गयाः जिले की बीथोशरीफ दरगाह हिंदू-मुस्लिम आस्था का केंद्र है. गया-पटना मुख्य मार्ग पर स्थित गांव बीथो शरीफ में हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह अलेह की दरगाह है. इस दरगाह पर हिन्दू-मुस्लिम सभी हाजरी लगाने आते हैं. यहां आने वाले लोग जिन्न, भूत-प्रेत, जादू-टोना और लाइलाज बीमारी से पीड़ित होते हैं.
एक साथ रहते हैं हिंदू-मुस्लिम
हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश अशरफ रहमतुल्लाह अलेह का मजार 750 साल पुराना है. इस दरगाह की ख्याति बहुत दूर तक है. लोगों की आस्था है कि लाइलाज बीमारी के मरीज बाबा के दरगाह पर हाजरी देते हैं और कुछ दिनों में वो स्वस्थ हो जाते हैं. इस दरगाह पर हिन्दू-मुस्लिम एक समान इबादत करते दिखते हैं.
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700 साल पुरानी है दरगाह
खादिम बताते हैं कि ये दरगाह 700 साल पुरानी है. हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह साहेब ईरान मुल्क से आए थे. उन्होंने तीन बार पैदल हज किया था. उनकी दुआओं से यहां के राजा की इकलौती पागल बेटी ठीक हो गयी थी. राजा ने खुश होकर उन्हें तोहफे में जायदाद देना चाहा. उन्होंने राजा का तोहफा स्वीकार नहीं किया. बाद में राजा की छठी पीढ़ी ने 1100 बीघा जमीन दान में दिया था.
दूर-दूर से आते हैं लोग
बीथो शरीफ का नाम पहले बैतहू शरीफ था. इस दरगाह शरीफ में बाबा के मजार के साथ उनके परिजन का मजार भी है. देश के कोने-कोने से भूत-शैतानी शक्तियों से पीड़ित और पागलपन के शिकार लोग एक बार यहां जरूर आते हैं. यहां हिन्दू-मुस्लिम एक समान रहते हैं. बाबा की अदालत का समय शाम पांच बजे शुरू होता है. मजार शरीफ प्रवेश करते ही पीड़ितों की आवाज कानों में सुनाई पड़ती है जो पीड़ित बाबा के मजार के सामने हाजिरी लगाते हैं.
स्वस्थ होते हैं मरीज
बाबा के मजार पर हाजिरी लगाने की लिए कुछ रुपया देकर दाखिला लेना पड़ता है. पीड़ित बाबा से गुहार लगाते हैं कि मेरे ऊपर जो शैतानी शक्तियां आ गई हैं उसे निकाले. इसके लिए कई दिन रहकर मजार शरीफ पर हाजिरी लगानी पड़ती है. ऐसे कई पीड़ितों के परिजन मिले, जिन्होंने बताया कि यहां आने से मेरा मरीज स्वस्थ हुआ है. रमजान के इस पाक माह में बाबा का आशीर्वाद ज्यादा से ज्यादा लोगो को प्राप्त होता है। जुम्मा और ईद के अवसर पर विशेष आयोजन होता है. यहां बाबा के भक्तों की अपार भीड़ लगी रहती है.