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गया: पावरलूम की शोर में पढ़ाई कर इंजीनियर बन रहे पटवाटोली के बच्चे

गया में पावरलूम की शोर के आवाज के बीच पढ़ाई कर बच्चे इंजीनियर बन रहे हैं. यहां हर घर में एक इंजीनियर हैं. यहां के बच्चे विदेश में भी काम कर रहे हैं.

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पटवाटोली के बच्चे
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Published : Oct 17, 2020, 3:46 PM IST

गया: जिले के गया नगर निगम के अंतर्गत आनेवाला पटवाटोली, जहां लगभग 9 हजार पावरलूम संचालित हैं. इन पावरलूम में अधिकांश पटवा समाज के लोग मालिक और मजदूर रहते हैं. इनका घर ही इनका कारखाना होता है. घर के बेडरूम को छोड़ सभी जगह कपड़े संबंधित काम होते हैं.

मजदूर के बच्चे बनते हैं इंजीनियर
मानपुर पटवाटोली की गलियां बहुत संकीर्ण हैं, इन संकीर्ण गलियों और पावरलूम की शोर के बीच पावरलूम में काम करने वाले मालिक और मजदूर के बच्चे हर साल इंजीनियर बनते हैं. या यूं कहा जाए तो पटवाटोली के हर घर में एक इंजीनियर और इंजीनियरिंग का छात्र है.

पटवाटोली का छात्र पहुंचा विदेश
वृक्ष ग्रुप स्टडी सेंटर के संचालक चंद्रकांत बताते हैं कि 1996 में पटवाटोली का एक छात्र आइआइटी क्रैक कर इंजीनियर बना और विदेश चला गया. उसके बाद यहां के छात्र आईआईटी की तरफ बढ़े. उस वक्त से एक कारवां चलता रहा. 2020 तक हजारों छात्र आईआईटी क्रैक कर इंजीनियर बन चुके हैं. जब ज्यादा छात्र आईआईटी क्रैक करने लगे तो, लोग पटवाटोली को विलेज ऑफ आईआईटीयन के नाम से पुकारने लगे.

बच्चों में है हुनर
चंद्रकांत ने बताया कि मैं दो साल तक इंजीनियरिंग का पढ़ाई कर यहां 2016 में वापस लौटा और हर साल 40 से 50 बच्चों को निःशुल्क कोचिंग देता हूं. मैं और मेरे सीनियर ने देखा है कि यहां काबिलियत है. बस ये लोग आर्थिक कारणों से पढ़ नहीं पाते हैं. हम लोग एक स्टडी ग्रुप बनाकर बच्चों को आईआईटी और जेईई एडवांस क्लियर करते हैं.

ग्रुप स्टडी करते हैं छात्र
आईआईटी की तैयारी कर रहे छात्र शंभ बताते हैं कि मेरे पिताजी एक बुनकर हैं. हमलोग की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. फिर भी मैंने इंजीनियर बनने का ठान लिया है. मैंने दसवीं क्लास के बाद से तैयारी शुरू कर दिया था. पावरलूम के आवाज के बीच यहां के छात्र ग्रुप में स्टडी कर सफलता पाते हैं. पटवाटोली में रहनेवाले, आस-पास पड़ोस में रहने वाले भैया लोग दसवीं क्लास से मोटिवेट करते हैं. वो लोग सपोर्ट करते हैं. वृक्ष स्टडी सेंटर में हमलोग को पढ़ाते भी हैं और आर्थिक मदद करते हैं. इसमें सभी पुराने आईआईटीयन जुड़े हुए हैं.

अभिभावकों को होती है मुश्किल
पटवा समाज सुधार समिति के अध्यक्ष पटवाटोली के मुख्य व्यवसाय से पटवा समाज के लोगों को आर्थिक स्थिति को संबल नहीं बनाता है. जो छात्र हैं वो, अपने अभिभावकों को देखते हैं. 16 घंटे काम करके भी आर्थिक लाभ नहीं मिल पाता हैं. ऐसे में ये सभी छात्र कम लागत और संसाधनों में पढ़ाई कर इंजीनियर बन रहे हैं. ताकि उनको ये दिन देखने को नहीं मिले.

पावरलूम के शोर में पढ़ाई
पटवाटोली के 25 से अधिक लोग पावरलूम के शोर में पढ़ाई कर विदेश चले गए हैं. बता दें पटवा समाज आज भी पंचायत आधारित निर्णय लेता है. यहां के कपड़े जितने मशहूर हैं, उतनी ही शादी भी प्रसिद्ध है. ये लोग पटवाटोली में ही एक दूसरे के बीच शादी कर लेते हैं. अमीर लड़का हो तो उसकी गरीब की बेटी से भी शादी हो जाती है.

पटवा समाज की शादी बड़ी सादगी से होती है. एक इंजीनियर की शादी सादगी से और उसके परिवार वाले की चुनी लड़की से होती है. कई बार इंजीनियर को अनपढ़ लड़की मिल जाती है.

गया: जिले के गया नगर निगम के अंतर्गत आनेवाला पटवाटोली, जहां लगभग 9 हजार पावरलूम संचालित हैं. इन पावरलूम में अधिकांश पटवा समाज के लोग मालिक और मजदूर रहते हैं. इनका घर ही इनका कारखाना होता है. घर के बेडरूम को छोड़ सभी जगह कपड़े संबंधित काम होते हैं.

मजदूर के बच्चे बनते हैं इंजीनियर
मानपुर पटवाटोली की गलियां बहुत संकीर्ण हैं, इन संकीर्ण गलियों और पावरलूम की शोर के बीच पावरलूम में काम करने वाले मालिक और मजदूर के बच्चे हर साल इंजीनियर बनते हैं. या यूं कहा जाए तो पटवाटोली के हर घर में एक इंजीनियर और इंजीनियरिंग का छात्र है.

पटवाटोली का छात्र पहुंचा विदेश
वृक्ष ग्रुप स्टडी सेंटर के संचालक चंद्रकांत बताते हैं कि 1996 में पटवाटोली का एक छात्र आइआइटी क्रैक कर इंजीनियर बना और विदेश चला गया. उसके बाद यहां के छात्र आईआईटी की तरफ बढ़े. उस वक्त से एक कारवां चलता रहा. 2020 तक हजारों छात्र आईआईटी क्रैक कर इंजीनियर बन चुके हैं. जब ज्यादा छात्र आईआईटी क्रैक करने लगे तो, लोग पटवाटोली को विलेज ऑफ आईआईटीयन के नाम से पुकारने लगे.

बच्चों में है हुनर
चंद्रकांत ने बताया कि मैं दो साल तक इंजीनियरिंग का पढ़ाई कर यहां 2016 में वापस लौटा और हर साल 40 से 50 बच्चों को निःशुल्क कोचिंग देता हूं. मैं और मेरे सीनियर ने देखा है कि यहां काबिलियत है. बस ये लोग आर्थिक कारणों से पढ़ नहीं पाते हैं. हम लोग एक स्टडी ग्रुप बनाकर बच्चों को आईआईटी और जेईई एडवांस क्लियर करते हैं.

ग्रुप स्टडी करते हैं छात्र
आईआईटी की तैयारी कर रहे छात्र शंभ बताते हैं कि मेरे पिताजी एक बुनकर हैं. हमलोग की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. फिर भी मैंने इंजीनियर बनने का ठान लिया है. मैंने दसवीं क्लास के बाद से तैयारी शुरू कर दिया था. पावरलूम के आवाज के बीच यहां के छात्र ग्रुप में स्टडी कर सफलता पाते हैं. पटवाटोली में रहनेवाले, आस-पास पड़ोस में रहने वाले भैया लोग दसवीं क्लास से मोटिवेट करते हैं. वो लोग सपोर्ट करते हैं. वृक्ष स्टडी सेंटर में हमलोग को पढ़ाते भी हैं और आर्थिक मदद करते हैं. इसमें सभी पुराने आईआईटीयन जुड़े हुए हैं.

अभिभावकों को होती है मुश्किल
पटवा समाज सुधार समिति के अध्यक्ष पटवाटोली के मुख्य व्यवसाय से पटवा समाज के लोगों को आर्थिक स्थिति को संबल नहीं बनाता है. जो छात्र हैं वो, अपने अभिभावकों को देखते हैं. 16 घंटे काम करके भी आर्थिक लाभ नहीं मिल पाता हैं. ऐसे में ये सभी छात्र कम लागत और संसाधनों में पढ़ाई कर इंजीनियर बन रहे हैं. ताकि उनको ये दिन देखने को नहीं मिले.

पावरलूम के शोर में पढ़ाई
पटवाटोली के 25 से अधिक लोग पावरलूम के शोर में पढ़ाई कर विदेश चले गए हैं. बता दें पटवा समाज आज भी पंचायत आधारित निर्णय लेता है. यहां के कपड़े जितने मशहूर हैं, उतनी ही शादी भी प्रसिद्ध है. ये लोग पटवाटोली में ही एक दूसरे के बीच शादी कर लेते हैं. अमीर लड़का हो तो उसकी गरीब की बेटी से भी शादी हो जाती है.

पटवा समाज की शादी बड़ी सादगी से होती है. एक इंजीनियर की शादी सादगी से और उसके परिवार वाले की चुनी लड़की से होती है. कई बार इंजीनियर को अनपढ़ लड़की मिल जाती है.

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