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कभी उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को नक्सलियों से बचाया था, आज मदद की लगाए बैठा है आस - नक्सली घटनाएं

फरवरी 2005 में बाराचट्टी प्रखंड के पड़रिया गांव में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का हेलीकॉप्टर इमरजेंसी लैंडिंग हुआ था. ग्रामीण राजेन्द्र साव ने वेंकैया नायडू को सुरक्षित लालगढ़ क्षेत्र से निकालकर बाराचट्टी थाना तक पहुंचाया था. आज वह गुमनामी और गरीबी की जिंदगी जी रहा है.

राजेंद्र साव
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Published : Feb 6, 2019, 7:41 AM IST

गया: जिले का बाराचट्टी लाल गढ़ से जाना जाता था. बात फरवरी 2005 में बाराचट्टी प्रखंड के पड़रिया गांव की है. एक निवासी ने बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को नक्सलियों के मुंह से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था. आज वह शख्स गुमनामी और गरीबी की जिंदगी जी रहा है.

राजेंद्र साव का बयान
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2005 के साल में गया नक्सली घटनाओं के कारण सुर्खियों में रहता था. आए दिन नक्सलियों और पुलिस में मुठभेड़ होती रहती थी. उन दिनों बिहार में विकास की जगह खून की गंगा बहने लगी थी. इसी बीच तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष वेंकैया नायडू फरवरी में चुनाव प्रचार के लिए झारखंड के तन्डवा जा रहे थे.

बीच रास्ते में फंसा था हेलीकॉप्टर
इस दौरान वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के हेलीकॉप्टर का ईंधन खत्म हो गया. यह इलाका पूरी तरह से नक्सलियों का गढ़ बाराचट्टी प्रखंड का पड़रिया गांव था. ईंधन की कमी के कारण आनन-फानन में वेंकैया नायडू को इमरजेंसी लैंडिंग करना पड़ा.

मदद को सामने आया भीड़ से एक शख्स
इस घने देहात इलाके में किसी को कुछ पता नहीं था. धीरे-धीरे लोगों के कानों तक खबरें गईं और भीड़ इकट्टा होने लगी. इस बीच राजेंद्र साव नाम का शख्स सामने आया और उस मुसीबत की घड़ी में उनका साथ दिया. राजेंद्र साव बताते हैं कि तब मैंने नई बाइक खरीदी थी. मैंने उन्हें अपनी बाइक पर बैठाया और लालगढ़ क्षेत्र से सुरक्षित बाराचट्टी थाने पहुंचाया.

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नक्सलियों की नाक के नीचे से हुआ फरार
राजेंद्र साव आगे बताते हैं कि जिस वक्त वैंकेया नायडू का हेलीकॉप्टर लैंड किया उस वक्त नक्सली पास के जंगल में बैठक कर रहे थे. इससे पहले कि वह वैंकेया जी को कुछ नुकसान पहुंचाते उनके सूचना पाने से पहले ही राजेंद्र उन्हें वहां से सुरक्षित लेकर निकल गए. बाद में सूचना मिलते ही हथियारबंद नक्सलियों ने हेलीकॉप्टर पर धावा बोल दिया और पेट्रोल बम से उड़ा दिया.

नहीं पता था बाइक पर बैठे हैं वेंकैया नायडू
राजेन्द्र जब मोटरसाइकिल से वेंकैया नायडू को लेकर जा रहे थे उनको नहीं पता किसको बैठाकर ले जा रहे हैं. बीच रास्ते में वेंकैया नायडू ने अपना परिचय दिया. राजेन्द्र साव से कहा आज से तुम मुझे मामा कहकर पुकारना. राजेंद्र को अपना मोबाइल नंबर भी दिया था.

नक्सलियों ने ढाया जुल्म
राजेंद्र साव ने बताया कि उनकी माली हालत बहुत खराब थी. वैंकेया नायडू ने उनकी आर्थिक मदद करने का आश्वासन दिया था, लेकिन वो आश्वासन अब तक दिलासा बनकर ही है. इसके बाद राजेंद्र को नक्सलियों के कोप का सामना करना पड़ा. नक्सलियों ने इनकी पिटाई की, अर्थ दंड लगाया और कई तरह से प्रताड़ित करते रहे. हत्या की धमकी मिलने के बाद अंत में राजेंद्र को बिहार छोड़ना पड़ा.

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रमन सिंह ने दी शरण
राजेंद्र आगे बताते हैं कि इसके बाद वे कुछ सालों के लिए छत्तीसगढ़ चले गए. वेंकैया जी की मदद से ही उन्हें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के यहां सुरक्षित रहने की व्यवस्था की गई. साथ ही, अरुण जेटली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजेन्द्र की तारीफ करते हुए उन्हें नौकरी देने का आश्वासन दिया था.

आश्वासन के बाद नहीं मिली नौकरी
राजेंद्र ने बताया कि इस घटना के बाद उन्होंने चंपारण और पटना में वेंकैया नायडू से मुलाकात की तो दोबारा नौकरी का आश्वासन मिला. इसके बाद दिल्ली में जाकर मिले. तब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के पास भेज दिया गया. वह 15 दिनों तक मुख्यमंत्री और मंत्री सहित तमाम अफसरों से मिलते रहे. फिर सीएम के पीए ने कहा कि तुम्हें सिपाही की नौकरी मिल सकती है. इसके लिए बुलाया जाएगा. लेकिन आज तक बुलाया नहीं गया.

आशाओं का दौर जारी
राजेंद्र ने वेंकैया को सारी बातें बता दी थी. बाद में कई बार संपर्क भी हुआ. वह कहते हैं कि मेरी उनसे हमेशा बात होती है. वह अच्छे से बात करते हैं. मान-सम्मान में कोई कमी नहीं करते. इधर राजेंद्र की पत्नी कहती हैं कि 2005 में वेंकैया जी को अपनी जान पर खेलकर मेरे पति ने बचाया था. इसके लिए हमें नक्सलियों द्वारा काफी प्रताड़ित होना पड़ा था. उन्होंने कहा था कि नौकरी देंगे. हम आशा करते हैं कि मेरे बच्चों को नौकरी मिल जाए.

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जीविकोपार्जन के साधन की खोज
वेंकैया नायडू जब केंद्रीय मंत्री और बाद में उपराष्ट्रपति बने तो पड़रिया गांव में जश्न मनाया गया था. लोग आज भी इस घटना का जिक्र करते नहीं थकते. राजेंद्र का कहना है कि वह सुरक्षित जीवन नहीं जी रहे हैं. साथ ही, गुमनामी और गरीबी की ओर धकेला गए हैं. पूरा परिवार आस लगाकर बैठा है कि एक नौकरी या जीविकोपार्जन के लिए कुछ साधन मिल जाए.

गया: जिले का बाराचट्टी लाल गढ़ से जाना जाता था. बात फरवरी 2005 में बाराचट्टी प्रखंड के पड़रिया गांव की है. एक निवासी ने बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को नक्सलियों के मुंह से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था. आज वह शख्स गुमनामी और गरीबी की जिंदगी जी रहा है.

राजेंद्र साव का बयान
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2005 के साल में गया नक्सली घटनाओं के कारण सुर्खियों में रहता था. आए दिन नक्सलियों और पुलिस में मुठभेड़ होती रहती थी. उन दिनों बिहार में विकास की जगह खून की गंगा बहने लगी थी. इसी बीच तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष वेंकैया नायडू फरवरी में चुनाव प्रचार के लिए झारखंड के तन्डवा जा रहे थे.

बीच रास्ते में फंसा था हेलीकॉप्टर
इस दौरान वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के हेलीकॉप्टर का ईंधन खत्म हो गया. यह इलाका पूरी तरह से नक्सलियों का गढ़ बाराचट्टी प्रखंड का पड़रिया गांव था. ईंधन की कमी के कारण आनन-फानन में वेंकैया नायडू को इमरजेंसी लैंडिंग करना पड़ा.

मदद को सामने आया भीड़ से एक शख्स
इस घने देहात इलाके में किसी को कुछ पता नहीं था. धीरे-धीरे लोगों के कानों तक खबरें गईं और भीड़ इकट्टा होने लगी. इस बीच राजेंद्र साव नाम का शख्स सामने आया और उस मुसीबत की घड़ी में उनका साथ दिया. राजेंद्र साव बताते हैं कि तब मैंने नई बाइक खरीदी थी. मैंने उन्हें अपनी बाइक पर बैठाया और लालगढ़ क्षेत्र से सुरक्षित बाराचट्टी थाने पहुंचाया.

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नक्सलियों की नाक के नीचे से हुआ फरार
राजेंद्र साव आगे बताते हैं कि जिस वक्त वैंकेया नायडू का हेलीकॉप्टर लैंड किया उस वक्त नक्सली पास के जंगल में बैठक कर रहे थे. इससे पहले कि वह वैंकेया जी को कुछ नुकसान पहुंचाते उनके सूचना पाने से पहले ही राजेंद्र उन्हें वहां से सुरक्षित लेकर निकल गए. बाद में सूचना मिलते ही हथियारबंद नक्सलियों ने हेलीकॉप्टर पर धावा बोल दिया और पेट्रोल बम से उड़ा दिया.

नहीं पता था बाइक पर बैठे हैं वेंकैया नायडू
राजेन्द्र जब मोटरसाइकिल से वेंकैया नायडू को लेकर जा रहे थे उनको नहीं पता किसको बैठाकर ले जा रहे हैं. बीच रास्ते में वेंकैया नायडू ने अपना परिचय दिया. राजेन्द्र साव से कहा आज से तुम मुझे मामा कहकर पुकारना. राजेंद्र को अपना मोबाइल नंबर भी दिया था.

नक्सलियों ने ढाया जुल्म
राजेंद्र साव ने बताया कि उनकी माली हालत बहुत खराब थी. वैंकेया नायडू ने उनकी आर्थिक मदद करने का आश्वासन दिया था, लेकिन वो आश्वासन अब तक दिलासा बनकर ही है. इसके बाद राजेंद्र को नक्सलियों के कोप का सामना करना पड़ा. नक्सलियों ने इनकी पिटाई की, अर्थ दंड लगाया और कई तरह से प्रताड़ित करते रहे. हत्या की धमकी मिलने के बाद अंत में राजेंद्र को बिहार छोड़ना पड़ा.

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रमन सिंह ने दी शरण
राजेंद्र आगे बताते हैं कि इसके बाद वे कुछ सालों के लिए छत्तीसगढ़ चले गए. वेंकैया जी की मदद से ही उन्हें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के यहां सुरक्षित रहने की व्यवस्था की गई. साथ ही, अरुण जेटली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजेन्द्र की तारीफ करते हुए उन्हें नौकरी देने का आश्वासन दिया था.

आश्वासन के बाद नहीं मिली नौकरी
राजेंद्र ने बताया कि इस घटना के बाद उन्होंने चंपारण और पटना में वेंकैया नायडू से मुलाकात की तो दोबारा नौकरी का आश्वासन मिला. इसके बाद दिल्ली में जाकर मिले. तब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के पास भेज दिया गया. वह 15 दिनों तक मुख्यमंत्री और मंत्री सहित तमाम अफसरों से मिलते रहे. फिर सीएम के पीए ने कहा कि तुम्हें सिपाही की नौकरी मिल सकती है. इसके लिए बुलाया जाएगा. लेकिन आज तक बुलाया नहीं गया.

आशाओं का दौर जारी
राजेंद्र ने वेंकैया को सारी बातें बता दी थी. बाद में कई बार संपर्क भी हुआ. वह कहते हैं कि मेरी उनसे हमेशा बात होती है. वह अच्छे से बात करते हैं. मान-सम्मान में कोई कमी नहीं करते. इधर राजेंद्र की पत्नी कहती हैं कि 2005 में वेंकैया जी को अपनी जान पर खेलकर मेरे पति ने बचाया था. इसके लिए हमें नक्सलियों द्वारा काफी प्रताड़ित होना पड़ा था. उन्होंने कहा था कि नौकरी देंगे. हम आशा करते हैं कि मेरे बच्चों को नौकरी मिल जाए.

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जीविकोपार्जन के साधन की खोज
वेंकैया नायडू जब केंद्रीय मंत्री और बाद में उपराष्ट्रपति बने तो पड़रिया गांव में जश्न मनाया गया था. लोग आज भी इस घटना का जिक्र करते नहीं थकते. राजेंद्र का कहना है कि वह सुरक्षित जीवन नहीं जी रहे हैं. साथ ही, गुमनामी और गरीबी की ओर धकेला गए हैं. पूरा परिवार आस लगाकर बैठा है कि एक नौकरी या जीविकोपार्जन के लिए कुछ साधन मिल जाए.

Intro:गया के बाराचट्टी लाल गढ़ से जाना जाता था । फरवरी 2005 में बाराचट्टी प्रखंड के पड़रिया गांव में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का हेलीकॉप्टर इमरजेंसी लैंडिंग हुआ था। ग्रामीण राजेन्द प्रसाद वेंकैया नायडू को सुरक्षित लाल गढ़ क्षेत्र से निकालकर बाराचट्टी थाना तक पहुँचाया था। आज राजेन्द्र प्रसाद गुमनामी और गरीबी का जिंदगी जी रहा है।


Body:2005 का साल गया नक्सलियों घटना के कारण सुर्खियों में रहता था। आये दिन नक्सलियों और पुलिस मुठभेड़ होते रहता था। विकास के जगह खून की धारा बहती थी। 2005 के फरवरी में चुनाव प्रचार के लिए झारखंड के तन्डवा जा रहे थे। उसी बीच मे वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का नक्सलियों के गढ़ बाराचट्टी प्रखंड के पड़रिया गाँव में ईंधन के कमी के वजह से इमरजेंसी लैंडिंग करना पड़ा। हेलीकॉप्टर के लैडिंग होने के बाद तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वेंकैया नायडू को अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाकर बाराचट्टी थाना पहुँचाया था। वेंकैया नायडू ने राजेंद्र साव को आश्वासन दिए थे लेकिन आजतक आवश्वसन पूरा नही हो सका।

मोटरसाइकिल से कुछ दूर पहुँचने पर ही नक्सलियों द्वारा हेलीकॉप्टर में आग लगा दिया था। नक्सली पास के जंगल मे बैठक कर रहे थे। हेलीकॉप्टर लैडिंग सूचना मिलते ही हथियारबंद नक्सलियों ने हेलीकॉप्टर पर धावा बोला और पेट्रोल बम से हमला किया। अगर पांच से दस मिनट भी राजेन्द प्रसाद देर करते नक्सली वेंकैया और पायलट के साथ कुछ अनहोनी करते। राजेंद्र साव नक्सलियों से डरे वेंकैया नायडू को थाना तक सुरक्षित पहुँचाया था।

नक्सलियों के जबड़े से वेंकैया नायडू को सुरक्षित निकालकर बाराचट्टी थाने पहुंचाने वाला ग्रामीण राजेंद्र प्रसाद की माली हालत बहुत ही खराब है ,जबकि उस वक्त वेंकैया ने उसे धन राशि अथवा नौकरी का आश्वासन दिया था। आज तक ने वेंकैया और ना ही भाजपा के नेता ने आश्वासन को पूरा कर पाए। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष को बचाने का खमियाजा राजेंद्र को उठाना पड़ा।नक्सलियों के कोप का सामना करना पड़ा उसकी पिटाई की गई अर्थ दंड भी लगाया गया। कुछ सालों तक गांव भी छोड़ना पड़ा। वेंकैया के मदद से ही उसे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह के यहां सुरक्षित रहने का व्यवस्था किया गया था। अरुण जेटली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजेन्द्र का तारीफ करते हुए नौकरी देने का आश्वासन दिया था।

राजेन्द जब मोटरसाइकिल से वेंकैया नायडू को लेकर जा रहे थे उनको नही पता किसको बैठाकर ले जा रहे हैं। बीच रास्ता में वेंकैया ने अपना परिचय दिया। राजेन्द्र साव से कहा आज तुम मुझे मामा कहकर पुकारना। राजेंद्र को अपना मोबाईल नंबर भी दिया था।

राजेंद्र ने बताया इस घटना के बाद उसने चंपारण और पटना में बै वेंकैया नायडू से मुलाकात किया ।नौकरी का फिर आश्वासन मिला। फिर दिल्ली में जाकर मिला। तब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के पास भेज दिया गया वह 15 दिनों तक मुख्यमंत्री और मंत्री सहित तमाम अफसरों से मिलता रहा, फिर सीएम के पीए ने कहा कि तुम्हे सिपाही की नौकरी मिल सकती है इसके लिए बुलाया जाएगा लेकिन आज तक बुलाया बुलाया नहीं गया। राजेंद्र ने वेंकैया को सारी बातें बता दी थी बाद में कई बार संपर्क हुआ लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिला। वह कहते हैं कि मेरा उनसे हमेशा बात होता हैं और अच्छे से बात करते हैं मान-सम्मान में कोई कमी नहीं करते। राजेंद्र ने बताया कि नक्सलियों ने उसे बचाने के बाद कई बार जान से मारने की धमकी दिया था उनके कई सालों तक घर से बाहर रहे।



Conclusion:इधर राजेंद्र की पत्नी कहती है 2005 में वेंकैया जी को अपने जान पर खेलकर मेरे पति ने बचाया था। नक्सलियों द्वारा काफी प्रताड़ित होना पड़ा था यहां तक घर तक छोड़ना पड़ा था ।उन्होंने कहा था की नौकरी देंगे लेकिन अभी तक नहीं मिला। हम आशा करते हैं कि मेरे बच्चों को नौकरी मिल जाए।

वेंकैया नायडू के केंद्रीय मंत्री और बाद में उप राष्ट्रपति बने पर पड़रिया गाँव मे जश्न मनाया गया था। लोग आज भी इस घटना के जिक्र करते नही थकते। हालांकि की इस इलाके में नक्सली न के बराबर है फिर भी आये दिन नही तो महीना में एक या दो बार कोई घटना हो जाता है। आज भी राजेन्द्र साव सुरक्षित जिंदगी नही जी रहे हैं। असुरक्षित जिंदगी जीने में गुमनामी और गरीबी की ओर चले गए। पूरा परिवार आश लगाकर बैठा है एक नौकरी या जीविकोपार्जन के लिए कुछ साधन मिल जाये।
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