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कटिहार: MDM में गड़बड़झाला, 93 बच्चों की बनी लिस्ट, महज 24 ने खाया खाना

इस मामले पर प्रभारी एचएम बताती हैं कि 24 बच्चों ने खाना खाया है और 93 बच्चों का लिस्ट भेजा गया है. भोजन को पहले चखने के सवाल पर उन्होंने बताया कि 'इस भोजन को हम नहीं चखते है, खिचड़ी बनाने वाली ( रसोईया ) ने भोजन चखा है.

कटिहार
मिड-डे-मील में गड़बड़झाला
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Published : Dec 17, 2019, 10:09 AM IST

कटिहार: देश के सरकारी स्कूलों में बच्चों को नियमित खाना मिले, इसके लिए मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत की गई थी. लेकिन सरकार की यह महात्कांक्षी योजना दम तोड़ती नजर आ रही है. ताजा मामला जिले के मिरचाईबाड़ी स्थित हरि शंकर नायक मध्य विद्यालय का है, जहां नौनिहालों को मिड-डे-मील के नाम पर सिर्फ पतली सी दाल और चावल खिलाकर उन्हें संतुष्ट करा दिया जाता है.

कटिहार
हरिशंकर नायक मध्य विद्यालय ,मिरचाईबाड़ी

'मीनू के हिसाब से नहीं मिलता है खाना'
इस बाबत स्कूल में पढ़ने वाली छात्रा लक्ष्मी कुमारी और श्रेया कुमारी बताती है कि स्कूल में बाहर एनजीओ से खाना आता है. भोजन का गुणवत्ता काफी खराब रहता है, जिस वजह से हमलोग घर से खाना लेकर स्कूल आते है.

पेश है एक रिपोर्ट

'सब्जी दाल में मिलाकर भेजी जाती है'
इस मामले पर विद्यालय की प्रभारी एचएम मनोरमा कुमारी का कहना है कि विद्यालय में एनजीओ की ओर से पका-पकाया भोजन आता है. खाना लगभग एक जैसा ही होता है. स्कूल में फिलहाल दाल और चावल भेजा गया है. सब्जी के नाम पर कद्दू और बंदगोभी को दाल में ही मिलाकर भेजा जाता है.

कटिहार
मनोरमा कुमारी ,प्रभारी एचएम

24 बच्चों पर 93 बच्चों का लिस्ट
स्कूल की पढ़ने वाली छात्राओं का कहना है कि विद्यालय में आया हुआ भोजन को महज कुछ ही बच्चे खाते है. वहीं, इस मामले पर प्रभारी एचएम बताती है कि 24 बच्चों ने खाना खाया है और 93 बच्चों का लिस्ट भेजा गया है. भोजन को पहले चखने के सवाल पर उन्होंने बताया कि 'इस भोजन को हम नहीं चखते है, खिचड़ी बनाने वाली ( रसोईया ) ने भोजन चखा है. वे बताती है की इन सब मामलों को वह नहीं जानती है, स्कूल के एचएम छुट्टी पर है. इसलिए उनको प्रभार दिया गया है.

रसोईया
रंजना देवी, रसोईया

'बच्चों को किसी प्रकार से बहला-फुसला देते हैं'
इस मामले पर विद्यालय की रसोईया रंजना देवी बताती है की भोजन पौष्टिक और स्वादिष्ट नहीं होता है. जिस कारण स्कूल के अधिकांश बच्चे खाना नहीं खाते है. एनजीओ के द्वारा मेन्यू के हिसाब से खाना नहीं दिया जाता है. बच्चे प्रतिदिन दाल-चावल खाने से मना करते है. लेकिन वह बच्चों को किसी प्रकार से बहला-फुसला कर खिला देती है.

कटिहार
मिड-डे-मील खाते हुए बच्चे

बड़े स्तर पर हो रहा घोटाला
गौरतलब है कि जिले के शहरी क्षेत्रों में पिछले 7 साल से मध्यान भोजन की जिम्मेवारी एनजीओ को दे दिया गया है. एनजीओ के पास जिम्मेदारी जाने के बाद बच्चों को दिए जाने वाले मध्यान भोजन के गुणवत्ता में कमी आई है. बच्चों को मीनू के हिसाब से खाना भी नहीं दिया जाता है. वहीं स्कूल प्रशासन की ओर से भी गड़बड़झाला किया जा रहा है, ईटीवी भारत संवाददाता ने जांच के दौरान पाया कि स्कूल में महज 24 बच्चों ने खाना खाया जबकी स्कूल की ओर से बच्चों का लिस्ट भेजा गया. ऐसे में 69 बच्चों का खाना का घोटाला किया जा रहा है.

'मीनू के अनुसार भोजन परोसने का है नियम'
मध्याह्न भोजन के तहत जारी नियमों के अनुसार विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को भोजन मीनू के अनुसार दिए जाने से लेकर भोजन परोसने तक की व्यवस्था दी गई है. विद्यालय में माता समितियां गठित है. बच्चों को खाना परोसने से पहले रसोइयां, माता समिति के सदस्य और शिक्षक द्वारा खाने को चखने की व्यवस्था शामिल है. लेकिन ये सभी नियम सरकारी कागजों तक ही सीमित हैं.

क्या है मिड-डे-मील?
मिड-डे-मील मतलब मध्याह्न भोजन योजना भारत सरकार की एक ऐसी योजना है जिसके तहत देश के प्राथमिक-लघु माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों को दोपहर का भोजन निशुल्क प्रदान किया जाता है. इस योजना का उद्देश्य विद्यालयों में छात्रों का नामांकन बढ़ाने और उपस्थिति को लेकर किया गया था.

कटिहार: देश के सरकारी स्कूलों में बच्चों को नियमित खाना मिले, इसके लिए मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत की गई थी. लेकिन सरकार की यह महात्कांक्षी योजना दम तोड़ती नजर आ रही है. ताजा मामला जिले के मिरचाईबाड़ी स्थित हरि शंकर नायक मध्य विद्यालय का है, जहां नौनिहालों को मिड-डे-मील के नाम पर सिर्फ पतली सी दाल और चावल खिलाकर उन्हें संतुष्ट करा दिया जाता है.

कटिहार
हरिशंकर नायक मध्य विद्यालय ,मिरचाईबाड़ी

'मीनू के हिसाब से नहीं मिलता है खाना'
इस बाबत स्कूल में पढ़ने वाली छात्रा लक्ष्मी कुमारी और श्रेया कुमारी बताती है कि स्कूल में बाहर एनजीओ से खाना आता है. भोजन का गुणवत्ता काफी खराब रहता है, जिस वजह से हमलोग घर से खाना लेकर स्कूल आते है.

पेश है एक रिपोर्ट

'सब्जी दाल में मिलाकर भेजी जाती है'
इस मामले पर विद्यालय की प्रभारी एचएम मनोरमा कुमारी का कहना है कि विद्यालय में एनजीओ की ओर से पका-पकाया भोजन आता है. खाना लगभग एक जैसा ही होता है. स्कूल में फिलहाल दाल और चावल भेजा गया है. सब्जी के नाम पर कद्दू और बंदगोभी को दाल में ही मिलाकर भेजा जाता है.

कटिहार
मनोरमा कुमारी ,प्रभारी एचएम

24 बच्चों पर 93 बच्चों का लिस्ट
स्कूल की पढ़ने वाली छात्राओं का कहना है कि विद्यालय में आया हुआ भोजन को महज कुछ ही बच्चे खाते है. वहीं, इस मामले पर प्रभारी एचएम बताती है कि 24 बच्चों ने खाना खाया है और 93 बच्चों का लिस्ट भेजा गया है. भोजन को पहले चखने के सवाल पर उन्होंने बताया कि 'इस भोजन को हम नहीं चखते है, खिचड़ी बनाने वाली ( रसोईया ) ने भोजन चखा है. वे बताती है की इन सब मामलों को वह नहीं जानती है, स्कूल के एचएम छुट्टी पर है. इसलिए उनको प्रभार दिया गया है.

रसोईया
रंजना देवी, रसोईया

'बच्चों को किसी प्रकार से बहला-फुसला देते हैं'
इस मामले पर विद्यालय की रसोईया रंजना देवी बताती है की भोजन पौष्टिक और स्वादिष्ट नहीं होता है. जिस कारण स्कूल के अधिकांश बच्चे खाना नहीं खाते है. एनजीओ के द्वारा मेन्यू के हिसाब से खाना नहीं दिया जाता है. बच्चे प्रतिदिन दाल-चावल खाने से मना करते है. लेकिन वह बच्चों को किसी प्रकार से बहला-फुसला कर खिला देती है.

कटिहार
मिड-डे-मील खाते हुए बच्चे

बड़े स्तर पर हो रहा घोटाला
गौरतलब है कि जिले के शहरी क्षेत्रों में पिछले 7 साल से मध्यान भोजन की जिम्मेवारी एनजीओ को दे दिया गया है. एनजीओ के पास जिम्मेदारी जाने के बाद बच्चों को दिए जाने वाले मध्यान भोजन के गुणवत्ता में कमी आई है. बच्चों को मीनू के हिसाब से खाना भी नहीं दिया जाता है. वहीं स्कूल प्रशासन की ओर से भी गड़बड़झाला किया जा रहा है, ईटीवी भारत संवाददाता ने जांच के दौरान पाया कि स्कूल में महज 24 बच्चों ने खाना खाया जबकी स्कूल की ओर से बच्चों का लिस्ट भेजा गया. ऐसे में 69 बच्चों का खाना का घोटाला किया जा रहा है.

'मीनू के अनुसार भोजन परोसने का है नियम'
मध्याह्न भोजन के तहत जारी नियमों के अनुसार विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को भोजन मीनू के अनुसार दिए जाने से लेकर भोजन परोसने तक की व्यवस्था दी गई है. विद्यालय में माता समितियां गठित है. बच्चों को खाना परोसने से पहले रसोइयां, माता समिति के सदस्य और शिक्षक द्वारा खाने को चखने की व्यवस्था शामिल है. लेकिन ये सभी नियम सरकारी कागजों तक ही सीमित हैं.

क्या है मिड-डे-मील?
मिड-डे-मील मतलब मध्याह्न भोजन योजना भारत सरकार की एक ऐसी योजना है जिसके तहत देश के प्राथमिक-लघु माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों को दोपहर का भोजन निशुल्क प्रदान किया जाता है. इस योजना का उद्देश्य विद्यालयों में छात्रों का नामांकन बढ़ाने और उपस्थिति को लेकर किया गया था.

Intro:कटिहार

सरकारी स्कूलों में एनजीओ के द्वारा दिए जाने वाले बच्चों के मध्यान भोजन में भारी गड़बड़ी, मेन्यू के हिसाब से नहीं दिया जाता है बच्चों को खाना, लो क्वालिटी भोजन होने के चलते बच्चे घर से लाते हैं खाना, साथ ही बच्चों के स्वास्थ्य के साथ किया जा रहा है खिलवाड़।


Body:Anchor_ सरकारी स्कूलों में नामांकन और उपस्थिति बढ़ाने के साथ-साथ बच्चों में पौषनिक स्तर में सुधार करने के उद्देश्य से शैक्षणिक कार्य दिनों के दौरान बच्चों को मुफ्त भोजन देने के लिए सरकार ने एक योजना मध्यान भोजन की शुरुआत की थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य था बच्चों को पौष्टिक, स्वादिष्ट और गुणवत्तापूर्ण भोजन मुहैया कराना। लेकिन कटिहार के शहरी क्षेत्रों में पिछले 7 सालों से मध्यान भोजन बनाने का जिम्मेदारी एनजीओ को दे दिया गया है। एनजीओ के पास जिम्मेदारी जाने के बाद बच्चों को दिए जाने वाले मध्यान भोजन के गुणवत्ता में कमी आई है। एनजीओ के द्वारा दिए जाने वाला भोजन के क्वालिटी में कमी है इसलिए बच्चे मध्यान भोजन का खाना ना खाकर अपने घर से ही टिफिन लेकर आते हैं।

इतना ही नहीं बच्चों को मिलने वाला मध्यान भोजन के मेन्यू में भी गड़बड़ी किया जा रहा है। मेन्यू के हिसाब से बच्चों को खाना नहीं मिल रहा है लिहाजा उनके स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है। मध्यान भोजन के नाम पर बच्चों को सिर्फ दाल और चावल खिलाया जा रहा है। ईटीवी भारत ने जब शहर के मिर्चाईबारी स्थित हरि शंकर नायक मध्य विद्यालय में मध्यान भोजन का पड़ताल किया तो पता चला एनजीओ के द्वारा बच्चों को खाने में सिर्फ दाल और चावल दिया गया। इन सबके बीच प्रति प्लेट खाना में भी गड़बड़ी किया जा रहा है एनजीओ के द्वारा दिए गए खाना में महज 24 बच्चों ने खाना खाया लेकिन स्कूल प्रशासन की ओर से 93 बच्चों का लिस्ट भेजा गया है। कुल मिलाकर कहा जाए तो 69 बच्चों का खाना में घोटाला किया जा रहा है।

V.O1_ विद्यालय की छात्राएं बताती है एनजीओ के द्वारा दिया जाने वाला खाना स्वादिष्ट और पौष्टिक नहीं है लिहाजा स्कूल के बच्चे घर से खाना लेकर आते हैं। बच्चों की माने तो विद्यालय में ही खाना बने तो बच्चे खाना खाएंगे लेकिन बाहर से आने वाले खाना गुणवत्तापूर्ण नहीं होने के कारण विद्यालय के अधिकांश बच्चे खाना नहीं खाते।
Byte_1 लक्ष्मी, छात्रा
Byte2 श्रेया कुमारी, छात्रा

V.O2_ स्कूल की रसोईया भी मानती है कि एनजीओ के द्वारा दिया जाने वाला भोजन पौष्टिक और स्वादिष्ट नहीं है जिस कारण स्कूल के अधिकांश बच्चे मध्यान भोजन का लाभ नहीं उठा पाते। साथ ही साथ एनजीओ के द्वारा मेन्यू के हिसाब से भी खाना नहीं दिया जाता। दाल चावल और सब्जी की जगह पर सिर्फ दाल और चावल देकर बच्चों को फुसला दिया जाता है।
Byte3 रंजना देवी, रसोइया

V.O3_ विद्यालय के प्रभारी प्रधानाचार्य बताती हैं एनजीओ के द्वारा खाना दिया गया था उसमें सिर्फ 24 बच्चों ने खाना खाया है लेकिन 93 बच्चों का लिस्ट दिया गया है। इनकी मानें तो वह सिर्फ आज के प्रभारी है इसलिए उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं है। खाना का क्वालिटी पूछने पर प्रधानाध्यापिका बताती है मेरा व्रत था इसलिए खाना नहीं चखें हैं।
Byte 4 मनोरमा कुमारी, प्रभारी प्रधानाचार्य


Conclusion:ज्यादा से ज्यादा छात्र विद्यालय को पहुंचे इसके लिए बिहार सरकार ने मध्यान भोजन की शुरुआत की थी लेकिन जब से शहरी क्षेत्रों में एनजीओ को भोजन बनाने का दायित्व सौंपा गया है तब से बच्चों को पोस्टिक गुणवत्तापूर्ण और स्वादिष्ट भोजन नहीं मिल रहा है। साथ ही साथ बच्चों के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है। बता दें कि एनजीओ के द्वारा दिया हुआ खाना को सबसे पहले रसोईया और उसके बाद प्रधानाचार्य को चखना होता है लेकिन ना ही रसोईया और ना ही प्रधानाचार्य खाना को चखते हैं और सीधे बच्चे को दे दिया जाता है। बताते चलें कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें मध्यान भोजन में छिपकली, कीड़ा मकोड़ा गिरा मिलता है जिस कारण दर्जनों बच्चे बीमार हो जाते हैं ऐसे में खाना का गुणवत्ता को न जांचना स्कूल प्रशासन की लापरवाही दर्शाती है। उम्मीद की जानी चाहिए प्रशासन ऐसे शिक्षकों पर कार्रवाई करें जिससे छात्र छात्रों का भविष्य संवर सके और उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न किया जा सके।
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