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पितृ पक्ष 2019: अलग है बोधगया के धर्मारण्य वेदी की मान्यता, त्रिपिंडी में श्राद्ध से पूर्वजों को मिलता है मोक्ष - gaya ji

मान्यता है कि त्रयोदशी के दिन अकाल मृत्यु वाले लोगों के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते है. वहीं, दूसरी तरफ स्कंद पुराण की कहानी के अनुसार यहां ये मान्यता सदियों से चली आ रही है. ऐसा स्कंद पुराण में वर्णित है.

गया जी
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Published : Sep 15, 2019, 9:22 PM IST

गया: मोक्ष की नगरी गया में पिंडवेदियों पर पिंडदान और तर्पण का विधान है. त्रयोदशी को त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है. यही कारण है कि आस्थावान सनातन धर्मावलंबी श्रद्धालु पूर्वजों की प्रेतबाधा से मुक्ति हेतु पिंडदान करते हैं. अष्टकमल आकार के कूप में नारियल छोड़कर ये कर्म कांड पूरा किया जाता है.

मान्यता है कि त्रयोदशी के दिन अकाल मृत्यु वाले लोगों के लिए श्राद्ध कर्म किये जाते हैं. वहीं, दूसरी तरफ स्कंद पुराण की कहानी के अनुसार यहां ये मान्यता सदियों से चली आ रही है. स्कंद पुराण में वर्णित है कि धर्मारण्य में महाभारत युद्ध में जाने-अंजाने मारे गए लोगों के आत्मा की शांति के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने पिंडदान किया था. तब से यहां धर्मारण्य में पितरों का श्राद्ध-कर्म हो रहा है.

जानकारी देते पंडित

अन्य पिंडियों से अलग है यहां कि मान्यता...
परंपरा है कि लोग देश-विदेश से तीर्थ यात्री यहां अपने पूर्वजो को पितृ लोक में शान्ति के लिये आते हैं. जाने-अनजाने मे मृत्यु को प्राप्त लोगों की आत्मा की शान्ति के लिये अर्हतकूप में काली आत्मा को कोप किया जाता है. गुरु दोष मात्र, पितृ दोष का भी कल्याण होता है. यहां की मान्यता अन्य पिंड वेदियों से अलग है.

जगह-जगह लगी हैं पूजा सामाग्री की दुकानें
जगह-जगह लगी हैं पूजा सामग्री की दुकानें

क्या कहते हैं पंडित जी
पंडित रंजीत शर्मा ने बताया कि गया से 12 किलोमीटर दक्षिण मुहाने नदी के पूर्वी छोर पर स्थित धर्मारण्य वेदी है. वेदों मे प्रमाण हैं कि धर्मराज युधिष्ठिर ने जप करके अपने पितरों के कल्याण लिये त्रिपिंडी श्राद्ध किया था, जो यहां अपने पूर्वजो के लिये त्रिपिंडी श्राद्ध करते हैं, उनके पितरों को मुक्ति मिलती है.

श्राद्ध कर्म करते पिंडदानी
श्राद्ध कर्म करते पिंडदानी

तीन प्रकार से होती है पितरों की पूजा
पंडित जी ने बताया कि यहां तीन प्रकार से पितरों के लिए पूजा अर्चना की जाती है. सतोयुग, राजोयुग और तमोयुग तीनों प्रकार के देवता यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रेतों को सदगति देते हैं.

गया: मोक्ष की नगरी गया में पिंडवेदियों पर पिंडदान और तर्पण का विधान है. त्रयोदशी को त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है. यही कारण है कि आस्थावान सनातन धर्मावलंबी श्रद्धालु पूर्वजों की प्रेतबाधा से मुक्ति हेतु पिंडदान करते हैं. अष्टकमल आकार के कूप में नारियल छोड़कर ये कर्म कांड पूरा किया जाता है.

मान्यता है कि त्रयोदशी के दिन अकाल मृत्यु वाले लोगों के लिए श्राद्ध कर्म किये जाते हैं. वहीं, दूसरी तरफ स्कंद पुराण की कहानी के अनुसार यहां ये मान्यता सदियों से चली आ रही है. स्कंद पुराण में वर्णित है कि धर्मारण्य में महाभारत युद्ध में जाने-अंजाने मारे गए लोगों के आत्मा की शांति के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने पिंडदान किया था. तब से यहां धर्मारण्य में पितरों का श्राद्ध-कर्म हो रहा है.

जानकारी देते पंडित

अन्य पिंडियों से अलग है यहां कि मान्यता...
परंपरा है कि लोग देश-विदेश से तीर्थ यात्री यहां अपने पूर्वजो को पितृ लोक में शान्ति के लिये आते हैं. जाने-अनजाने मे मृत्यु को प्राप्त लोगों की आत्मा की शान्ति के लिये अर्हतकूप में काली आत्मा को कोप किया जाता है. गुरु दोष मात्र, पितृ दोष का भी कल्याण होता है. यहां की मान्यता अन्य पिंड वेदियों से अलग है.

जगह-जगह लगी हैं पूजा सामाग्री की दुकानें
जगह-जगह लगी हैं पूजा सामग्री की दुकानें

क्या कहते हैं पंडित जी
पंडित रंजीत शर्मा ने बताया कि गया से 12 किलोमीटर दक्षिण मुहाने नदी के पूर्वी छोर पर स्थित धर्मारण्य वेदी है. वेदों मे प्रमाण हैं कि धर्मराज युधिष्ठिर ने जप करके अपने पितरों के कल्याण लिये त्रिपिंडी श्राद्ध किया था, जो यहां अपने पूर्वजो के लिये त्रिपिंडी श्राद्ध करते हैं, उनके पितरों को मुक्ति मिलती है.

श्राद्ध कर्म करते पिंडदानी
श्राद्ध कर्म करते पिंडदानी

तीन प्रकार से होती है पितरों की पूजा
पंडित जी ने बताया कि यहां तीन प्रकार से पितरों के लिए पूजा अर्चना की जाती है. सतोयुग, राजोयुग और तमोयुग तीनों प्रकार के देवता यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रेतों को सदगति देते हैं.

Intro:Body:गया बोधगया के पिंडवेदियों पर पिंडदान व तर्पण का विधान है। त्रयोदशी तिथि को त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है। यही कारण है कि आस्थावान सनातन धर्मावलंबी श्रद्धालु प्रेतबाधा से मुक्ति हेतु पिंडदान कर अष्टकमल आकार के कूप में नारियल छोड़कर अपनी आस्था को पूरी करते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान जाने-अंजाने में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पाश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर यज्ञ और पिंडदान किये थे युगो युगो से चला आ रहा है परम्परा लोग देश विदेश से तीर्थ यात्री यहा अपने पूर्वजो को पित्र लोक मे शान्ती के लिये आते हैं जाने अनजाने मे मृतु हो जाते हैं उनके आत्मा के शान्ती के लिये अर्हतकुप मे काली आत्मा को कोप किया जता है गुरु दोष मात्र दोष पित्र दोष का भी कल्याण होता है
यहा की मान्यता और पिण्ड वेदियो से अलग है
पण्डित रंजीत शर्मा ने बतया की गया से 12 किलोमीटर दक्षिण मुहाने नदी के पूर्वी छोर पर स्थित धर्ममरण वेदी है वेदो मे प्रमाण हैं की धर्मराज उधिठीर ने जग करके अपने पितरो के कल्याण लिये त्रिपिण्डी सराद किये थे जो अपने पूर्वजो के लिये त्रिपींडी साराद करते हैं यहा पितरो को मुक्ति मिलती है
तीन प्रकार के राजस्व तमास सात्विक तिन प्रकार की पितरो की पुजा होती है वेदो मे बतया गया है कि तिन प्रकार के प्रेत होती है सतोयुग राजोयुग तमोयुग तीनो प्रकार के देवता व्रहमा विष्णु महेश यह देवता तीनो प्रेतो को सतगती देती हैंConclusion:
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