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700 सालों से हिन्दू-मुस्लिम एक साथ इस दरगाह पर जाकर करते हैं समस्या का समाधान - gaya

लाइलाज बीमारी के मरीज बाबा के दरगाह पर हाजरी देता हैं और कुछ ही दिनों में वो स्वस्थ हो जाते  हैं. ये दरगाह 700 साल पुरानी है.

बीथोशरीफ दरगाह पर पहुंचे लोग
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Published : May 21, 2019, 1:59 PM IST

गयाः जिले की बीथोशरीफ दरगाह हिंदू-मुस्लिम आस्था का केंद्र है. गया-पटना मुख्य मार्ग पर स्थित गांव बीथो शरीफ में हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह अलेह की दरगाह है. इस दरगाह पर हिन्दू-मुस्लिम सभी हाजरी लगाने आते हैं. यहां आने वाले लोग जिन्न, भूत-प्रेत, जादू-टोना और लाइलाज बीमारी से पीड़ित होते हैं.

एक साथ रहते हैं हिंदू-मुस्लिम
हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश अशरफ रहमतुल्लाह अलेह का मजार 750 साल पुराना है. इस दरगाह की ख्याति बहुत दूर तक है. लोगों की आस्था है कि लाइलाज बीमारी के मरीज बाबा के दरगाह पर हाजरी देते हैं और कुछ दिनों में वो स्वस्थ हो जाते हैं. इस दरगाह पर हिन्दू-मुस्लिम एक समान इबादत करते दिखते हैं.

mazar
बाबा की दरगाह

700 साल पुरानी है दरगाह
खादिम बताते हैं कि ये दरगाह 700 साल पुरानी है. हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह साहेब ईरान मुल्क से आए थे. उन्होंने तीन बार पैदल हज किया था. उनकी दुआओं से यहां के राजा की इकलौती पागल बेटी ठीक हो गयी थी. राजा ने खुश होकर उन्हें तोहफे में जायदाद देना चाहा. उन्होंने राजा का तोहफा स्वीकार नहीं किया. बाद में राजा की छठी पीढ़ी ने 1100 बीघा जमीन दान में दिया था.

दूर-दूर से आते हैं लोग
बीथो शरीफ का नाम पहले बैतहू शरीफ था. इस दरगाह शरीफ में बाबा के मजार के साथ उनके परिजन का मजार भी है. देश के कोने-कोने से भूत-शैतानी शक्तियों से पीड़ित और पागलपन के शिकार लोग एक बार यहां जरूर आते हैं. यहां हिन्दू-मुस्लिम एक समान रहते हैं. बाबा की अदालत का समय शाम पांच बजे शुरू होता है. मजार शरीफ प्रवेश करते ही पीड़ितों की आवाज कानों में सुनाई पड़ती है जो पीड़ित बाबा के मजार के सामने हाजिरी लगाते हैं.

बीथोशरीफ दरगाह और जानकारी देता खादिम

स्वस्थ होते हैं मरीज
बाबा के मजार पर हाजिरी लगाने की लिए कुछ रुपया देकर दाखिला लेना पड़ता है. पीड़ित बाबा से गुहार लगाते हैं कि मेरे ऊपर जो शैतानी शक्तियां आ गई हैं उसे निकाले. इसके लिए कई दिन रहकर मजार शरीफ पर हाजिरी लगानी पड़ती है. ऐसे कई पीड़ितों के परिजन मिले, जिन्होंने बताया कि यहां आने से मेरा मरीज स्वस्थ हुआ है. रमजान के इस पाक माह में बाबा का आशीर्वाद ज्यादा से ज्यादा लोगो को प्राप्त होता है। जुम्मा और ईद के अवसर पर विशेष आयोजन होता है. यहां बाबा के भक्तों की अपार भीड़ लगी रहती है.

गयाः जिले की बीथोशरीफ दरगाह हिंदू-मुस्लिम आस्था का केंद्र है. गया-पटना मुख्य मार्ग पर स्थित गांव बीथो शरीफ में हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह अलेह की दरगाह है. इस दरगाह पर हिन्दू-मुस्लिम सभी हाजरी लगाने आते हैं. यहां आने वाले लोग जिन्न, भूत-प्रेत, जादू-टोना और लाइलाज बीमारी से पीड़ित होते हैं.

एक साथ रहते हैं हिंदू-मुस्लिम
हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश अशरफ रहमतुल्लाह अलेह का मजार 750 साल पुराना है. इस दरगाह की ख्याति बहुत दूर तक है. लोगों की आस्था है कि लाइलाज बीमारी के मरीज बाबा के दरगाह पर हाजरी देते हैं और कुछ दिनों में वो स्वस्थ हो जाते हैं. इस दरगाह पर हिन्दू-मुस्लिम एक समान इबादत करते दिखते हैं.

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बाबा की दरगाह

700 साल पुरानी है दरगाह
खादिम बताते हैं कि ये दरगाह 700 साल पुरानी है. हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह साहेब ईरान मुल्क से आए थे. उन्होंने तीन बार पैदल हज किया था. उनकी दुआओं से यहां के राजा की इकलौती पागल बेटी ठीक हो गयी थी. राजा ने खुश होकर उन्हें तोहफे में जायदाद देना चाहा. उन्होंने राजा का तोहफा स्वीकार नहीं किया. बाद में राजा की छठी पीढ़ी ने 1100 बीघा जमीन दान में दिया था.

दूर-दूर से आते हैं लोग
बीथो शरीफ का नाम पहले बैतहू शरीफ था. इस दरगाह शरीफ में बाबा के मजार के साथ उनके परिजन का मजार भी है. देश के कोने-कोने से भूत-शैतानी शक्तियों से पीड़ित और पागलपन के शिकार लोग एक बार यहां जरूर आते हैं. यहां हिन्दू-मुस्लिम एक समान रहते हैं. बाबा की अदालत का समय शाम पांच बजे शुरू होता है. मजार शरीफ प्रवेश करते ही पीड़ितों की आवाज कानों में सुनाई पड़ती है जो पीड़ित बाबा के मजार के सामने हाजिरी लगाते हैं.

बीथोशरीफ दरगाह और जानकारी देता खादिम

स्वस्थ होते हैं मरीज
बाबा के मजार पर हाजिरी लगाने की लिए कुछ रुपया देकर दाखिला लेना पड़ता है. पीड़ित बाबा से गुहार लगाते हैं कि मेरे ऊपर जो शैतानी शक्तियां आ गई हैं उसे निकाले. इसके लिए कई दिन रहकर मजार शरीफ पर हाजिरी लगानी पड़ती है. ऐसे कई पीड़ितों के परिजन मिले, जिन्होंने बताया कि यहां आने से मेरा मरीज स्वस्थ हुआ है. रमजान के इस पाक माह में बाबा का आशीर्वाद ज्यादा से ज्यादा लोगो को प्राप्त होता है। जुम्मा और ईद के अवसर पर विशेष आयोजन होता है. यहां बाबा के भक्तों की अपार भीड़ लगी रहती है.

Intro:हिंदू -मुस्लिम के आस्था का केंद्र गया के बीथोशरीफ दरगाह है।गया-पटना मुख्य मार्ग पर स्थित एक गाँव बीथो शरीफ में हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह अलेह का दरगाह है। इस दरगाह पर हिन्दू - मुस्लिम का आस्था है। जिन्न,भूत-प्रेत,जादू-टोना,डायन-ओझा, लाइलाज आदि से पीड़ित लोग बाबा के मजार हाजिर लगाते हैं।


Body:हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश अशरफ रहमतुल्लाह अलेह का मजार 750 साल पुराने इस दरगाह की ख्याति बहुत दूर तक है। लोगो का आस्था हैं लाइलाज बीमारी के मरीज बाबा के दरगाह पर हाजरी देता है कुछ दिनों में वो स्वस्थ होने लगता हैं। इस दरगाह पर हिन्दू- मुस्लिम एक समान इबादत करते दिखते हैं।

दरगाह के खादिम बताते हैं ये दरगाह 700 साल पुरानी हैं। हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह साहेब ईराक मुल्क से यहां आए थे। हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह अलेह तीन बार पैदल हज किया था। उनकी दुआओं से यहां के राजा की इकलौती पागल बेटी ठीक हो गयी थी। राजा ने खुश होकर उन्हें तोहफे में जायदाद देना चाहा। उन्होंने राजा का तोहफा स्वीकार नही किया था। बाद में राजा की छठी पीढ़ी ने 1100 बीघा जमीन दान में दिया था। बीथो शरीफ का नाम पहले बैतहू शरीफ था। इस दरगाह शरीफ में बाबा के मजार के साथ उनके परिजन का मजार है। देश के कोने कोने से भूत-शैतानी शक्तियों से पीड़ित और जिसका पागलपन ठीक नही हो रहा है। वो एक बार यहां जरूर आते हैं। यहाँ हिन्दू मुस्लिम एक समान रहते हैं।

बाबा के अदालत का समय शाम पांच बजे शुरुआत होता हैं।मजार शरीफ प्रवेश करते ही पीड़ितों की आवाज आपकी कानो में सुनाई पड़ता है। पीड़ित बाबा के मजार के सामने हाजिरी लगाते हैं। बाबा के मजार पर हाजिरी लगाने की लिए कुछ रुपया देकर दाखिला लेना पड़ता है। पीड़ित द्वारा बाबा के गुहार लगाते हैं मेरे ऊपर जो शैतानी शक्तियां आ गयी उसे निकाले। इसके लिए कई दिन रहकर मजार शरीफ पर हाजिर लगाना पड़ता है। ऐसे कई पीडितो के परिजन मिले जिन्होंने बताया यहां आने से मेरे मरीज स्वस्थ हुआ है।

रमजान के इस पाक माह में बाबा का आशीर्वाद ज्यादा से ज्यादा लोगो को प्राप्त होता है। जुम्मा और ईद के अवसर पर विशेष आयोजन होता है। बाबा के भक्तों का अपार भीड़ लगा रहता है।


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