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कैमूर में ऐसे गांव जहां आज भी नहीं बजती मोबाइल की घंटी, पेड़ों पर चढ़कर करते हैं बात - etv bharat

एक तरफ केंद्र सरकार ने भारत को डिजिटल इंडिया बनाने की मुहिम छेड़ी है, तो वहीं दूसरी तरफ कई ऐसे गांव हैं जहां आज भी लोग 4जी का लाभ उठाना तो दूर वहां बात करने के लिए नेटवर्क तक नहीं मिलता है. कैमूर के गांवों में मोबाइल नेटवर्क नहीं (Villages of Kaimur far away from mobile Network) होने की वजह से यहां के लोग बदलते समय में पीछे छूट गए. पढ़ें रिपोर्ट..

कैमूर के गांवों में मोबाइल नेटवर्क नहीं
कैमूर के गांवों में मोबाइल नेटवर्क नहीं
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Published : Feb 19, 2022, 11:04 PM IST

कैमूर (भभुआ): देश में डिजिटल इंडिया के युग में जहां एक क्लिक में फौरन हम दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में आसानी से जुड़ सकते हैं. वहीं, कैमूर जिले के रामपुर प्रखंड में भीतरीबांध, बखरम और बाराडीह गांवों में लोगों को मोबाइल पर बात करने के लिए मशक्कत (Difficulty talking on mobile in Kaimur) करनी पड़ती है, यहां नेटवर्क पहुंच ही नहीं पाता है. इस कारण ग्रामीणों को कभी पेड़ पर तो कभी पहाड़ियों पर नेटवर्क के लिए चढ़ना पड़ता है. ऐसे में इन ग्रामीणों के लिए इंटरनेट किसी सपने से कम नहीं है.

ये भी पढ़ें- वर्चुअल रैली तो छोड़िए, बिहार के इन 85 गांव में नहीं है नेटवर्क, पहाड़ पर चढ़ लोग करते हैं बात

ये हालात जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर पहाड़ी के तलहटी में बसे गांव की है, जहां आज भी मोबाइल का नेटवर्क नहीं आता है. वहीं, डिजिटल इंडिया का सपना दिखाने वाली सरकार भी इन गांवों के लोगों से दूरी बनाए हुए हैं. ग्रामीणों को नेटवर्क की सबसे ज्यादा समस्या पिछले वर्ष कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन में आई. जब महामारी के कारण वर्ष 2020 के मार्च में सभी स्कूल कॉलेजों को अनिश्चितकालीन समय तक बंद कर दिया. जिसके बाद स्कूल व कॉलेजों ने बच्चों की पढ़ाई के लिए ऑनलाइन माध्यम से कक्षाएं चलाई, लेकिन इन ऑनलाइन क्लासों का फायदा इस क्षेत्र के बच्चे नहीं उठा पाए, क्योंकि यहां नेटवर्क उपलब्ध नहीं था.

ऐसे में बच्चे पहाड़ों की ऊंची चोटियों में जाकर नेटवर्क ढूंढकर पढ़ते नजर आए. इस बात को एक वर्ष बीत गया, लेकिन बच्चों व ग्रामीणों की समस्या अबतक हल नहीं हुई. फिर एक बार कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने पुनः दस्तक दी. स्कूल कॉलेज फिर से बंद हुए, ऑनलाइन कक्षाएं संचालित हुई, मगर कोरोना काल की तीसरी लहर भी बीत गई, लेकिन इन ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे फिर से नेटवर्क के अभाव में शिक्षा से वंचित होते नडर आए.

लेकिन, कोई भी शासन-प्रशासन को इन क्षेत्रों की यह समस्या नजर नहीं आ रही है. यही हाल रहा तो ये बच्चे इंटरनेट के इस दौर में काफी पीछे रह जाएंगे. समस्या को देखते हुए ग्रामीण शासन-प्रशासन से जल्द जल्द नेटवर्क कनेक्टिविटी की मांग कर रहे है. बता दें कि नेटवर्क की समस्या को लेकर यहां के बाहर में रहकर पढ़ाई करने वाले छात्र घर नहीं आते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि पिछले दो बार लगे लॉकडाउन के कारण यहां आने से उन सभी की पढ़ाई प्रभवित हुई है. जिससे इस वर्ष जितने भी शादी समारोह हुए उसमें पढ़ाई करने वाले छात्र नहीं आ पाए, क्योंकि उनकी ऑनलाइन पढ़ाई यहां आने से प्रभवित हो जाती है.

भीतरीबांध, बखरम व बाराडीह गांव के ग्रामीणों के पास मोबाइल तो लगभग हर व्यक्ति के पास मौजूद हैं. इन गांवों में रहने के दौरान इनके मोबाइल में कभी घंटी नहीं बजती है. गांव में रहने के दौरान यदि किसी से इमरजेंसी में बात करनी होती है तो यहां के लोगों को पेड़ या पहाड़ी का सहारा लेना पड़ता है. पहाड़ी पर चढ़कर यहां के लोग फोन लगाकर बातचीत कर सकते हैं. जैसे ही पेड़ व पहाड़ी से नीचे उतर कर अपने घर पहुंचते हैं, उनका मोबाइल मात्र शो-पीस बनकर रह जाता है. इस गांव के निवासियों को यदि कभी कोई इमरजेंसी हो जाए और मेडिकल रिलीफ की आवश्यकता पड़ जाए तो ये ग्रामीण ना तो किसी को फोन कर सकते हैं और ना ही फोन कर किसी दुर्घटना की जानकारी दे सकते हैं. इन ग्रामीणों का जीवन आज भी वैसा ही है, जैसा देश आजादी से पहले हुआ करता था.

ग्रामीणों ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि कई तरह की दिक्कतें आती हैं. एंबुलेंस को नेटवर्क नहीं होने के कारण सही समय पर सूचना नहीं दे पाते हैं. वहीं, पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण सांप, बिच्छू सहित अन्य जहरीले जानवरों के काटने की घटनाएं भी ज्यादा होती है. इन घटनाओं के दौरान समय पर इलाज नहीं मिल पाता है. कोई भी हादसा होने पर इन गांव में रहने वाले लोगों को तुरंत मदद नहीं मिल पाती है. इसके अलावा झगड़ा और अन्य कोई घटना होने पर गांव में पुलिस को सूचना देना अभी संभव नहीं हो पाता है. अब तो परेशानी इतनी है कि अब जहां नेटवर्क आता है, उस जगह को लोगों ने चिन्हित कर लिया है. वहां खड़े होकर ही अब ग्रामीण अपने रिश्तेदारों से बात करते हैं, ऐसे में लोगों का जीवन खासा परेशानी भरा रहता है.

ग्रामीणों ने कहा कि तमाम अधिकारियों और नेताओं के सामने अपनी समस्या रख चुके हैं, लेकिन उनकी समस्या का आज तक समाधान नहीं हुआ है. यही हालात रहे तो उनकी आने वाली पीढ़ी समाज और तेजी से बदलते समय से पिछड़ जाएगी. गांव में रहने वाले लोगों ने कहा कि वह नेता व अधिकारियों के सामने कई बार मोबाइल नेटवर्क की व्यवस्था करने, मोबाइल टावर लगवाने सहित सभी मुद्दे रख चुके हैं, लेकिन उनकी सुनवाई आज तक नहीं हुई.

भीतरीबांध के नवनिर्वाचित मुखिया श्रीकांत पासवान ने कहा कि मेरे यहां नेटवर्क की समस्या काफी गंभीर है. मैंने यह शपथ ली है कि जब तक भीतरीबांध पंचायत में नेटवर्क की समस्या दूर नहीं हो जाती है, तब तक मैं मोबाइल का प्रयोगा नही करूंगा और ना ही मैं मोबाइल अपने पास रखूंगा. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि इस पंचायत में विकास नहीं हुआ है. यहां बिजली से लेकर सड़क तक और हाई स्कूल तक विद्यालय भी हैं, लेकिन नेटवर्क समस्या होने के कारण यहां बहुत कार्य प्रभवित होता है.

इस संबंध में बीडीओ संजय पाठक ने जानकारी देते हुए बताया कि भीतरीबांध गांव पहाड़ी के तलहटी में बसा हुआ है, जिसके कारण वहां नेटवर्किंग की समस्या है. जिसके कारण वहां पर जानकारी लेने के लिए अपने कर्मियों को भेज कर समस्या की जानकारी लेना पड़ती है. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि चुनाव में सेटेलाइट फोन जिला से उपलब्ध कराया जाता है, जिसके बाद ही जानकारी प्राप्त होती है.

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कैमूर (भभुआ): देश में डिजिटल इंडिया के युग में जहां एक क्लिक में फौरन हम दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में आसानी से जुड़ सकते हैं. वहीं, कैमूर जिले के रामपुर प्रखंड में भीतरीबांध, बखरम और बाराडीह गांवों में लोगों को मोबाइल पर बात करने के लिए मशक्कत (Difficulty talking on mobile in Kaimur) करनी पड़ती है, यहां नेटवर्क पहुंच ही नहीं पाता है. इस कारण ग्रामीणों को कभी पेड़ पर तो कभी पहाड़ियों पर नेटवर्क के लिए चढ़ना पड़ता है. ऐसे में इन ग्रामीणों के लिए इंटरनेट किसी सपने से कम नहीं है.

ये भी पढ़ें- वर्चुअल रैली तो छोड़िए, बिहार के इन 85 गांव में नहीं है नेटवर्क, पहाड़ पर चढ़ लोग करते हैं बात

ये हालात जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर पहाड़ी के तलहटी में बसे गांव की है, जहां आज भी मोबाइल का नेटवर्क नहीं आता है. वहीं, डिजिटल इंडिया का सपना दिखाने वाली सरकार भी इन गांवों के लोगों से दूरी बनाए हुए हैं. ग्रामीणों को नेटवर्क की सबसे ज्यादा समस्या पिछले वर्ष कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन में आई. जब महामारी के कारण वर्ष 2020 के मार्च में सभी स्कूल कॉलेजों को अनिश्चितकालीन समय तक बंद कर दिया. जिसके बाद स्कूल व कॉलेजों ने बच्चों की पढ़ाई के लिए ऑनलाइन माध्यम से कक्षाएं चलाई, लेकिन इन ऑनलाइन क्लासों का फायदा इस क्षेत्र के बच्चे नहीं उठा पाए, क्योंकि यहां नेटवर्क उपलब्ध नहीं था.

ऐसे में बच्चे पहाड़ों की ऊंची चोटियों में जाकर नेटवर्क ढूंढकर पढ़ते नजर आए. इस बात को एक वर्ष बीत गया, लेकिन बच्चों व ग्रामीणों की समस्या अबतक हल नहीं हुई. फिर एक बार कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने पुनः दस्तक दी. स्कूल कॉलेज फिर से बंद हुए, ऑनलाइन कक्षाएं संचालित हुई, मगर कोरोना काल की तीसरी लहर भी बीत गई, लेकिन इन ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे फिर से नेटवर्क के अभाव में शिक्षा से वंचित होते नडर आए.

लेकिन, कोई भी शासन-प्रशासन को इन क्षेत्रों की यह समस्या नजर नहीं आ रही है. यही हाल रहा तो ये बच्चे इंटरनेट के इस दौर में काफी पीछे रह जाएंगे. समस्या को देखते हुए ग्रामीण शासन-प्रशासन से जल्द जल्द नेटवर्क कनेक्टिविटी की मांग कर रहे है. बता दें कि नेटवर्क की समस्या को लेकर यहां के बाहर में रहकर पढ़ाई करने वाले छात्र घर नहीं आते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि पिछले दो बार लगे लॉकडाउन के कारण यहां आने से उन सभी की पढ़ाई प्रभवित हुई है. जिससे इस वर्ष जितने भी शादी समारोह हुए उसमें पढ़ाई करने वाले छात्र नहीं आ पाए, क्योंकि उनकी ऑनलाइन पढ़ाई यहां आने से प्रभवित हो जाती है.

भीतरीबांध, बखरम व बाराडीह गांव के ग्रामीणों के पास मोबाइल तो लगभग हर व्यक्ति के पास मौजूद हैं. इन गांवों में रहने के दौरान इनके मोबाइल में कभी घंटी नहीं बजती है. गांव में रहने के दौरान यदि किसी से इमरजेंसी में बात करनी होती है तो यहां के लोगों को पेड़ या पहाड़ी का सहारा लेना पड़ता है. पहाड़ी पर चढ़कर यहां के लोग फोन लगाकर बातचीत कर सकते हैं. जैसे ही पेड़ व पहाड़ी से नीचे उतर कर अपने घर पहुंचते हैं, उनका मोबाइल मात्र शो-पीस बनकर रह जाता है. इस गांव के निवासियों को यदि कभी कोई इमरजेंसी हो जाए और मेडिकल रिलीफ की आवश्यकता पड़ जाए तो ये ग्रामीण ना तो किसी को फोन कर सकते हैं और ना ही फोन कर किसी दुर्घटना की जानकारी दे सकते हैं. इन ग्रामीणों का जीवन आज भी वैसा ही है, जैसा देश आजादी से पहले हुआ करता था.

ग्रामीणों ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि कई तरह की दिक्कतें आती हैं. एंबुलेंस को नेटवर्क नहीं होने के कारण सही समय पर सूचना नहीं दे पाते हैं. वहीं, पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण सांप, बिच्छू सहित अन्य जहरीले जानवरों के काटने की घटनाएं भी ज्यादा होती है. इन घटनाओं के दौरान समय पर इलाज नहीं मिल पाता है. कोई भी हादसा होने पर इन गांव में रहने वाले लोगों को तुरंत मदद नहीं मिल पाती है. इसके अलावा झगड़ा और अन्य कोई घटना होने पर गांव में पुलिस को सूचना देना अभी संभव नहीं हो पाता है. अब तो परेशानी इतनी है कि अब जहां नेटवर्क आता है, उस जगह को लोगों ने चिन्हित कर लिया है. वहां खड़े होकर ही अब ग्रामीण अपने रिश्तेदारों से बात करते हैं, ऐसे में लोगों का जीवन खासा परेशानी भरा रहता है.

ग्रामीणों ने कहा कि तमाम अधिकारियों और नेताओं के सामने अपनी समस्या रख चुके हैं, लेकिन उनकी समस्या का आज तक समाधान नहीं हुआ है. यही हालात रहे तो उनकी आने वाली पीढ़ी समाज और तेजी से बदलते समय से पिछड़ जाएगी. गांव में रहने वाले लोगों ने कहा कि वह नेता व अधिकारियों के सामने कई बार मोबाइल नेटवर्क की व्यवस्था करने, मोबाइल टावर लगवाने सहित सभी मुद्दे रख चुके हैं, लेकिन उनकी सुनवाई आज तक नहीं हुई.

भीतरीबांध के नवनिर्वाचित मुखिया श्रीकांत पासवान ने कहा कि मेरे यहां नेटवर्क की समस्या काफी गंभीर है. मैंने यह शपथ ली है कि जब तक भीतरीबांध पंचायत में नेटवर्क की समस्या दूर नहीं हो जाती है, तब तक मैं मोबाइल का प्रयोगा नही करूंगा और ना ही मैं मोबाइल अपने पास रखूंगा. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि इस पंचायत में विकास नहीं हुआ है. यहां बिजली से लेकर सड़क तक और हाई स्कूल तक विद्यालय भी हैं, लेकिन नेटवर्क समस्या होने के कारण यहां बहुत कार्य प्रभवित होता है.

इस संबंध में बीडीओ संजय पाठक ने जानकारी देते हुए बताया कि भीतरीबांध गांव पहाड़ी के तलहटी में बसा हुआ है, जिसके कारण वहां नेटवर्किंग की समस्या है. जिसके कारण वहां पर जानकारी लेने के लिए अपने कर्मियों को भेज कर समस्या की जानकारी लेना पड़ती है. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि चुनाव में सेटेलाइट फोन जिला से उपलब्ध कराया जाता है, जिसके बाद ही जानकारी प्राप्त होती है.

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