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1952 से आज तक बिहार के इस जिले में नहीं बनी महिला सांसद

इस बार फिर महिलाओं को तमाम राजनीतिक पार्टियों ने दरकिनार कर दिया. जिले में महिलाओं के प्रति उदासीन जितनी राजनैतिक पार्टियां रहीं उतने ही उदासीन मतदाता भी रहे.

फाइल फुटेज
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Published : Apr 9, 2019, 8:31 AM IST

गोपालगंजः लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान होने में अब काफी कम समय रह गया है. राजनीतिक दलों का प्रचार अभियान तेज होने लगा है. पंचायत से लेकर बूथ स्तर तक राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता सक्रिय हो गए हैं. लेकिन इस सता और सियासत में एक बार फिर यहां की महिलाओं को राजनीतिक पार्टियों ने दरकिनार कर दिया.

जिले में एनडीए के घोषित प्रत्याशी जदयू नेता डॉ आलोक कुमार सुमन व महागठबंधन के घोषित प्रत्याशी राजद के सुरेंद्र राम चुनावी मैदान में हैं. जबकि शिवसेना से अजय पासवान ताल ठोक रहे हैं. लेकिन इस बार फिर महिलाओं को तमाम राजनीतिक पार्टियों ने दरकिनार कर दिया. जिले में महिलाओं के प्रति उदासीन जितनी राजनैतिक पार्टियां रही उतने ही उदासीन मतदाता भी रहे.

लोगों से बात करते हुए संवाददाता

अब तक जिले में कोई महिला सांसद नहीं
अगर इतिहास को खंगाला जाए तो यह स्पष्ट होता है कि 1952 से आज तक हुए लोक सभा चुनाव में मतदाताओं ने महिला प्रत्याशियों पर भरोसा नहीं जताया. चुनावी मैदान में कभी महिला उतरी भी तो लोक सभा चुनाव जीत नहीं सकी. पिछले लोक सभा चुनाव के मैदान में उतरी महिला प्रत्याशियों ने अपना दमखम दिखाया लेकिन वह जीत दर्ज नहीं कर सकी. सरकारी आकड़ों को देखा जाए तो मतदान करने में भी महिला मतदाताओं की भागीदारी अधिक रहती है. बावजूद वर्ष 1952 से अब तक हुए लोकसभा चुनाव में कोई भी महिला प्रत्याशी जीत कर सांसद नहीं बन सकी.

महिलाओं पर मतदाताओं को भरोसा नहीं
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक दल महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारने के प्रति गम्भीर नहीं रही. लेकिन वर्ष 2014 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस ने एक महिला ज्योति भारती को अपना प्रत्याशी बनाया था. इसी चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भी सुनीता कुमार को अपना प्रत्याशी बना कर मैदान में उतारा. मैदान में उतरी इन महिलाओं पर मतदाताओं ने अपना भरोसा नहीं जताया.

local people
मामले की जानकारी देते स्थानीय लोग

जमानत नहीं बचा पाती महिलाएं
इस चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी डॉ ज्योति भारती 191837 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहीं. जबकि सपा के प्रत्याशी सुनीता कुमार को 4586 वोट मिले. इनकी जमानत नहीं बच सकी. इनसे अधिक मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया. इस चुनाव में 17 हजार 841 नोटा का वोट पड़ा. हलांकि 2009 में हुए लोक सभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल ने महिला प्रत्याशी को चुनाव मैदान में नहीं उतारा. बावजूद महिला प्रत्यशियों ने अपने दम खम पर चुनावी मैदान में तीन महिला प्रत्याशी निर्दलीय चुनाव लड़ी. लेकिन किसी की जमानत नहीं बच सकी.

क्या कहते हैं स्थानीय मतदाता
हमारे संवाददाता ने मतदाताओं से जानने की कोशिश की कि 1952 से आज तक एक भी महिला सांसद क्यों नहीं बन सकी? जिसपर कई लोगों ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हमारे जिले में कई ऐसी महिला हैं जो जुझारू व कर्मठ हैं. लेकिन राजनीतिक पार्टियों ने उन महिलाओं को उचित सम्मान नहीं दिया. जिसके कारण कोई भी महिला आज तक सांसद नहीं बन सकी.

वहीं, यहां वर्चस्व की लड़ाई लड़ी जाती है. साथ ही स्थानीय मजबूत महिलाओं को चुनावी मैदान में खड़ा नहीं किया गया. 2014 में जो भी महिला प्रतयाशी खड़ी हुई वह बाहरी थी. जिसे हमारे जिले की जानकारी नहीं वो कैसे विकास कर सकती है. जिस कारण यहां के मतदाताओं ने वैसी महिलाओं को नकारा दिया था.

गोपालगंजः लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान होने में अब काफी कम समय रह गया है. राजनीतिक दलों का प्रचार अभियान तेज होने लगा है. पंचायत से लेकर बूथ स्तर तक राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता सक्रिय हो गए हैं. लेकिन इस सता और सियासत में एक बार फिर यहां की महिलाओं को राजनीतिक पार्टियों ने दरकिनार कर दिया.

जिले में एनडीए के घोषित प्रत्याशी जदयू नेता डॉ आलोक कुमार सुमन व महागठबंधन के घोषित प्रत्याशी राजद के सुरेंद्र राम चुनावी मैदान में हैं. जबकि शिवसेना से अजय पासवान ताल ठोक रहे हैं. लेकिन इस बार फिर महिलाओं को तमाम राजनीतिक पार्टियों ने दरकिनार कर दिया. जिले में महिलाओं के प्रति उदासीन जितनी राजनैतिक पार्टियां रही उतने ही उदासीन मतदाता भी रहे.

लोगों से बात करते हुए संवाददाता

अब तक जिले में कोई महिला सांसद नहीं
अगर इतिहास को खंगाला जाए तो यह स्पष्ट होता है कि 1952 से आज तक हुए लोक सभा चुनाव में मतदाताओं ने महिला प्रत्याशियों पर भरोसा नहीं जताया. चुनावी मैदान में कभी महिला उतरी भी तो लोक सभा चुनाव जीत नहीं सकी. पिछले लोक सभा चुनाव के मैदान में उतरी महिला प्रत्याशियों ने अपना दमखम दिखाया लेकिन वह जीत दर्ज नहीं कर सकी. सरकारी आकड़ों को देखा जाए तो मतदान करने में भी महिला मतदाताओं की भागीदारी अधिक रहती है. बावजूद वर्ष 1952 से अब तक हुए लोकसभा चुनाव में कोई भी महिला प्रत्याशी जीत कर सांसद नहीं बन सकी.

महिलाओं पर मतदाताओं को भरोसा नहीं
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक दल महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारने के प्रति गम्भीर नहीं रही. लेकिन वर्ष 2014 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस ने एक महिला ज्योति भारती को अपना प्रत्याशी बनाया था. इसी चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भी सुनीता कुमार को अपना प्रत्याशी बना कर मैदान में उतारा. मैदान में उतरी इन महिलाओं पर मतदाताओं ने अपना भरोसा नहीं जताया.

local people
मामले की जानकारी देते स्थानीय लोग

जमानत नहीं बचा पाती महिलाएं
इस चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी डॉ ज्योति भारती 191837 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहीं. जबकि सपा के प्रत्याशी सुनीता कुमार को 4586 वोट मिले. इनकी जमानत नहीं बच सकी. इनसे अधिक मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया. इस चुनाव में 17 हजार 841 नोटा का वोट पड़ा. हलांकि 2009 में हुए लोक सभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल ने महिला प्रत्याशी को चुनाव मैदान में नहीं उतारा. बावजूद महिला प्रत्यशियों ने अपने दम खम पर चुनावी मैदान में तीन महिला प्रत्याशी निर्दलीय चुनाव लड़ी. लेकिन किसी की जमानत नहीं बच सकी.

क्या कहते हैं स्थानीय मतदाता
हमारे संवाददाता ने मतदाताओं से जानने की कोशिश की कि 1952 से आज तक एक भी महिला सांसद क्यों नहीं बन सकी? जिसपर कई लोगों ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हमारे जिले में कई ऐसी महिला हैं जो जुझारू व कर्मठ हैं. लेकिन राजनीतिक पार्टियों ने उन महिलाओं को उचित सम्मान नहीं दिया. जिसके कारण कोई भी महिला आज तक सांसद नहीं बन सकी.

वहीं, यहां वर्चस्व की लड़ाई लड़ी जाती है. साथ ही स्थानीय मजबूत महिलाओं को चुनावी मैदान में खड़ा नहीं किया गया. 2014 में जो भी महिला प्रतयाशी खड़ी हुई वह बाहरी थी. जिसे हमारे जिले की जानकारी नहीं वो कैसे विकास कर सकती है. जिस कारण यहां के मतदाताओं ने वैसी महिलाओं को नकारा दिया था.

Intro:लोकसभा के चुनाव की डुगडुगी बजने के बाद राजनीतिक दलों का प्रचार अभियान तेज होने लगा है। पंचायत से लेकर बूथ स्तर तक राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता सक्रिय हो गए हैं। इस बीच एनडीए के घोषित प्रत्यासी जदयू नेता डॉ आलोक कुमार सुमन व महागठबंधन के घोषित प्रत्यासी राजद के सुरेंद्र राम उर्फ महान जी चुनावी मैदान में है जबकि शिवसेना से अजय पासवान ताल ठोक रहे है। लेकिन इस सता और सियासत में एक बार फिर महिलाओ को राजनीतिक पार्टियां दरकिनार कर महिलाओ के प्रति उदासीन रही। महिलाओं के प्रति उदासीनता जितनी राजनैतिक पार्टिया रही उतनी मतदाता भी उदासीन रहे। अगर इतिहास को खंगाले तो यह स्पष्ट होता है 1952 से आज तक हुए लोक सभा चुनाव में मतदाताओं ने महिला प्रत्याशियों पर भरोसा नही जताया है। अगर चुनावी मैदान में कभी महिला उतरी भी तो लोक सभा चुनाव जीत नही सकी। हलांकि पिछले लोक सभा चुनाव के मैदान में उत्तरी महिला प्रत्याशियों ने अपना दमखम दिखाया था लेकिन वह जीत दर्ज नहीं कर सकी। जिले में।सरकारी आकड़ो को देखा जाए तो मतदान करने में भी महिला मतदाताओं की भागीदारी अधिक रहती है। बावजूद वर्ष 1952 से अब तक हुए लोकसभा चुनाव में कोई भी महिला प्रत्याशी जीत कर सांसद नहीं बन सकी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक दल महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारने के प्रति गम्भीर नही रही। लेकिन वर्ष 2014 प्रत्याशी उतारने के मामले में महिलाओं के लिए सबसे बेहतर साल रहा वर्ष 2014 के चुनाव में पहली बार किसी राष्ट्रीय दल ने महिला प्रत्याशी को अपना प्रत्याशी बनाया था। इस चुनाव में गोपालगंज सुरक्षित सीट से कांग्रेस से ज्योति भारती को अपना उम्मीदवार बनाया इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भी सुनीता कुमार को अपना प्रत्याशी बना कर मैदान में उतारा मैदान में उतरी इन महिलाओं पर मतदाताओं ने अपना भरोसा नहीं जताया इस चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी डॉ ज्योति भारती 191837 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही। जबकि सपा के प्रत्याशी सुनीता कुमार को 4586 वोट मिले। इनकी जमानत नही बच सकी। इनसे अधिक मतदाताओ ने नोटा का बटन दबाया। इस चुनाव में 17 हजार 841 नोटा का वोट पड़ा। हलांकि 2009 में हुए लोक सभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल ने महिला प्रत्यासी को चुनाव मैदान में नही उतारा । बावजूद महिला प्रत्यशियों ने अपने दम खम पर चुनावी मैदान में तीन महिला प्रत्यशी निर्दलीय चुनाव लड़ी। लेकिन किसी की जमानत नही बच सकी। इस चुनाव में मधु भारती को 4553 , आशा देवी को 2759 2 विनीता वैठा को 3982 वोट प्राप्त हुए थे। अगर बात की जाए जिले के महिलाओ की तो गोपालगंज सुरक्षित लोक सभा क्षेत्र में महिला मतदाताओं की संख्या 9 लाख के करीब पहुंच गई है। पूर्व चुनाव में महिला मतदाताओं का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ने से यह लगने लगा है। कि इस बार की चुनाव में भी महिला मतदाता निर्णायक साबित हो सकती है। आगामी चुनाव में जिले के 6 विधानसभा क्षेत्र में कुल 1832200 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे इन में 936334 पुरुष व 8 लाख 95787 महिला मतदाता शामिल।

क्या कहते है मतदाता

महिलाओ को आज तक संसद तक का सफर तय नही करने के मुद्दे को लेकर हमारे संवाददाता ने मतदाताओ से वार्ता कर जानने की कोशिश किया कि 1952 से आज तक एक भी महिला आज तक क्यों नही सांसद बन सकी? जिसपर कई लोगो ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हमारे जिले में कई ऐसी महिला है जो जुझारू व कर्मठ है लेकिन राजनीतिक पार्टियों द्वारा उन महिलाओं को उचित सम्मान नही दिया जिसके कारण ये महिला आज तक सांसद नही बन सकी वही कुछ लोगो का कहना है कि इस संसदीय क्षेत्र में चुनावी मैदान में ऐसी एक भी महिला निर्दलीय महिला के चुनाव बस की बात नही थी। वो चुनाव की कमपेनिंग या प्रचार प्रसार नही कर सकी। यहां वर्चस्व की लड़ाई लड़ी जाती है। साथ ही स्थानीय मजबूत महिलाओ को चुनावी मैदान में खड़ा नही किया गया 2014 में जो भी महिला प्रतयाशी खड़ी हुई वह बाहरी थी जिसे हमारे जिले की जानकारी नही वो कैसे विकास कर सकती है। जिस कारण यहां के मतदाताओं ने वैसी महिलाओ को नकारा है।




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