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20 साल से जंगल को बचा रही हैं चिंता देवी, सीटी की आवाज सुन भागते हैं पेड़ काटने वाले

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Published : Jun 12, 2022, 10:12 AM IST

Updated : Jun 12, 2022, 12:52 PM IST

पेड़ों को ही अपना सब कुछ मानने वाली चिंता देवी जंगल बचाने का काम करती हैं. वे पिछले 20 सालों से जंगल बचाओ अभियान की नेतृत्व कर रही हैं. उनकी सीटी की आवाज सुन भागते जाते हैं पेड़ काटने वाले. बिहार के जमुई की चिंता देवी (Jamui Woman Chinta Devi) के इस अनोखे प्रयास (Bihar Chinta Devi Campaign) की कहानी. पढ़ें...

20 साल से जंगल को बचा रही चिंता देवी
20 साल से जंगल को बचा रही चिंता देवी

जुमई: बिहार में पर्यावरण संरक्षण में अब ग्रामीण महिलाओं की सक्रिय भागीदारी दिख रही है. जमुई जिले के खैरा प्रखंड की ग्रामीण महिलाओं ने जंगल और जंगल के पेड़ो को कटने से बचाने (women of jamui guarding the forest) के लिए एक अनोखे प्रयास की शुरूआत की है. साल 2002 से ग्रामीण महिलाओं द्वारा शुरू किए गए इस प्रयास के जरिए ग्रामीणों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता (Chinta Devi Save Forest for 20 years) बढ़ी है. ये महिलाओं हाथ में डंडे लिए जंगलों की पहरेदारी कर रही हैं.

ये भी पढ़ें: पर्यावरण दिवस : पूर्णिया के 'ट्री मैन' केक की बजाए पेड़ों के बीच मनाते हैं जन्मदिन

बिहार की ग्रामीण महिलाएं कर रही जंगल की पहरेदारी: ग्रामीण बताते हैं कि खैरा प्रखंड के मंझियानी, सुअरकोट, भगरार, झियातरी, ललकीटांड गांव के समीप फैले जंगली क्षेत्रों में साल, आसन, बांस, करंज, महुआ, बेर सहित कई पेड़ हैं. पूर्व में आजीविका चलाने के लिए इन जंगली फसलों की खेती और कटाई के समय आस-पास के छोटे पेड़ों को काट दिया जाता था तथा जंगलों में आग भी लगा दी जाती थी.

20 साल से जंगल को बचा रही हैं चिंता देवी: इन महिलाओं ने इस जंगलों की बबार्दी देखकर जंगलों को बचाने और रक्षा करने के अनूठे प्रयास की शुरूआत की. ग्रामीण बताते हैं कि जमुई जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र खैरा प्रखंड के मंझियानी गांव की 52 वर्षीय चिंता देवी बीते दो दशक से भी अधिक समय से पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीव को बचाने के लिए काम करती आ रही हैं.

सिटी की आवाज सुन भागते हैं पेड़ काटने वाले : चिंता देवी साल 2002 से ही जंगल में लगे पेड़ को बचाने के लिए काम करते आ रहीं हैं. पेड़-पौधों को बचाने के लिए उनका साथ इलाके की लगभग 20 से 25 महिलाएं भी देती हैं. चिंता देवी के नेतृत्व में महिला गश्ती दल बना है, जो हाथ में डंडा लेकर और मुंह से सिटी बजाकर इलाके के जंगल को बचाने का काम करती हैं.

''प्रारंभ में गांव के आसपास के जंगलों में लोग अपने लाभ के पेड को काट डालते थे, जिसस जंगल उजड़ते जा रहे थे. इसके बाद मैंने लोगों को टोकना प्रारंभ कर दिया. शुरू में तो इस काम में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में लोगों का और वन विभाग का साथ भी मिला'' - चिंता देवी, ग्रामीण

चिंता के रहते जंगल से कोई पेड़ काट नहीं सकता: चिंता देवी के रहते इलाके के किसी भी जंगल से कोई पेड़ काट नहीं सकता, यहां तक कि कई बार जंगल से भटके जंगली जानवर अगर गांव में आ जाते हैं तो उसे सुरक्षित फिर जंगल में छोड़ने में वन विभाग का सहयोग करती हैं. चिंता देवी भले ही पढ़ना लिखना नहीं जानती, लेकिन आज वे पर्यावरण को लेकर लोगों को पाठ पढ़ा रही हैं.

कई पुरस्कार पा चुकी हैं चिंता देवी : पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई पुरस्कार पा चुकी चिंता देवी का कहना है कि उनके परिवारवालों ने भी इस काम को करने से कभी नहीं रोका. वे जंगलों में पेड, पौधों को अपना संतान मानती हैं. उन्होंने कहा कि हम सभी महिलाएं जंगल की सुरक्षा के लिए डंडे के सहारे जंगल के अंदर चार से पांच घंटे तक पहरेदारी करते हैं. ये महिलाएं ग्रामीणों को पर्यावरण संतुलन को लेकर जागरूक भी करती हैं.

जंगल में 24 घंटे महिलाएं पहरेदारी करती हैं: इन महिलाओं द्वारा चलाये जा रहे इस प्रयास की अब बाकी ग्रामीण प्रशंसा भी करते है और इस कार्य में अपना भी योगदान देते हैं. आज कई गांव की महिलाएं चिंता देवी से जुडकर जंगल बचाने में जुटी हैं. चिंता देवी बताती हैं कि इन जंगल में 24 घंटे महिलाएं पहरेदारी करती हैं. इन्हें वन विभाग द्वारा भी समर्थन मिल रहा है. ये महिलाएं अपने पास सीटी रखती है और किसी भी तरह के जंगल को नुकसान करने के प्रयास में सीटी बजाया जाता है और सभी महिलाएं उस जगह पहुंच जाती हैं.

ये भी पढ़ें: कभी यहां गरजती थीं नक्सलियों की बंदूकें, अब पर्यटक लेंगे मजा

''चिंता देवी बीते कई वर्षों से जंगल के पेड़ और वन्य जीव को बचाने के लिए काम करती आ रहीं हैं. वे पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई बार सम्मानित भी हो चुकी हैं. वह जंगल को बचाने के लिए उस इलाके में और भी कई लोगों को जागरूक करती हैं. पर्यावरण संरक्षण को लेकर किए गए उनके कार्य सराहनीय तो हैं ही इनसे कई लोग इसे सीख भी रहे हैं'' - पीयूष वर्णवाल, जमुई के वन प्रमुडल पदाधिकारी

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जुमई: बिहार में पर्यावरण संरक्षण में अब ग्रामीण महिलाओं की सक्रिय भागीदारी दिख रही है. जमुई जिले के खैरा प्रखंड की ग्रामीण महिलाओं ने जंगल और जंगल के पेड़ो को कटने से बचाने (women of jamui guarding the forest) के लिए एक अनोखे प्रयास की शुरूआत की है. साल 2002 से ग्रामीण महिलाओं द्वारा शुरू किए गए इस प्रयास के जरिए ग्रामीणों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता (Chinta Devi Save Forest for 20 years) बढ़ी है. ये महिलाओं हाथ में डंडे लिए जंगलों की पहरेदारी कर रही हैं.

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बिहार की ग्रामीण महिलाएं कर रही जंगल की पहरेदारी: ग्रामीण बताते हैं कि खैरा प्रखंड के मंझियानी, सुअरकोट, भगरार, झियातरी, ललकीटांड गांव के समीप फैले जंगली क्षेत्रों में साल, आसन, बांस, करंज, महुआ, बेर सहित कई पेड़ हैं. पूर्व में आजीविका चलाने के लिए इन जंगली फसलों की खेती और कटाई के समय आस-पास के छोटे पेड़ों को काट दिया जाता था तथा जंगलों में आग भी लगा दी जाती थी.

20 साल से जंगल को बचा रही हैं चिंता देवी: इन महिलाओं ने इस जंगलों की बबार्दी देखकर जंगलों को बचाने और रक्षा करने के अनूठे प्रयास की शुरूआत की. ग्रामीण बताते हैं कि जमुई जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र खैरा प्रखंड के मंझियानी गांव की 52 वर्षीय चिंता देवी बीते दो दशक से भी अधिक समय से पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीव को बचाने के लिए काम करती आ रही हैं.

सिटी की आवाज सुन भागते हैं पेड़ काटने वाले : चिंता देवी साल 2002 से ही जंगल में लगे पेड़ को बचाने के लिए काम करते आ रहीं हैं. पेड़-पौधों को बचाने के लिए उनका साथ इलाके की लगभग 20 से 25 महिलाएं भी देती हैं. चिंता देवी के नेतृत्व में महिला गश्ती दल बना है, जो हाथ में डंडा लेकर और मुंह से सिटी बजाकर इलाके के जंगल को बचाने का काम करती हैं.

''प्रारंभ में गांव के आसपास के जंगलों में लोग अपने लाभ के पेड को काट डालते थे, जिसस जंगल उजड़ते जा रहे थे. इसके बाद मैंने लोगों को टोकना प्रारंभ कर दिया. शुरू में तो इस काम में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में लोगों का और वन विभाग का साथ भी मिला'' - चिंता देवी, ग्रामीण

चिंता के रहते जंगल से कोई पेड़ काट नहीं सकता: चिंता देवी के रहते इलाके के किसी भी जंगल से कोई पेड़ काट नहीं सकता, यहां तक कि कई बार जंगल से भटके जंगली जानवर अगर गांव में आ जाते हैं तो उसे सुरक्षित फिर जंगल में छोड़ने में वन विभाग का सहयोग करती हैं. चिंता देवी भले ही पढ़ना लिखना नहीं जानती, लेकिन आज वे पर्यावरण को लेकर लोगों को पाठ पढ़ा रही हैं.

कई पुरस्कार पा चुकी हैं चिंता देवी : पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई पुरस्कार पा चुकी चिंता देवी का कहना है कि उनके परिवारवालों ने भी इस काम को करने से कभी नहीं रोका. वे जंगलों में पेड, पौधों को अपना संतान मानती हैं. उन्होंने कहा कि हम सभी महिलाएं जंगल की सुरक्षा के लिए डंडे के सहारे जंगल के अंदर चार से पांच घंटे तक पहरेदारी करते हैं. ये महिलाएं ग्रामीणों को पर्यावरण संतुलन को लेकर जागरूक भी करती हैं.

जंगल में 24 घंटे महिलाएं पहरेदारी करती हैं: इन महिलाओं द्वारा चलाये जा रहे इस प्रयास की अब बाकी ग्रामीण प्रशंसा भी करते है और इस कार्य में अपना भी योगदान देते हैं. आज कई गांव की महिलाएं चिंता देवी से जुडकर जंगल बचाने में जुटी हैं. चिंता देवी बताती हैं कि इन जंगल में 24 घंटे महिलाएं पहरेदारी करती हैं. इन्हें वन विभाग द्वारा भी समर्थन मिल रहा है. ये महिलाएं अपने पास सीटी रखती है और किसी भी तरह के जंगल को नुकसान करने के प्रयास में सीटी बजाया जाता है और सभी महिलाएं उस जगह पहुंच जाती हैं.

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''चिंता देवी बीते कई वर्षों से जंगल के पेड़ और वन्य जीव को बचाने के लिए काम करती आ रहीं हैं. वे पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई बार सम्मानित भी हो चुकी हैं. वह जंगल को बचाने के लिए उस इलाके में और भी कई लोगों को जागरूक करती हैं. पर्यावरण संरक्षण को लेकर किए गए उनके कार्य सराहनीय तो हैं ही इनसे कई लोग इसे सीख भी रहे हैं'' - पीयूष वर्णवाल, जमुई के वन प्रमुडल पदाधिकारी

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Last Updated : Jun 12, 2022, 12:52 PM IST
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