गोपालगंजः लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान होने में अब काफी कम समय रह गया है. राजनीतिक दलों का प्रचार अभियान तेज होने लगा है. पंचायत से लेकर बूथ स्तर तक राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता सक्रिय हो गए हैं. लेकिन इस सता और सियासत में एक बार फिर यहां की महिलाओं को राजनीतिक पार्टियों ने दरकिनार कर दिया.
जिले में एनडीए के घोषित प्रत्याशी जदयू नेता डॉ आलोक कुमार सुमन व महागठबंधन के घोषित प्रत्याशी राजद के सुरेंद्र राम चुनावी मैदान में हैं. जबकि शिवसेना से अजय पासवान ताल ठोक रहे हैं. लेकिन इस बार फिर महिलाओं को तमाम राजनीतिक पार्टियों ने दरकिनार कर दिया. जिले में महिलाओं के प्रति उदासीन जितनी राजनैतिक पार्टियां रही उतने ही उदासीन मतदाता भी रहे.
अब तक जिले में कोई महिला सांसद नहीं
अगर इतिहास को खंगाला जाए तो यह स्पष्ट होता है कि 1952 से आज तक हुए लोक सभा चुनाव में मतदाताओं ने महिला प्रत्याशियों पर भरोसा नहीं जताया. चुनावी मैदान में कभी महिला उतरी भी तो लोक सभा चुनाव जीत नहीं सकी. पिछले लोक सभा चुनाव के मैदान में उतरी महिला प्रत्याशियों ने अपना दमखम दिखाया लेकिन वह जीत दर्ज नहीं कर सकी. सरकारी आकड़ों को देखा जाए तो मतदान करने में भी महिला मतदाताओं की भागीदारी अधिक रहती है. बावजूद वर्ष 1952 से अब तक हुए लोकसभा चुनाव में कोई भी महिला प्रत्याशी जीत कर सांसद नहीं बन सकी.
महिलाओं पर मतदाताओं को भरोसा नहीं
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक दल महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारने के प्रति गम्भीर नहीं रही. लेकिन वर्ष 2014 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस ने एक महिला ज्योति भारती को अपना प्रत्याशी बनाया था. इसी चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भी सुनीता कुमार को अपना प्रत्याशी बना कर मैदान में उतारा. मैदान में उतरी इन महिलाओं पर मतदाताओं ने अपना भरोसा नहीं जताया.
जमानत नहीं बचा पाती महिलाएं
इस चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी डॉ ज्योति भारती 191837 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहीं. जबकि सपा के प्रत्याशी सुनीता कुमार को 4586 वोट मिले. इनकी जमानत नहीं बच सकी. इनसे अधिक मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया. इस चुनाव में 17 हजार 841 नोटा का वोट पड़ा. हलांकि 2009 में हुए लोक सभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल ने महिला प्रत्याशी को चुनाव मैदान में नहीं उतारा. बावजूद महिला प्रत्यशियों ने अपने दम खम पर चुनावी मैदान में तीन महिला प्रत्याशी निर्दलीय चुनाव लड़ी. लेकिन किसी की जमानत नहीं बच सकी.
क्या कहते हैं स्थानीय मतदाता
हमारे संवाददाता ने मतदाताओं से जानने की कोशिश की कि 1952 से आज तक एक भी महिला सांसद क्यों नहीं बन सकी? जिसपर कई लोगों ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हमारे जिले में कई ऐसी महिला हैं जो जुझारू व कर्मठ हैं. लेकिन राजनीतिक पार्टियों ने उन महिलाओं को उचित सम्मान नहीं दिया. जिसके कारण कोई भी महिला आज तक सांसद नहीं बन सकी.
वहीं, यहां वर्चस्व की लड़ाई लड़ी जाती है. साथ ही स्थानीय मजबूत महिलाओं को चुनावी मैदान में खड़ा नहीं किया गया. 2014 में जो भी महिला प्रतयाशी खड़ी हुई वह बाहरी थी. जिसे हमारे जिले की जानकारी नहीं वो कैसे विकास कर सकती है. जिस कारण यहां के मतदाताओं ने वैसी महिलाओं को नकारा दिया था.