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गोपालगंज: 150 साल पुराने इस पेड़ पर सालों से हो रहा रिसर्च, 6 डिग्री कम रहता है तापमान

इतिहासकार प्रोफेसर संजय पांडेय की मानें तो महिला अंग्रेज हेलेन ने इस पेड़ को संरक्षित किया था. अंग्रेजों के जमाने में यहां निलहा कोठी हुआ करता था. अंग्रेज नील की खेती किया करते थे. इस पेड़ के सामने अंग्रेजों की हवेली का खंडहर हुआ करता था जो अब दूर दूर तक नहीं दिखाई देता. लेकिन यह विशाल वटवृक्ष आज भी वैसे ही खड़ा है.

150 साल पुराना पेड़
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Published : Sep 17, 2019, 8:52 AM IST

Updated : Sep 17, 2019, 12:52 PM IST

गोपालगंज: कहते हैं कि कुदरत ने कई ऐसी चीजें दी है जो आज भी हमें सोचने पर मजबूर कर देता है. कुछ इसी तरह की वाक्या जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर दिघवा दुबौली पंचायत के राजापट्टी गांव की है जहां 150 साल पुराना बरगद का पेड़ लोगों के बीच कौतूहल का विषय बना हुआ है.

इस वट वृक्ष की करीब 200 भुजाएं हैं जो करीब एक बीघे जमीन में फैला हुआ है. आश्चर्य की बात यह है कि इस वृक्ष की मुख्य तना के बारे में आजतक किसी को पता नहीं. कोई नहीं जानता कि इसकी मुख्य तना कौन सी है. इसकी एक-एक भुजाओं ने मुख्य तना का रूप ले लिया है. इस वजह से यह एक घनघोर जंगल बन गया है.

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150 साल पुराना है ये पेड़

पेड़ देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग
इस पेड़ को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं. आस-पास के लोग गर्मी के दिनों में सुकून पाने के लिए यहां समय बिताते है. इतना ही नहीं, कई ऐसी संस्थाएं हैं जो इस वृक्ष पर रिसर्च कर चुकी है.बताया जाता है कि इस पेड़ को अंग्रेजों ने संरक्षित किया था. इस पेड़ की खासियत यह है कि यहां तापमान अन्य जगहों से 5 से 6 डिग्री कम रहता है.

पेश है रिपोर्ट

पेड़ के नीचे तापमान रहता है कम
गर्मी के दिनों में चलने वाली गर्म हवाएं इस पेड़ की छाया में बहुत ठंडी हो जाती है. इस पेड़ की शाखाएं एक दूसरे से लिपटकर जमीन में अपनी मोटी जड़े जमा चुकी हैं. पर्यावरणविद और विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. विवेकानंद के मुताबिक ऐसे पेड़ को अक्षय वट कहते हैं. इसका बॉटनिकल नाम फाइकस वेन्धालेंसिस है. यह कार्बन डाइऑक्साइड सोखती है. अधिक मात्रा में कार्बन अवशोषित करने के चलते हैं यह ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करता है. ऐसे पुराने पेड़ जितने ज्यादा घने और ज्यादा शाखाएं होती है, वह नमी और ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करता है. यही कारण है कि जब बाहर का तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच हो तो इसकी छाया में पारा 30 से 35 डिग्री रहता है.

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यहां 6 डिग्री कम रहता है तापमान

सरकार से पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की मांग
इतिहासकार प्रोफेसर संजय पांडेय के मानें तो महिला अंग्रेज हेलेन द्वारा इसे संरक्षित किया गया था. अंग्रेजों के जमाने में यहां निलहा कोठी हुआ करता था. अंग्रेज नील की खेती किया करते थे. इस पेड़ के सामने अंग्रेजों की हवेली का खंडहर हुआ करता था जो अब दूर दूर तक नहीं दिखाई देता. लेकिन यह विशाल वटवृक्ष आज भी वैसे ही खड़ा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर सरकार इसपर ध्यान दे दें तो यह एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो सकता है.

गोपालगंज: कहते हैं कि कुदरत ने कई ऐसी चीजें दी है जो आज भी हमें सोचने पर मजबूर कर देता है. कुछ इसी तरह की वाक्या जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर दिघवा दुबौली पंचायत के राजापट्टी गांव की है जहां 150 साल पुराना बरगद का पेड़ लोगों के बीच कौतूहल का विषय बना हुआ है.

इस वट वृक्ष की करीब 200 भुजाएं हैं जो करीब एक बीघे जमीन में फैला हुआ है. आश्चर्य की बात यह है कि इस वृक्ष की मुख्य तना के बारे में आजतक किसी को पता नहीं. कोई नहीं जानता कि इसकी मुख्य तना कौन सी है. इसकी एक-एक भुजाओं ने मुख्य तना का रूप ले लिया है. इस वजह से यह एक घनघोर जंगल बन गया है.

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150 साल पुराना है ये पेड़

पेड़ देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग
इस पेड़ को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं. आस-पास के लोग गर्मी के दिनों में सुकून पाने के लिए यहां समय बिताते है. इतना ही नहीं, कई ऐसी संस्थाएं हैं जो इस वृक्ष पर रिसर्च कर चुकी है.बताया जाता है कि इस पेड़ को अंग्रेजों ने संरक्षित किया था. इस पेड़ की खासियत यह है कि यहां तापमान अन्य जगहों से 5 से 6 डिग्री कम रहता है.

पेश है रिपोर्ट

पेड़ के नीचे तापमान रहता है कम
गर्मी के दिनों में चलने वाली गर्म हवाएं इस पेड़ की छाया में बहुत ठंडी हो जाती है. इस पेड़ की शाखाएं एक दूसरे से लिपटकर जमीन में अपनी मोटी जड़े जमा चुकी हैं. पर्यावरणविद और विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. विवेकानंद के मुताबिक ऐसे पेड़ को अक्षय वट कहते हैं. इसका बॉटनिकल नाम फाइकस वेन्धालेंसिस है. यह कार्बन डाइऑक्साइड सोखती है. अधिक मात्रा में कार्बन अवशोषित करने के चलते हैं यह ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करता है. ऐसे पुराने पेड़ जितने ज्यादा घने और ज्यादा शाखाएं होती है, वह नमी और ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करता है. यही कारण है कि जब बाहर का तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच हो तो इसकी छाया में पारा 30 से 35 डिग्री रहता है.

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यहां 6 डिग्री कम रहता है तापमान

सरकार से पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की मांग
इतिहासकार प्रोफेसर संजय पांडेय के मानें तो महिला अंग्रेज हेलेन द्वारा इसे संरक्षित किया गया था. अंग्रेजों के जमाने में यहां निलहा कोठी हुआ करता था. अंग्रेज नील की खेती किया करते थे. इस पेड़ के सामने अंग्रेजों की हवेली का खंडहर हुआ करता था जो अब दूर दूर तक नहीं दिखाई देता. लेकिन यह विशाल वटवृक्ष आज भी वैसे ही खड़ा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर सरकार इसपर ध्यान दे दें तो यह एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो सकता है.

Intro:
कहते हैं कुदरत कई ऐसे चीजें हमें प्रदान किए जो आज भी हमे सोचने पर मजबूर कर देता है। कुछ इसी तरह का वाक्या गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर दिघवा दुबौली पंचायत के राजापट्टी गांव की है। जहां 150 वर्षों वाला बरगद पेड़ के लोगो के बीच कौतूहल का विषय बना हुआ।








Body:इस बट वृक्ष की करीब 200 भुजाएं है जो करीब एक बीघे में फैला हुआ है। आश्चर्य की बात यह है कि इस वृक्ष के मुख्य तना के बारे में कोई पता नही लगा सका कि इसकी मुख्य तना कौन सी है। इसकी एक-एक भुजाएं मुख्य तना का रूप ले लिया। जिसके वजह से यह एक घनघोर जंगल बन गया है। इस पेड़ को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। आस पास के लोग गर्मी के दिनों में सुकून पाने के लिए यहां समय बिताते है। इतना ही नहीं इस पर कई ऐसे संस्थाएं भी जो रीसर्च कर चुके हैं। बताया जाता है कि इस पेड़ को अंग्रेजों ने संरक्षित किया था। इस पेड़ की खासियत यह है कि यहां तापमान अन्य जगहों से 5 से 6 डिग्री कम रहता है। गर्मी के दिनों में चलने वाली गर्म हवाएं इसकी छाया में बहुत ठंडी हो जाती है। इस पेड़ की शाखाएं एक दूसरे से गुथकर जमीन में अपनी मोटी जड़े जमा चुकी है। पर्यावरणविद और विज्ञान के प्रोफेसर डॉ विवेकानंद के मुताबिक ऐसे पेड़ को अक्षय वट करते हैं। इसका बॉटनिकल नाम फाइकस वेन्धालेंसिस है। यह कार्बन डाइऑक्साइड सोखती है। अधिक मात्रा में कार्बन अवशोषित करने के चलते हैं यह ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करता है। ऐसे पुराने पेड़ जितना ज्यादा घने और ज्यादा शाखाएं होती है वह नमी और ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करती है। यही कारण है कि जब बाहर का तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच हो तो इसकी छाया में पारा 30 से 35 डिग्री रहता है।।इतिहासकार प्रोफेसर संजय पांडेय के माने तो महिला अंग्रेज हेलेन द्वारा इसे संरक्षित किया गया था। यहां निलहा कोठी हुआ करता था अंग्रेज नील की खेती किया करते थे। इस पेड़ के सामने अंग्रेजों की हवेली का खंडहर हुआ करता था जो अब दूर दूर तक नहीं दिखाई देता। लेकिन यह विशाल वटवृक्ष आज भी वैसे ही खड़ा है। स्थानीय लोगो के माने तो इसपर सरकार अगर ध्यान देती हो यह एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो सकता था।


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Last Updated : Sep 17, 2019, 12:52 PM IST
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