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गया: युद्ध में इस्तेमाल किए गए गोलियों के खोखे से बना अनोखा स्तूप, अमन-चैन का देता है संदेश - अहिंसा की सामग्री

वर्षों के लड़ाई में उपयोग किये गए कारतूस से बनाया गया ये स्तूप अनोखा है. यह स्तूप सन्देश दे रहा है कि युद्ध में उपयोग किया गया शस्त्र भी पूजा का सामान बन सकता है.

गया में स्थित शांति स्तूप
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Published : Aug 27, 2019, 11:30 PM IST

गया: बोध गया, जिसे ज्ञान की भूमि कहते हैं. ये शहर अपने आप में शांति का संदेश देता है. यूं तो यहां अनेक शांति स्तूप हैं. लेकिन जिले के महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के परिसर में निर्मित यह स्तूप अपने आप में अनोखा है.

बता दें कि, महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया में स्थित यह स्तूप युद्ध में इस्तेमाल किए गए गोलियों से बनाया गया है. जो कि समाज में अमन-चैन का संदेश दे रहा है. देश-विदेश से लोग इसके दर्शन के लिए आते हैं.

शांति स्तूप बोध गया

युद्ध की सामग्री से बना यह स्तूप
करीब 23 वर्षों तक श्रीलंका सरकार और लिट्टे समूह के बीच युद्ध चला था. इस युद्ध में इस्तेमाल किये गए गोलियों के खोके और अन्य सामानों से इस स्तूप का निर्माण किया गया है. इस तरह के दो स्तूप बनाए गए थे. एक स्तूप को बोधगया के श्रीलंकाई बौद्ध मंदिर तो वहीं दूसरे को श्रीलंका के बौद्ध मंदिर में रखा गया है. श्रीलंका से आये बौद्ध अनुयायी और पर्यटक इस स्तूप को देखने बोधगया जरूर आते हैं.

क्या कहते हैं सोसायटी के लोग...
महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया से जुड़े कैलाश प्रसाद बताते हैं कि बौद्ध धर्म से जुड़ा हर स्तूप पूजनीय है. इस स्तूप का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि यह युद्ध में इस्तेमाल किये गए कारतूस के खोखे से बनाया गया है. इस स्तूप को स्थापित करने के पीछे का सन्देश यह है कि लोग हिंसा का मार्ग छोड़कर शांति के मार्ग पर चलें और सुखद जीवन जिएं.

गया: बोध गया, जिसे ज्ञान की भूमि कहते हैं. ये शहर अपने आप में शांति का संदेश देता है. यूं तो यहां अनेक शांति स्तूप हैं. लेकिन जिले के महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के परिसर में निर्मित यह स्तूप अपने आप में अनोखा है.

बता दें कि, महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया में स्थित यह स्तूप युद्ध में इस्तेमाल किए गए गोलियों से बनाया गया है. जो कि समाज में अमन-चैन का संदेश दे रहा है. देश-विदेश से लोग इसके दर्शन के लिए आते हैं.

शांति स्तूप बोध गया

युद्ध की सामग्री से बना यह स्तूप
करीब 23 वर्षों तक श्रीलंका सरकार और लिट्टे समूह के बीच युद्ध चला था. इस युद्ध में इस्तेमाल किये गए गोलियों के खोके और अन्य सामानों से इस स्तूप का निर्माण किया गया है. इस तरह के दो स्तूप बनाए गए थे. एक स्तूप को बोधगया के श्रीलंकाई बौद्ध मंदिर तो वहीं दूसरे को श्रीलंका के बौद्ध मंदिर में रखा गया है. श्रीलंका से आये बौद्ध अनुयायी और पर्यटक इस स्तूप को देखने बोधगया जरूर आते हैं.

क्या कहते हैं सोसायटी के लोग...
महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया से जुड़े कैलाश प्रसाद बताते हैं कि बौद्ध धर्म से जुड़ा हर स्तूप पूजनीय है. इस स्तूप का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि यह युद्ध में इस्तेमाल किये गए कारतूस के खोखे से बनाया गया है. इस स्तूप को स्थापित करने के पीछे का सन्देश यह है कि लोग हिंसा का मार्ग छोड़कर शांति के मार्ग पर चलें और सुखद जीवन जिएं.

Intro:गया का बोधगया जिसे ज्ञान की भूमि कहते हैं। जहां गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बुद्ध का मार्ग अहिंसा और शांति का है। बोधगया के महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के परिसर में एक स्तूप विश्व मे शांति का संदेश दे रहा है। 23 वर्षो तक श्रीलंका सरकार और लिट्टे द्वारा युध्द में इस्तेमाल किये गए गोली के खोके से इस स्तूप को बनाया गया।


Body:श्रीलंका में लिट्टे से हुई सबसे लंबी गृह युद्ध 1976 से वर्ष 2009 तक में प्रयोग किए गए कारतूस के खोखे से बनाई गई है बुद्ध स्तूप, ये स्तूप शांति का प्रतीक बना है यह स्तूप बोधगया के श्रीलंकाई बौद्ध मंदिर में रखा गया है । इस तरह का दो स्तूप बनाए गए थे, एक स्तूप श्रीलंका के बौद्ध मंदिर में और दूसरे स्तूप को बोधगया के श्रीलंकाई बौद्ध मंदिर में रखा गया है। श्रीलंका से आये बौद्ध अनुयायी और पर्यटक इस स्तूप को देखने जरूर आते हैं।

श्रलंका सरकार और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के साथ 1974 से 2009 तक 23 वर्ष चलने चलने वाले सबसे बड़े युद्ध का गवाह ये स्तूप श्रीलंका बौद्ध मठ मे शांति का प्रतीक चिन्ह के रूप में रखा हुआ है। 23 वर्षों तक लिट्टे के साथ चले युद्ध में उपयोग में लाए गए गोली के खाली पर खोखे को एकत्र कर स्तूप का निर्माण किया गया है।


बोधगया के महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया से जुड़े कैलाश प्रसाद बताते हैं बौद्ध धर्म से जुड़ा हर स्तूप पूजनीय हैं। ये स्तूप श्रीलंका सरकार के द्वारा लगाया गया है। इस स्तूप का महत्व इसलिए ज्यादा है ये स्तूप युद्ध मे इस्तेमाल किये गए कारतूस के खोखे से बनाया गया है। इस स्तूप को स्थापित करने के पीछे सन्देश हैं हिंसा का मार्ग छोड़कर शांति का वातावरण विश्व मे बना रहे।


प्रिये पाल भंते बताते हैं ये स्तूप विश्व मे शांति का संदेश दे रहा है। 23 वर्षो के लड़ाई में उपयोग किये गए कारतूस से बनाया गया ये स्तूप ये भी सन्देश देता है युद्ध मे उपयोग किया गया सामग्री भी पूजा का सामान बन सकता है।




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