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सुन लो सरकार, बच्ची रही पुकार- मैं मरना नहीं चाहती, मुझे जीना है, मुझे बचा लीजिए

गोपालगंज में कई गंभीर रोगों से पीड़ित मासूम सविता अपनी जान की भीख मांग रही है. टूटी चारपाई पर लेटी सविता का कहना है कि मैं जीना चाहती हूं, मैं मरना नहीं चाहती. मुझे पढ़ना है.

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Published : Jun 30, 2019, 8:26 PM IST

गोपालगंज: देश में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा तो केंद्र सरकार ने बुलंद कर रखा है. लेकिन जमीन पर कई मासूम बेटियां जिंदा रहते हुए भी पल-पल मर रही हैं. गोपालगंज जिले में ऐसी ही एक मासूम बीमार बेटी अपनी जान की भीख मांग रही है. वो जीना चाहती है. पढ़ना चाहती है. मगर गरीबी के बोझ तले ना तो उसका इलाज हो पा रहा है और ना ही कोई मदद को आगे आ रहा है.

पूरा मामला जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित माझा प्रखंड के मधु सरेया गांव का है. यहां 13 वर्षीय सविता गंभीर बीमारियों की चपेट में है. लीवर में सूजन और ज्वाइंडिस का शिकार सविता के शरीर की हालत देखने में किसी कुपोषण पीड़ित बच्ची की तरह दिखती है. सविता से बात करने पर उसके मुंह से सिर्फ एक ही लफ्ज निकलता है कि वो जीना चाहती है.

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चरपाई पर पड़ी बीमार मासूम

6 साल की उम्र में खो चुकी है बाप का साया
सविता पूरे दिन टूटी चारपाई पर ही लेटी रहती है. वहीं, घर की माली हालत बेहद खराब है. सविता जब 6 साल की थी, तब ही उसके पिता की मौत हो गई थी. बता दें कि सविता की मां भी बेहद कमजोर हैं. मां ने अपनी बेबसी बताते हुए कहा कि वो दूसरों के खेतों में मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रही हैं. इस मजदूरी में उनको दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं होती है. फिर बेटी के इलाज कैसे करवाया जाए.

जीने की गुहार लगाती सविता

नहीं मिली बुनियादी सुविधाएं
टूटी दिवारें, कच्चा घर और कहने को घास-फूस की छत. ऊपर से बीमारी का बोझ. कुछ यही दर्दनाक बेबसी सबकुछ बयां करने के लिए काफी है. मां के पास इतने रुपये नहीं है कि वो बेटी का इलाज करवा सकें. वहीं, सरकार की किसी भी आवासीय योजना के तहत इनका ना तो पक्का मकान बना और ना ही इन्हें कोई सरकारी सुविधा का लाभ मिला. इसके चलते आज सविता बिस्तर पर है.

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गरीबी के आंसू

मुखिया जी बोले- जांच करूंगा
पूरे हालातों के बारे में जब ईटीवी भारत संवाददाता ने गांव के मुखिया से बात की. मुखिया उमाशंकर के मुताबिक उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है. ना ही कोई उनके पास फरियाद लेकर आया. वहीं, उन्होंने जांच के मदद करने की बात कही है.

मसीहा का इंतजार
ईटीवी भारत के संवाददाता ने अपने स्तर से पीड़ित बेटी सविता की मुमकिन मदद की है. वहीं, सविता को अभी भी उस मसीहा का इंतजार है, जो उसका इलाज करवा सके. उसे जीवनदान दे सके. गरीबी की मार झेल रहे इस परिवार को सीएम नीतीश कुमार से आर्थिक मदद की आस है.

गोपालगंज: देश में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा तो केंद्र सरकार ने बुलंद कर रखा है. लेकिन जमीन पर कई मासूम बेटियां जिंदा रहते हुए भी पल-पल मर रही हैं. गोपालगंज जिले में ऐसी ही एक मासूम बीमार बेटी अपनी जान की भीख मांग रही है. वो जीना चाहती है. पढ़ना चाहती है. मगर गरीबी के बोझ तले ना तो उसका इलाज हो पा रहा है और ना ही कोई मदद को आगे आ रहा है.

पूरा मामला जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित माझा प्रखंड के मधु सरेया गांव का है. यहां 13 वर्षीय सविता गंभीर बीमारियों की चपेट में है. लीवर में सूजन और ज्वाइंडिस का शिकार सविता के शरीर की हालत देखने में किसी कुपोषण पीड़ित बच्ची की तरह दिखती है. सविता से बात करने पर उसके मुंह से सिर्फ एक ही लफ्ज निकलता है कि वो जीना चाहती है.

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चरपाई पर पड़ी बीमार मासूम

6 साल की उम्र में खो चुकी है बाप का साया
सविता पूरे दिन टूटी चारपाई पर ही लेटी रहती है. वहीं, घर की माली हालत बेहद खराब है. सविता जब 6 साल की थी, तब ही उसके पिता की मौत हो गई थी. बता दें कि सविता की मां भी बेहद कमजोर हैं. मां ने अपनी बेबसी बताते हुए कहा कि वो दूसरों के खेतों में मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रही हैं. इस मजदूरी में उनको दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं होती है. फिर बेटी के इलाज कैसे करवाया जाए.

जीने की गुहार लगाती सविता

नहीं मिली बुनियादी सुविधाएं
टूटी दिवारें, कच्चा घर और कहने को घास-फूस की छत. ऊपर से बीमारी का बोझ. कुछ यही दर्दनाक बेबसी सबकुछ बयां करने के लिए काफी है. मां के पास इतने रुपये नहीं है कि वो बेटी का इलाज करवा सकें. वहीं, सरकार की किसी भी आवासीय योजना के तहत इनका ना तो पक्का मकान बना और ना ही इन्हें कोई सरकारी सुविधा का लाभ मिला. इसके चलते आज सविता बिस्तर पर है.

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गरीबी के आंसू

मुखिया जी बोले- जांच करूंगा
पूरे हालातों के बारे में जब ईटीवी भारत संवाददाता ने गांव के मुखिया से बात की. मुखिया उमाशंकर के मुताबिक उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है. ना ही कोई उनके पास फरियाद लेकर आया. वहीं, उन्होंने जांच के मदद करने की बात कही है.

मसीहा का इंतजार
ईटीवी भारत के संवाददाता ने अपने स्तर से पीड़ित बेटी सविता की मुमकिन मदद की है. वहीं, सविता को अभी भी उस मसीहा का इंतजार है, जो उसका इलाज करवा सके. उसे जीवनदान दे सके. गरीबी की मार झेल रहे इस परिवार को सीएम नीतीश कुमार से आर्थिक मदद की आस है.

Intro:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेटी को सशक्त बनाने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा दिया है। वही सुबह के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बेटियों के लिए कई तरह की योजनाएं चला रखी है ताकि बेटियों का हिफाजत किया जा सके। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज भी ऐसे बेटियां है जो जिंदगी और मौत से जूझ रही है,आज भी वह पढ़ना व खेलना चाहती है। लेकिन वह नाही पढ़ सकती है और नाही खेल सकती है सिर्फ चारपाई पर लेट कर किसी मसीहा का इंतजार कर रही है, जो आकर उसे नई जिंदगी दे सके।


Body:हम बात कर रहे है जिले के गोपालगंज मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर माझा प्रखंड के मधु सरेया गांव की जहां सबिता नाम की 13 वर्षीय बच्ची जिंदगी और मौत से जूझ रही है इस बच्ची के लिवर में सूजन और जॉन्डिस हो गई है। जिससे यह बच्ची सिर्फ चारपाई पर ही लेटी रहती है। इस बच्ची के सिर से पिता बिगन सहनी का साया 7 वर्ष पहले ही उठ गया। बूढ़ी मां जिउति देवी भी अपने बच्ची सबिता को बचाने के लिए दर दर की ठोकर खा रही है। अपने सात बच्चो का परवरिश लोगो से की मदद से व दुसरो के खेतों में मजदूरी करके करती है। करीब 5 माह से इस बीमारी से जूझ रही सबिता के माँ जिउती के पास उतने पैसे नही है कि अपनी बेटी का इलाज किसी अच्छे डॉक्टर से करा सके। लेकिन अपनी बेटी की जिंदगी बचाने के लिए आखिरी उम्मीद लोगों से लगाई है। यह बेटी भी आम आदमी की तरह जीना चाहती है इसके मन में भी कई अरमान है भविष्य के सपने बुन रही है। पर एक झोपड़ी के सामने पड़ी टूटी चारपाई पर यह बच्ची जीना चाहती है लेकिन उसकी व उसकी माँ की अब उम्मीदे जवाब दे दी कि। इस संदर्भ में जब हमने उसे बच्ची से बात बात की तो उसका सिर्फ एक ही कहना था मुझे जीना है मै मरना नही चाहती हु मेरे इलाज के लिए पैसे नही है जिससे इलाज करा सकू। वही उसकी माँ जिउती देवी का कहना है कि मेरी बेटी रोज रोज कहती है कि माँ मुझे जीना है मुझे जिला दो लेकिन मैं कैसे जिलाउ मेरे पास उतने पैसे नही है कि मैं उसका इलाज करा सकू। डॉक्टरों ने पटना और गोरखपुर इलाज कराने की सलाह दी है। इलाज में करीब 20 हजार रुपये खर्च होंगे इतने पैसे कहा से लाऊ। किसी तरह मेहनत मजदूरी कर के परिवार का भरणपोषण करती हूं। पति की मौत 7 वर्ष पहले शराब के सेवन करने से हो गई तब से लेकर आज तक पूरे परिवार की जिम्मेदारी जिउती के ऊपर पड़ गई। जिउती को अपने बेटी को देख कर आंसू बहाने के सिवा और कोई रास्ता नही है उसे नाही आज तक उसे पीएम आवास योजना का लाभ ही मिल सका और नाही आयुष्मान भारत का इस संदर्भ में जब गाँव के मुखिया उमाशंकर राम से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में मुझे कोई जानकारी नही है। नाही ताभि तक कोई मिलने आया है पहले पता लगाऊंगा जांच पड़ताल करूँगा तब कुछ किया जाएगा।


Conclusion:अब ऐसे में आखरी उम्मीद लोगों से लगाई है कि कौन वह मशीहा है जो आगे बढ़ इलाज कराकर उसे नई जिंदगी दे सके। जिसका उसे तालाश है बेबस व लाचार माँ भी लोगों से फरियाद कर रही है । लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या प्रधानमंत्री द्वारा दिये गए नारा बेटी बचाव बेटी पढ़ाव इस बच्ची पर कारगर साबित होगा या ये पैसे के आभाव में जिंदगी की जंग हार जाएगी।
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