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खगड़‍िया के सियासी चौसर पर कैसर को मात दे पाएंगे 'सन ऑफ मल्लाह'? - आरजेडी

खगड़‍िया लोकसभा सीट पर इस बार महागठबंधन और एनडीए में कड़ा मुकाबला है. एक तरफ व‍िकासशील इंसान पार्टी के मुकेश साहनी हैं तो दूसरी तरफ लोक जन शक्ति पार्टी के चौधरी महबूब अली कैसर एक बार फिर से इस सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

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Published : Apr 20, 2019, 8:13 PM IST

खगड़िया: लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, राजनीतिक माहौल और गरम हो रहा है. इस बार खगड़िया सीट पर मुकाबला एक बार फिर से दिलचस्प हो गया है. बिहार एनडीए में सीट बंटवारे के बाद खगड़िया लोकसभा सीट एक बार फिर से लोजपा के खाते में है और सियासी मैदान में हैं मौजूदा सांसद चौधरी महबूब अली कैसर. वहीं, महागठबंधन से उन्हें चुनौती दे रहे हैं VIP प्रमुख 'सन ऑफ मल्लाह' मुकेश साहनी.

'सन ऑफ मल्लाह' मुकेश साहनी बड़ी चुनौती
खगड़‍िया लोकसभा सीट पर इस बार महागठबंधन में शाम‍िल व‍िकासशील इंसान पार्टी के मुकेश साहनी और चौधरी महबूब अली कैसर के बीच कांटे का मुकाबला है. मुकेश साहनी बॉलीवुड के फेमस सेट ड‍िजाइनर हैं और न‍िषादों की राजनीत‍ि में इनका बड़ा दखल है. उनके इस सीट से चुनाव लड़ने पर कैसर के लिए रास्ता इस बार इतना आसान भी नहीं हैं.

2014 लोकसभा चुनाव का ब्यौरा
2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से एलजेपी उम्मीदवार चौधरी महबूब अली कैसर ने जीत दर्ज की. उन्होंने आरजेडी प्रत्याशी कृष्णा कुमारी यादव को हराया. कैसर को जहां 313806 वोट मिले तो कृष्णा कुमारी को 237803 वोट.. जबकि जदयू के दिनेश चन्द्र यादव 2.20 लाख से अधिक मत लाए थे. यादव मतों के बिखराव के कारण लोजपा के चौधरी महबूब अली कैसर की आसान जीत हुई थी. इस बार के चुनाव में ये दोनों महारथी खगड़िया के राजनीतिक परिदृश्य से ओझल हैं. दिनेश चन्द्र मधेपुरा से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. वहीं महागठबंधन के वीआईपी कोटे में खगड़िया सीट चले जाने के कारण राजद की कृष्णा को टिकट नहीं मिला.

ईटीवी भारत के लिए खगड़िया से गौरव सिंह की रिपोर्ट

महबूब अली कैसर का संसद में रिकॉर्ड
बात मौजूदा सांसद के सदन में प्रदर्शन की करें तो 2014 से 2019 तक महबूब अली कैसर ने मात्र दो बहसों में हिस्सा लिया. उनके खाते में एक भी प्राइवेट मेंबर बिल नहीं है. संसद में हुई अलग-अलग बहसों में उन्होंने मात्र 3 सवाल पूछे. हालांकि इस दौरान लोकसभा में महबूब अली कैसर की उपस्थिति 88 प्रतिशत रही. क्षेत्र में अपने प्रदर्शन को लेकर महबूब अली कैसर खुद मानते हैं कि उन्होंने जनता के बीच कम समय दिया. वे कहते हैं कि अगर इस बार वो सांसद चुनकर जाते हैं तो एक-एक कमी को पूरा करेंगे.

खगड़िया सीट पर जातीय समीकरण
हालांकि यादव बहुल इलाका होने के बाद भी एनडीए और महागठबंधन की तरफ से इस बार कोई यादव प्रत्याशी नहीं है. ऐसे में जातीय गोलबंदी को साधना दोनों ही दलों के लिए मुश्किल हो रहा है. जदयू जहां एनडीए के साथ है तो रालोसपा और हम महागठबंधन में शामिल हैं. अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि इसमें बाजी कौन मारता है, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि महागठबंधन में आरजेडी, रालोसपा और हम का साथ मिलने से मुकेश साहनी एक मजबूत चुनौती के साथ कैसर के सामने हैं. ऐसे में मुकाबला काफी दिलचस्प और कांटे का होगा.

विधानसभा सीटों का समीकरण
खगड़िया संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा सीटें हैं. इनमें सिमरी बख्तियारपुर, खगड़िया, हसनपुर, बेल्दउर, अलौली और परबत्ता. इनमें अलौली विधानसभा सीट एससी के लिए आरक्षित है. 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में छह में से पांच पर जदयू का कब्जा है. जबकि एक पर राजद का कब्जा है.

16 लाख 53 हजार मतदाता करेंगे भाग्य का फैसला
इस बार के लोकसभा चुनाव में 16 लाख 53 हजार 928 मतदाता सांसद प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे. इसमें आठ लाख 73 हजार 363 पुरुष तो सात लाख 80 हजार 525 वोटर महिला हैं. इसके अलावा 40 थर्ड जेंडर के भी वोटर हैं.

अब जनता करेगी हिसाब
खगड़िया की अधिकतर आबादी गांवों में बसती है. सात नदियों से घिरे इस जिले के लिए बाढ़ एक बड़ी समस्या है. इस जिले जिस भी इलाके में जाएंगे वहां लोगों की बदहाली आपके सामने जरूर दिख जाएगी. लोगों की शिकायत अपने विधायक सांसद से लेकर केंद्र और राज्य सरकार दोनों से हैं. ऐसे में जनता क्या कहती है ये भी देख लेते हैं.

खगड़िया को इस समस्याओं से कब मिलेगा छुटकारा?
ये बात सच है कि दिल्ली और पटना से आते आते विकास की रफ्तार खगड़िया में दम तोड़ देती है. सात नदियों से घिरे इस जिले के लिए बाढ़ एक बड़ी समस्या है. इस जिले के जिस भी इलाके में जाएंगे वहां लोगों की बदहाली आपके सामने जरूर दिख जाएगी. लोगों की शिकायत अपने विधायक और सांसद से लेकर केंद्र और राज्य सरकार दोनों से हैं. 2014 में मोदी लहर में तो लोजपा उम्मीदवार कैसर ने आसान जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार कैसर लोजपा के बंगले में फिर से चिराग जला पाएंगे या महागठबंधन से 'सन आफ मल्लाह' के नाम से मशहूर मुकेश सहनी अपने नाव के सहारे संसद पहुंचेंगे ये तो 23 मई को ही पता चल पाएगा.

खगड़िया: लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, राजनीतिक माहौल और गरम हो रहा है. इस बार खगड़िया सीट पर मुकाबला एक बार फिर से दिलचस्प हो गया है. बिहार एनडीए में सीट बंटवारे के बाद खगड़िया लोकसभा सीट एक बार फिर से लोजपा के खाते में है और सियासी मैदान में हैं मौजूदा सांसद चौधरी महबूब अली कैसर. वहीं, महागठबंधन से उन्हें चुनौती दे रहे हैं VIP प्रमुख 'सन ऑफ मल्लाह' मुकेश साहनी.

'सन ऑफ मल्लाह' मुकेश साहनी बड़ी चुनौती
खगड़‍िया लोकसभा सीट पर इस बार महागठबंधन में शाम‍िल व‍िकासशील इंसान पार्टी के मुकेश साहनी और चौधरी महबूब अली कैसर के बीच कांटे का मुकाबला है. मुकेश साहनी बॉलीवुड के फेमस सेट ड‍िजाइनर हैं और न‍िषादों की राजनीत‍ि में इनका बड़ा दखल है. उनके इस सीट से चुनाव लड़ने पर कैसर के लिए रास्ता इस बार इतना आसान भी नहीं हैं.

2014 लोकसभा चुनाव का ब्यौरा
2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से एलजेपी उम्मीदवार चौधरी महबूब अली कैसर ने जीत दर्ज की. उन्होंने आरजेडी प्रत्याशी कृष्णा कुमारी यादव को हराया. कैसर को जहां 313806 वोट मिले तो कृष्णा कुमारी को 237803 वोट.. जबकि जदयू के दिनेश चन्द्र यादव 2.20 लाख से अधिक मत लाए थे. यादव मतों के बिखराव के कारण लोजपा के चौधरी महबूब अली कैसर की आसान जीत हुई थी. इस बार के चुनाव में ये दोनों महारथी खगड़िया के राजनीतिक परिदृश्य से ओझल हैं. दिनेश चन्द्र मधेपुरा से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. वहीं महागठबंधन के वीआईपी कोटे में खगड़िया सीट चले जाने के कारण राजद की कृष्णा को टिकट नहीं मिला.

ईटीवी भारत के लिए खगड़िया से गौरव सिंह की रिपोर्ट

महबूब अली कैसर का संसद में रिकॉर्ड
बात मौजूदा सांसद के सदन में प्रदर्शन की करें तो 2014 से 2019 तक महबूब अली कैसर ने मात्र दो बहसों में हिस्सा लिया. उनके खाते में एक भी प्राइवेट मेंबर बिल नहीं है. संसद में हुई अलग-अलग बहसों में उन्होंने मात्र 3 सवाल पूछे. हालांकि इस दौरान लोकसभा में महबूब अली कैसर की उपस्थिति 88 प्रतिशत रही. क्षेत्र में अपने प्रदर्शन को लेकर महबूब अली कैसर खुद मानते हैं कि उन्होंने जनता के बीच कम समय दिया. वे कहते हैं कि अगर इस बार वो सांसद चुनकर जाते हैं तो एक-एक कमी को पूरा करेंगे.

खगड़िया सीट पर जातीय समीकरण
हालांकि यादव बहुल इलाका होने के बाद भी एनडीए और महागठबंधन की तरफ से इस बार कोई यादव प्रत्याशी नहीं है. ऐसे में जातीय गोलबंदी को साधना दोनों ही दलों के लिए मुश्किल हो रहा है. जदयू जहां एनडीए के साथ है तो रालोसपा और हम महागठबंधन में शामिल हैं. अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि इसमें बाजी कौन मारता है, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि महागठबंधन में आरजेडी, रालोसपा और हम का साथ मिलने से मुकेश साहनी एक मजबूत चुनौती के साथ कैसर के सामने हैं. ऐसे में मुकाबला काफी दिलचस्प और कांटे का होगा.

विधानसभा सीटों का समीकरण
खगड़िया संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा सीटें हैं. इनमें सिमरी बख्तियारपुर, खगड़िया, हसनपुर, बेल्दउर, अलौली और परबत्ता. इनमें अलौली विधानसभा सीट एससी के लिए आरक्षित है. 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में छह में से पांच पर जदयू का कब्जा है. जबकि एक पर राजद का कब्जा है.

16 लाख 53 हजार मतदाता करेंगे भाग्य का फैसला
इस बार के लोकसभा चुनाव में 16 लाख 53 हजार 928 मतदाता सांसद प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे. इसमें आठ लाख 73 हजार 363 पुरुष तो सात लाख 80 हजार 525 वोटर महिला हैं. इसके अलावा 40 थर्ड जेंडर के भी वोटर हैं.

अब जनता करेगी हिसाब
खगड़िया की अधिकतर आबादी गांवों में बसती है. सात नदियों से घिरे इस जिले के लिए बाढ़ एक बड़ी समस्या है. इस जिले जिस भी इलाके में जाएंगे वहां लोगों की बदहाली आपके सामने जरूर दिख जाएगी. लोगों की शिकायत अपने विधायक सांसद से लेकर केंद्र और राज्य सरकार दोनों से हैं. ऐसे में जनता क्या कहती है ये भी देख लेते हैं.

खगड़िया को इस समस्याओं से कब मिलेगा छुटकारा?
ये बात सच है कि दिल्ली और पटना से आते आते विकास की रफ्तार खगड़िया में दम तोड़ देती है. सात नदियों से घिरे इस जिले के लिए बाढ़ एक बड़ी समस्या है. इस जिले के जिस भी इलाके में जाएंगे वहां लोगों की बदहाली आपके सामने जरूर दिख जाएगी. लोगों की शिकायत अपने विधायक और सांसद से लेकर केंद्र और राज्य सरकार दोनों से हैं. 2014 में मोदी लहर में तो लोजपा उम्मीदवार कैसर ने आसान जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार कैसर लोजपा के बंगले में फिर से चिराग जला पाएंगे या महागठबंधन से 'सन आफ मल्लाह' के नाम से मशहूर मुकेश सहनी अपने नाव के सहारे संसद पहुंचेंगे ये तो 23 मई को ही पता चल पाएगा.

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लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, राजनीतिक माहौल और गरम हो रहा है. इस बार खगड़िया सीट पर मुकाबला एक बार फिर से दिलचस्प हो गया है. बिहार एनडीए में सीट बंटवारे के बाद खगड़िया लोकसभा सीट एक बार फिर से लोजपा के खाते में है और सियासी मैदान में हैं मौजूदा सांसद चौधरी महबूब अली कैसर. वहीं, महागठबंधन से उन्हें चुनौती दे रहे हैं VIP प्रमुख 'सन ऑफ मल्लाह' मुकेश साहनी.



'सन ऑफ मल्लाह' मुकेश साहनी बड़ी चुनौती

खगड़‍िया लोकसभा सीट पर इस बार महागठबंधन में शाम‍िल व‍िकासशील इंसान पार्टी के मुकेश साहनी और चौधरी महबूब अली कैसर के बीच कांटे का मुकाबला है. मुकेश साहनी बॉलीवुड के फेमस सेट ड‍िजाइनर हैं और न‍िषादों की राजनीत‍ि में इनका बड़ा दखल है. उनके इस सीट से चुनाव लड़ने पर कैसर के लिए रास्ता इस बार इतना आसान भी नहीं हैं. 



2014 लोकसभा चुनाव का ब्यौरा

2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से एलजेपी उम्मीदवार चौधरी महबूब अली कैसर ने जीत दर्ज की. उन्होंने आरजेडी प्रत्याशी कृष्णा कुमारी यादव को हराया. कैसर को जहां 313806 वोट मिले तो कृष्णा कुमारी  को 237803 वोट.. जबकि जदयू के दिनेश चन्द्र यादव 2.20 लाख से अधिक मत लाए थे. यादव मतों के बिखराव के कारण लोजपा के चौधरी महबूब अली कैसर की आसान जीत हुई थी. इस बार के चुनाव में ये दोनों महारथी खगड़िया के राजनीतिक परिदृश्य से ओझल हैं. दिनेश चन्द्र मधेपुरा से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. वहीं महागठबंधन के वीआईपी कोटे में खगड़िया सीट चले जाने के कारण राजद की कृष्णा को टिकट नहीं मिला. 



महबूब अली कैसर का संसद में रिकॉर्ड

बात मौजूदा सांसद के सदन में प्रदर्शन की करें तो 2014 से 2019 तक महबूब अली कैसर ने मात्र दो बहसों में हिस्सा लिया. उनके खाते में एक भी प्राइवेट मेंबर बिल नहीं है. संसद में हुई अलग-अलग बहसों में उन्होंने मात्र 3 सवाल पूछे. हालांकि इस दौरान लोकसभा में महबूब अली कैसर की उपस्थिति 88 प्रतिशत रही. क्षेत्र में अपने प्रदर्शन को लेकर महबूब अली कैसर खुद मानते हैं कि उन्होंने जनता के बीच कम समय दिया. वे कहते हैं कि अगर इस बार वो सांसद चुनकर जाते हैं तो एक-एक कमी को पूरा करेंगे.



खगड़िया सीट पर जातीय समीकरण

हालांकि यादव बहुल इलाका होने के बाद भी एनडीए और महागठबंधन की तरफ से इस बार कोई यादव प्रत्याशी नहीं है. ऐसे में जातीय गोलबंदी को साधना दोनों ही दलों के लिए मुश्किल हो रहा है. जदयू जहां एनडीए के साथ है तो रालोसपा और हम महागठबंधन में शामिल हैं. अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि इसमें बाजी कौन मारता है, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि महागठबंधन में आरजेडी, रालोसपा और हम का साथ मिलने से मुकेश साहनी एक मजबूत चुनौती के साथ कैसर के सामने हैं. ऐसे में मुकाबला काफी दिलचस्प और कांटे का होगा. 



विधानसभा सीटों का समीकरण

खगड़िया संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा सीटें हैं. इनमें सिमरी बख्तियारपुर, खगड़िया, हसनपुर, बेल्दउर, अलौली और परबत्ता. इनमें अलौली विधानसभा सीट एससी के लिए आरक्षित है. 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में छह में से पांच पर जदयू का कब्जा है. जबकि एक पर राजद का कब्जा है.



16 लाख 53 हजार मतदाता करेंगे भाग्य का फैसला

इस बार के लोकसभा चुनाव में 16 लाख 53 हजार 928 मतदाता सांसद प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे.  इसमें आठ लाख 73 हजार 363 पुरुष तो सात लाख 80 हजार 525 वोटर महिला हैं. इसके अलावा 40 थर्ड जेंडर के भी वोटर हैं.



अब जनता करेगी हिसाब

खगड़िया की अधिकतर आबादी गांवों में बसती है. सात नदियों से घिरे इस जिले के लिए बाढ़ एक बड़ी समस्या है. इस जिले जिस भी इलाके में जाएंगे वहां लोगों की बदहाली आपके सामने जरूर दिख जाएगी. लोगों की शिकायत अपने विधायक सांसद से लेकर केंद्र और राज्य सरकार दोनों से हैं. ऐसे में जनता क्या कहती है ये भी देख लेते हैं. 



खगड़िया को इस समस्याओं से कब मिलेगा छुटकारा?

ये बात सच है कि दिल्ली और पटना से आते आते विकास की रफ्तार खगड़िया में दम तोड़ देती है. सात नदियों से घिरे इस जिले के लिए बाढ़ एक बड़ी समस्या है. इस जिले के जिस भी इलाके में जाएंगे वहां लोगों की बदहाली आपके सामने जरूर दिख जाएगी. लोगों की शिकायत अपने विधायक और सांसद से लेकर केंद्र और राज्य सरकार दोनों से हैं. 2014 में मोदी लहर में तो लोजपा उम्मीदवार कैसर ने आसान जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार कैसर लोजपा के बंगले में फिर से चिराग जला पाएंगे या महागठबंधन से  'सन आफ मल्लाह' के नाम से मशहूर मुकेश सहनी अपने नाव के सहारे संसद पहुंचेंगे ये तो 23 मई को ही पता चल पाएगा.   

 


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