गोपालगंज: गरीबी पर सियासत का खेल आज से नहीं वर्षों से किया जाता रहा है. लेकिन गरीबों की स्थिति जस की तस बनी रहती है. ऐसे में लाचार और मजबूर लोग सिर्फ अपने भाग्य को कोसने के सिवा और कुछ नहीं कर पाते हैं. जिले में कटाव से पीड़ित सैकड़ों लोग आज भी बांध को अपनी शरण स्थली बनाये हुए हैं. लेकिन इन पर प्रशासन की निगाहें नहीं पड़ती.
जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर बाबू बिशुनपुर के पास बने बांध पर करीब 10 वर्षों से सैकड़ों परिवार जीवन गुजर बसर कर रहा है. इन गरीबों का घर बाढ़ की चपेट में आने से ध्वस्त हो गया. तब से लेकर आज तक यह लोग इस बांध पर झोपड़ी बनाकर अपना जीवन यापन करते हैं. ठंड और बरसात की मौसम में इन्हें काफी परेशानी होती है.
सरकारी उदासीनता
पीड़ितों का कहना है कि बरसात के दिनों में झोपड़ी से पानी टपकता है, जिससे रहना मुश्किल हो जाता है. वहीं ठंड के दिनों में भी काफी परेशानी होती है. उन्होंने कहा कि बांध में आये दिन बच्चों के डूबने का खतरा बना रहता है. इनसब के बावजूद सरकार मौन है. किसी तरह की कोई मदद नहीं की जा रही है.
कटाव के कारण लाखों का नुकसान
एक ओर सरकार गरीबों को इंदिरा आवास योजना के तहत पक्के मकान देने का दावा पेश करती है लेकिन यह दावा खोखला साबित हो रहा है. गंडक नदी के कटाव में दर्जनो गांव के हजारों लोगों का कई एकड़ खेत और मकान ध्वस्त हो गया. लंबे समय से ये विस्थापित पुनर्वास की राह देख रहे हैं. लेकिन अबतक सरकार इनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाई है.
बीडीओ ने दिया आश्वासन
मामले पर प्रखण्ड विकास पदाधिकारी पंकज कुमार शक्तिधर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जो भूमिहिन है वे अपना आवेदन कर सकते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि बांध पर रहने वाले अधिकांश लोगों को कई सुविधाओं का लाभ दिया जाता है. जिन लोगों का राशन नहीं बना है या भूमि नहीं मिली है उन्हें जल्द ही उपलब्ध करा दिया जाएगा.
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करोड़ों की संपत्ति हुई थी नष्ट
बता दें कि साल 2010 में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद कटाव ने लोगों की जीना मुहाल कर दिया था. विभागीय आंकड़े बताते हैं कि गंडक के कटाव के कारण अकेले 1.56 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ था. इतना ही नहीं, कई पक्के व कच्चे मकानों को भी नुकसान हुआ. आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार कटाव के कारण 348 मकानों को क्षति पहुंची. इनमें 75 पक्के मकान पूर्ण रूप से ध्वस्त हुए. 156 9700 रुपये की फसल का नुकसान हुआ. वहीं 16 लाख रुपए मूल्य की सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा पहुंचा था.