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अपने हुनर से महिलाएं बन रहीं स्वावलंबी, दूसरों को भी दे रही रोजगार

गया के इकबालनगर की महिलाएं घर में ही हुनर से कमाई कर मिसाल कायम कर रही हैं. इसके साथ ही मोहल्ले के एक हजार परिवार लहठी बनाने का काम कर रहे हैं. इकबालनगर की लहठी दूसरे जिलों सहित और कई राज्यो में निर्यात की जाती है.

कंगन बनाती महिलाएं और बच्चे
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Published : Feb 8, 2019, 7:50 PM IST

गया: जिले के इकबालनगर मोहल्ले की महिलाएं घर बैठे ही अपने हुनर से कमाई कर रही हैं. वे आस-पास के इलाकों में बसे एक हजार परिवारों को रोजगार मुहैया करवा रही हैं. ये महिलाएं कंगन बनाने का काम कर रही हैं. इकबालनगर की लहठी बिहार के विभिन्न जिलों सहित और दूसरे राज्यो में निर्यात की जाती है.

घर के बच्चे भी देते हैं साथ

पांच साल पहले इस मोहल्ले में अगरबत्ती बनाने का काम किया जाता था. मशीनरी आने से अगरबत्ती का काम बन्द हो गया. इसके बाद महिलाएं लहठी बनाने में जुट गयीं. घर के बच्चे भी हुनर सीख कर इस काम में अपने बड़ों का साथ देते हैं.

घर बैठे महिलाएं कमा रही पैसे

मोहल्ले में एक हजार परिवार इस काम से जुड़ा हुआ है. महिलाएं हर दिन लगभग 10 से 12 बंडल लहठी बना लेती है. अपने हुनर से घर बैठे कई परिवार रोजाना 200 से 500 रुपया तक कमा रहे हैं. महिलाओं द्वारा बनाई गई लहठी पटना, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, धनबाद कर अलावा उत्तरप्रदेश मे भी भेजी जाती हैं.

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सरकार से ध्यान देने की अपील

फैक्ट्री के मालिक के मुताबिक एक छोटी फैक्ट्री से 50 कारीगर जुड़े हैं. सभी घर बैठे रोजगार कमा रहे हैं. सरकार इस और ध्यान दे तो बड़े पैमाने पर ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा.

गया: जिले के इकबालनगर मोहल्ले की महिलाएं घर बैठे ही अपने हुनर से कमाई कर रही हैं. वे आस-पास के इलाकों में बसे एक हजार परिवारों को रोजगार मुहैया करवा रही हैं. ये महिलाएं कंगन बनाने का काम कर रही हैं. इकबालनगर की लहठी बिहार के विभिन्न जिलों सहित और दूसरे राज्यो में निर्यात की जाती है.

घर के बच्चे भी देते हैं साथ

पांच साल पहले इस मोहल्ले में अगरबत्ती बनाने का काम किया जाता था. मशीनरी आने से अगरबत्ती का काम बन्द हो गया. इसके बाद महिलाएं लहठी बनाने में जुट गयीं. घर के बच्चे भी हुनर सीख कर इस काम में अपने बड़ों का साथ देते हैं.

घर बैठे महिलाएं कमा रही पैसे

मोहल्ले में एक हजार परिवार इस काम से जुड़ा हुआ है. महिलाएं हर दिन लगभग 10 से 12 बंडल लहठी बना लेती है. अपने हुनर से घर बैठे कई परिवार रोजाना 200 से 500 रुपया तक कमा रहे हैं. महिलाओं द्वारा बनाई गई लहठी पटना, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, धनबाद कर अलावा उत्तरप्रदेश मे भी भेजी जाती हैं.

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सरकार से ध्यान देने की अपील

फैक्ट्री के मालिक के मुताबिक एक छोटी फैक्ट्री से 50 कारीगर जुड़े हैं. सभी घर बैठे रोजगार कमा रहे हैं. सरकार इस और ध्यान दे तो बड़े पैमाने पर ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा.

Intro:गया शहर के इकबालनगर मोहल्ले की महिलाएं घर मे ही हुनर से कमाई कर मिसाल कायम कर रही है। मोहल्ले के एक हजार परिवार लहठी बनाने का काम कर रहा है। इकबालनगर के लहठी बिहार के जिले सहित और दूसरे राज्यो में निर्यात किया जा रहा है।


Body:शादी में दुल्हन के हाथो में चूड़ी के साथ लहठी सजी रहती है। हिन्दू धर्म मे शादी के कई महीनों तक चूड़ी के साथ लहठी पहना पड़ता है तो सिख धर्म मे पूरे एक साल तक चूड़ी के साथ लहठी पहना पड़ता है। मुस्लिम समुदाय में ईद और शादी के मौके पर अब महिलाएं लहठी पहनती है। समय के साथ बाला और लहठी में फैशन दौर आ गया है। गया शहर से पहले गया पटना रोड पर इकबालनगर मोहल्ला में मुस्लिम महिलाएं लहठी को बना रही है।
मोहल्ले के घर घर मे लहठी बनाया जाता है। इसमें घर की महिला सबसे ज्यादा रहती है। अपने हुनर से घर बैठे हजारो परिवार हर रोज 200 से 500 रुपया तक कमा रहा है।

पांच साल पहले इस मोहल्ले में अगरबत्ती बनाने का धंधा चलता था। घर घर महिलाएं अगरबत्ती बनाती थी। मशीनरी आने से अगरबत्ती का धंधा बन्द हुआ तो महिलाएं लहठी बनाने लगी। हालांकि लहठी बनाना मुश्किल काम है फिर भी महिलाएं इस कार्य मे लगी रहती है। घर के बच्चे भी हुनर को सिख कर लहठी बना रहे हैं। स्कूल से आने के बाद कुछ देर घर के बच्चे भी साथ दे देते हैं।मोहल्ले एक हजार परिवार जुड़ा हुआ है। हर दिन करीब 10 से 12 बंडल लहठी बना लेती है।

मुहल्ले कई छोटे कारखाना हैं जहां लहठी के सामग्री बनाया जाता है। प्लास्टिक लहठी पर गोद लगाना, डिजाइन तैयार करना, पैकिंग करना और बाजार तक पहुचाने का काम फेक्ट्री के ठेकेदार करता है। मोहल्ले के महिलाएं गोंद लगी लहठी पर डिजाइन अनुसार नग, तार, सितारा लगाती हैं। इसके बदले प्रति बंडल उनको मेहताना मिलता हैं।

महिलाओं द्वारा बनाई गई लहठी पटना, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, धनबाद कर अलावा उत्तरप्रदेश मे भेजी जाती हैं।




Conclusion:लहठी उधोग से जुड़ी महिला बताती है पहले अगरबत्ती बनाते थे अगरबत्ती के धंधा बन्द होने के बाद लहठी बनाने लगे। एक दूसरे को देखकर लहठी बनाना सीख गए। हर रोज 200 सर ज्यादा कर कमाई कर लेते हैं। पूरे मोहल्ले के महिलाएं इसे जुड़ी हैं। अगरबत्ती बनाने में हाथ भी गंदा हो जाता था । अगरबत्ती सब लोग नही बना सकता है। ये घर कर सभी लोग अपना समय निकालकर बना लेते हैं। पहले किराया के मकान में रहते थे अब अपना मकान हो गया है।

फैक्ट्री के मालिक ने बताया के मेरे छोटे से फैक्ट्री से 50 महिला पुरुष जुड़ी हैं। सबको घर बैठे रोजगार मिल जा रहा है तो सभी काम कर रहे हैं। सरकार इस और ध्यान दे तो ज्यादा लोगो को रोजगार मिलेगा। पूंजी की कमी और लहठी कम दाम में बिकने से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं।
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