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बिहार में अपना अस्तित्व खो रहा यह समाज, दो वक्त की रोटी भी नहीं होती नसीब

डोम समाज हिन्दू रीति रिवाजों में बहुत काम में आते हैं. जैसे अंतिम संस्कार में इनकी जरूरत होती है. शादी के घरों में भी इनकी बनाई गई टोकरियों का इस्तेमाल होता है.

डोम समाज की महिला
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Published : Mar 31, 2019, 11:20 PM IST

खगड़ियाः बिहार में डोम समाज की संख्या ज्यादा है. ये बिहार में महादलित में गिनी जाती है. इनका मुख्य पेशा गाना बजाना और बांस की टोकरिया बनाना होता है.

डोम समाज हिन्दू रीति रिवाजों में बहुत काम में आते हैं. जैसे अंतिम संस्कार में इनकी जरूरत होती है. शादी के घरों में भी इनकी बनाई गई टोकरियों का इस्तेमाल होता है. भारत के इतिहास में कई बार डोम समाज को भी सत्ता का विरोध झेलना पड़ा है. लेकिन यह डोम समाज अपने पुश्तैनी धंधे का अस्तित्व बचाने में जुटा है.

डो समाज की दूरदशा

कारोबार में कमी

डोम समाज अपने पुस्तैनी कारोबार जैसे पंखा, सूप बनाना इसको बचाने में जुटे हुए हैं. इस समाज के लोगों का कहना है कि आज की इस आधुनिक दुनिया में प्लास्टिक और आधुनकि उपकरण आने से इनके धंधे में भारी गिरावट आई है. पहले गांवो में हाथो से बने पंखे इस्तेमाल होते थे लेकिन आज बैट्री वाले पंखा और प्लास्टिक के हाथ वाले पंखों के आने से इनके बीने हुए पंखो को खरीदार नहीं मिल रहे हैं.

डोम समाज विकास से कोसों दूर

राजेन्द्र मलिक का कहना है कि उनके परिवार में 5 बेटे और पांच बहू है लेकिन सब के लिए दो वक्त का खाना नहीं जुटा पाते हैं. राज्य में डोम समाज विकास से कोसों दूर है. हालांकि डोम समुदाय के लोगों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए कई प्रयास हो रहे हैं. लेकिन डोम समुदाय के लोग शिक्षा और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित है.

खगड़ियाः बिहार में डोम समाज की संख्या ज्यादा है. ये बिहार में महादलित में गिनी जाती है. इनका मुख्य पेशा गाना बजाना और बांस की टोकरिया बनाना होता है.

डोम समाज हिन्दू रीति रिवाजों में बहुत काम में आते हैं. जैसे अंतिम संस्कार में इनकी जरूरत होती है. शादी के घरों में भी इनकी बनाई गई टोकरियों का इस्तेमाल होता है. भारत के इतिहास में कई बार डोम समाज को भी सत्ता का विरोध झेलना पड़ा है. लेकिन यह डोम समाज अपने पुश्तैनी धंधे का अस्तित्व बचाने में जुटा है.

डो समाज की दूरदशा

कारोबार में कमी

डोम समाज अपने पुस्तैनी कारोबार जैसे पंखा, सूप बनाना इसको बचाने में जुटे हुए हैं. इस समाज के लोगों का कहना है कि आज की इस आधुनिक दुनिया में प्लास्टिक और आधुनकि उपकरण आने से इनके धंधे में भारी गिरावट आई है. पहले गांवो में हाथो से बने पंखे इस्तेमाल होते थे लेकिन आज बैट्री वाले पंखा और प्लास्टिक के हाथ वाले पंखों के आने से इनके बीने हुए पंखो को खरीदार नहीं मिल रहे हैं.

डोम समाज विकास से कोसों दूर

राजेन्द्र मलिक का कहना है कि उनके परिवार में 5 बेटे और पांच बहू है लेकिन सब के लिए दो वक्त का खाना नहीं जुटा पाते हैं. राज्य में डोम समाज विकास से कोसों दूर है. हालांकि डोम समुदाय के लोगों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए कई प्रयास हो रहे हैं. लेकिन डोम समुदाय के लोग शिक्षा और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित है.

Intro:धूम बिहार में ज्यादा संख्या में होती है आज बिहार मे जाती महादलित में दिनी जाती है गाना बजाना और पास की तो करिया बनाना इनका मुख्य पैसा होता है भारत के इतिहास में कई बार समाज को भी सत्ता का विरोध झेलना पड़ा है आज यह दूं समाज अपने पुश्तैनी धंधे का अस्तित्व बचाने में जुटे है।


Body:डोम बिहार में ज्यादा संख्या में होते है।आज बिहार मे जाती महादलित में गिनी जाती है ।डोम समाज गाना बजाना और बांस की टोकरिया बनाना इनका मुख्य पेसा होता है । डोम समाज हिन्दू रीति रिवाज में बहुत जगह काम मे आते है ।जैसे अंतिम संस्कार करना हो वहां इनकी जरूरत होती है या शादी का घर हो तो वहां भी डाल-दौरा का जो इस्तेमाल होता है बिहार के गांवों में वो भी इन्ही के द्वारा निर्मत होता है।भारत के इतिहास में कई बार डोम समाज को भी सत्ता का विरोध झेलना पड़ा है।लेकिन आज यह डोम समाज अपने पुश्तैनी धंधे का अस्तित्व बचाने में जुटे है।

डोम समाज का मुख्य पेशा
हाथो से बिन कर बांस से पंखा बनाना
हाथो से बिन कर सुप बनाना
शादी विवाह में प्रयोग होने वाला डाल-दौरा बनाना
सुअर पालना,और गंदगी साफ करना
डोम समाज आज अपने पुस्तैनी कारोबार जैसे पँखा, सुप बनाना इसको बचाने में जुटे हुए है।जिले के सोनमनकी गांव में बसे एक छोटे से टोले में डोम समाज का कहना है कि आज की इस आधुनिक दुनिया में प्लास्टिक और आधुनकि उपकरण आने से हमारे धंधे में भारी गिरावट आई है पहले गांवो में हाथो से बने पंखे इस्तेमाल होते थे लेकिन आज बैट्री वाले पंखा और प्लास्टिक के हाथ वाला पंखा आने से हमारे बीने हुए पंखा को खरीदार नही मिल रहा है छठ पर्व में बने हुए सुप तो बिकता है लेकिन उसके बाद हमलोग के पास करने के लिए कुछ नही बचता है जिसके वजह से एक समय का भोजन भी नसीब नही हो रहा है।राजेन्द्र मालिक का कहना है कि परिवार में 5 बेटा और पांच बहु है लेकिन सब के लिए दो वक्त का खाना नही जुटा पाते है।बाहर भी जाते है तो लोह डोम होने के वजह से काम नही देना चाहते फिर उस हालात में वही पुस्तैनी काम मे हाथ डालना पड़ता है लोगो की गंदगी साफ करना।

विकाश से दूर डोम(मल्लिक) समाज
राज्य में विकास की बयार में कई सपने साकार होते दिखते हैं लेकिन जिले के डोमसमाज विकास से कोशो दूर है ।या यह सच है कि डोम समुदाय के लोगों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए कई प्रयास हो रहे हैं । लेकिन डोम समुदाय के लोग शिक्षा वह सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित जनप्रतिनिधियों वह प्रशासन से तृसकरत महादलित अभी भी अपने पूर्वजों के धंधे सुवर पालन, सूप एवं टोकरी बनाने में ही व्यस्त रहते हैं। जबकि अन्य सभी समुदाय के बच्चे पठन- पाठन करते हैं । मगर डोम समुदाय के बच्चे सूवर चराने व घरेलू कार्य करते रहते हैं। उन समुदाय के सरकार द्वारा चलाई जा रही शिक्षा शिव उत्थान केंद्र प्रयास केंद्रक संचालन या प्रयास लागू नहीं हो पा रहे है ।महिलायें सिर्फ सुप व टोकरी बनाने में व्यस्त रहती है।




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