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खगड़िया: काम की तलाश में पलायन कर रहे मजदूर, सरकार से रोजगार की मांग

खगड़िया समेत कई जिलों से मजदूर पलायन कर रहे हैं. इनका कहना है कि यहां रोजगार के नाम पर कुछ भी नहीं है.

पलायन कर रहे मजदूर
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Published : Jul 17, 2019, 11:36 AM IST

खगड़िया: उत्तर बिहार के खगड़िया, सहरसा, मधेपुरा जिले से मजदूरों की एक बड़ी आबादी दिल्ली, पंजाब समेत देश के कई अन्य राज्यों में हर साल पलायन कर जाती है. पलायन की वजह से खेती प्रभावित होती है. लगभग 50 प्रतिशत जमीन बुआई और रोपनी से वंचित रह जाती है.

काम की तलाश में पलायन कर रहे मजदूर
पलायन कर रहे मजदूरों का कहना है कि यहां रोजगार के नाम पर कुछ नहीं है. सरकारी योजनाओं का लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है. युवा बेरोजगार बैठे हैं. परिवार का भरण पोषण करने के लिए ये लोग पलायन करने पर मजबूर हैं. पैसों के अभाव में ट्रेन पर लटक कर जैसै-तैसै ये दिल्ली और राजस्थान जैसी जगहों पर काम की तलाश में जा रहे हैं.

काम की तलाश में पलायन करते मजदूर

सरकार से रोजगार की मांग
सरकार की ओर से चलाई जा रही योजना के लिए जो भी राशि दी जाती है उसका बंदरबांट किया जाता है. ऐसे में मनरेगा जैसी कई योजनाएं फाइल तक ही सिमट कर रह जाती है. मजदूरों की सरकार से मांग है कि बिहार में भी फैक्ट्री खोली जानी चाहिए जिससे यहां के लोगों को रोजगार मिल सके.

'लोगों में जागरूकता की कमी'
पलायन के सवाल पर जिला अधिकारी अनिरुद्ध कुमार का कहना है कि यहां रोजगार की कोई कमी नहीं है. मनरेगा के तहत मजदूरों के रोजगार दिए जाते हैं. अभी रोपनी का सीजन है तो खेतों में भी बहुत काम है. जो लोग बाहर जा रहे हैं उनमें जागरूकता की कमी है. ऐसे लोगों में जागरूकता लाने की जरूरत है.

खगड़िया: उत्तर बिहार के खगड़िया, सहरसा, मधेपुरा जिले से मजदूरों की एक बड़ी आबादी दिल्ली, पंजाब समेत देश के कई अन्य राज्यों में हर साल पलायन कर जाती है. पलायन की वजह से खेती प्रभावित होती है. लगभग 50 प्रतिशत जमीन बुआई और रोपनी से वंचित रह जाती है.

काम की तलाश में पलायन कर रहे मजदूर
पलायन कर रहे मजदूरों का कहना है कि यहां रोजगार के नाम पर कुछ नहीं है. सरकारी योजनाओं का लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है. युवा बेरोजगार बैठे हैं. परिवार का भरण पोषण करने के लिए ये लोग पलायन करने पर मजबूर हैं. पैसों के अभाव में ट्रेन पर लटक कर जैसै-तैसै ये दिल्ली और राजस्थान जैसी जगहों पर काम की तलाश में जा रहे हैं.

काम की तलाश में पलायन करते मजदूर

सरकार से रोजगार की मांग
सरकार की ओर से चलाई जा रही योजना के लिए जो भी राशि दी जाती है उसका बंदरबांट किया जाता है. ऐसे में मनरेगा जैसी कई योजनाएं फाइल तक ही सिमट कर रह जाती है. मजदूरों की सरकार से मांग है कि बिहार में भी फैक्ट्री खोली जानी चाहिए जिससे यहां के लोगों को रोजगार मिल सके.

'लोगों में जागरूकता की कमी'
पलायन के सवाल पर जिला अधिकारी अनिरुद्ध कुमार का कहना है कि यहां रोजगार की कोई कमी नहीं है. मनरेगा के तहत मजदूरों के रोजगार दिए जाते हैं. अभी रोपनी का सीजन है तो खेतों में भी बहुत काम है. जो लोग बाहर जा रहे हैं उनमें जागरूकता की कमी है. ऐसे लोगों में जागरूकता लाने की जरूरत है.

Intro:कोसी के इलाके से मजदूरों का सामूहिक 'पलायन' मुख्यतः साल में तीन बार होता है,वह भी फसल की बुआई और कटाई के समय
इस से अस्थानिये किसानों की मुसीबत बढ़ जाती है।खेतो में बुआई तक रुकने का नौबत आने लगा है।


Body:उतर बिहार के खगड़िया, सहरसा,मधेपुरा जिले से मजदूरों की एक बड़ी आबादी दिल्ली-पंजाब समेत देश के कई राज्यों में हर साल 'पलायन' कर जाती है
खगड़िया स्टेशन के बाहर ट्रैन के इंतेजार में बैठे मुकेश कुमार राजस्थान के बीकानेर शहर जा रहे है पलदारी करने।
5 बच्चो के पिता मुकेश कुमार बताते है कि वो एक मजदूर हैऔर मजदूरी करने के लिए ही बीकानेर जा रहे है वंही अन्य पलायान करने वाले मजदूर सन्टू यादव भी बीकानेर जा रहे है सन्टू यादव कह रहे है कि यंहा तो रोजगार के नाम पर कुछ है ही नही। कई दिनों से काम ढूंढ रहे खगड़िया में लेकिन अब तक नही मिला तो थक हार कर बीकानेर जा रहे है।

कोसी के इलाके से मजदूरों का सामूहिक 'पलायन' मुख्यतः साल में तीन बार होता है,वह भी फसल की बुआई और कटाई के समय
इस से अस्थानिये किसानों की मुसीबत बढ़ जाती है।खेतो में बुआई तक रुकने का नौबत आने लगा है।जानकार बताते है कि इस सीजन में पलायान के वजह से क्षेत्र में 50 प्रतिशत जमीन बुआई और रोपाई से वंचित रह जाती है।
वंही पलायन के सवाल पर जिला अधिकारी अनिरुद्ध कुमार का कहना है कि यंहा रोजगार की कोई कमी नही है मनरेगा के तहत रोजागर है तो दूसरे तरफ खेतो में काम है ।जो लोग बाहर जा रहे है उनमें जागरूकता की कमी है ऐसे लोगो मे जागरूकता लाने की जरूरत है
अब भला मजदूर कंहा से डीएम साहब को बता पाय की मनरेगा के काम की कोई जानकारी तक मजदूरों को नही मिलती।ये किस से अब तक छिपा है कि मनरेगा से जो रोजगार मिल रहा है वो सिर्फ कागज और फाइलों तक ही है असल धरातल पर अगर ये रोजगार मिल रहा होता तो इतने बड़े तदात में तो पलायन नही ही होता।
बाहर जाने वाले मजदूरों का कहना है कि जान पर खेल कर काम करने हमलोग बाहर जाते है कब दीवार गिर जाय और कब हमारे साथ अनहोनी हो जाये ये हमे पता नही रहता लेकिन क्या करे बच्चो का पेट पालना है परिवार को देखना है।जब तक वंहा से 2 पैसा भेजेंगे नही तब तक हमारे घर मे चूल्हा भी नही जलेगा।

(एक्ससीलुसिव स्टोरी है)


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