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बदहाल स्थिति में 'भगवान का घर', 13वीं सदी से भी पुराना है मंदिर

महादेव सिमरिया मंदिर की गिनती प्रदेश के पौराणिक मंदिरों में होती है. लेकिन, रखरखाव में कमी का साफ असर मंदिर पर दिखता है.

सिमरिया महादेव मंदिर
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Published : May 4, 2019, 11:47 PM IST

जमुई: जिला मुख्यालय के सिकंदरा जमुई मुख्य मार्ग पर बाबा धनेश्वर नाथ का मंदिर है. इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है. इन्हें बाबा बैद्यनाथ का उपलिंग भी कहा जाता है. जानकार बताते हैं कि यह मंदिर 13वीं सदी से पहले की है. बिहार के अलावा बंगाल और झारखंड से भी काफी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. लेकिन, रखरखाव के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती है. मंदिर के पास स्थित तालाब भी बदहाल स्थिति में है. सूखने के कगार पर पहुंच गई है.

महादेव सिमरिया में दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां भगवान भोलेनाथ स्वयंभू शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए थे. लिहाजा इस मंदिर को देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ का छोटा स्वरूप माना जाता है. यही कारण है कि यहां दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करने आते हैं और बाबा धनेश्वर नाथ इन की सभी मुरादें पूरी करते हैं.

कब हुआ था पुनर्निर्माण

जानकार बताते हैं कि यहां कुम्हार जाति के धनेश्वर नाथ नाम का व्यक्ति बर्तन बनाने के लिए गांव के उत्तर स्थित एक दोभा से मिट्टी लाने गया था. मिट्टी खोदने के दौरान धनेश्वर नाथ को शिवलिंग के रूप में भगवान भोलेनाथ मिले. जिसे वह गांव में लाकर स्थापित कर दिया. गांव के बुजुर्ग ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण कालांतर में विश्वकर्मा ने खुद अपने हाथों से किया था. मान्यता है कि शाम को मंदिर निर्माण का काम शुरू हुआ था. सूर्योदय से पहले तक मंदिर का निर्माण हो गया था. आज भी मंदिर के मुख्य द्वार पर आपको मुर्गे का चित्र देखने को मिल जाएगा. इस मंदिर का पुनर्निर्माण 1245 ई. में हुआ था. इसके बाद गिद्धौर के तत्कालीन महाराजा पूरणमल सिंह ने 1265 ई. में इसका फिर से जीर्णोद्धार किया गया था.


फ्रांसिस बुकानन ने अपनी किताब में किया है का जिक्र
फ्रांसिस चिकित्सक बुकानन की किताब में भी मंदिर का जिक्र है. 1794 से 1815 तक बंगाल सेवा में बुकानन जॉब करते थे. इस दौरान महादेव सिमरिया में स्थित दुर्लभ शिवलिंग का उन्होंने दर्शन किया था. मंदिर की खास विशेषता यह भी है कि यहां चारों ओर शिवगंगा बनी हुई थी. अब इसे बंद कर दिया गया है. हालांकि अभी भी मंदिर की तीन दिशा में शिवगंगा स्थित है. मंदिर परिसर में 7 अलग-अलग मंदिर है. इसमें भगवान शंकर का मंदिर गर्भगृह में स्थित है.

1265 ई. में राजा पूरणमल को आया था स्वप्न
एक और मान्यता यह है कि गिद्धौर वंश के तत्कालीन महाराजा पूरणमल सिंह को भगवान शिव का स्वप्न आया था. स्वप्न में महादेव सिमरिया स्थित शिवडीह में शिवलिंग प्रकट होने की बात सामने आई. जिसके बाद महाराजा पूरणमल ने अपने सैनिकों के साथ महादेव सिमरिया पहुंचकर बाबा भोलेनाथ का पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की. यहां के पुजारी कोई ब्राह्मण कुल के पंडित नहीं. बल्कि यहां के पंडित कुम्हार जाति के लोग होते हैं.

जमुई से खास रिपोर्ट


क्या कहते हैं अधिकारी
बिहार धार्मिक न्यास परिषद से जुड़ने के बाद भी बाबा धनेश्वर नाथ धाम पर न तो सरकार की नजर पड़ी ना ही न्यास की नजर इस मंदिर पर पड़ी है. लिहाजा, यहां आने वाले तीर्थ यात्री से लेकर रहवासी तक कूड़े को तालाब में फेंकते नजर आते हैं. इससे तालाब गंदा हो चुका है. इस बारे में एसडीओ लखन पासवान ने बताया कि 10 दिन के अंदर तालाब का कार्य पूरा कर इसके सौंदर्यीकरण का काम शुरू कर दिया जाएगा. ऐसे में अब देखने वाली बात यह है कि एसडीओ के आश्वासन के बाद भी मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण का काम कब शुरू होता है.

जमुई: जिला मुख्यालय के सिकंदरा जमुई मुख्य मार्ग पर बाबा धनेश्वर नाथ का मंदिर है. इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है. इन्हें बाबा बैद्यनाथ का उपलिंग भी कहा जाता है. जानकार बताते हैं कि यह मंदिर 13वीं सदी से पहले की है. बिहार के अलावा बंगाल और झारखंड से भी काफी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. लेकिन, रखरखाव के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती है. मंदिर के पास स्थित तालाब भी बदहाल स्थिति में है. सूखने के कगार पर पहुंच गई है.

महादेव सिमरिया में दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां भगवान भोलेनाथ स्वयंभू शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए थे. लिहाजा इस मंदिर को देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ का छोटा स्वरूप माना जाता है. यही कारण है कि यहां दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करने आते हैं और बाबा धनेश्वर नाथ इन की सभी मुरादें पूरी करते हैं.

कब हुआ था पुनर्निर्माण

जानकार बताते हैं कि यहां कुम्हार जाति के धनेश्वर नाथ नाम का व्यक्ति बर्तन बनाने के लिए गांव के उत्तर स्थित एक दोभा से मिट्टी लाने गया था. मिट्टी खोदने के दौरान धनेश्वर नाथ को शिवलिंग के रूप में भगवान भोलेनाथ मिले. जिसे वह गांव में लाकर स्थापित कर दिया. गांव के बुजुर्ग ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण कालांतर में विश्वकर्मा ने खुद अपने हाथों से किया था. मान्यता है कि शाम को मंदिर निर्माण का काम शुरू हुआ था. सूर्योदय से पहले तक मंदिर का निर्माण हो गया था. आज भी मंदिर के मुख्य द्वार पर आपको मुर्गे का चित्र देखने को मिल जाएगा. इस मंदिर का पुनर्निर्माण 1245 ई. में हुआ था. इसके बाद गिद्धौर के तत्कालीन महाराजा पूरणमल सिंह ने 1265 ई. में इसका फिर से जीर्णोद्धार किया गया था.


फ्रांसिस बुकानन ने अपनी किताब में किया है का जिक्र
फ्रांसिस चिकित्सक बुकानन की किताब में भी मंदिर का जिक्र है. 1794 से 1815 तक बंगाल सेवा में बुकानन जॉब करते थे. इस दौरान महादेव सिमरिया में स्थित दुर्लभ शिवलिंग का उन्होंने दर्शन किया था. मंदिर की खास विशेषता यह भी है कि यहां चारों ओर शिवगंगा बनी हुई थी. अब इसे बंद कर दिया गया है. हालांकि अभी भी मंदिर की तीन दिशा में शिवगंगा स्थित है. मंदिर परिसर में 7 अलग-अलग मंदिर है. इसमें भगवान शंकर का मंदिर गर्भगृह में स्थित है.

1265 ई. में राजा पूरणमल को आया था स्वप्न
एक और मान्यता यह है कि गिद्धौर वंश के तत्कालीन महाराजा पूरणमल सिंह को भगवान शिव का स्वप्न आया था. स्वप्न में महादेव सिमरिया स्थित शिवडीह में शिवलिंग प्रकट होने की बात सामने आई. जिसके बाद महाराजा पूरणमल ने अपने सैनिकों के साथ महादेव सिमरिया पहुंचकर बाबा भोलेनाथ का पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की. यहां के पुजारी कोई ब्राह्मण कुल के पंडित नहीं. बल्कि यहां के पंडित कुम्हार जाति के लोग होते हैं.

जमुई से खास रिपोर्ट


क्या कहते हैं अधिकारी
बिहार धार्मिक न्यास परिषद से जुड़ने के बाद भी बाबा धनेश्वर नाथ धाम पर न तो सरकार की नजर पड़ी ना ही न्यास की नजर इस मंदिर पर पड़ी है. लिहाजा, यहां आने वाले तीर्थ यात्री से लेकर रहवासी तक कूड़े को तालाब में फेंकते नजर आते हैं. इससे तालाब गंदा हो चुका है. इस बारे में एसडीओ लखन पासवान ने बताया कि 10 दिन के अंदर तालाब का कार्य पूरा कर इसके सौंदर्यीकरण का काम शुरू कर दिया जाएगा. ऐसे में अब देखने वाली बात यह है कि एसडीओ के आश्वासन के बाद भी मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण का काम कब शुरू होता है.

Intro:बदहाली के कगार पर सूबे के प्राचीनतम मंदिर महादेव सिमरिया

ANC- बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर जिसे लोग महादेव सिमरिया के नाम से भी जानते हैं। महादेव सिमरिया स्थित बाबा भोलेनाथ मंदिर का इतिहास काफी पुराना है ,और काफी रोचक भी ।दर असल जमुई जिला मुख्यालय के सिकंदरा जमुई मुख्य मार्ग पर बाबा धनेश्वर नाथ यानी महादेव सिमरिया मंदिर स्थित है। बाबा धनेश्वर नाथ शिव मंदिर स्वयंभू शिवलिंग है। इन्हें बाबा बैद्यनाथ का उप लिंग के रूप में भी ख्याति प्राप्त है ।जानकार बताते हैं कि यह मंदिर 13वीं सदी से भी काफी पुरानी है। यहां बिहार ही नहीं बल्कि बंगाल और झारखंड से भी काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं लेकिन मंदिर परिसर का रखरखाव और मंदिर के तीनों बगल स्थित तालाब बदहाल स्थिति में है और सूखने के कगार पर है।


Body:महादेव सिमरिया में दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

जमुई सिकंदरा मुख्य मार्ग में स्थित महादेव सिमरिया में भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। मान्यता है कि यहां भगवान भोलेनाथ का स्वयंभू शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए ,लिहाजा इस मंदिर को देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ का छोटा स्वरूप माना जाता है ।और यही कारण है कि यहां दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करने आते हैं ,और बाबा धनेश्वर नाथ इन की सभी मुरादें पूरी करते हैं।

1245ई. में इस मंदिर का हुआ था पुनर्निर्माण

जानकार बताते हैं कि यहां कुम्हार जाति के धनेश्वर नाथ नाम के व्यक्ति बर्तन बनाने के लिए गांव के उत्तर स्थित एक दोभा से मिट्टी लाने गया,मिट्टी खोदने के क्रम में धनेश्वर नाथ को शिवलिंग के रूप में भगवान भोलेनाथ मिले, जिसे वह गांव में लाकर स्थापित कर दिया ।बातचीत के क्रम में गांव के बुजुर्ग ने बताया इस मंदिर का निर्माण कालांतर में विश्वकर्मा ने खुद अपने हाथों से किया था। मान्यता है कि मुर्गा के बांग देने तक मंदिर का निर्माण हो गया था। एक जमाना था जब सुबह होने का एहसास मुर्गा के बांग देने के बाद होता था ।लिहाजा आज भी मंदिर के मुख्य द्वार पर आपको मुर्गे का चित्र देखने को मिल जाएगा ।फिर इस मंदिर का पुनर्निर्माण 1245 में हुआ इसके बाद गिद्धौर के तत्कालीन महाराजा पूरणमल सिंह ने 1265 ईस्वी में इसका फिर से जीर्णोद्धार किया।

फ्रांसिस स्कूल बुक आनंद ने अपनी किताब में किया है का जिक्र

फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था जो बंगाल सेवा में 1794 से 1815 तक कार्यरत था। इसी दौरान बुकानन जमुई जिला भी आया और महादेव सिमरिया में स्थित इस दुर्लभ शिवलिंग का दर्शन किया ।मंदिर की खास विशेषता है कि जहां चारों ओर शिवगंगा बनी हुई थी ,जो कालांतर में एक दिशा से जहां से मंदिर का प्रवेश द्वार है बंद कर दिया गया, हालांकि अभी भी मंदिर के तीन दिशा में शिवगंगा स्थित है ।मंदिर परिसर में 7 मंदिर है जिसमें भगवान शंकर का मंदिर गर्भगृह में स्थित है।

1265 जिम्मेदार के राजा पूरणमल को आया था स्वप्न
मान्यता है कि गिद्धौर वंश के तत्कालीन महाराजा पूरणमल सिंह को भगवान शिव का स्वप्न आया ।स्वप्न में महादेव सिमरिया स्थित शिवडीह में शिवलिंग प्रकट होने की बात सामने आई ।जिसके बाद महाराजा पूरणमल ने अपने सैनिकों के साथ महादेव सिमरिया पहुंचकर बाबा भोलेनाथ का पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की। यहां के पुजारी कोई ब्राह्मण कुल के पंडित नहीं बल्कि यहां के पंडित यानी पुजारी कुम्हार जाति के लोग होते हैं। दरअसल धनेश्वर नाथ को शिवलिंग के रूप में बाबा मिले थे उसी दिन से यहां बाबा का सेवा पूजा कुमार जाति के लोग ही करते हैं।





Conclusion: क्या कहते हैं अधिकारी?

बिहार धार्मिक न्यास परिषद से जुड़ने के बाद भी बाबा धनेश्वर नाथ धाम पर न तो सरकार की नजर पड़ी ना ही न्यास की नजर इस मंदिर पर पड़ी है ।लिहाजा मंदिर के तीनों ओर स्थित तालाब सूखने के कगार पर है ।यहां आने वाले तीर्थ यात्री से लेकर यहां के रहवासी तक कूडे को तालाब में फेंकते नजर आते हैं ।जिससे तालाब गंदा हो चुका है हालांकि जब इस बाबत मंदिर के पदेन अध्यक्ष और एसडीओ लखन पासवान से बात की गई तो उन्होंने आश्वासन देते हुए कहा कि 10 दिन के अंदर तालाब का पूरा ही कर इसके सौंदर्य करण का काम शुरू कर दिया जाएगा ऐसे में आप देखने वाली बात यह है कि एसडीओ के आश्वासन के बाद भी मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण का काम कब शुरू होता है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा ।

ईटीवी भारत के लिए जमुई से ब्रजेन्द्र नाथ झा
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