जमुईः जिले के खैरा ब्लाक मुख्यालय के नजदीक दो दशक से रह रहे बंजारों की स्थिति में आज तक कोई बदलाव नहीं हो सका. इन बंजारों के पास आधार कार्ड भी है. इसके बावजूद ना तो इन्हें पीने योग्य पानी की व्यवस्था है और ना ही आवास. यानि ये अब तक तमाम बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं.
लोकसभा चुनाव में जहां हर कोई विकास और राष्ट्रहित समेत अन्य मसलों पर मतदान करने का मन बना रहे हैं. वहीं, एक ऐसा तबका भी है जो अपने मूलभूत अधिकारों को हासिल करने की जंग लड़ रहा है. ये बंजारे अभी भी खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं. इन्हें चुनाव से कोई मतलब नहीं है और ना ही मतदान का कोई असर आज तक इनकी जिंदगी पर पड़ा है. भारत में संविधान को लागू हुए तकरीबन 7 दशक पूरा होने को हैं. बावजूद इन 7 दशकों में आज भी कई भारतीय ऐसे हैं जो अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित हैं.
बदहाल हैं तंबू लगाकर रहने वाले लोग
दरअसल, जिले में एक खास कुनबा भी है जो अलग-अलग जगहों पर टेंट तंबू लगाकर खुद को स्थापित करने की जद्दोजहद में लगा है. एक तरफ जहां हम पूरे देश में एकरूपता और एक संविधान लागू करने की बात करते रहते हैं, वहीं दूसरी तरफ जिला मुख्यालय से सटे इलाकों में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 325 और 326 के तहत भारत के सभी नागरिकों को मिलने वाले सबसे महत्वपूर्ण अधिकार मताधिकार से वंचित रखा गया है. सवाल यह है कि आखिर इन लोगों की क्या गलती है. आखिर इन्हें समाज का हिस्सा क्यों नहीं माना जा रहा. इन्हें मतदान के अधिकार से अब तक क्यों वंचित रखा गया है. यह समझना सबसे कठिन है.
नहीं हुआ गरीब तबके का उत्थान
समाज में रह रहे पिछले अति पिछड़े वर्गों के लोग वर्ग के लोगों के लिए सरकार की ओर से ढ़ेर सारी योजनाएं चलाई जा रही हैं. वहीं जिला प्रशासन के नाक के नीचे रह रहे करीब 50 परिवार बंजारे अभी भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जिला प्रशासन गरीब तबके और पिछड़े वर्गों की उत्थान के लिए एक से एक योजना को अमलीजामा पहनाने में लगा हुआ है फिर ऐसे बंजारे परिवारों की स्थिति बदतर क्यों है.