कटिहार: बिहार के पिछड़े हुए कोसी क्षेत्र में करीब 40 साल पहले रेलवे लाइन दौड़ाने की परियोजना आई थी. लंबा वक्त बीतने के बाद भी यह परियोजना पूरी नहीं हो सकी है. जबकि तब से अब तक बिहार के तीन नेता रेल मंत्री के तौर पर काम कर चुके हैं. बता दें कि कुरसेला-बिहारीगंज रेल परियोजना सहित कोसी सीमांचल और मिथिलांचल की 12 से अधिक महत्वपूर्ण रेल परियोजना को इस बार की बजट में मात्र एक-एक हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है.
चार दशक पहले का प्लान
बिहारीगंज-कुरसेला की रेल परियोजना बीते चार दशकों से अधर में है. मधेपुरा, पूर्णिया व कटिहार के सुदूर गांवों को इससे जोड़ने का पहली बार सपना तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र ने देखा था. उनके कार्यकाल के दौरान ही इस प्रोजेक्ट के लिए सर्वे शुरू हो गया था. हालांकि कुछ ठोस काम होने से पहले ही ललित नारायण के असामयिक निधन के बाद ये प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया.
'सालों से कुरसेला बिहारीगंज रेल परियोजना अधूरा पड़ा हुआ है. उसमें कहीं न कहीं सरकार की लापरवाही है. 2018 में हाजीपुर रेल डीआरएम के पास ज्ञापन सौंपा गया था. और उन्होंने आश्वासन दिया था कि जल्द ही इस परियोजना पर काम शुरू होगा. इससे पूर्व कुछ जगहों पर काम शुरू हुआ था, लेकिन बाद में वह बंद हो गया. 6 महीने तक शांतिपूर्ण तरीके से क्षेत्र के लोगों की ओर से आंदोलन किया गया. इसके बावजूद सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है'.- रंजीत कुमार, स्थानीय
पासवान ने तैयार कराया रूट मैप
जब रामविलास पासवान रेल मंत्री बने तब उन्होंने इस परियोजना की फाइल मंगवाई. उन्होंने इसे अपनी प्राथमिकता के प्रोजेक्ट में जोड़ा. कुरसेला में उन्होंने ही सर्वे कार्य के लिए शिलान्यास कराया. उनकी ही पहल पर रेल लाइन के लिए रूट मैप तैयार हुआ. लेकिन सत्ता परिवर्तन के साथ ही ये महत्वाकांक्षी परियोजना एक बार फिर ठंडे बस्ते में चली गई.
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'यूपीए की सरकार में लालू यादव ने उत्तर बिहार में रेल का जाल बिछाने का काम किया और कई बड़े बड़े प्रोजेक्ट लाने का काम किया था. बरसों से अधर में पड़ा बिहारीगंज कुर्सेला रेल परियोजना को तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने इस योजना को पुनर्जीवित किया और बजट में जमीन अधिग्रहण के लिए करोड़ों रुपए दिए थे और काम में तेजी आई थी, लेकिन 2009 में यूपीए-2 की सरकार में मंत्री नहीं बनाए जाने के बाद यह योजना अधर में लटक गया है और तब से लेकर आज तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं'.- नीरज कुमार यादव, पूर्व विधायक, राजद
संघर्ष समिति ने बनाया दबाव
कई साल तक इस प्रोजेक्ट में कोई गतिविधि न देख स्थानीय लोगों ने कुरसेला-बिहारीगंज रेल पथ बनाओ संघर्ष समिति बनाया. समिति का दबाव तब रंग लाया जब लालू प्रसाद रेल मंत्री बने. तब रेल परियोजना को बजट जारी हुआ. रूट मैप के रेलवे स्टेशनों, क्रासिंग के स्थान पर रेलवे के बोर्ड लगे. लालू प्रसाद ने 7 फरवरी, 2009 को रूपौली में बिहारीगंज-कुरसेला नयी रेल लाइन का शिलान्यास किया. इस घटना से फिर स्थानीय लोगों की उम्मीदें जगी, लेकिन तब से अब तक स्थानीय लोगों का इंतजार खत्म नहीं हुआ है.
'इस बात को लेकर हमने और पूर्णिया सांसद संतोष कुशवाहा ने सदन में सवाल किया था. लेकिन सरकार का जवाब था कि यह एक नन प्रॉफिटेबल रेल लाइन है और यह इलाका सड़क कनेक्टिविटी से जुड़ा हुआ है. आश्वासन दिया है कि आने वाले दिनों में भारत सरकार इस पर विशेष ध्यान देगी'.-दुलाल चंद्र गोस्वामी, सांसद
श्रद्धांजलि के तौर पर पूरा हो प्रोजेक्ट
असम,मधेपुरा-पूर्णिया-कटिहार के सुदूर क्षेत्रों की लाखों की आबादी के लिए आज भी सड़क ही आवागमन का मुख्य साधन है. रेल परियोजना पूरा होने पर इन क्षेत्रों में आर्थिक और औद्योगिक विकास को बल मिलेगा. बिहार बॉर्डर तक इसकी सुविधाओं का विस्तार होगा. 2009 से इस रेल परियोजना का कार्य रुका पड़ा है.
कुरसेला बिहारीगंज रेल परियोजना...क्यों जरूरी है?
वहीं सीमांचल के विकास के लिए बता करें तो, कुरसेला बिहारीगंज रेल परियोजना उतनी ही जरूरी है जितनी एक जमाने में कटिहार से गुजरने वाली छोटी लाइन की जगह बड़ी लाइन की ट्रेनों की मांग हुआ करती थी. कुर्सेला क्षेत्र में मक्के, पाट, चना जैसे नगदी फसलों की भी बेहतर खेती होती है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े व्यापारी रेल नेटवर्क नहीं होने के कारण अपने अनाज को औने पौने दाम पर ही बेच देते हैं. अगर यह परियोजना पूरी होती तो शहर से 60 से 70 किलोमीटर दूर तक के किसानों को अपनी फसल बाजार लाने में काफी मदद मिल सकती थी.
बता दें कि तत्कालीन रेल मंत्री रामविलास पासवान के कार्यकाल में 1998 में इस रेल परियोजना को लेकर भूमि सर्वे कराया गया था और 1999 में इसकी आधारशिला भी रखी गई थी. तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में 2009 में इस रेल परियोजना को महत्वपूर्ण मानते हुए बजट भी पारित किया था. परियोजना पर काम पूरा करने के लिए करीब 192 करो स्वीकृति भी की गई थी. योजना पर काम शुरू करने के लिए 43 करोड़ की आवंटन में किया गया था, लेकिन उसके बाद भी यह परियोजना फाइलों में ही अटकी रह गई है.