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कागज का थैला बनाकर मोदी के सपने को साकार कर रहा कटिहार का यह गांव - women of katihar making paper bag

स्थानीय महिला कारोबारी ने बताया कि इसमें उन्हें कोई फायदा नहीं है. बल्कि समय व्यतीत करने के लिए यह काम कर रही है. कागज का थैला बनाने से 50-60 रुपए आते हैं, तो दाल चावल का दाम निकल जाता है.

villagers making paper bag in katihar
प्लास्टिक बैन के बाद मोदी जी के सपने को साकार कर रहा कटिहार का यह गांव
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Published : Dec 13, 2019, 1:20 PM IST

कटिहार: बिहार सरकार ने पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाया तो कागज का थैला बनाने वाले कई कुनबों को जीविका का सहारा मिल गया था. पॉलिथीन पर प्रतिबंध से कागज के थैले बनाने वाले पुश्तैनी कारोबारियों के चेहरे की रौनक बढ़ गई थी. लेकिन बाजारों में खुलेआम बिक रहे प्लास्टिक से इनके कारोबार पर असर पड़ रहा है. जिले का रिफ्यूजी कॉलोनी (बर्मा कालोनी) अपने आप में एक मिसाल पेश कर रहा है. दरअसल 1960 के बाद बर्मा से आए शरणार्थी इस कॉलोनी में आकर बस गए थे. तब से इस गांव के सैकड़ों परिवार कागज का थैला बनाकर अपनी जीविका चला रहे हैं.

बाजार में मिल रहे प्लास्टिक के थैले
कागज का थैला बनाना इनका पुश्तैनी धंधा है. पिछले 40 सालों से यहां के लोग प्लास्टिक का थैला बनाकर अपना परिवार चला रहे हैं. इन सब में सबसे खास बात यह है कि इस कॉलोनी की सभी महिलाएं अपने घरों में बैठकर कागज का थैला बनाते हैं और उसे मार्केट में सप्लाई करते हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के द्वारा पूरे बिहार में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के बाद इन छोटे कारोबारियों को उम्मीद जगी थी कि इनका धंधा का और विस्तार होगा. कुछ महीने तो ठीक-ठाक रहा. लेकिन फिर से बाजारों में प्लास्टिक की उपलब्धता के कारण इनका धंधा चौपट हो रहा है.

जानकारी देती महिलाएं


थैला बनाने से मिलते हैं 50-60 रुपये
बताया जाता है पिछले 40-50 वर्षों से इस कालोनी में कागज का थैला बना कर लोग जीविकोपार्जन कर रहे हैं. लेकिन सरकार के उदासीन रवैया के कारण इनकी जिंदगी बेहतर नहीं हो पा रही है. स्थानीय महिला कारोबारी ने बताया कि इसमें उन्हें कोई फायदा नहीं है. बल्कि समय व्यतीत करने के लिए यह काम कर रही हैं. कागज का थैला बनाने से 50-60 रुपये आते हैं, तो दाल चावल का दाम निकल जाता है.

villagers making paper bag in katihar
ग्रामीण

वहीं मोनी देवी ने कहा कि 10 किलो कागज लाते हैं तो 140 रूपये की कमाई होती है. लेकिन कागज का थैला बनाने में 2 से 3 दिनों का समय लगता है. ऐसे में गुजारा कर पाना मुश्किल होता है.

ये भी पढ़ें: बेतिया: गीत गाकर विधायक ने दिया बेटी बचाओ-जंगल बचाओ का संदेश


प्लास्टिक पर पूरी तरह लगे प्रतिबंध
स्थानीय महिलाओं ने बताया कि प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा तो थोड़ी खुशी हुई थी. लेकिन अभी हालात ऐसे हैं कि बाजारों में खुलेआम प्लास्टिक बिक रहे हैं. जिसकी वजह से काम चौपट हो रहा है. कागज के थैले का डिमांड भी मार्केट में कम हो गया है. स्थानीय महिलाओं को सरकार से आस है कि प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाए. ताकि इनका पुश्तैनी धंधा फिर से वापस पटरी पर आ जाए.

कटिहार: बिहार सरकार ने पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाया तो कागज का थैला बनाने वाले कई कुनबों को जीविका का सहारा मिल गया था. पॉलिथीन पर प्रतिबंध से कागज के थैले बनाने वाले पुश्तैनी कारोबारियों के चेहरे की रौनक बढ़ गई थी. लेकिन बाजारों में खुलेआम बिक रहे प्लास्टिक से इनके कारोबार पर असर पड़ रहा है. जिले का रिफ्यूजी कॉलोनी (बर्मा कालोनी) अपने आप में एक मिसाल पेश कर रहा है. दरअसल 1960 के बाद बर्मा से आए शरणार्थी इस कॉलोनी में आकर बस गए थे. तब से इस गांव के सैकड़ों परिवार कागज का थैला बनाकर अपनी जीविका चला रहे हैं.

बाजार में मिल रहे प्लास्टिक के थैले
कागज का थैला बनाना इनका पुश्तैनी धंधा है. पिछले 40 सालों से यहां के लोग प्लास्टिक का थैला बनाकर अपना परिवार चला रहे हैं. इन सब में सबसे खास बात यह है कि इस कॉलोनी की सभी महिलाएं अपने घरों में बैठकर कागज का थैला बनाते हैं और उसे मार्केट में सप्लाई करते हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के द्वारा पूरे बिहार में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के बाद इन छोटे कारोबारियों को उम्मीद जगी थी कि इनका धंधा का और विस्तार होगा. कुछ महीने तो ठीक-ठाक रहा. लेकिन फिर से बाजारों में प्लास्टिक की उपलब्धता के कारण इनका धंधा चौपट हो रहा है.

जानकारी देती महिलाएं


थैला बनाने से मिलते हैं 50-60 रुपये
बताया जाता है पिछले 40-50 वर्षों से इस कालोनी में कागज का थैला बना कर लोग जीविकोपार्जन कर रहे हैं. लेकिन सरकार के उदासीन रवैया के कारण इनकी जिंदगी बेहतर नहीं हो पा रही है. स्थानीय महिला कारोबारी ने बताया कि इसमें उन्हें कोई फायदा नहीं है. बल्कि समय व्यतीत करने के लिए यह काम कर रही हैं. कागज का थैला बनाने से 50-60 रुपये आते हैं, तो दाल चावल का दाम निकल जाता है.

villagers making paper bag in katihar
ग्रामीण

वहीं मोनी देवी ने कहा कि 10 किलो कागज लाते हैं तो 140 रूपये की कमाई होती है. लेकिन कागज का थैला बनाने में 2 से 3 दिनों का समय लगता है. ऐसे में गुजारा कर पाना मुश्किल होता है.

ये भी पढ़ें: बेतिया: गीत गाकर विधायक ने दिया बेटी बचाओ-जंगल बचाओ का संदेश


प्लास्टिक पर पूरी तरह लगे प्रतिबंध
स्थानीय महिलाओं ने बताया कि प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा तो थोड़ी खुशी हुई थी. लेकिन अभी हालात ऐसे हैं कि बाजारों में खुलेआम प्लास्टिक बिक रहे हैं. जिसकी वजह से काम चौपट हो रहा है. कागज के थैले का डिमांड भी मार्केट में कम हो गया है. स्थानीय महिलाओं को सरकार से आस है कि प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाए. ताकि इनका पुश्तैनी धंधा फिर से वापस पटरी पर आ जाए.

Intro:कटिहार

बिहार सरकार ने पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाया तो कागज का थैला बनाने वाले कई कुनबों को जीविका का सहारा मिल गया था। पॉलिथीन पर प्रतिबंध से कागज के थैले बनाने वाले पुश्तैनी कारोबारियों के चेहरे की रौनक बढ़ गई थी। कागज के थैलों का चलन फिर से शुरू होने पर मुफलिसी झेल रहे कारोबारियों को उम्मीद की किरण दिखी थी लेकिन बाजारों में खुलेआम बिक रहे प्लास्टिक से इनका कारोबार पर असर पड़ रहा है।





Body:जिले के रिफ्यूजी कॉलोनी (बर्मा कालोनी) अपने आप में एक मिसाल पेश कर रहे है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का सपना भारत को पूरी तरह प्लास्टिक मुक्त करना है को साकार कर रहे हैं। दरअसल 1960 के बाद बर्मा से आए शरणार्थी इस कॉलोनी में आकर बस गए थे तब से इस गांव का सैकड़ों परिवार कागज का थैला बनाकर अपनी जीविका चला रहे है। कागज का थैला बनाना इनका पुश्तैनी धंधा है। पिछले 40 सालों से इस जगह के लोग प्लास्टिक का थैला बनाकर बाजारों में बिक्री कर अपना परिवार चला रहे हैं।

इन सब में सबसे खास बात यह है कि इस कॉलोनी के सभी महिलाएं अपने घरों में बैठकर कागज का थैला बनाते हैं और उसे मार्केट में सप्लाई करते हैं। सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के द्वारा पूरे बिहार में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के बाद इन छोटे कारोबारियों को उम्मीद जगी थी कि इनका धंधा और विस्तार होगा। कुछ महीने तो ठीक-ठाक रहा लेकिन फिर से बाजारों में प्लास्टिक की उपलब्धता के कारण इनका धंधा चौपट हो रहा है और मुफलिसी की जिंदगी झेल रहे हैं।

बताया जाता है पिछले 40-50 वर्षों से इस कालोनी में कागज का थैला बना कर लोग अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं हैं लेकिन सरकार के उदासीन रवैया के कारण इनकी जिंदगी बेहतर नहीं हो पा रही है। प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगने के बाद इन परिवारों को थोड़ी सी आस जगी थी कि अब इनका धंधा बेहतर होगा लेकिन बाजारों में खुलेआम बिक रहे प्लास्टिक के कारण इनका आस टूटता जा रहा है।

स्थानीय महिला कारोबारी बताती है ऐसे ही समय व्यतीत करने से बढ़िया है कुछ कर ले इसलिए दिनभर बैठकर पेपर का थैला बनाती है। इसमें उन्हें कोई फायदा नहीं है बल्कि समय व्यतीत करने के लिए यह काम कर रही है। कागज का थैला बनाने से 50-60 रुपए आते हैं तो दाल चावल का दाम निकल जाता है।


Conclusion:मोनी देवी बताती हैं 10 किलो कागज लाते हैं तो ₹140 का कमाई होता है लेकिन कागज का थैला बनाने में दो परिवार की जरूरत पड़ती है और उसमें में 2 से 3 दिनों का समय लगता है ऐसे में गुजारा कर पाना मुश्किल होता है लिहाजा करे तो क्या करें समय व्यतीत करने से बढ़िया है कुछ आ जाता है और घर का दाल रोटी चलता है।

स्थानीय महिलाएं की माने तो प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा तो थोड़ी खुशी हुई थी लेकिन अभी हालात ऐसे हैं कि बाजारों में खुलेआम प्लास्टिक बिक रहे हैं जिस कारण इनका धंधा चौपट हो रहा है। कागज का थैला का डिमांड भी मार्केट में कम गया है। स्थानीय महिलाओं को सरकार से आस है कि प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाएं ताकि इनका पुश्तैनी धंधा फिर से वापस पटरी पर आए और इनका जिंदगी गुलजार हो सके।

बाइट मोनी देवी
सरस्वती राय
तपेशवरी देवी
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