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'भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पुलिस की दबिश बढ़ने पर वेश बदलकर दूसरी जगह जाते थे क्रांतिकारी'

आज पूरा भारत 74वें स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबा है. भारत को आजादी दिलाने में स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारियों का बहुत बड़ा योगदान था. देश के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था.

कटिहार
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Published : Aug 15, 2020, 8:04 PM IST

कटिहार: देश की आजादी की लड़ाई में भारत छोड़ो आंदोलन का काफी महत्व रहा. इसके जरिए कई स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया, उस आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी वेश बदलकर दूसरी जगह जाते थे. ईटीवी भारत पर इस आंदोलन की पूरी दास्तान स्वतंत्रता सेनानी और उस जमाने के पत्रकार रहे सत्यनारायण सौरव ने बताई.

क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर किया था मजबूर
दरअसल, आज पूरा भारत 74वें स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबा है. भारत को आजादी दिलाने में स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारियों का बहुत बड़ा योगदान था. देश के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. करीब 200 साल तक अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया और भारतीयों के साथ काफी अत्याचार किया था. अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार को देखते हुए भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानियों ने कई आंदोलन किए, उसमें 'भारत छोड़ो आंदोलन' एक महत्वपूर्ण आंदोलन था.

सरकारी इमारतों पर फहराने लगे थे तिरंगा
ऐसा माना जाता है कि 'भारत छोड़ो आंदोलन' भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा आंदोलन था. जिसमें सभी भारत वासियों ने एक साथ बड़े स्तर पर भाग लिया था. इस आंदोलन को अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है. इस आंदोलन का लक्ष्य भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था. इस आंदोलन में कई क्रांतिकारी और प्रमुख नेता जेल भी गए थे, उस दौरान ब्रिटिश सरकार की ओर से देश में गोलीबारी, लाठीचार्ज की गई थी. जिसके बाद लोगों का गुस्सा हिंसक गतिविधियों में बदल गया और लोगों ने सरकारी संपत्तियों पर हमला किया. लोगों ने रेल पटरियों को उखाड़ दिया था. लोग डाक और तार व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर सरकारी इमारतों पर तिरंगा फहराने लगे थे.

देखें पूरी रिपोर्ट

'अगस्त क्रांति ही आजादी का असली शंखनाद था'
वहीं 'भारत छोड़ो आंदोलन' में कटिहार के स्वतंत्रता सेनानियों का भी अहम योगदान रहा है. कटिहार में आजाद दस्ता सशक्त क्रांतिकारी पार्टी के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रहे कटिहार के दुर्गा स्थान निवासी 98 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी सत्यनारायण सौरभ उर्फ कवि सौरव जिले के अग्रदूत थे. उन्होंने बताया कि अंग्रेज से बचने के लिए उन्हें मनिहारी, कुर्सेला, बरारी, अहमदाबाद के दियारा में छुपना पड़ता था. आंदोलन के दौरान पुलिस की दबिश बढ़ने पर सेनानी वेश बदलकर एक जगह से दूसरी जगह जाते थे. वह खुद कभी मछुआरे, किसान, पंडित, मौलाना का वेश बनाकर जगह बदल देते. उन्होंने बताया कि अगस्त क्रांति ही आजादी का असली शंखनाद था.

'पत्रकारिता का भार मुझ पर दिया गया था'
ईटीवी भारत पर स्वतंत्रता सेनानी सत्यनारायण सौरभ ने बताया कि कैसे 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान अंग्रेजों को चने चबाने पर मजबूर कर दिए थे. उन्होंने बताया आजाद दस्ता फौज में इन पर बहुत बड़ा भार दिया गया था. जयप्रकाश नारायण के द्वारा यह भार सौंपा गया था कि क्रांतिकारियों के कोट को हस्तलिपि पत्रिका लिखकर पूरे भारत में फैलाना था, उस दौरान पत्रकारिता का भार मुझ पर दिया गया था, जो काफी कठिन था.

पुलिस को देखते ही बजा देते थे सिटी
स्वतंत्रता सेनानी सत्यनारायण सौरभ ने बताया कि अंग्रेजों के भवन को नष्ट करने के लिए सभी आजाद दस्ता फौज के क्रांतिकारी शाम के समय निकलते थे और बैलगाड़ी पर हथियार सजाकर रखते थे, उस पर पुआल और कपड़े डालकर ढक दिए जाते थे. उसमें एक व्यक्ति को दूल्हा बनाया जाता था और बाकी लोग बराती बनकर साथ-साथ चलते थे. वही दो लड़के को करीब 1 मील आगे भेजा जाता था, ताकि अंग्रेजों के गतिविधियों को देख सकें. उसमें हम और एक कटारिया के रहने वाले शामिल थे. हम दोनों पूरी तरह बम हथियार और सिटी के साथ लैस रहते थे, जब भी कोई पुलिस को देखते थे, तो हम लोग सिटी बजा देते थे, ताकि पीछे वाले लोग सतर्क हो जाए.

कटिहार: देश की आजादी की लड़ाई में भारत छोड़ो आंदोलन का काफी महत्व रहा. इसके जरिए कई स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया, उस आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी वेश बदलकर दूसरी जगह जाते थे. ईटीवी भारत पर इस आंदोलन की पूरी दास्तान स्वतंत्रता सेनानी और उस जमाने के पत्रकार रहे सत्यनारायण सौरव ने बताई.

क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर किया था मजबूर
दरअसल, आज पूरा भारत 74वें स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबा है. भारत को आजादी दिलाने में स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारियों का बहुत बड़ा योगदान था. देश के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. करीब 200 साल तक अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया और भारतीयों के साथ काफी अत्याचार किया था. अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार को देखते हुए भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानियों ने कई आंदोलन किए, उसमें 'भारत छोड़ो आंदोलन' एक महत्वपूर्ण आंदोलन था.

सरकारी इमारतों पर फहराने लगे थे तिरंगा
ऐसा माना जाता है कि 'भारत छोड़ो आंदोलन' भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा आंदोलन था. जिसमें सभी भारत वासियों ने एक साथ बड़े स्तर पर भाग लिया था. इस आंदोलन को अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है. इस आंदोलन का लक्ष्य भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था. इस आंदोलन में कई क्रांतिकारी और प्रमुख नेता जेल भी गए थे, उस दौरान ब्रिटिश सरकार की ओर से देश में गोलीबारी, लाठीचार्ज की गई थी. जिसके बाद लोगों का गुस्सा हिंसक गतिविधियों में बदल गया और लोगों ने सरकारी संपत्तियों पर हमला किया. लोगों ने रेल पटरियों को उखाड़ दिया था. लोग डाक और तार व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर सरकारी इमारतों पर तिरंगा फहराने लगे थे.

देखें पूरी रिपोर्ट

'अगस्त क्रांति ही आजादी का असली शंखनाद था'
वहीं 'भारत छोड़ो आंदोलन' में कटिहार के स्वतंत्रता सेनानियों का भी अहम योगदान रहा है. कटिहार में आजाद दस्ता सशक्त क्रांतिकारी पार्टी के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रहे कटिहार के दुर्गा स्थान निवासी 98 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी सत्यनारायण सौरभ उर्फ कवि सौरव जिले के अग्रदूत थे. उन्होंने बताया कि अंग्रेज से बचने के लिए उन्हें मनिहारी, कुर्सेला, बरारी, अहमदाबाद के दियारा में छुपना पड़ता था. आंदोलन के दौरान पुलिस की दबिश बढ़ने पर सेनानी वेश बदलकर एक जगह से दूसरी जगह जाते थे. वह खुद कभी मछुआरे, किसान, पंडित, मौलाना का वेश बनाकर जगह बदल देते. उन्होंने बताया कि अगस्त क्रांति ही आजादी का असली शंखनाद था.

'पत्रकारिता का भार मुझ पर दिया गया था'
ईटीवी भारत पर स्वतंत्रता सेनानी सत्यनारायण सौरभ ने बताया कि कैसे 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान अंग्रेजों को चने चबाने पर मजबूर कर दिए थे. उन्होंने बताया आजाद दस्ता फौज में इन पर बहुत बड़ा भार दिया गया था. जयप्रकाश नारायण के द्वारा यह भार सौंपा गया था कि क्रांतिकारियों के कोट को हस्तलिपि पत्रिका लिखकर पूरे भारत में फैलाना था, उस दौरान पत्रकारिता का भार मुझ पर दिया गया था, जो काफी कठिन था.

पुलिस को देखते ही बजा देते थे सिटी
स्वतंत्रता सेनानी सत्यनारायण सौरभ ने बताया कि अंग्रेजों के भवन को नष्ट करने के लिए सभी आजाद दस्ता फौज के क्रांतिकारी शाम के समय निकलते थे और बैलगाड़ी पर हथियार सजाकर रखते थे, उस पर पुआल और कपड़े डालकर ढक दिए जाते थे. उसमें एक व्यक्ति को दूल्हा बनाया जाता था और बाकी लोग बराती बनकर साथ-साथ चलते थे. वही दो लड़के को करीब 1 मील आगे भेजा जाता था, ताकि अंग्रेजों के गतिविधियों को देख सकें. उसमें हम और एक कटारिया के रहने वाले शामिल थे. हम दोनों पूरी तरह बम हथियार और सिटी के साथ लैस रहते थे, जब भी कोई पुलिस को देखते थे, तो हम लोग सिटी बजा देते थे, ताकि पीछे वाले लोग सतर्क हो जाए.

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