जमुई: जमुई में एक डॉक्टर की मौत के बाद से हड़कंप मचा हुआ है. जिस डॉक्टर की मौत हुई है, वे एक जांच टीम का हिस्सा थे. ये जांच टीम आशा कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के नाम पर बजट से 59 लाख 91 हजार 480 रुपये के फर्जीवाड़े की जांच कर रही है. ऐसे में डॉक्टर की मौत के बाद से कई सवाल खड़े हो गए हैं. उनका शव आज उनके कमरे में मिला. जिसके बाद से ही हत्या या आत्महत्या के बीच संशय बना हुआ है.
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दरअसल जमुई में हाल ही में आशा कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के नाम पर लाखों का फर्जीवाड़ा सामने आया था. ये फर्जीवाड़ा 59 लाख 91 हजार 480 रुपये का था. जब यह खबर जमुई के सीएस को मिली तो उन्होंने इस पूरे मामले की जांच के लिए तीन डॉक्टरों की एक टीम बना दी. लेकिन आज इसी कमिटी के तीन में से एक गिद्धौर के प्रभारी डॉक्टर रामस्वरूप चौधरी की मौत हो गई है. आज सुबह उनका शव उनके कमरे में मिला. सूत्र बताते हैं कि शव के पास ही एक सुसाइड नोट भी मिला है. जिसमें लिखा है- " कोरोना के कारण याददाश्त कमजोर हो गई". लेकिन किसी को इस सुसाइड नोट पर यकीन नहीं हो रहा क्योंकि वे एक बड़े मामले की जांच से जुड़े थे.
सिविल सर्जन ने कहा- स्ट्रेस की बात नहीं हो सकती
इस पूरे मामले को लेकर etv bharat से बात करते हुए जमुई सिविल सर्जन विनय कुमार शर्मा ने कहा कि मौत की जानकारी मिली तो मैं देखने भी गया. मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं की कोई सुसाइड नोट भी मिला है. मेरे समझ में नहीं आ रहा है कि ये सब कैसे हो गया. कल ही एक मीटिंग के दौरान मुलाकात हुई थी. उन्होंने कहा कि शव के गले पर निशान हैं. शायद हैंगिंग का केस हो, बाकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही खुलासा हो सकेगा. वहीं जब सीएस से फर्जीवाड़े को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि फर्जीवाड़े की खबर आई थी. हमने तीन डॉक्टरों जिनमें जमुई सदर अस्पताल के डीएस डॉ. सैयद नौशाद अहमद, गिद्धौर प्रभारी डॉ. रामस्वरूप चौधरी और सिकंदरा प्रभारी की एक कमिटी बनाकर जांच का आदेश दिया था. जांच रिपोर्ट सौपने की कोई टाइमलाइन तय नहीं की गई थी. इस कारण कोई दबाव या स्ट्रेस की बात तो नहीं हो सकती.
सहयोगी डॉक्टर ने कहा- जांच के बाद ही पता चलेगा
वहीं फर्जीवाड़े वाले मामले की जांच टीम के एक दूसरे सदस्य जमुई डीएस डॉ. सैयद नौशाद अहमद ने etv bharat से बात करते हुऐ कहा कि ये तो अब जांच का विषय है की फर्जीवाड़ा जांच मामले को लेकर वे किसी टेंशन में थे या कुछ और बात थी. उन्होंने कहा कि ये बहुत 'डेलिकेट' मामला है. ये अब 'मेडिकोलेवल' की बात हो गई है. मामले को अब पुलिस इंवेस्टिगेट करेगी. हम लोगों का काम है पोस्टमार्टम करके मौत का कारण पता लगाना और रिपोर्ट देना.
क्या है फर्जीवाड़ा
जन्म एवं मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से आशा कार्यकताओं एवं फैसीलेटर क्षमतावर्धन के लिए स्वास्थ्य विभाग ने मॉड्यूल पांच, छ: व सात का प्रशिक्षण कार्य शुरू किया था. पहला सत्र 5 दिसंबर 2019 को गिद्धौर में शुरू हुआ, अप्रैल-मई में वहां कोविड- 19 सेंटर बनाए जाने के बाद प्रशिक्षण स्थल को सिकंदरा स्थानन्तरित कर दिया गया. वहीं से फर्जीवाड़े की नीव पड़ी. जिले के सभी प्रखंडों की आशा कार्यकर्ताओं और फैसीलेटरों का प्रशिक्षण सिकंदरा में ही रखा गया. करीब 1531 आशा कार्यकर्ताओं एवं 79 फैसीलेटरों को प्रशिक्षित किया जाना था. लॉकडाउन के बाद सिकंदरा स्थित प्रशिक्षण स्थल पर अलीगंज, बरहट, खैरा, जमुई सदर एवं सिकंदरा की आशा कार्यकर्ताओं एवं फैसीलेटरों का प्रशिक्षण कागज पर सम्पन्न करा लिया गया. वहीं बड़ी चौंकाने वाली बात ये रही कि प्रशिक्षण की जानकारी तत्कालीन सिविल सर्जन व जिलाधिकारी को भी नहीं दी गई थी. न ही जिला स्वास्थ्य समिति की बैठकों में भी डीएम व सीएस को इस बाबत जानकारी दी गई.