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गया: जानिये क्या होता है पिंडदान, कैसे हुई पिंडवेदों की उत्पत्ति - pind means body

पिण्ड का अर्थ है शरीर. यह एक पारंपरिक विश्वास है, जिसे विज्ञान भी मानता है कि हर पीढी के भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढ़ियों के समन्वित 'गुणसूत्र' उपस्थित होते हैं.

जानिये क्या होता है पिंडदान
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Published : Sep 16, 2019, 11:53 AM IST

गया: प्राचीन ग्रंथों जैसे अत्रिस्मृति, कात्यायन स्मृति, वृहस्पति स्मृति, महाभारत, बाल्मिकी रामायण, वाराह पुराण, अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण और वायु पुराण में गया का विस्तृत वर्णन है. गया को मंदिरों का शहर कहा जाता है. अधिकांश मंदिर पिंडवेदी हैं. जहां पिंडदान किया जाता है. गया का सबसे प्रमुख मंदिर भी पिंडवेदी है.

पेश है रिपोर्ट

पितृ को मोक्ष दिलाने को लिये गया में पिंडदान किया जाता है. यहां कुल 48 पिंड वेदियां हैं. सभी वेदियों पर पिंडदान करने का अगल-अगल महत्व है. गया को दूसरे क्षेत्र में सनातन धर्मावलंबी श्री विष्णुपद को मंदिर के नाम से जानते हैं. श्री विष्णुपद गया तीर्थ का प्रधान वेदी है, जिसकी गणना त्रिप्रधान वेदी के मध्य में किया गया है. अन्य दो वेदियां जो प्रख्यात हैं. वह फल्गु और अक्षय वट है.

क्या होता है पिंडदान
मृतक के निमित्त अर्पित किए जाने वाले पदार्थ जैसे पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके जो पिण्ड बनाते हैं, उसे 'सपिण्डीकरण' कहते हैं. पिण्ड का अर्थ है शरीर. यह एक पारंपरिक विश्वास है, जिसे विज्ञान भी मानता है कि हर पीढी के भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढियों के समन्वित 'गुणसूत्र' उपस्थित होते हैं.

gaya
ये है पिंडवेदी

पितरों को गोलाकार पिंड करते हैं अर्पित
पिंडदानी पिंडवेदी पर गोलाकार आटे का पिंडदान करते हैं. पिंडवेदी के उत्पत्ति के पीछे यही गोलाकार है. पंडित रामाचार्य जी बताते हैं पिंड की उत्पति मनुष्य के जन्म और मृत्यु से हुआ है. इंसान की जब मृत्यु हो जाती है तब उसके शरीर से निकलने वाला आत्मा भी गोलाकार होत है. इसलिए पिंडदान में आटे का गोलाकार पिंड अर्पित किया जाता है.

सात प्रकार के होते हैं पितृ
पंडित रामाचार्य बताते हैं कि पितृ सात प्रकार के हैं. पिंडदान के वक्त हम पहले इन सातों को दान देते हैं. उसके बाद अपने पितरों को देते है. शुक्राणु और आत्मा दोनों पितृ हैं. जैसे चना और मूंग के अंदर एक सफेद रंग का अंकुर रहता है वो पितृ है. वो कभी नहीं मरता है. वेद मंत्रों में आसमान और पृथ्वी को पितृ का स्थान दिया गया है. ये दोनों हमारा पालन पोषण करते हैं. ठीक वैसे ही स्त्री-पुरुष दोनों को पितृ ही कहा जाता है.

गया: प्राचीन ग्रंथों जैसे अत्रिस्मृति, कात्यायन स्मृति, वृहस्पति स्मृति, महाभारत, बाल्मिकी रामायण, वाराह पुराण, अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण और वायु पुराण में गया का विस्तृत वर्णन है. गया को मंदिरों का शहर कहा जाता है. अधिकांश मंदिर पिंडवेदी हैं. जहां पिंडदान किया जाता है. गया का सबसे प्रमुख मंदिर भी पिंडवेदी है.

पेश है रिपोर्ट

पितृ को मोक्ष दिलाने को लिये गया में पिंडदान किया जाता है. यहां कुल 48 पिंड वेदियां हैं. सभी वेदियों पर पिंडदान करने का अगल-अगल महत्व है. गया को दूसरे क्षेत्र में सनातन धर्मावलंबी श्री विष्णुपद को मंदिर के नाम से जानते हैं. श्री विष्णुपद गया तीर्थ का प्रधान वेदी है, जिसकी गणना त्रिप्रधान वेदी के मध्य में किया गया है. अन्य दो वेदियां जो प्रख्यात हैं. वह फल्गु और अक्षय वट है.

क्या होता है पिंडदान
मृतक के निमित्त अर्पित किए जाने वाले पदार्थ जैसे पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके जो पिण्ड बनाते हैं, उसे 'सपिण्डीकरण' कहते हैं. पिण्ड का अर्थ है शरीर. यह एक पारंपरिक विश्वास है, जिसे विज्ञान भी मानता है कि हर पीढी के भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढियों के समन्वित 'गुणसूत्र' उपस्थित होते हैं.

gaya
ये है पिंडवेदी

पितरों को गोलाकार पिंड करते हैं अर्पित
पिंडदानी पिंडवेदी पर गोलाकार आटे का पिंडदान करते हैं. पिंडवेदी के उत्पत्ति के पीछे यही गोलाकार है. पंडित रामाचार्य जी बताते हैं पिंड की उत्पति मनुष्य के जन्म और मृत्यु से हुआ है. इंसान की जब मृत्यु हो जाती है तब उसके शरीर से निकलने वाला आत्मा भी गोलाकार होत है. इसलिए पिंडदान में आटे का गोलाकार पिंड अर्पित किया जाता है.

सात प्रकार के होते हैं पितृ
पंडित रामाचार्य बताते हैं कि पितृ सात प्रकार के हैं. पिंडदान के वक्त हम पहले इन सातों को दान देते हैं. उसके बाद अपने पितरों को देते है. शुक्राणु और आत्मा दोनों पितृ हैं. जैसे चना और मूंग के अंदर एक सफेद रंग का अंकुर रहता है वो पितृ है. वो कभी नहीं मरता है. वेद मंत्रों में आसमान और पृथ्वी को पितृ का स्थान दिया गया है. ये दोनों हमारा पालन पोषण करते हैं. ठीक वैसे ही स्त्री-पुरुष दोनों को पितृ ही कहा जाता है.

Intro:प्राचीन ग्रंथों जैसे अत्रिस्मृति,कत्यायन स्मृति,बृहस्पति स्मृति, महाभारत,बाल्मीकिय रामायण, वारह पुराण, अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण वायु पुराण में गया का विस्तृत वर्णन है गया जी को बनारस की तरह मंदिरों का शहर कहा जाता है। अधिकांश मंदिर पिंडवेदी हैं जहां पिंडदान किया जाता है। गया के सबसे प्रमुख मंदिर भी पिंडवेदी हैं। हर पिंडदानी का जिज्ञासा होता हैं पिंडवेदी उतपति कैसे हूआ.


Body:गया और दूसरे क्षेत्र में सनातन धर्मावलंबी श्री विष्णुपद को मंदिर के नाम से जानते हैं जबकि श्री विष्णुपद गया तीर्थ का प्रधान वेदी है जिसकी गणना त्रिप्रधान वेदी के मध्य में किया गया है अन्य जो दो वेदियां जो प्रख्यात है वह फल्गु एवं अक्षय वट है।

पिंडवेदी पर पिंडदान किया जाता है पिंडदानी पिंडवेदी गोलाकार आटे का पिंडदानी करते हैं। पिंडवेदी के उतपति के पीछे यही गोलाकार है। पंडित रामचार्य जी बताते हैं पिंड की उतपति मनुष्य के जन्म और मृत्यु से हुआ है। मनुष्य योनि में पुरुष - स्त्री के संबंध से जो शुक्राणु निकलता है वो पिंड जैसा गोलाकार होता हैं। आदमी जब मृत्यु होता है उसके शरीर से निकलने वाले आत्मा गोलाकार होता हैं। इसलिए पिंडवेदी गोलाकार और पिंडदान में आटे का गोलाकार पिंड अर्पित किया जाता है।

पितर किसे कहा जाता है पंडित रामचार्य इसके बारे में बताते हैं शुक्राणु और आत्मा दोनो पीतर हैं। जैसे चना और मूंग के अंदर एक सफेद रंग का अंकुर रहता है वो पीतर है। वो कभी नही मरता है। पितर ऐसे कहा गया दो प्रकार के होते हैं आसमान और पृथ्वी दोनो हमलोग को पालन पोषण करता है। स्त्री-पुरुष दोनों को पितर ही कहा जाता है।

पितरों का पितृ जब मानुष योनि का जन्म नही हुआ तब से ये पितृ हैं। ये सात तरह के होते है। इन्होंने सबसे पहले पिंडदान करने का परंपरा शुरू किया था। हम पिंडदान करने के समय इनको आह्वान करते हैं और इनके माध्यम से अपना पिंडदान पितरों तक पहुचाते हैं।


Conclusion:सर इस संबंध में जो समझ मे नही आये पंडित रामचार्य जी का बाइट सुने ले, मैं भी उसी के आधार पर लिखा हूं।
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