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गोपालगंज: विस्थापितों को नहीं मिल रहा सरकारी योजना का लाभ, जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर

पीड़ितों का कहना है कि बरसात के दिनों में झोपड़ी से पानी टपकता है जिससे रहना मुश्किल हो जाता है. वहीं ठंड के दिनों में भी काफी परेशानी होती है. बांध में आये दिन बच्चों के डूबने का खतरा बना रहता है. इनसब के बावजूद सरकार मौन है. किसी तरह की कोई मदद नहीं की जा रही है.

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विस्थापितों को नहीं मिल रहा सरकारी योजना का लाभ
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Published : Dec 14, 2019, 12:26 PM IST

गोपालगंज: गरीबी पर सियासत का खेल आज से नहीं वर्षों से किया जाता रहा है. लेकिन गरीबों की स्थिति जस की तस बनी रहती है. ऐसे में लाचार और मजबूर लोग सिर्फ अपने भाग्य को कोसने के सिवा और कुछ नहीं कर पाते हैं. जिले में कटाव से पीड़ित सैकड़ों लोग आज भी बांध को अपनी शरण स्थली बनाये हुए हैं. लेकिन इन पर प्रशासन की निगाहें नहीं पड़ती.

जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर बाबू बिशुनपुर के पास बने बांध पर करीब 10 वर्षों से सैकड़ों परिवार जीवन गुजर बसर कर रहा है. इन गरीबों का घर बाढ़ की चपेट में आने से ध्वस्त हो गया. तब से लेकर आज तक यह लोग इस बांध पर झोपड़ी बनाकर अपना जीवन यापन करते हैं. ठंड और बरसात की मौसम में इन्हें काफी परेशानी होती है.

पेश है रिपोर्ट

सरकारी उदासीनता
पीड़ितों का कहना है कि बरसात के दिनों में झोपड़ी से पानी टपकता है, जिससे रहना मुश्किल हो जाता है. वहीं ठंड के दिनों में भी काफी परेशानी होती है. उन्होंने कहा कि बांध में आये दिन बच्चों के डूबने का खतरा बना रहता है. इनसब के बावजूद सरकार मौन है. किसी तरह की कोई मदद नहीं की जा रही है.

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विस्थापितों को नहीं मिल रहा सरकारी योजना का लाभ

कटाव के कारण लाखों का नुकसान
एक ओर सरकार गरीबों को इंदिरा आवास योजना के तहत पक्के मकान देने का दावा पेश करती है लेकिन यह दावा खोखला साबित हो रहा है. गंडक नदी के कटाव में दर्जनो गांव के हजारों लोगों का कई एकड़ खेत और मकान ध्वस्त हो गया. लंबे समय से ये विस्थापित पुनर्वास की राह देख रहे हैं. लेकिन अबतक सरकार इनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाई है.

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बांध पर झोपड़ी लगाकर गुजर-बसर कर रहे विस्थापित

बीडीओ ने दिया आश्वासन
मामले पर प्रखण्ड विकास पदाधिकारी पंकज कुमार शक्तिधर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जो भूमिहिन है वे अपना आवेदन कर सकते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि बांध पर रहने वाले अधिकांश लोगों को कई सुविधाओं का लाभ दिया जाता है. जिन लोगों का राशन नहीं बना है या भूमि नहीं मिली है उन्हें जल्द ही उपलब्ध करा दिया जाएगा.

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सरकार से मदद की आस

ये भी पढ़ें- नो सिंगल यूज प्लास्टिक : कचरे से निपटने के लिए नन्हें हाथ बना रहे रोबोट

करोड़ों की संपत्ति हुई थी नष्ट
बता दें कि साल 2010 में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद कटाव ने लोगों की जीना मुहाल कर दिया था. विभागीय आंकड़े बताते हैं कि गंडक के कटाव के कारण अकेले 1.56 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ था. इतना ही नहीं, कई पक्के व कच्चे मकानों को भी नुकसान हुआ. आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार कटाव के कारण 348 मकानों को क्षति पहुंची. इनमें 75 पक्के मकान पूर्ण रूप से ध्वस्त हुए. 156 9700 रुपये की फसल का नुकसान हुआ. वहीं 16 लाख रुपए मूल्य की सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा पहुंचा था.

गोपालगंज: गरीबी पर सियासत का खेल आज से नहीं वर्षों से किया जाता रहा है. लेकिन गरीबों की स्थिति जस की तस बनी रहती है. ऐसे में लाचार और मजबूर लोग सिर्फ अपने भाग्य को कोसने के सिवा और कुछ नहीं कर पाते हैं. जिले में कटाव से पीड़ित सैकड़ों लोग आज भी बांध को अपनी शरण स्थली बनाये हुए हैं. लेकिन इन पर प्रशासन की निगाहें नहीं पड़ती.

जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर बाबू बिशुनपुर के पास बने बांध पर करीब 10 वर्षों से सैकड़ों परिवार जीवन गुजर बसर कर रहा है. इन गरीबों का घर बाढ़ की चपेट में आने से ध्वस्त हो गया. तब से लेकर आज तक यह लोग इस बांध पर झोपड़ी बनाकर अपना जीवन यापन करते हैं. ठंड और बरसात की मौसम में इन्हें काफी परेशानी होती है.

पेश है रिपोर्ट

सरकारी उदासीनता
पीड़ितों का कहना है कि बरसात के दिनों में झोपड़ी से पानी टपकता है, जिससे रहना मुश्किल हो जाता है. वहीं ठंड के दिनों में भी काफी परेशानी होती है. उन्होंने कहा कि बांध में आये दिन बच्चों के डूबने का खतरा बना रहता है. इनसब के बावजूद सरकार मौन है. किसी तरह की कोई मदद नहीं की जा रही है.

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विस्थापितों को नहीं मिल रहा सरकारी योजना का लाभ

कटाव के कारण लाखों का नुकसान
एक ओर सरकार गरीबों को इंदिरा आवास योजना के तहत पक्के मकान देने का दावा पेश करती है लेकिन यह दावा खोखला साबित हो रहा है. गंडक नदी के कटाव में दर्जनो गांव के हजारों लोगों का कई एकड़ खेत और मकान ध्वस्त हो गया. लंबे समय से ये विस्थापित पुनर्वास की राह देख रहे हैं. लेकिन अबतक सरकार इनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाई है.

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बांध पर झोपड़ी लगाकर गुजर-बसर कर रहे विस्थापित

बीडीओ ने दिया आश्वासन
मामले पर प्रखण्ड विकास पदाधिकारी पंकज कुमार शक्तिधर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जो भूमिहिन है वे अपना आवेदन कर सकते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि बांध पर रहने वाले अधिकांश लोगों को कई सुविधाओं का लाभ दिया जाता है. जिन लोगों का राशन नहीं बना है या भूमि नहीं मिली है उन्हें जल्द ही उपलब्ध करा दिया जाएगा.

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सरकार से मदद की आस

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करोड़ों की संपत्ति हुई थी नष्ट
बता दें कि साल 2010 में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद कटाव ने लोगों की जीना मुहाल कर दिया था. विभागीय आंकड़े बताते हैं कि गंडक के कटाव के कारण अकेले 1.56 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ था. इतना ही नहीं, कई पक्के व कच्चे मकानों को भी नुकसान हुआ. आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार कटाव के कारण 348 मकानों को क्षति पहुंची. इनमें 75 पक्के मकान पूर्ण रूप से ध्वस्त हुए. 156 9700 रुपये की फसल का नुकसान हुआ. वहीं 16 लाख रुपए मूल्य की सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा पहुंचा था.

Intro:गरीबी पर सियासत का खेल आज से नहीं वर्षों से किया जाता रहा है। लेकिन गरीबों की स्थिति जस की तस बनी रहती है और नेता अपने कामयाबी पर सफल हो जाते हैं। ऐसे में लाचार व मजबूर गरीब सिर्फ अपने भाग्य को कोसने के सिवा और कुछ नहीं कर पाते हैं। कटाव से पीड़ित लोग आज भी सैकड़ो की संख्या में बांध को अपना शरण स्थली बनाये हुए है। लेकिन इन पर शासन और प्रशासन की निगाहें नही पड़ती। हलांकि पिछले वर्षों से गोपालगंज जिला में बाढ़ की समस्या उतपन्न नही हुई है।


Body:अगर बात करें गोपालगंज जिले की तो यहां बाढ़ की समस्या से गरीबों को हमेशा जूझना पड़ता है। हर वर्ष गंडक नदी के विनाशकारी उफान कई लोगों के घर को बेघर कर जाती है। फिर शुरू होता है दौड़ नेताओं द्वारा वादा करने का और गरीबी दूर करने , बाढ़ की समस्या से निजात दिलाने, पक्का मकान बनवाने समेत कई तरह के वादे करते हैं। लेकिन उन वादों को नेता कब भूल जाते है कोई नही जानता। ऐसे में यह लाचार गरीब उन नेताओं के राजनीति बातों में फंसकर अपना बहुमूल्य वोट देकर सत्ता तक पहुंच कर नेताओ के विकास तो करवा देते है परन्तु अपने विकास की राह देखने लगते है। जिला मुख्यालय गोपालगंज से 15 किलोमीटर दूर है बाबू बिशुनपुर के पास बने बांध पर करीब 10 वर्षों से सैकड़ों परिवार बांध के किनारे शरण लेकर जीवन गुजारने को बाध्य है। इन गरीबों का मकान विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आने से ध्वस्त हो गई थी तब से लेकर आज तक यह गरीब इस बांध को सहारा लेकर झोपड़ी बनाकर जीवन यापन करते हैं। इन गरीबों को आज तक पक्का मकान नसीब नहीं हो सका जिससे यह गरीब घर में ठंड और बरसात के समस्या से जूझते रहते हैं सरकार के द्वारा चल रही योजनाओं का लाभ इन गरीबो तक नही पहुँच है। एक ओर सरकार गरीबो को पीएम आवास योजना के तहत पक्के मकान देने की दावे पेश करती है लेकिन उनकी ये दावे इन गरीबो पर दम तोड़ती हुई नजर आती है। गंडक नदी के कटाव में दर्जनो गाँव के हजारों लोगों का कई एकड़ खेत, मकान ध्वस्त होकर गंडक नदी में विलीन हो गए थे जिसके बाद जो सम्पन्न लोग थे वे अपना अन्यत्र जगह घर बनाकर बस गए वही कुछ लोग पलायन कर गए तो कई ऐसे गरीब लोग है जो बांध के किनारे शरण लेकर झोपड़ी बनाकर जीवन यापन कर रहे है। इन परिवार के लोगो के दिन इस उम्मीद से कट रहे है कि उनके पुनर्वास की व्यवस्था होगी। लेकिन उनकी यह उम्मीद कब पूरी होगी इस बात की गारंटी नजर नहीं आती ।लंबे समय से विस्थापित परिवारों के लोग पुनर्वास की राह देख रहे हैं ।इनकी उम्मीदें पर सरकार और जिला प्रशासन खड़ा नहीं उतर सका है। कटाव पीड़ित परिवार की याद शासन को आती तो जरूर है लेकिन इसके साथ ही इनकी पीड़ा को प्रशासन स्तर पर भुला दिया जाता है। ऐसे में वर्षों से विस्थापन की राह देख रहे पीड़ित परिवारों के लिए लोग इस उम्मीद में जी रहे हैं की उन्हें सरकार पीड़ा से मुक्ति दिलाने की दिशा में कार्य करेगी।
वर्ष 2010 में आई विनाशकारी बाढ के बाद कटाव लोगों की जीना मुहाल कर दिया था। कटाव के कारण किसानों के अरमान पूरी तरह से ध्वस्त हो गए थे। विभागीय आंकड़े बताते हैं कि गंडक के कटाव के कारण अकेले 1. 56 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ इतना ही नहीं लाखों रुपए मूल्य के पक्के व कच्चे मकानों को भी नुकसान हुआ आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार कटाव के कारण 348 मकानों का क्षति पहुंची। इनमें 75 पक्के मकान पूर्ण रूप से ध्वस्त हुए। इनके अलावा 53 कच्चे मकान 10 पक्के मकान आंशिक तौर पर तथा 210 झोपड़ीयां पूर्ण रूप से ध्वस्त हुई। विभागीय आंकड़ों के अनुसार 156 9700 रुपये की फसल को नुकसान हुआ। इसके अलावा 4977000 मूल के मकान को भी नुकसान कटाव के कारण पहुंचा था। वही 16 लाख रुपए मूल्य की सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा पहुंचा था।

नदी में समाहित हुए गाँव

प्रखण्ड। प्रभावित परिवार। गाँव
कुचायकोट। 835 धर्मपुर, गम्हरिया, खरगौली,
बिशंभरपुर काला मटिहानिया
मांझा। 11 निमुईया, मुंगराहा,बुझी राउत के टोला
बरौली। 2000 कीनू राम का टोला, पकड़िया महोदीपुर, सिमरिया, सलेमपुर पश्चिम

सिधवलिया। 100 बंजरिया सलेमपुर
बैकुंठपुर। 800 अदमापुर ,खुमारीपुर, सलेमपुर शीतलपुर, पकाहा दियारा

वही कटाव पीड़ितों की हाल जानने जब ईटीवी भारत की टीम रिंग बांध पहुँचा तक कटाव से प्रभावित लोगों ने अपनी अपनी पीड़ा का बखान करते हुए कहा कि गंडक नदी के कटाव में पूरा सम्पति मकान जमीन सब बर्बाद हो गए। जान बचाकर हम लोग रिंग बांध पर शरण लिए है वर्षो बाद भी हम लोगो को नाही जमीन मुहैया कराई जा रही है और नाही राशन किरासन का लाभ ही मिल रहा है। इतना ही नही अब यहां रहने पर भी हमे यहां से जाने के लिए कहा जा रहा है अब जाए तो कहा जाए। सरकार सिर्फ गरीबो से वोट लेती है लेकिन गरीब किस हालत में है उसे उसको कोई मतलब नही है। वही इस संदर्भ में जब हमने प्रखण्ड विकास पदाधिकारी पंकज कुमार शक्तिधर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जो भूमि हिन है वे अपना।आवेदन कर सकते है। साथ ही उन्होंने कहा कि बांध पर रहने वाले अधिकांश लोगों को कई सुविधाओ का लाभ दिया जाता है। कुछ लोगो को राशन नही बना है और कुछ लोगो को भूमि नही मिली है उन्हें जल्द ही उपलब्ध करा दिया जाएगा।

बाइट-पंकज कुमार शक्तिधर,बीडीओ
बाइट-चंपा देवी गुलाबी साड़ी
बाइट -अम्बिका मुसहर ,गोंद में बच्चा लिए
बाइट-उर्मिला देवी, शॉल ओढ़े हुए
बाइट-सतन मुसहर पिला पकड़ी बांधे
बाइट-मुस्तफा, उजला सर्ट




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