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Father's Day: मंत्री सुमित सिंह ने पिता को किया याद, लिखा- उनके पास हमारे लिए नहीं था वक्त

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Published : Jun 20, 2021, 10:01 PM IST

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सुमित सिंह ने फादर्स डे के अवसर पर अपने पिता पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह को याद किया है. उन्होंने लिखा है कि मेरे पिता ने एक दशक तक मंत्री रहने और कई बार विधायक रहने के बाद भी पटना में घर नहीं बनवाया.

Minister Sumit Singh with father Narendra Singh
पिता नरेंद्र सिंह के साथ मंत्री सुमित सिंह

जमुई: फादर्स डे के अवसर पर बिहार सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सुमित सिंह (Minister Sumit Singh) ने अपने पिता पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह को याद किया. उन्होंने अपने पिता को याद करते हुए लिखा मेरे पिताजी अपने बच्चों से पहले समाज और राज्य के बारे में सोचते हैं.

यह भी पढ़ें- फादर्स डे को घर पर बनाएं खास, पिता के साथ देखें ये फिल्में

सुमित सिंह ने लिखा कि शायद किसी को अचरज हो सकता है कि एक दशक तक मंत्री और कई बार विधायक रहने के बाद भी पटना में उन्होंने घर नहीं बनवाया. न कोई उद्योग, न कोई कारोबार. सिर्फ राजनेता बने रहे. उन्होंने पद नहीं विचार और बिहार को सबसे पहला स्थान दिया. जब लालू प्रसाद 1990 में पहली बार मुख्यमंत्री बने तो मेरे पिता राज्य के स्वास्थ्य मंत्री थे.

लालू के खिलाफ किया था बगावत
मेरे पिता ने सबसे पहले लालू प्रसाद की स्वेच्छाचारिता, अराजकता और अनियमितता पर सवाल उठाया था. उन्हें महसूस हो गया था कि बिहार बड़े अंधेरे दौर में जाने वाला है. उन्होंने मंत्री बनने के एक ही साल बाद बगावत का बिगुल फूंक दिया. स्वास्थ्य मंत्री पद त्याग लालू राज के खिलाफ इन्कलाब की राह पर निकल पड़े. उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. सामाजिक वैमनस्य के माहौल में 1995 में चुनाव हार गए. 2000 में जमुई और चकाई दोनों सीटों से निर्दलीय चुनाव लड़े और भारी मतों से जीते थे.

राजद के आतंकराज को किया खत्म
मेरे पिता ने 2005 में राजद के आतंकराज को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई. 2005 नवंबर से बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की न्याय के साथ विकास यात्रा शुरू हुई. वह इसके मुख्य सहयोगी रहे.

राज्य के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में पूरी तरह तल्लीन हो गए. उन्होंने हम सबों की बेहतरीन परवरिश की, सुंदर संस्कार दिए, ज्ञान, शिक्षा, स्नेह सब मिला. उनका वक्त हमें न मिला. वह उनके पास था ही नहीं. उन्होंने अपना वक्त समाज और राज्य के लिए समर्पित कर दिया था.

रखते हैं कठोर अनुशासन
मंत्री सुमित सिंह ने लिखा आपातकाल के दौर से ही मेरे पिताजी जनता के हो गए थे. उसके बाद से ही राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव और जनता को उनके हक-हकूक के लिए उन पर जुनून-सा सवार हो गया था. वह अब भी कायम है. वह सख्त अनुशासन पसंद हैं. हम सभी के साथ भी उनका रिश्ता पुराने दौर के कठोर अनुशासन वाले पिता सा है. अंदर से मुलायम, ऊपर से कठोर. गलती, अपराध, अनुचित व्यवहार उनके लिए अक्षम्य है.

यह भी पढ़ें- 13 दिन में 4 जिलों में 4 धमाके, शराब सूंघने में लगी पुलिस को नहीं मिल रही बमों की गंध

जमुई: फादर्स डे के अवसर पर बिहार सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सुमित सिंह (Minister Sumit Singh) ने अपने पिता पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह को याद किया. उन्होंने अपने पिता को याद करते हुए लिखा मेरे पिताजी अपने बच्चों से पहले समाज और राज्य के बारे में सोचते हैं.

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सुमित सिंह ने लिखा कि शायद किसी को अचरज हो सकता है कि एक दशक तक मंत्री और कई बार विधायक रहने के बाद भी पटना में उन्होंने घर नहीं बनवाया. न कोई उद्योग, न कोई कारोबार. सिर्फ राजनेता बने रहे. उन्होंने पद नहीं विचार और बिहार को सबसे पहला स्थान दिया. जब लालू प्रसाद 1990 में पहली बार मुख्यमंत्री बने तो मेरे पिता राज्य के स्वास्थ्य मंत्री थे.

लालू के खिलाफ किया था बगावत
मेरे पिता ने सबसे पहले लालू प्रसाद की स्वेच्छाचारिता, अराजकता और अनियमितता पर सवाल उठाया था. उन्हें महसूस हो गया था कि बिहार बड़े अंधेरे दौर में जाने वाला है. उन्होंने मंत्री बनने के एक ही साल बाद बगावत का बिगुल फूंक दिया. स्वास्थ्य मंत्री पद त्याग लालू राज के खिलाफ इन्कलाब की राह पर निकल पड़े. उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. सामाजिक वैमनस्य के माहौल में 1995 में चुनाव हार गए. 2000 में जमुई और चकाई दोनों सीटों से निर्दलीय चुनाव लड़े और भारी मतों से जीते थे.

राजद के आतंकराज को किया खत्म
मेरे पिता ने 2005 में राजद के आतंकराज को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई. 2005 नवंबर से बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की न्याय के साथ विकास यात्रा शुरू हुई. वह इसके मुख्य सहयोगी रहे.

राज्य के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में पूरी तरह तल्लीन हो गए. उन्होंने हम सबों की बेहतरीन परवरिश की, सुंदर संस्कार दिए, ज्ञान, शिक्षा, स्नेह सब मिला. उनका वक्त हमें न मिला. वह उनके पास था ही नहीं. उन्होंने अपना वक्त समाज और राज्य के लिए समर्पित कर दिया था.

रखते हैं कठोर अनुशासन
मंत्री सुमित सिंह ने लिखा आपातकाल के दौर से ही मेरे पिताजी जनता के हो गए थे. उसके बाद से ही राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव और जनता को उनके हक-हकूक के लिए उन पर जुनून-सा सवार हो गया था. वह अब भी कायम है. वह सख्त अनुशासन पसंद हैं. हम सभी के साथ भी उनका रिश्ता पुराने दौर के कठोर अनुशासन वाले पिता सा है. अंदर से मुलायम, ऊपर से कठोर. गलती, अपराध, अनुचित व्यवहार उनके लिए अक्षम्य है.

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