गया: मोक्ष की नगरी कहे जाने वाले गया की भौगोलिक स्थिति पहाड़ी है. यहां अधिकांश गांव पहाड़ों से घिरे हुए हैं. वहीं, माउंटेन मैन मांझी ने इन्हीं पहाड़ों से जंग लड़ इतिहास के पन्नों में अपने प्यार को अमर कर दिया. अब वही इतिहास के पन्ने एक बार फिर इस जिले के एक सैनिक ने पलटे हैं. रिटायर सैनिक ने पहाड़ काटकर सड़क का निर्माण किया है.
दशरथ मांझी के प्रेम पथ से पांच किलोमीटर दूर अतरी प्रखंड के चिरियावां गांव में रहने वाले रिटायर सैनिक महेंद्र सिंह ने पहाड़ को तोड़कर सड़क बनाई है. रिटायर सैनिक ने पहाड़ काट अपने गांव के लोगों इससे बंधन मुक्त कर दिया है.
राह नहीं पर अब रोड़े भी नहीं
पहाड़ को देखकर हम कितने रोमांचित होते हैं. लालसा रहती है, इन पहाड़ों के बीच बस जाएं. लेकिन पहाड़ों के बीच रहना आनंदमय नहीं होता. गया के लोग इसे बेहतर से जानते हैं. चार दशक पहले दशरथ मांझी के लिए ये पहाड़ अभिशाप बनकर सामने आए थे. पहाड़ की वजह से उनकी पत्नी की मौत हो गई थी, तब से 22 वर्षो तक पत्नी के प्यार में दशरथ मांझी पहाड़ तोड़ते रहे. आज उनका बनाया गया मार्ग लोगों के लिए मिसाल बना हुआ है. दशरथ मांझी के गहलौर घाटी से पांच किलोमीटर दूर अतरी प्रखंड के चिरियावां गांव के रिटायर्ड सैनिक ने भी पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया. हालांकि रास्ता कच्चा है. अब लोगों की जान बच रही है. आने-जाने के लिए सुगम तो नहीं पर राह बन गयी है.
फौजियों का गांव
फौजियों का गांव कहलाने वाला चिरियावां गांव बुनियादी सुविधा के लिए तरस रहा है. इस गांव से वर्तमान में 100 से ज्यादा युवा सैना में कार्यरत हैं. दर्जनों लोग रिटायर्ड सैनिक हैं. रिटायर्ड सैनिक महेंद्र सिंह ने गांव वालों को आने जाने के रास्ता बना दिया है. गांव पहाड़ों की तलहटी से घिरा हुआ है. सुविधा के नाम दम तोड़ती हुई एक पानी की बोरिंग है और सौभाग्य योजना के तहत बिजली पहुंची हुई है.
सरकार का नहीं मिला साथ, तो खुद कर लिया विकास
पहाड़ो के घिरे गांव मे आने-जाने का दिक्कत होती है. साइकिल से भी लोग गांव नहीं जा सकते थे. पहाड़ चढ़कर जाना और आना होता था. कितने लोगों का जान भी जा चुके हैं. लोग इसी आस में थे सरकार कोई व्यवस्था कर दे. लेकिन सरकार ने कोई व्यवस्था नहीं की. सरकारी दरवाजों पर दस्तक देने के बाद सड़क नहीं बनी तो रिटायर्ड सैनिक ने घर से कुदाल, खंती लेकर पहाड़ तोड़ना शुरू कर दिया. रिटायर सैनिक का साथ पूरे गांव ने दिया. किसी ने धन दान किया, तो किसी ने श्रम दान कर उनकी मदद की. आज तीन महीने में महेंद्र ने पहाड़ काट रास्ता बना दिया है.
क्या कहते हैं महेंद्र
रिटायर्ड सैनिक महेंद्र सिंह ने बताया एक दिन बाजार से आ रहे थे, तब वो पहाड़ से फिसल गए. उनके पैर में चोट लग गयी. उसी दिन उन्हीं सोचा अब रास्ता बनाना ही पड़ेगा. अगले सुबह ही उन्होंने पहाड़ तोड़ रास्ता बनाने की ठान ली. लोग हंसने लगे और कहने लगे. अरे ये क्या करने लगे तुम. ये पहाड़ हम लोग से कटेगा भला.
गांव के युवाओं का साथ
महेंद्र ने बताया कि पहले गांव के युवा आगे आए. आये फिर धीरे-धीरे पूरा गांव आगे आया. तीन माह में पहाड़ को 6 फिट काटकर आने जाने के लिए सड़क बन गया. इस सड़क को लेकर हम लोगों ने प्रधानमंत्री तक को चिट्ठी लिख दी है. सभी लोगों के पास गए हैं. अभी तक ये सड़क पक्की नहीं बन सकी है. लोगो को बरसात के दिनों में ज्यादा दिक्कत होती है.
तो क्या चुनाव बाद बन जाएगी सड़क?
समाजसेवी पंकज सिंह ने बताया मेरे चाचा ने शुरुआत की. फिर पूरे गांव के लोग इस पहाड़ को तोड़कर रास्ता बनाने में लग गए. ये रास्ता आने-जाने के लिए सुगम मार्ग नहीं है. इसके पक्कीकरण को लेकर कई बार हमने पत्र लिखा गया और ज्ञापन सौंपा है. उम्मीद है कि चुनाव बाद इसमें काम लग जायेगा. पूरी कागजी करवाई हो चुकी है.
माउंटेन मैन पार्टी-2
अब देखना होगा कि क्या वास्तव में रिटायर सैनिक महेंद्र सिंह की उम्मीदों पर और मेहनत पर सरकार पक्का रास्ता बना उन्हें सलाम करेगी. या माउंटेन मैन-टू बने महेंद्र सिंह दशरथ मांझी की तरह सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहेंगे और गांव वाले उनके कच्चे मार्ग से आवागमन.