गया : बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले में लाखों तीर्थ यात्रियों का आगमन और प्रस्थान हुआ है. इसके बीच पितृपक्ष मेले के 15 वें दिन आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को फल्गु स्थान करके दूध का तर्पण करने का विधान है. वहीं, इस दिन गायत्री, सावित्री और सरस्वती तीर्थ पर क्रमश: प्रातः, मध्यान्ह और सायं स्नान करना चाहिए. वहीं, सरस्वती तीर्थ पर स्नान कर संध्या करना चाहिए. पितृपक्ष मेले के 15वें दिन यानी आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को पितृ दिवाली भी मनाई जाती है. पितृ दिवाली से पितरों के स्वर्ग जाने का रास्ता खुल जाता है.
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आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को फल्गु समेत इन तीर्थ पर स्नान का विधान : आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को फल्गु स्नान करने का विधान है. फल्गु स्थान करके पितरों के निमित्त दूध का तर्पण करना चाहिए. त्रैपाक्षिक श्राद्ध करने को पहुंचे तीर्थयात्रियों के लिए तिथि के अनुसार आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को फल्गु में स्नान करके दूध का तर्पण करना चाहिए. वहीं, गायत्री, सावित्री तथा सरस्वती तीर्थ पर क्रमश: प्रातः, मध्यान्ह और सायं स्नान करना चाहिए.
गायत्री, सावित्री तथा सरस्वती तीर्थ पर करें स्नान : विष्णुपद मंदिर से आधा मील दूर उत्तर फल्गु किनारे गायत्री घाट है. गायत्री घाट के ऊपर गायत्री देवी माता का मंदिर है. इसके उत्तर लक्ष्मी नारायण मंदिर है और वहीं पास में बभनी घाट तथा फलविश्वर शिव मंदिर है. उसके दक्षिण गयादित्य नामक सूर्य की चतुर्भुज मूर्ति मंदिर में है. इसी तरह ब्रह्मयोनी पर्वत के नीचे दो पक्के कुंड हैं, जिन्हें सरस्वती एवं सावित्री कुंड कहा जाता है. यहीं पर सरस्वती मंदिर भी है. सरस्वती कुंड का जल स्वच्छ रहता है. आश्विन कृष्ण त्रयोदशी तिथि को फल्गु स्नान कर दूध का तर्पण करने और गायत्री, सावित्री तथा सरस्वती तीर्थ पर प्रातः मध्यान्ह सायं का स्नान करके संध्या करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
आज यमराज अपना लोक खाली कर सभी को मनुष्य लोक भेज देते हैं : आश्विन कृष्ण त्रयोदशी की तिथि को लेकर बड़ी मान्यता है, कि इस तिथि को यमराज अपना लोक खाली कर देते हैं और अपना लोक खाली कर सभी को मनुष्य लोक को भेज देते हैं. कहा जाता है कि मनुष्य लोक में आने के बाद प्रेत पितर अपने वंश से दूध या इससे बनी सामग्री की कामना करते हैं. इस दिन का विधान है, कि दूध से तर्पण करने के बाद यमलोक से मनुष्य लोक को आए प्रेत पितर तर्पण किया दूध को ग्रहण कर लेते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. इससे वे स्वर्ग लोक में चले जाते हैं. मान्यता है कि इसी को लेकर इस तिथि को फल्गु में स्नान करके पिंड दानी को दूध का तर्पण करना चाहिए.
पितृ दीपावली, भगवान श्री गदाधर के दर्शन कर दीपदान करें : इस तिथि को पितृ दिवाली मनाई जाती है. भगवान श्री गदाधर के दर्शन कर दीपदान करना चाहिए. पितृ दिवाली को पितरों के नाम से उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस दिन पिंडदानी अपने पितरों के दीप की कतारे लगाते हैं और पितरों को स्वर्ग जाने की कामना करते हैं. मान्यता है कि दीपदान से पितरों के स्वर्ग जाने का प्रकाश मिलता है और रास्ता खुल जाता है. पितृ दीपावली को पिंडदानी पितरों के उत्सव के रूप में इसे मनाते हैं. दीपदान के रूप में पिंडदानी के द्वारा स्वास्तिक, ओम, भगवान विष्णु रूप को बनाया जाता है, इन रूपों को बनाकर उसे दीप रखकर सुशोभित किया जाता है. इस तरह दीपदान करने से पितरों को आत्म शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और उनके स्वर्ग जाने का मार्ग खुल जाता है.
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