कटिहारः कोरोना वायरस से बचाव और इसके रोकथाम के लिये जारी लॉकडाउन में सरकार ने आम जनजीवन में भले ही बड़ी रियायत दे दी हो. लेकिन लोगों के जेहन पर संक्रमण का खौफ अब भी किस कदर बरकरार है. इसका अंदाजा कटिहार के मनिहारी गंगा नदी तट घाट के व्यवसाय को देखकर समझा जा सकता है.
कोरोना काल में लोग शवों के अंतिम क्रिया कर्म में शिरकत करने से तौबा कर लिए हैं. जिस कारण से लकड़ी व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ हैं और मंदी की मार झेल रहा हैं. लॉकडाउन से पहले जहां शवों को जलाने के लिये एक दिन में सैकड़ों क्विंटल लकड़ियां बिक जाया करती थी, तो अब हालात ऐसे हैं कि अब बमुश्किल पांच क्विंटल लकड़ियां भी नहीं बिक पाती है.
मंदी की मार झेल रहे गंगा नदी तट घाट के व्यवसायी
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार गंगा नदी तट घाट को शवों के अंतिम क्रियाकर्म के लिये सबसे उत्तम जगह माना जाता हैं. जिस कारण कटिहार से होकर गुजरने वाले गंगा नदी तट घाट पर आसपास के जिले पूर्णिया, अररिया, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा और सुपौल के प्रतिदिन दर्जनों शव यहां दाह-संस्कार को पहुंचते थे. लेकिन जब से कोरोना वायरस से बचाव और इसके संक्रमण की रोकथाम के लिये लॉकडाउन लागू किया गया, तब से गंगा नदी तट पर शवों के पहुंचने के सिलसिले में कमी आ गयी.
काष्ठ व्यवसायियों पर पड़ा लॉकडाउन का असर
स्थानीय व्यवसायी शंकर चक्रवर्ती बताते हैं कि लॉक डाउन से पहले व्यवसाय में बड़ी जान थी. लेकिन अब मंदी की मार पड़ी हैं. पहले लकड़ियां चीड़ने के लिये दो मजदूर दिन रात काम करते थे, तो दो मजदूर लकड़ियां वजन कर ग्राहक को देते थे. जिससे पांच-सात मजदूर को रोजगार मिल जाया करता था. लेकिन अब वैसा नहीं है.
लोगों में दहशत
लोगों के मन में अंदरूनी दहशत और कई सवाल कौंधते रहते हैं कि पीड़ित की मौत कहीं कोरोना से तो नहीं हुई और फिर जब कोई आसपास के जिलों में किसी व्यक्ति की मौत हो जाती हैं, तो पीड़ित परिजन शवों को गंगा नदी तट घाट पर लाने की बजाय स्थानीय तौर पर ही निष्पादन कर डालते हैं. जिससे लकड़ियों की बिक्री खासा प्रभावित हुई हैं.