विधानसभा चुनाव में खगड़िया का आइकॉन बनाने की कोशिश की जा रही है. इस मामले में विभाग को पत्र लिखकर आदेश मांगा गया है. पंकज जिले में चुनाव के लिए मतदाताओं को जागरूक करने में अहम भूमिका निभाएंगे.

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