गया : बिहार के गया के बोधगया स्थित सेवा बीघा में पदमपानी स्कूल संचालित है. यह स्कूल अपने आप में अनोखा है, क्योंकि यहां बच्चों से फीस नहीं ली जाती है. बल्कि उसके बदले कचरा लिया जाता है. अब फीस के रूप में कचरा देकर यहां पढ़ाई करने वाले बच्चे इंजीनियर और डॉक्टर बन रहे हैं. वहीं, देश में स्वच्छता के प्रति इस विद्यालय से एक बड़ा संदेश भी जा रहा है.
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बोधगया के सेवा बीघा में स्थित है यह अनोखा स्कूल : बोधगया प्रखंड अंतर्गत सेवा बीघा गांव में एक अनोखा स्कूल संचालित है. इसका नाम पदम पानी है. इस स्कूल की खासियत है कि यहां के बच्चों से फीस के बदले कचरा लिया जाता है. बच्चे जब घर से निकलते हैं तो अपने साथ रास्ते में मिलने वाले कचरा लेकर आते हैं और उसे डस्टबिन में डाल देते हैं. यही उनकी फीस होती है. इसके बदले इस स्कूल में उन्हें हर सुविधा दी जाती है, जो कि निशुल्क होती है. ड्रेस से लेकर कॉपी-कलम सब कुछ मुफ्त होता है.
स्कूल दे रहा स्वच्छता का संदेश : एक ओर निजी स्कूलों में ज्यादा फीस वसूलने की होङ है. वहीं, इसके पीछे यह स्कूल एक उदाहरण के रूप में है. पदम पानी स्कूल स्वच्छता का भी बड़ा संदेश दे रहा है. यहां पढ़ने वाले बच्चों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता देखते ही बनती है. वहीं, इनका अनुशासन भी देखने लायक है.
फीस के रूप में लिया जाता है कचरा : पदम पानी स्कूल देश का संभवत पहला ऐसा स्कूल है, जहां फीस के बदले कचरा लिया जाता है. इस स्कूल में करीब ढाई सौ बच्चे अध्ययनरत हैं. यहां बच्चों को हर शिक्षा दी जाती है. कक्षा 1 से 8 तक यह संचालित है और इन्हें कंप्यूटर से लेकर बागवानी की खेती तक की जानकारी दी जाती है. स्कूल में प्रवेश करते ही बच्चों का अनुशासन देखते ही बनता है. यहां बच्चों को मिलने वाली सुविधा में कंप्यूटर क्लासेस से लेकर अन्य शिक्षा जैसे सिलाई कढ़ाई आदि भी शामिल है.
"हमारे स्कूल का नाम पदम पानी स्कूल है. इस स्कूल में किसी प्रकार की फीस नहीं ली जाती है. फीस के बदले बच्चों से कचरा लिया जाता है. बच्चे यहां जब आते हैं, तो डस्टबिन में कचरे को डालते हैं और फिर स्कूल में पढ़ाई करते हैं". - मीरा मेहता, प्रिंसिपल, पदम पानी स्कूल
2014 में हुई स्कूल की स्थापना : स्कूल की स्थापना वर्ष 2014 में कोरिया के समाजसेवी की मदद से स्थानीय राकेश समदर्शी और मनोरंजन कुमार समदर्शी की देखरेख में शुरू की गई थी. इस विद्यालय की स्थिति तब बिगड़ने लगी, जब कोरोना काल में मिलने वाली सहायता बेहद कम हो गई. इसके बाद मनोरंजन कुमार समदर्शी ने एक समाजसेवियों का ग्रुप शुरू किया, जिसकी मदद से अब तक यह विद्यालय संचालित किया जा रहा है, जहां फीस नहीं बल्कि बदले में कचरा लिया जाता है.
भोजन के समय भी होती है प्रार्थना: इस विद्यालय की परंपरा भी कुछ अलग अंदाज में ही है. इस विद्यालय में सुबह क्लास शुरू होने से पहले प्रार्थना होती है. उसके बाद भोजन करने से पहले भी प्रार्थना होती है. इसके बाद ही बच्चे भोजन करते हैं. इस विद्यालय में अधिकांश गरीब तबके के बच्चे अध्ययनरत हैं. महादलित बच्चों की संख्या बहुतायत है. बच्चों का कहना है कि आसपास में सरकारी स्कूल नहीं होने के बीच जब इस तरह का अनोखा निजी स्कूल संचालित हो रहा है, तो हम यहां पढ़ाई कर रहे हैं. यहां हमें सारी सुविधाएं मिल जाती है.
जमा कचरा किया जाता है रिसाइकिल : यहां रोजाना कई डस्टबिन कचरा से भर जाते हैं, क्योंकि बच्चे रास्ते में मिलने वाले कचरे को उठाकर लाते हैं और डस्टबिन में डालते हैं. वहीं हर महीने जमा होने वाले कचरे को रिसाइकलिंग के लिए भेजा जाता है. रिसाइक्लिंग के बाद मुफ्त में इस विद्यालय के लिए बागवानी में डालने वाले पदार्थ मिल जाते हैं, जिससे यहां फल फूल सब्जी की खेती भी शुरू कर दी गई है.
बच्चे बन रहे इंजीनियर और डॉक्टर : वहीं, फीस के रूप में कचरा देकर पढ़ने वाले बच्चे अब इंजीनियर और डॉक्टर भी बन रहे हैं. कई इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे. यहां के सैकड़ो बच्चे अब अपने जीवन में सफलता की गाड़ी को आगे बढ़ा रहे हैं और इंजीनियर, डॉक्टर, शिक्षक आदि पदों पर जा रहे हैं. इस तरह कचरा देकर अपनी फीस देने वाले बच्चे सफलता की नई कहानी गढ रहे हैं. धीरे-धीरे इनकी तादाद ज्यादा होती जा रही है.
आगे की पढ़ाई के लिए पैसे भी देता है स्कूल : वर्ष 2014 से यहां बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं और आठवीं तक यहां पढ़ाई करने के बाद सरकारी विद्यालय से मैट्रिक करते हैं. इसी बीच नौवीं और दसवीं की पढ़ाई सरकारी स्कूलों में करने वाले यहां के बच्चों के लिए स्कूल एक्स्ट्रा क्लास की सुविधा भी देती है. ताकि बच्चों की एकाग्रता बनी रहे. बड़ी बात यह है कि यहां पढ़ने वाले बच्चे जब मैट्रिक पास कर जाते हैं तो उन्हें आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए 5 हजार की राशि प्रोत्साहन के तौर पर दी जाती है.
यहां मिलती है सभी सुविधाएं : इस विद्यालय में पढ़ने वाला आठवीं कक्षा का छात्र अखिलेश कुमार बताता है कि उसके पिता मजदूर हैं. सरकारी स्कूल भी दूर है. ऐसे में हमारे बीच पदम पानी स्कूल स्थित है. यहां हमें हर सुविधा दी जा रही है, जो एक सरकारी स्कूल में भी संभवत उपलब्ध नहीं होती है. यहां हम बच्चे पढ़ाई में काफी आगे बढ़ रहे हैं. इसी प्रकार रोशन कुमार बताता है कि घर से निकलने के बाद वह कचरा चुनकर यहां आता है और डस्टबिन में डाल देता है. यह कचरा उनके फीस के रूप में होती है.
"यहां अच्छी पढ़ाई होती है. फीस के बदले कचरा लिया जाता है. सभी चीज अच्छे से हो रही है. यहां हम छात्राएं कंप्यूटर के अलावा सिलाई भी सिखाती हैं. वहीं, सारे उपयोग की चीज निशुल्क मिलती है. बागवानी भी यहां सिखाई जाती है". - शालू कुमारी, छात्रा