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तपती धूप और गर्मी में पेड़ के नीचे ही लगती है क्लास, खंडहर बन चुका स्कूल भवन - सरकार

विद्यालय के पुराने दो कमरे पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं इसलिए उन्हें बन्द कर दिया गया हैं. इसके बाद फिर से निर्माण नहीं करवाया गया.

पेड़ के नीचे ही होती है परीक्षा
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Published : Apr 10, 2019, 12:29 PM IST

कैमूर: डिजिटल इंडिया के दौर में सरकारी स्कूल के बच्चे तपती गर्मी और धूप में पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. कैमूर के भभूआ प्रखंड में 1949 यानि आजादी के समय से बना निबी गांव का मध्य विद्यालय स्कूल खंडहर हो चुका. नतीजतन छात्रों को हर मौसम में बाहर बैठकर पढ़ना पड़ता है.

मध्य विद्यालय का निर्माण 1949 में हुआ था. जिसके बाद 2012 में इस विद्यालय में 2 नए कमरे बनाए गए थे. विद्यालय के पुराने दो कमरे पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं इसलिए उन्हें बन्द कर दिया गया हैं.

कब सुधरेगी सरकारी शिक्षा व्यवस्था

बच्चों की संख्या अधिक क्लासरूम दो
विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि इस विद्यालय में 1 से 8 तक की क्लास संचालित होती हैं, लेकिन क्लासरूम सिर्फ 2 हैं और बच्चों की संख्या अधिक है. इसलिए यह उनकी मजबूरी हैं कि बच्चों को खुले आसमान के नीचे बैठाकर पढ़ाते हैं. यही नहीं शिक्षा विभाग द्वारा ली जाने वाली बच्चों की वार्षिक परीक्षा भी पेड़ के नीचे ही होती है.

देखकर की जा रही अनदेखी
विद्यालय के कमरे टूट चूके हैं साथ ही स्कूल के चारों तरफ किसी तरह की बाउंड्री भी नहीं है. 14 वर्ष से पढ़ा रहे एक शिक्षक ने बताया कि अधिकारी कई बार स्कूल आ टूके हैं, उन्हें यहां की समस्या नजर भी आती है, लेकिन शायद वह वापस जाकर भूल जाते हैं.

education
खंडहर बना भवन

बरसात में तो पेड़ों का भी नहीं सहारा
विद्यालय की शिक्षिका ने बताया कि बरसात के दिनों में काफी परेशानी होती है. बच्चों को पेड़ के नीचे भी नही बैठा सकते, किसी तरह से शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति हो जाती है.

education
शिक्षकों की भी कमी

शिक्षकों की भी कमी
स्कूल में सुविधाओं का तो अभाव है ही साथ ही ये भी एक समस्या है कि यहां बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों भी कमी है. 1 से 8 क्लास तक के लिए सिर्फ 4 शिक्षक है ऐसे में 1 से 5 तक कि पढ़ाई1 शिक्षक करवाते हैं, बाकी के तीन शिक्षक 3 क्लास को देखते हैं.

कैमूर: डिजिटल इंडिया के दौर में सरकारी स्कूल के बच्चे तपती गर्मी और धूप में पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. कैमूर के भभूआ प्रखंड में 1949 यानि आजादी के समय से बना निबी गांव का मध्य विद्यालय स्कूल खंडहर हो चुका. नतीजतन छात्रों को हर मौसम में बाहर बैठकर पढ़ना पड़ता है.

मध्य विद्यालय का निर्माण 1949 में हुआ था. जिसके बाद 2012 में इस विद्यालय में 2 नए कमरे बनाए गए थे. विद्यालय के पुराने दो कमरे पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं इसलिए उन्हें बन्द कर दिया गया हैं.

कब सुधरेगी सरकारी शिक्षा व्यवस्था

बच्चों की संख्या अधिक क्लासरूम दो
विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि इस विद्यालय में 1 से 8 तक की क्लास संचालित होती हैं, लेकिन क्लासरूम सिर्फ 2 हैं और बच्चों की संख्या अधिक है. इसलिए यह उनकी मजबूरी हैं कि बच्चों को खुले आसमान के नीचे बैठाकर पढ़ाते हैं. यही नहीं शिक्षा विभाग द्वारा ली जाने वाली बच्चों की वार्षिक परीक्षा भी पेड़ के नीचे ही होती है.

देखकर की जा रही अनदेखी
विद्यालय के कमरे टूट चूके हैं साथ ही स्कूल के चारों तरफ किसी तरह की बाउंड्री भी नहीं है. 14 वर्ष से पढ़ा रहे एक शिक्षक ने बताया कि अधिकारी कई बार स्कूल आ टूके हैं, उन्हें यहां की समस्या नजर भी आती है, लेकिन शायद वह वापस जाकर भूल जाते हैं.

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खंडहर बना भवन

बरसात में तो पेड़ों का भी नहीं सहारा
विद्यालय की शिक्षिका ने बताया कि बरसात के दिनों में काफी परेशानी होती है. बच्चों को पेड़ के नीचे भी नही बैठा सकते, किसी तरह से शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति हो जाती है.

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शिक्षकों की भी कमी

शिक्षकों की भी कमी
स्कूल में सुविधाओं का तो अभाव है ही साथ ही ये भी एक समस्या है कि यहां बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों भी कमी है. 1 से 8 क्लास तक के लिए सिर्फ 4 शिक्षक है ऐसे में 1 से 5 तक कि पढ़ाई1 शिक्षक करवाते हैं, बाकी के तीन शिक्षक 3 क्लास को देखते हैं.

Intro:कैमूर।
सरकार सूबे में शिक्षा सुधारने के लाख दावे क्यों न करती हैं। लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही हैं। कैमूर जिले के 1949 में निर्मित भभुआ प्रखंड स्तिथ निबी गांव का मध्य विद्यालय की दास्तान यह है कि चिलचिलाती धूप और गर्मियों में भी इन्हें क्लासरूम नसीब नही होता हैं और यह बेचारे पढ़ाई की उम्मीद में पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं।




Body:प्राचीन समय मे गुरुकुल में जाकर बच्चे पेड़ के नीचे खुले आसमान में बैठकर गुरु से शिक्षा ग्रहण करते थे लेकिन आज के इस डिजिटल इंडिया में जहाँ एक ओर हम मंगल पर पहुँच गए तो दूसरी तरफ सरकार की अनदेखी से इस विद्यालय के छात्र छात्राएं खुले आसमान मे गर्मियों की गर्म हवा के बीच पेड़ के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं।

आपको बतादें की इस मध्य विद्यालय का निर्माण 1949 में हुआ था। जिसके बाद इस 2012 मे इस विद्यालय में 2 नए कमरे बनाए गए। विद्यालय के पुराने दो कमरे पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं इसलिए उन्हें बन्द कर दिया गया हैं। विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि इस विद्यालय में 1 से 8 क्लास तक कि क्लास संचालित होती हैं। लेकिन क्लासरूम सिर्फ 2 है और बच्चों की संख्या अधिक है इसलिए यह उनकी मजबूरी हैं कि बच्चों को खुले आसमान के नीचे बैठाकर पढ़ाये। यही नही शिक्षा विभाग द्वारा ली जाने वाली बच्चों की वार्षिक परीक्षा भी पेड़ के नीचे ही सम्पन होता हैं। यही नही विद्यालय के चारों तरफ बाउंड्री न होने की वजह से डर भी लगता है लेकिन यह शिक्षकों की मजबूरी हैं। विद्यालय में 14 वर्षो से पड़ा रहे शिक्षक ने बताया कि कई दफा अधिकारी विद्यालय की जांच करने आये विद्यालय में तो उन्हें समस्या नजर आता है लेकिन अपने दफ्तर पहुँचते ही समस्या भूल जाते हैं।

विद्यालय की शिक्षिका ने बताया कि बरसात के दिनों में काफी परेशानी होती हैं बच्चों को पेड़ के नीचे भी नही बैठा पाते हैं। किसी तरह से शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति होता हैं। उन्होंने ने बताया कि 1 से 8 क्लास तक के लिए सिर्फ 4 शिक्षक है ऐसे में 1 से 5 क्लास तक कि पढ़ाई 1 शिक्षक करवाते हैं बाकी के तीन शिक्षक 3 क्लास को देखते हैं। उन्होंने बताया कि शिक्षक बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते है लेकिन बुनियादी सुविधा के आभाव में नही दे पाते हैं।


Conclusion:
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