गोपालगंज: कुचायकोट विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पूर्व सांसद और लोजपा के राष्ट्रीय महासचिव काली पाण्डेय ने नामांकन पत्र दाखिल कर सबको चौंका दिया है. काली प्रसाद पाण्डेय अपने समर्थकों के साथ समाहरणालय पहुंचे और निर्वाची पदाधिकारी के समक्ष अपना पर्चा दाखिल किया.
चुनाव लड़ने की होड़
दूसरे चरण में होने वाले चुनाव को लेकर नेताओं में चुनाव लड़ने की होड़ लगी है. कब कौन नेता, किस पार्टी से चुनावी मैदान में कूद पड़े, कहा नहीं जा सकता है. ऐसे में अगर बात हो कुचायकोट विधानसभा की तो, यहां लोजपा के कद्दावर नेता काली पाण्डेय अचनाक लोजपा को झटका देते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्होंने कुचायकोट विधानसभा क्षेत्र से महागठबंधन की ओर से नामांकन किया है.
लोजपा के लिए बड़ा झटका
कांग्रेस से चुनाव लड़ने के फैसले ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है. काली प्रसाद पाण्डेय लोजपा के एक मजबूत स्तंभ माने जाते थे. इनका पार्टी छोड़ना लोजपा के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. यह लोजपा के केन्द्रीय चुनाव समिति के मेंबर भी थे. 2015 के चुनाव में काली प्रसाद पाण्डेय की हार हुई थी. इस बार भी लोजपा के एनडीए से अलग होने के बाद से ही कुचायकोट विधानसभा सीट से चर्चित काली पांडेय चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन लोजपा से टिकट नहीं मिलने के कारण वो कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में कूद पड़े.
कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में नामांकन
काली प्रसाद पाण्डेय समर्थकों के साथ समाहरणालय परिसर पहुंचे और उन्होंने कुचायकोट विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया. हालांकि लोजपा से इस्तीफा दिया है कि नहीं इसके बारे में काली पाण्डेय ने कुछ नहीं कहा है. नामांकन दाखिल करने के बाद वे अपने समर्थकों के साथ क्षेत्र में निकल गए.
कौन हैं काली प्रसाद पाण्डेय?
एक समय में काली प्रसाद पाण्डेय को बिहार के सारे बाहुबली गुरु मानते थे. इस बार विधानसभा चुनाव में कुचायकोट सीट से कांग्रेस के कैंडिडेट हैं. कहा जाता है कि 1987 में आई रामोजी राव की फिल्म 'प्रतिघात' में विलेन 'काली प्रसाद' का रोल उन्हीं पर बेस्ड था. नेताओं और अपराधियों की सांठगांठ पर आधारित इस फिल्म में काली प्रसाद का रोल साउथ के फेमस एक्टर चरण राज ने किया था.
बम से हमला करने का आरोप
काली प्रसाद पाण्डेय पर 1989 में अपने ही प्रतिद्वंद्वी नगीना राय पर बम से हमला करने का आरोप लगा था. काली पाण्डेय ने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत निर्दलीय के रूप में की थी. उन्होंने 1984 में गोपालगंज से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और निर्दलीय चुनाव जीत गए थे. 2003 में काली पाण्डेय लोजपा में शामिल हुए थे. तब से लेकर अब तक वो लोजपा के लिए काम करते रहे हैं.
लोजपा के राष्ट्रीय महासचिव
पिछले कई सालों से लोजपा के राष्ट्रीय महासचिव. उत्तरी बिहार में आज भी इनका खासा दबदबा है. सारण के सभी जिलों में ये काफी लोकप्रिय हैं. नामांकन के बाद उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मैंने अपना नामांकन कांग्रेस से किया है. जब 1989 में सभी ऑपोजिशन रिजाइन दे रहे थे, तब पहला ऐसा व्यक्ति था जो राजीव गांधी का साथ दिया. उनके मरने के बाद नेहरू परिवार सोनिया गांधी ने यह घोषणा कर दी कि अब राजनीत से कोई मतलब नहीं है. तो मैं रामविलास पासवान के साथ आया.
इस बार आखिरी चुनाव
उन्होंने कहा कि कुचायकोट विधानसभा के लिए प्रस्ताव आया और मैं मना नहीं कर सका. क्योंकि यहां की जनता की मांग पर आतंकवाद खत्म करने. क्षेत्र का विकास करने के लिए लोगों के भावनाओं को समझने के लिए नामांकन किया. जिंदगी का मेरा यह आखिरी चुनाव है. चिराग पासवान पर उन्होंने कहा कि नए नेतृत्व से मैं खुद को अलग रखता हूं.