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Nasa के Parker Solar Probe स्पेसक्राफ्ट ने रचा इतिहास, सूरज के सबसे पास जाकर भी रहा सुरक्षित - PARKER SOLAR PROBE PASS TO SUN

नासा के सोलर मिशन के दौरान पार्कर सोलर प्रोब ने सूरज के सबसे पास से गुजरकर इतिहास रच दिया है.

An artist's concept showing Parker Solar Probe
पार्कर सोलर प्रोब को दर्शाती एक काल्पनिक तस्वीर (फोटो - NASA/APL)
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By ETV Bharat Tech Team

Published : 15 hours ago

हैदराबाद: एक जमाने में इंसान चांद तक पहुंचने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, लेकिन अब इंसानों ने सूर्य तक पहुंचने की प्रक्रिया में भी कामयाबियां हासिल करनी शुरू कर दी है. 24 दिसंबर 2024 को भारतीय समयानुसार करीब शाम 5:30 बजे इंसानों के द्वारा बनाए गए एक अंतरिक्ष यान यानी स्पेसक्राफ्ट ने सूर्य के एकदम बगल से गुजरकर इतिहास रच दिया. नासा के इस स्पेसक्राफ्ट का नाम पार्कर सोलर प्रोब (Parker Solar Probe) है, जो अभी तक के इतिहास में सूर्य के सबसे करीब पहुंचने वाला स्पेसक्राफ्ट बन गया है.

सूर्य के सबसे पास पहुंचा स्पेसक्राफ्ट

नासा की वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार, नासा का यह स्पेसक्राफ्ट पार्कर सोलर प्रोब 24 दिसंबर 2024 की शाम 5:30 बजे सूर्य से करीब 3.8 मिलियन मील यानी करीब 61 लाख किलोमीटर की दूरी से गुजरा, जो कि अभी तक में सूर्य के सबसे पास जाने का रिकॉर्ड भी बन गया है. नासा को जब इस ऐतिहासिक पल का संकेत मिला तो उन्होंने अपने स्पेसक्राफ्ट की जांच की क्योंकि उससे कम्यूनिकेशन नहीं हो पा रहा है. 26 दिसंबर 2024 को नासा ने अपनी जांच में पाया कि पार्कर सोलर प्रोब सूर्य के सबसे पास (सूर्य के सतह से करीब 61 लाख किलोमीटर दूर) से गुजरने के बाद भी सुरक्षित था और सामान्य रूप से काम कर रही था. आइए हम आपको विज्ञान की इतिहास में हुई इस ऐतिहासिक और रोचक घटना के बारे में बताते हैं.

आप सोच रहे होंगे कि सूर्य से 61 लाख किलोमीटर दूर सबसे नजदीक कैसे हो गया. इसे समझने के लिए आप मान लीजिए कि धरती से सूर्य तक की कुल दूरी 1 मीटर है, तो पार्कर सोलर प्रोब सूर्य से सिर्फ 4 सेंटीमीटर की दूरी पर होकर गुजरा और सुरक्षित भी रहा. नासा के इस स्पेसक्राफ्ट पार्कर सोलर प्रोब ने साल 2018 में धरती से सौरमंडल की ओर उड़ान भरी थी. उसके बाद इस स्पेसक्राफ्ट ने शुक्र ग्रह के सात ग्रैविटेशनल फ्लायबाइ (यानि शुक्र के पास से होकर गुजरने) का इस्तेमाल करके अपनी दिशा को धीरे-धीरे सूरज के पास किया और उसे लगातार पास करते गया.

कैसी रही पार्कर सोलर प्रोब की जर्नी?

इस स्पेसक्राफ्ट ने 6 नवंबर 2024 को शुक्र ग्रह का आखिरी फ्लायबाई करने के बाद अपनी सबसे सही ऑर्बिट (Optimal Orbit) तक पहुंच गया. यह ऑर्बिट अंडाकार है, जो हर तीन महीने में पार्कर सोलर प्रोब को सूर्य के एकदम पास ले जाती है. यह इतना पास होता है, जहां से सूर्य के सबसे बाहरी परत यानी कोरोना में होने वाली रहस्यमय घटनाओं और एक्टिविटीज़ का अध्ययन किया जा सके, लेकिन इतनी पास भी नहीं कि सूरज की खतरनाक गर्मी और रेडिएशन्स से स्पेसक्राफ्ट को नुकसान हो.

The spacecraft’s record close distance of 3.8 million miles may sound far, but on cosmic scales it’s incredibly close.
सूर्य से 3.8 मिलियन मील यानी 62 लाख किलोमीटर की दूरी ज्यादा लग सकती है, लेकिन यह काफी नजदीक है. (फोटो - NASA/APL)

इस तरह से पार्कर सोलर प्रोब सूर्य के चक्कर लगा रहा है और लगातार सूर्य के करीब पहुंचता जा रहा है. इस मिशन में पार्कर सोलर प्रोब को सूर्य के कुल 24 चक्कर लगाने हैं और इसी क्रम में अपने 22वें चक्कर के दौरान पार्कर सोलर प्रोब सूर्य के सबसे पास से होकर गुजरा.

नासा की हेड ऑफ साइंस डॉक्टर निकोला फ़ॉक्स ने बताया कि नासा के कई मिशन सूर्य के करीब गए हैं, लेकिन वो इस लायक नहीं थे कि वो इस तरह के इलाके में जा पाएं. यहां कई तरह की प्रक्रियाएं हो रही और इन्हें समझने का इकलौता तरीका यही है कि उनके बीच से गुजरे ताकि वहीं से हमें उनके बारे में जानकारियां मिल पाएं.

स्पेसक्राफ्ट की स्पीड कितनी है?

सूरज की खोज में निकला नासा का यह स्पेसक्राफ्ट 4,30,000 मील प्रति घंटे यानी 6,92,017.8646 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सूर्य के चक्कर लगा रहा है और चक्कर के साथ वो सूर्य के करीब पहुंचने की कोशिश कर रहा है. इस रफ्तार को आप करीब 7 लाख किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार भी समझ सकते हैं. यह रफ्तार इतनी है कि आप सिर्फ 1.03 मिनट में दिल्ली से न्यूयॉर्क पहुंच सकते हैं.

वाशिंगटन स्थित नासा हेडक्वार्टर में साइंस मिशन निदेशालय का नेतृत्व करने वाली निकी फॉक्स ने कहा, "इंसानों द्वारा लॉन्च किए किसी सौर मिशन में, सूर्य के इतने करीब से उड़ना ऐतिहासिक क्षण है." उन्होंने कहा कि, "सूर्य का इतने करीब से अध्यन करके, हम अपने सौर मंडल और इसके प्रभावों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. इसमें पृथ्वी और अंतरिक्ष में हमारे द्वारा प्रतिदिन उपयोग की जाने वाली तकनीक भी शामिल है. इसके अलावा हम ब्रह्मांड में मौजूद अन्य तारों के कामकाज के बारे में भी जान सकते हैं, जिससे हमें पृथ्वी के दूर रहने योग्य दुनिया की खोज में मदद मिलेगी."

सूर्य का तापमान कितना है?

सूरज के पास जाते हुए, पार्कर सोलर प्रोब अपने आपको एक खास कार्बन फोम से बने शील्ड के कारण सुरक्षित रहता है, जो इसे सूरज के ऊपरी या सबसे बाहरी वातावरण, कोरोना की अत्यधिक गर्मी से बचाता है.

आपको बता दें कि नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य के वातावरण की तीन लेयर्स हैं, जिनके नाम फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर, और कोरोना है. कोरोना सबसे बाहरी लेयर है, लेकिन इसकी गर्मी सूर्य के सतह यानी फोटोस्फेयर से भी कई हजारों गुना ज्यादा है. सूर्य के सतह के अधिकतम तापमान करीब 6200 डिग्री सेल्सियस है. यह तापमान करीब उतना ही है, जितना कि एक वेल्डिंग मशीन के आर्क है. यहां तक कि खराब मौसम के दौरान धरती पर गिरने वाली बिजली का तापमान भी फोटोस्फेयर से पांच गुना ज्यादा होता है.

ऐसे में रोचक बात यह है कि सूर्य के सतह से भी कहीं ज्यादा तापमान सूर्य के सबसे बाहरी परत यानी कोरोना का होता है. कोरोना की शुरुआत सूर्य के सतह से करीब 2100 किलोमीटर ऊपर से होती है. कोरोना का तापमान सूर्य के सतह से करीब 80 गुना ज्यादा यानी करीब 5 लाख डिग्री सेल्सियस होता है.

इसे अन्य शब्दों में समझें तो कोरोना की गर्मी 1 मिलियन डिग्री फारेनहाइट से भी ज्यादा हो सकती है. इस कारण पार्कर सोलर प्रोब की शील्ड को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वो 2,600 डिग्री फारेनहाइट तक का तापमान सह सकती है. यह तापमान इतना ज्यादा है कि स्टील को भी चुटकी में पिघला सकता है. स्पेसक्राफ्ट के पिछले हिस्से को ऐसे डिजाइन किया गया है कि उसका तापमान किसी आरामदायक कमरे के तापमान जितना है और उसमें स्पेसक्राफ्ट के डिवाइस सुरक्षित रहते हैं. कोरोना में गर्मी तो बहुत होती है, लेकिन घनत्व कम होता है, और इसमें यह शील्ड 1,800 डिग्री फारेनहाइट तक गर्म हो सकती है.

पार्कर सोलर प्रोब मिशन के सिस्टम इंजीनियर, जॉन विर्ज़बर्गर ने कहा, "एक स्पेसक्राफ्ट को सूरज के इतने पास भेज पाना बहुत बड़ी उपलब्धि है. यह एक चुनौती थी जिसे अंतरिक्ष विज्ञान समुदाय 1958 से हल करने की कोशिश कर रहा था और दशकों तक टेक्नोलॉजी को बेहतर बनाने में समय लगाया ताकि यह मुमकिन हो सके."

सूरज के कोरोना से गुजरते हुए, पार्कर सोलर प्रोब ऐसे माप (measurements) ले सकता है, जो वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करेंगे कि कोरोना इतना गर्म क्यों होता है, सूरज से निकलने वाली सौर आंधी (solar wind) का सोर्स क्या है, और ये पता लगाने में भी मदद करेगा कि कैसे उर्जा से भरे कण (energetic particles) प्रकाश की आधी गति तक तेज हो जाते हैं. यह मिशन सूरज की गतिविधियों और उसके प्रभावों को बेहतर समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है.

यह भी पढ़ें: 'Dark Energy का कोई अस्तित्व नहीं है', वैज्ञानिकों ने किया सबसे बड़े रहस्य का खुलासा

हैदराबाद: एक जमाने में इंसान चांद तक पहुंचने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, लेकिन अब इंसानों ने सूर्य तक पहुंचने की प्रक्रिया में भी कामयाबियां हासिल करनी शुरू कर दी है. 24 दिसंबर 2024 को भारतीय समयानुसार करीब शाम 5:30 बजे इंसानों के द्वारा बनाए गए एक अंतरिक्ष यान यानी स्पेसक्राफ्ट ने सूर्य के एकदम बगल से गुजरकर इतिहास रच दिया. नासा के इस स्पेसक्राफ्ट का नाम पार्कर सोलर प्रोब (Parker Solar Probe) है, जो अभी तक के इतिहास में सूर्य के सबसे करीब पहुंचने वाला स्पेसक्राफ्ट बन गया है.

सूर्य के सबसे पास पहुंचा स्पेसक्राफ्ट

नासा की वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार, नासा का यह स्पेसक्राफ्ट पार्कर सोलर प्रोब 24 दिसंबर 2024 की शाम 5:30 बजे सूर्य से करीब 3.8 मिलियन मील यानी करीब 61 लाख किलोमीटर की दूरी से गुजरा, जो कि अभी तक में सूर्य के सबसे पास जाने का रिकॉर्ड भी बन गया है. नासा को जब इस ऐतिहासिक पल का संकेत मिला तो उन्होंने अपने स्पेसक्राफ्ट की जांच की क्योंकि उससे कम्यूनिकेशन नहीं हो पा रहा है. 26 दिसंबर 2024 को नासा ने अपनी जांच में पाया कि पार्कर सोलर प्रोब सूर्य के सबसे पास (सूर्य के सतह से करीब 61 लाख किलोमीटर दूर) से गुजरने के बाद भी सुरक्षित था और सामान्य रूप से काम कर रही था. आइए हम आपको विज्ञान की इतिहास में हुई इस ऐतिहासिक और रोचक घटना के बारे में बताते हैं.

आप सोच रहे होंगे कि सूर्य से 61 लाख किलोमीटर दूर सबसे नजदीक कैसे हो गया. इसे समझने के लिए आप मान लीजिए कि धरती से सूर्य तक की कुल दूरी 1 मीटर है, तो पार्कर सोलर प्रोब सूर्य से सिर्फ 4 सेंटीमीटर की दूरी पर होकर गुजरा और सुरक्षित भी रहा. नासा के इस स्पेसक्राफ्ट पार्कर सोलर प्रोब ने साल 2018 में धरती से सौरमंडल की ओर उड़ान भरी थी. उसके बाद इस स्पेसक्राफ्ट ने शुक्र ग्रह के सात ग्रैविटेशनल फ्लायबाइ (यानि शुक्र के पास से होकर गुजरने) का इस्तेमाल करके अपनी दिशा को धीरे-धीरे सूरज के पास किया और उसे लगातार पास करते गया.

कैसी रही पार्कर सोलर प्रोब की जर्नी?

इस स्पेसक्राफ्ट ने 6 नवंबर 2024 को शुक्र ग्रह का आखिरी फ्लायबाई करने के बाद अपनी सबसे सही ऑर्बिट (Optimal Orbit) तक पहुंच गया. यह ऑर्बिट अंडाकार है, जो हर तीन महीने में पार्कर सोलर प्रोब को सूर्य के एकदम पास ले जाती है. यह इतना पास होता है, जहां से सूर्य के सबसे बाहरी परत यानी कोरोना में होने वाली रहस्यमय घटनाओं और एक्टिविटीज़ का अध्ययन किया जा सके, लेकिन इतनी पास भी नहीं कि सूरज की खतरनाक गर्मी और रेडिएशन्स से स्पेसक्राफ्ट को नुकसान हो.

The spacecraft’s record close distance of 3.8 million miles may sound far, but on cosmic scales it’s incredibly close.
सूर्य से 3.8 मिलियन मील यानी 62 लाख किलोमीटर की दूरी ज्यादा लग सकती है, लेकिन यह काफी नजदीक है. (फोटो - NASA/APL)

इस तरह से पार्कर सोलर प्रोब सूर्य के चक्कर लगा रहा है और लगातार सूर्य के करीब पहुंचता जा रहा है. इस मिशन में पार्कर सोलर प्रोब को सूर्य के कुल 24 चक्कर लगाने हैं और इसी क्रम में अपने 22वें चक्कर के दौरान पार्कर सोलर प्रोब सूर्य के सबसे पास से होकर गुजरा.

नासा की हेड ऑफ साइंस डॉक्टर निकोला फ़ॉक्स ने बताया कि नासा के कई मिशन सूर्य के करीब गए हैं, लेकिन वो इस लायक नहीं थे कि वो इस तरह के इलाके में जा पाएं. यहां कई तरह की प्रक्रियाएं हो रही और इन्हें समझने का इकलौता तरीका यही है कि उनके बीच से गुजरे ताकि वहीं से हमें उनके बारे में जानकारियां मिल पाएं.

स्पेसक्राफ्ट की स्पीड कितनी है?

सूरज की खोज में निकला नासा का यह स्पेसक्राफ्ट 4,30,000 मील प्रति घंटे यानी 6,92,017.8646 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सूर्य के चक्कर लगा रहा है और चक्कर के साथ वो सूर्य के करीब पहुंचने की कोशिश कर रहा है. इस रफ्तार को आप करीब 7 लाख किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार भी समझ सकते हैं. यह रफ्तार इतनी है कि आप सिर्फ 1.03 मिनट में दिल्ली से न्यूयॉर्क पहुंच सकते हैं.

वाशिंगटन स्थित नासा हेडक्वार्टर में साइंस मिशन निदेशालय का नेतृत्व करने वाली निकी फॉक्स ने कहा, "इंसानों द्वारा लॉन्च किए किसी सौर मिशन में, सूर्य के इतने करीब से उड़ना ऐतिहासिक क्षण है." उन्होंने कहा कि, "सूर्य का इतने करीब से अध्यन करके, हम अपने सौर मंडल और इसके प्रभावों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. इसमें पृथ्वी और अंतरिक्ष में हमारे द्वारा प्रतिदिन उपयोग की जाने वाली तकनीक भी शामिल है. इसके अलावा हम ब्रह्मांड में मौजूद अन्य तारों के कामकाज के बारे में भी जान सकते हैं, जिससे हमें पृथ्वी के दूर रहने योग्य दुनिया की खोज में मदद मिलेगी."

सूर्य का तापमान कितना है?

सूरज के पास जाते हुए, पार्कर सोलर प्रोब अपने आपको एक खास कार्बन फोम से बने शील्ड के कारण सुरक्षित रहता है, जो इसे सूरज के ऊपरी या सबसे बाहरी वातावरण, कोरोना की अत्यधिक गर्मी से बचाता है.

आपको बता दें कि नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य के वातावरण की तीन लेयर्स हैं, जिनके नाम फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर, और कोरोना है. कोरोना सबसे बाहरी लेयर है, लेकिन इसकी गर्मी सूर्य के सतह यानी फोटोस्फेयर से भी कई हजारों गुना ज्यादा है. सूर्य के सतह के अधिकतम तापमान करीब 6200 डिग्री सेल्सियस है. यह तापमान करीब उतना ही है, जितना कि एक वेल्डिंग मशीन के आर्क है. यहां तक कि खराब मौसम के दौरान धरती पर गिरने वाली बिजली का तापमान भी फोटोस्फेयर से पांच गुना ज्यादा होता है.

ऐसे में रोचक बात यह है कि सूर्य के सतह से भी कहीं ज्यादा तापमान सूर्य के सबसे बाहरी परत यानी कोरोना का होता है. कोरोना की शुरुआत सूर्य के सतह से करीब 2100 किलोमीटर ऊपर से होती है. कोरोना का तापमान सूर्य के सतह से करीब 80 गुना ज्यादा यानी करीब 5 लाख डिग्री सेल्सियस होता है.

इसे अन्य शब्दों में समझें तो कोरोना की गर्मी 1 मिलियन डिग्री फारेनहाइट से भी ज्यादा हो सकती है. इस कारण पार्कर सोलर प्रोब की शील्ड को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वो 2,600 डिग्री फारेनहाइट तक का तापमान सह सकती है. यह तापमान इतना ज्यादा है कि स्टील को भी चुटकी में पिघला सकता है. स्पेसक्राफ्ट के पिछले हिस्से को ऐसे डिजाइन किया गया है कि उसका तापमान किसी आरामदायक कमरे के तापमान जितना है और उसमें स्पेसक्राफ्ट के डिवाइस सुरक्षित रहते हैं. कोरोना में गर्मी तो बहुत होती है, लेकिन घनत्व कम होता है, और इसमें यह शील्ड 1,800 डिग्री फारेनहाइट तक गर्म हो सकती है.

पार्कर सोलर प्रोब मिशन के सिस्टम इंजीनियर, जॉन विर्ज़बर्गर ने कहा, "एक स्पेसक्राफ्ट को सूरज के इतने पास भेज पाना बहुत बड़ी उपलब्धि है. यह एक चुनौती थी जिसे अंतरिक्ष विज्ञान समुदाय 1958 से हल करने की कोशिश कर रहा था और दशकों तक टेक्नोलॉजी को बेहतर बनाने में समय लगाया ताकि यह मुमकिन हो सके."

सूरज के कोरोना से गुजरते हुए, पार्कर सोलर प्रोब ऐसे माप (measurements) ले सकता है, जो वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करेंगे कि कोरोना इतना गर्म क्यों होता है, सूरज से निकलने वाली सौर आंधी (solar wind) का सोर्स क्या है, और ये पता लगाने में भी मदद करेगा कि कैसे उर्जा से भरे कण (energetic particles) प्रकाश की आधी गति तक तेज हो जाते हैं. यह मिशन सूरज की गतिविधियों और उसके प्रभावों को बेहतर समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है.

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