गया : भगवान भास्कर को छठ पूजा में जिस सूप से अर्ध्य दिया जाता है, उस सूप को बनाने वाले तुरी जाति के लोग दिन-रात काम कर रहे हैं. आमतौर पर जंगलों में बसने वाले तुरी समुदाय के लोग पारंपरिक तौर पर बांस से सूप और दउरा बनाते हैं. हालांकि उनकी आमदनी कम हुई है, लेकिन छठ जैसे महापर्व को लेकर इसकी महत्ता को देखते हुए तकरीबन हर तुरी परिवार सूप और दउरा के निर्माण में जुटा हुआ है. यहां के बने सूप पूरे बिहार में जाता है.
जंगलों के बीच बसता है तुरी समाज : आमतौर पर तुरी परिवार के लोग जंगलों के बीच बसते हैं. जंगली बांस से तुरी परिवार का रिश्ता पारंपरिक तौर पर है. तुरी समाज ही पूर्ण रूप से बांस के सामान बनाते रहे हैं. उनके दादा -परदादा, पूर्वज की बात करें तो यह उनकी विरासत है. वे बांस से सूप और दउरा व अन्य सामान बनाते हैं. हालांकि, अब उनकी आमदनी थोड़ी कम हुई है, लेकिन छठ जैसे महापर्व को देखते हुए हर तुरी परिवार सूप का निर्माण कर रहा है. गया में हाहेसाड़ी पतलूका में तुरी समाज के लोग सूप व दउरा बनाने में जुटे हुए हैं.
बांस के सूप से दिया जाता है भगवान भास्कर को अर्ध्य: बांस के सूप से ही भगवान भास्कर को अर्ध्य दिया जाता है. ऐसे में बांंस के सूप की डिमांड छठ में बढ़ जाती है. लोक आस्था के महापर्व छठ को देखते हुए तुरी परिवार के लोग दिन-रात एक कर डिमांड को पूरा करने में लगे हुए हैं. बांस की कमी गया के जंगलों में होने या वन विभाग की रोक के कारण सूप और दउरा का निर्माण अब मुश्किल साबित हो रहा है. क्योंकि बांस लाने के लिए इन्हें अब झारखंड राज्य का सहारा लेना पड़ता है.
झारखंड से लाते हैं बांस : झारखंड के इसरी समेत अन्य इलाकों में जाकर गया का तुरी परिवार बांस खरीदकर ला रहा है और उसके बाद ही सूप और दउरा के निर्माण में लगा है. लोकल में गया के कुछ इलाकों में जंगली बांस मिलते हैं, लेकिन उन पर वन विभाग की रोक है. ऐसे में गिने-चुने स्थान और गिने चुने बांस ही तुरी परिवार को मिल पाते हैं. इस कारण मजबूरी में बांस की खरीदारी झारखंड से करते हैं. छठ पर्व की महता को देखते हुए कम आमद के बावजूद भी यह तुरी परिवार सूप दउरा के निर्माण कार्य में जुड़ा हुआ है.
"बांस बहुत दूर से जाकर लाना पड़ता है. इसके बाद भी पुलिस पकड़ लेता है. यहां आसपास बांस नहीं मिलता है. हमलोग का काम मुख्य रूप से टोकरी, मौनी बनाने का है. अभी छठ है तो सूप और दउरा बना रहे हैं."- सुखदेव तुरी, कारीगर
मनरेगा के तहत नहीं लगाया बांस : तुरी परिवार के लोग बताते हैं, कि मनरेगा के तहत बांस लगाने की मांग की थी. प्रतिनिधियों ने आश्वासन दिया था कि वह अपने घरों के आसपास में बांस मनरेगा के तहत लगा सकते हैं, लेकिन प्रतिनिधियों ने फिर छलावा कर दिया. तुरी परिवार के घरों के आसपास कोई बांस की खेती नहीं की गई गई. प्रतिनिधियों और पदाधिकारी के उपेक्षित रवैए के कारण तुरी समाज बांस से वंचित हो रहा है और अब यही कारण है कि उन्हें झारखंड से बांस ऊंची कीमतों पर लाना पड़ रहा है.
नहीं मिल रही अच्छी कीमत : तुरी समाज के सुखदेव तुरी, सावित्री तुरी, द्वारिका तुरी बताते हैं कि छठ पर्व को लेकर लगातार डिमांड आ रहे हैं. सूप और दउरा की मांग काफी बढ़ गई है. स्टॉक नहीं हो पा रहा है. अब तक कई हजार पीस सप्लाई की जा चुकी है. अभी और भी डिमांड आ रहा है. इनका कहना है कि यदि हमें गया में ही बांस मिल जाता, तो इस छठ पर्व में अच्छी खासी आमदनी होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब झारखंड से बांस लाने की मजबूरी है. फिर भी छठ पर्व को देखते हुए वे झारखंड से बांस लाकर सूप और दउरा बना रहे हैं.
"हमलोग का पूर्वज से ही यह काम विरासत में मिला है. हमलोगों को कोई रोजगार नहीं है, इसलिए यह काम करते हैं. बांस नहीं मिलता है, इसलिए हजारीबाग और बरही से जाकर बांस लेकर आना पड़ता है. आसपास अगर बांस लगा दिया जाता है तो हमलोग को सहूलियत हो जाता. अभी छठ पूजा को लेकर सूप दउरा बना रहे हैं. फिर भी अच्छी कीमत नहीं मिलता है."- सावित्री तुरी
तुरी समाज पर किसी का ध्यान नहीं : तुरी समाज का कहना है कि चुनाव के समय चाहे वह मुखिया का चुनाव हो या अन्य चुनाव हो, लोग आते हैं और हाथ जोड़ते हैं, लेकिन जीतते ही सब कुछ भूल जाते हैं. हमलोगों की आर्थिक स्थिति आज तक नहीं बदल पाई, क्योंकि किसी ने भी हमारे बारे में नहीं सोचा. यदि सिर्फ बांस की खेती ही करवा देते, तो हमारी तरक्की हो जाती, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. तुरी समाज के लोग बताते हैं, कि अभी छठ पर्व को लेकर हम लोग आस्था पूर्वक सूप और दउरा का निर्माण कर रहे हैं और यह काम लगातार चल रहा है.
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