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नक्सलियों की आड़ में बिहार-झारखंड के ड्रग्स माफिया बन रहे करोड़पति, तीन दशक से हो रही अफीम की खेती

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Published : Dec 10, 2022, 10:40 AM IST

गया में तीन दशक से 600 एकड़ भूमि में अफीम की खेती (Opium cultivation in Gaya) का सिलसिला लगातार जारी है. आखिर किसने की है, 600 एकड़ भूमि में अफीम की खेती, जबकि इन क्षेत्रों में अब नक्सलियों का दबदबा भी खत्म हो चुका है, इसी का पता लगाने और अवैध मादक पदार्थ की खेती करने वालों पर नकेल कसने के लिए पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी है.

अफीम की खेती
अफीम की खेती

गयाः बिहार का गया अफीम की खेती को लेकर हर वर्ष चर्चा में रहता है. विश्व प्रसिद्ध मोक्ष और ज्ञान की धरती गया नशे की खेती के लिए भी राष्ट्रीय स्तर पर पहचानी जाती है. गया के बाराचट्टी के इलाकों के सैकड़ों एकड़ भूमि में अफीम की फसल (Opium cultivation in 600 acres land in Gaya) लगा दी जाती है. ताज्जुब की बात है कि आखिर इतने बड़े भू-भाग में अफीम जैसे मादक पदार्थ की फसल लगा दी जाती है और नारकोटिक्स विभाग-प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लग पाती. वहीं नक्सलियों की आड़ में बिहार-झारखंड के ड्रग्स माफिया (Drug mafia cultivating opium in Gaya) करोड़पति बन रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः गया के जंगलों में 'सफेद फूलों' का काला कारोबार, 8 राज्यों में होती है सप्लाई

डर से किसान दे देते हैं अपनी जमीनः गया जिले के बाराचट्टी में 90 के दशक से अफीम की खेती की जा रही है, तब उस समय नक्सलियों का काफी वर्चस्व रहा करता था. नक्सली अपनी आर्थिक मजबूती का बड़ा आधार अफीम की खेती को बनाते थे. ये लोग नवंबर महीने से जंगली इलाकों में अफीम की खेती करने के लिए सुरक्षित जमीन खोजने लगते थे. खेत के मालिक नक्सलियों के डर से उन्हें जमीन दे देते हैं या खुद मजदूर की तरह खेती करने लगते थे. इन खेत के मालिकों या किसानों को नक्सली गेहूं के खेत के बराबर राशि देते थे. नक्सली अपनी आर्थिक मजबूती का बड़ा आधार अफीम की खेती को बनाते थे. लेकिन अब धीरे-धीर इन इलाकों में नक्सलियों का वर्चस्व खत्म हो गया है. लेकिन अफीम की खेती का सिलसिला थम नहीं रहा है, तो अब सवाल ये है कि अखिर कौन है जो इन अवैध मादक पदार्थ की खेती में जुटा है.

90 के दशक से हो रही अफीम की खेतीः दरअसल नक्सल प्रभावित इलाकों के हालात थोड़े बदले हैं और हाल के वर्षों में अफीम की खेती का धंधा अब माफियाओं के हाथ में है. ये माफिया बिहार-झारखंड के हैं, जिन्होंने देश के कई राज्यों में इसकी सप्लाई करने का ठेका ले रखा है. ऐसे माफिया आज की तारीख में करोड़पति बन चुके हैं. ये माफिया बिहार-झारखंड के हैं, जिन्होंने देश के कई राज्यों में अफीम की तस्करी- सप्लाई करने का ठेका ले रखा है. नक्सली संगठन के कमजोर होने का फायदा ये माफिया उठा रहे हैं और इलाकों के गरीब-पिछड़े समुदाय को रुपए का लालच देकर खेती करवा रहे हैं. अफीम की खेती का मुनाफा अब इस कदर सिर चढ़कर बोल रहा है कि काफी संख्या में खेतों के मालिक भी इसमें गोता लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं.

जंगल वाले इलाके में ड्रोन से ली जा रहीं तस्वीरें
जंगल वाले इलाके में ड्रोन से ली जा रहीं तस्वीरें

100 गांवों में होती है खेतीः दरअसल गया जिले के 24 में से 13 प्रखंड नक्सल प्रभावित क्षेत्र माने जाते हैं. गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड क्षेत्र के नारे, धवैया, सिकीट, अमूखाप, बेला, जयगीर, बुमेर, नारे, हाहेसाड़ी, शंखवा, पकरिया लुका, खैरा, भलुआ पतलूका समेत अन्य कई क्षेत्र हैं. इसमें कई इलाके झारखंड की सीमा से लगे हुए हैं. इन इलाकों में अफीम की खेती बिहार सरकार, रैैयती भूमि के अलावे वन विभाग की भूमि में भी बड़े पैमाने पर की जा रही है.

600 एकड़ भू-भाग में अफीम की फसलः इस बार भी माफिया प्रशासन के दावे को खोखला बताते हुए अफीम की फसल लगा चुके हैं. यह अलग बात है कि हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हारे हुए खिलाड़ी की तरह प्रशासन की टीम अफीम की फसल नष्ट करने का अभियान चला रही है, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि आखिर फसल को लगाने का मौका ही क्यों दिया गया. 1 दिन में 600 एकड़ भूमि में अफीम की फसल तो नहीं लग जाते. प्रश्न यह भी उठता है कि क्या प्रशासन का सूचना तंत्र एकदम से ध्वस्त हो चुका है?

नशे की खेती को ध्वस्त करते जवान
नशे की खेती को ध्वस्त करते जवान

अफीम नष्ट करने की मिली उत्पाद विभाग को जिम्मेदारीः अफीम जैसे मादक पदार्थ की खेती को रोकने का बीड़ा सीधे नारकोटिक्स को है. स्थिति के अनुसार नारकोटिक्स विभाग प्रशासनिक मदद लेता है. लेकिन गया के बाराचट्टी के क्षेत्र में अफीम की खेती जिस तरह से नासूर बनी हुई है, उसके बीच नारकोटिक्स विभाग की कार्रवाई फलाॅप हो चुकी है. ऐसे में अब इस वर्ष उत्पाद विभाग को अफीम की खेती को नष्ट करने का बीड़ा मिला है. इस बार उपरी निर्देश के अनुसार उत्पाद विभाग के सहायक आयुक्त प्रेम प्रकाश के नेतृत्व में अफीम की खेती को नष्ट करने की कार्रवाई चलेगी. यानि अब उत्पाद की टीम शराब के साथ-साथ अफीम की खेती को नष्ट करने की भूमिका में होगी.

सुरक्षाबलों के कई कैंप होने के बावजूद यह स्थितिः बाराचट्टी के इलाके में सुरक्षाबलों के कई कैंप हैं. इसके बावजूद भी अफीम की खेती हर साल लगा दी जा रही है. इस बार अच्छी पहल यह है कि अफीम की खेती को नष्ट करने के लिए दिसंबर में ही बड़ा अभियान छेड़ दिया गया है. अफीम की खेती के खिलाफ चलने वाले अभियान में प्रशासन, नारकोटिक्स विभाग, सीओ, सुरक्षा बल, उत्पाद विभाग, वन विभाग की टीम शामिल होती है. अफीम की खेती को नष्ट करने में स्क्वायड डॉग के अलावे कई हाईटेक उपकरणों का सहारा लिया जा रहा है. जंगल वाले इलाके में ड्रोन से तस्वीरें ली जा रही है और अफीम की खेती का पता लगाया जा रहा है. इसके बाद जेसीबी, ट्रैक्टर और मजदूरों की मदद से अफीम की खेती को नष्ट किया जा रहा. इसमें जवान भी सहयोग करते हैं.

जांच के लिए ली जा रही स्क्वायड डॉग की मदद
जांच के लिए ली जा रही स्क्वायड डॉग की मदद

अफीम की खेती का विनिष्टिकरण शुरूः जिला प्रशासन ने इस बार अवैध मादक पदार्थ अफीम की खेती करने वालों पर नकेल कसने के लिए दिसंबर माह से ही विनिष्टिकरण का अभियान शुरू कर दिया गया है. इसी क्रम में प्रशासन, एसएसबी 29 वीं वाहिनी , बाराचट्टी पुलिस एवं वन विभाग की संयुक्त कार्रवाई में जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र के दुर्गम क्षेत्र खैरा गांव में लहलहाते 1 एकड़ की फसल को जेसीबी और ट्रैक्टर को मदद से नष्ट किया गया. बता दें कि यह विनष्टीकरण अभियान जनवरी माह से शुरू किया जाता था, लेकिन इस बार वरीय अधिकारियों के आदेश पर अवैध फसल को पूर्ण रूप से नष्ट करने के लिए 1 माह पूर्व से ही तैयारी शुरू कर दी है, ताकि चप्पे चप्पे पर ड्रोन के माध्यम से छान मारकर माफियाओं के मंसूबों को नाकाम कर सकें.

गयाः बिहार का गया अफीम की खेती को लेकर हर वर्ष चर्चा में रहता है. विश्व प्रसिद्ध मोक्ष और ज्ञान की धरती गया नशे की खेती के लिए भी राष्ट्रीय स्तर पर पहचानी जाती है. गया के बाराचट्टी के इलाकों के सैकड़ों एकड़ भूमि में अफीम की फसल (Opium cultivation in 600 acres land in Gaya) लगा दी जाती है. ताज्जुब की बात है कि आखिर इतने बड़े भू-भाग में अफीम जैसे मादक पदार्थ की फसल लगा दी जाती है और नारकोटिक्स विभाग-प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लग पाती. वहीं नक्सलियों की आड़ में बिहार-झारखंड के ड्रग्स माफिया (Drug mafia cultivating opium in Gaya) करोड़पति बन रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः गया के जंगलों में 'सफेद फूलों' का काला कारोबार, 8 राज्यों में होती है सप्लाई

डर से किसान दे देते हैं अपनी जमीनः गया जिले के बाराचट्टी में 90 के दशक से अफीम की खेती की जा रही है, तब उस समय नक्सलियों का काफी वर्चस्व रहा करता था. नक्सली अपनी आर्थिक मजबूती का बड़ा आधार अफीम की खेती को बनाते थे. ये लोग नवंबर महीने से जंगली इलाकों में अफीम की खेती करने के लिए सुरक्षित जमीन खोजने लगते थे. खेत के मालिक नक्सलियों के डर से उन्हें जमीन दे देते हैं या खुद मजदूर की तरह खेती करने लगते थे. इन खेत के मालिकों या किसानों को नक्सली गेहूं के खेत के बराबर राशि देते थे. नक्सली अपनी आर्थिक मजबूती का बड़ा आधार अफीम की खेती को बनाते थे. लेकिन अब धीरे-धीर इन इलाकों में नक्सलियों का वर्चस्व खत्म हो गया है. लेकिन अफीम की खेती का सिलसिला थम नहीं रहा है, तो अब सवाल ये है कि अखिर कौन है जो इन अवैध मादक पदार्थ की खेती में जुटा है.

90 के दशक से हो रही अफीम की खेतीः दरअसल नक्सल प्रभावित इलाकों के हालात थोड़े बदले हैं और हाल के वर्षों में अफीम की खेती का धंधा अब माफियाओं के हाथ में है. ये माफिया बिहार-झारखंड के हैं, जिन्होंने देश के कई राज्यों में इसकी सप्लाई करने का ठेका ले रखा है. ऐसे माफिया आज की तारीख में करोड़पति बन चुके हैं. ये माफिया बिहार-झारखंड के हैं, जिन्होंने देश के कई राज्यों में अफीम की तस्करी- सप्लाई करने का ठेका ले रखा है. नक्सली संगठन के कमजोर होने का फायदा ये माफिया उठा रहे हैं और इलाकों के गरीब-पिछड़े समुदाय को रुपए का लालच देकर खेती करवा रहे हैं. अफीम की खेती का मुनाफा अब इस कदर सिर चढ़कर बोल रहा है कि काफी संख्या में खेतों के मालिक भी इसमें गोता लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं.

जंगल वाले इलाके में ड्रोन से ली जा रहीं तस्वीरें
जंगल वाले इलाके में ड्रोन से ली जा रहीं तस्वीरें

100 गांवों में होती है खेतीः दरअसल गया जिले के 24 में से 13 प्रखंड नक्सल प्रभावित क्षेत्र माने जाते हैं. गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड क्षेत्र के नारे, धवैया, सिकीट, अमूखाप, बेला, जयगीर, बुमेर, नारे, हाहेसाड़ी, शंखवा, पकरिया लुका, खैरा, भलुआ पतलूका समेत अन्य कई क्षेत्र हैं. इसमें कई इलाके झारखंड की सीमा से लगे हुए हैं. इन इलाकों में अफीम की खेती बिहार सरकार, रैैयती भूमि के अलावे वन विभाग की भूमि में भी बड़े पैमाने पर की जा रही है.

600 एकड़ भू-भाग में अफीम की फसलः इस बार भी माफिया प्रशासन के दावे को खोखला बताते हुए अफीम की फसल लगा चुके हैं. यह अलग बात है कि हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हारे हुए खिलाड़ी की तरह प्रशासन की टीम अफीम की फसल नष्ट करने का अभियान चला रही है, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि आखिर फसल को लगाने का मौका ही क्यों दिया गया. 1 दिन में 600 एकड़ भूमि में अफीम की फसल तो नहीं लग जाते. प्रश्न यह भी उठता है कि क्या प्रशासन का सूचना तंत्र एकदम से ध्वस्त हो चुका है?

नशे की खेती को ध्वस्त करते जवान
नशे की खेती को ध्वस्त करते जवान

अफीम नष्ट करने की मिली उत्पाद विभाग को जिम्मेदारीः अफीम जैसे मादक पदार्थ की खेती को रोकने का बीड़ा सीधे नारकोटिक्स को है. स्थिति के अनुसार नारकोटिक्स विभाग प्रशासनिक मदद लेता है. लेकिन गया के बाराचट्टी के क्षेत्र में अफीम की खेती जिस तरह से नासूर बनी हुई है, उसके बीच नारकोटिक्स विभाग की कार्रवाई फलाॅप हो चुकी है. ऐसे में अब इस वर्ष उत्पाद विभाग को अफीम की खेती को नष्ट करने का बीड़ा मिला है. इस बार उपरी निर्देश के अनुसार उत्पाद विभाग के सहायक आयुक्त प्रेम प्रकाश के नेतृत्व में अफीम की खेती को नष्ट करने की कार्रवाई चलेगी. यानि अब उत्पाद की टीम शराब के साथ-साथ अफीम की खेती को नष्ट करने की भूमिका में होगी.

सुरक्षाबलों के कई कैंप होने के बावजूद यह स्थितिः बाराचट्टी के इलाके में सुरक्षाबलों के कई कैंप हैं. इसके बावजूद भी अफीम की खेती हर साल लगा दी जा रही है. इस बार अच्छी पहल यह है कि अफीम की खेती को नष्ट करने के लिए दिसंबर में ही बड़ा अभियान छेड़ दिया गया है. अफीम की खेती के खिलाफ चलने वाले अभियान में प्रशासन, नारकोटिक्स विभाग, सीओ, सुरक्षा बल, उत्पाद विभाग, वन विभाग की टीम शामिल होती है. अफीम की खेती को नष्ट करने में स्क्वायड डॉग के अलावे कई हाईटेक उपकरणों का सहारा लिया जा रहा है. जंगल वाले इलाके में ड्रोन से तस्वीरें ली जा रही है और अफीम की खेती का पता लगाया जा रहा है. इसके बाद जेसीबी, ट्रैक्टर और मजदूरों की मदद से अफीम की खेती को नष्ट किया जा रहा. इसमें जवान भी सहयोग करते हैं.

जांच के लिए ली जा रही स्क्वायड डॉग की मदद
जांच के लिए ली जा रही स्क्वायड डॉग की मदद

अफीम की खेती का विनिष्टिकरण शुरूः जिला प्रशासन ने इस बार अवैध मादक पदार्थ अफीम की खेती करने वालों पर नकेल कसने के लिए दिसंबर माह से ही विनिष्टिकरण का अभियान शुरू कर दिया गया है. इसी क्रम में प्रशासन, एसएसबी 29 वीं वाहिनी , बाराचट्टी पुलिस एवं वन विभाग की संयुक्त कार्रवाई में जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र के दुर्गम क्षेत्र खैरा गांव में लहलहाते 1 एकड़ की फसल को जेसीबी और ट्रैक्टर को मदद से नष्ट किया गया. बता दें कि यह विनष्टीकरण अभियान जनवरी माह से शुरू किया जाता था, लेकिन इस बार वरीय अधिकारियों के आदेश पर अवैध फसल को पूर्ण रूप से नष्ट करने के लिए 1 माह पूर्व से ही तैयारी शुरू कर दी है, ताकि चप्पे चप्पे पर ड्रोन के माध्यम से छान मारकर माफियाओं के मंसूबों को नाकाम कर सकें.

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