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Gaya News : गया में अफीम की फसल नष्ट करने का प्रशासन का दावा कितना सच, देखें नक्सल इलाके से ईटीवी भारत की ग्राउंट रिपोर्ट

Opium Mafia in Gaya बिहार के गया जिले में 1000 एकड़ से अधिक भूमि में लगे अफीम की फसल को नष्ट करने का प्रशासनिक दावा (destroying the opium crop in Gaya) तो दूसरी ओर सैकड़ों एकड़ में लगी अफीम की फसल तैयार, चीरे लगाकर रोज निकाले भी जा रहे है. देखें गया के नक्सल इलाके से ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्टिंग

गया में अफीम की खेती
गया में अफीम की खेती
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Published : Feb 23, 2023, 2:56 PM IST

गया: बिहार के गया में नक्सल प्रभावित इलाकों में चावल-गेहूं की तरह अफीम की भी अवैध खेती होने लगी है. इसका प्रसार धीरे-धीरे नक्सल इलाकों में बढ़ता जा रहा है. पहले सिर्फ बाराचट्टी के अलावे कुछ प्रखंडों में आंशिक रूप से इसकी खेती होती थी. गया में अफीम की खेती (Opium Cultivation In Gaya) करने का तकरीबन 30 सालों से अधिक समय से बड़ा रिकॉर्ड रहा है.

ये भी पढ़ें: नक्सलियों की आड़ में बिहार-झारखंड के ड्रग्स माफिया बन रहे करोड़पति, तीन दशक से हो रही अफीम की खेती

देखिए कैसे हो रही गया में अफीम खेती : गया जिले के इन इलाकों में हर साल अफीम की फसल लगाई जाती है और फिर प्रशासन अफीम की फसल को नष्ट करने का कोरम पूरा करता है. जिले के कई प्रखंड में अब अफीम की अवैध खेती हो रही है. सबसे ज्यादा अफीम की खेती गया जिले के बाराचट्टी, इमामगंज, डुमरिया के अलावे कुछ अन्य प्रखंडों में भी हो रही है. अफीम की खेती का विस्तारीकरण चिंता का विषय है.

नक्सल इलाके से ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट : ईटीवी भारत ने अफीम की खेती के संबंध में गया के नक्सली इलाके में जाकर ग्राउंड जीरो पर रिपोर्टिंग (ETV Bharat ground report from Naxalite area) की, तो काफी कुछ सनसनीखेज तथ्य सामने आए हैं. कुछ ऐसी भी बातें सामने आई है, जो अफीम की खेती को पूरी तरह से नष्ट करने के प्रशासनिक दावे पर सवाल खड़े कर रही है. इतना ही नहीं, यहां अफीम की फसल नष्ट नहीं करने का बड़ा सौदा भी होता है.

तीन महीने पहले शुरू हुआ था अभियान : करीब 3 महीने पहले नवंबर के अंतिम और दिसंबर महीने की शुरुआत के बीच, गया जिले में अफीम की खेती रोकने के लिए अभियान शुरू कर दिया गया था. सुरक्षा बलों की मदद से अभियान चला और अभी भी चल रहा है. अब 3 महीने होने को हैं और अफीम की खेती के खिलाफ अभियान जारी है. लेकिन आश्चर्य की बात है कि 3 महीने के अभियान के बावजूद अब भी सैकड़ों एकड़ में अफीम की फसल लहलहा रही है.

खेतों में तैयार अफीम की फसल : बड़ी बात यह है, कि सैकड़ों एकड़ भूमि में अब भी अफीम की फसल सही सलामत है. चीरा लगाकर रोजाना अफीम एकत्रित भी किया जा रहा. कुछ स्थान ऐसे भी मिले हैं, जहां जान-बूझकर अफीम की फसल को नष्ट नहीं किया जा रहा या फिर नष्ट करने के नाम पर खानापूर्ति की गई हो. ऐसे जगहों के बारे में ग्रामीण बताते हैं, कि अफीम की फसल नष्ट नहीं करने के लिए सौदा भी होता है. यही वजह है, कि लगातार अभियान के बावजूद कई क्षेत्रों में अफीम की फसल लहलहा रही है. और रोजाना इससे अफीम निकाले जा रहे हैं.

अफीम की फसल से मालामाल हो रहे तस्कर : यह अफीम गया के इलाके से दूसरे राज्यों को तस्करी भी किए जा रहे हैं. इसके पीछे बड़ा रैकेट है. ग्रामीण की माने तो, गया जिले में अफीम की खेती बड़े पैमाने पर नक्सलियों की देखरेख में हुई थी, लेकिन अब इसमें माफिया तत्व हावी हैं. कुछ इलाकों में नक्सलियों की देखरेख में माफिया- तस्कर काम कर रहे हैं. गया से लेकर जिले के सीमावर्ती राज्य झारखंड तक के अफीम तस्कर गया के इलाके में लहलहा रहे अफीम की फसल से मालामाल हो रहे हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि इसका कुछ हिस्सा नक्सली संगठन को भी जाता है.

प्रशासन का दावा, करोड़ों की फसल नष्ट हो गई : अब तक प्रशासन का दावा है कि सैकड़ों एकड़ में लगी अफीम की फसल को नष्ट कर दिया गया है, लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि करोड़ों की अफीम की फसल करीब 1000 एकड़ में नष्ट करने के बाद भी गिरफ्तारी शून्य बनी हुई है. हालांकि प्राथमिकी दर्ज जरूर की जा रही है.

इन इलाकों में अफीम की फसल : गया जिले के बाराचट्टी, धनगाई, भदवर, सोहैल- सलैया, कोठी के सीमावर्ती इलाके, छकरबंधा आदि थाना क्षेत्रों में अफीम की फसल नष्ट जरूर की गई है, लेकिन अभी भी फसल सैकड़ों एकड़ में लहलहा रही है. बाराचट्टी थाना क्षेत्र के दक्षिण इलाकों में आज भी कई एकड़ में अफीम की फसल लहलहा रही है.

इमामगंज प्रखंड में भी लहलहा रही अफीम की फसल : वहीं, इमामगंज प्रखंड के सोहैल-सलैया थाना अंतर्गत इम्नाबाद, बिराज, झिकटिया, भालुआही, नावाडीह, पथलधस्सा, आदि जगहों पर सरकारी, रैयती एवं वन भूमि में अफीम की फसल लहलहा रही है. डुमरिया प्रखंड के छकरबंधा थाना के तारचुआं, छकरबंधा, खड़ाव, मोहलनिया, बरहा, लूटटीटांड़, लालगढ़, पड़ियान कोढ़ा आदि जगहों पर अफीम की फसल की लगी हुई है.

नवंबर से मार्च तक चलता है खेल : ऐसे में सवाल यह है कि, यदि अफीम की फसल को पूरी तरह से नष्ट किया गया होता तो हर साल अफीम की फसल क्यों लगाई जाती है. यही वजह है कि हर साल विनष्टिकरण के दावे के बावजूद हर साल अफीम की फसल लगाई जाती है. यदि इस बार भी ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो फिर वर्ष 2023 में भी ठंड की दस्तक के साथ अफीम की खेती लगेगी और एक बार फिर अफीम की फसल खेतों में लहलहाएगी. बता दें कि अफीम की खेती नवंबर महीने से अफीम की फसल लगाने से शुरू होकर मार्च तक अफीम निकालने तक चलता है.

उत्पाद सहायक आयुक्त का दावा : अब तक 1000 एकड़ से अधिक भूमि में लगे अफीम की फसल नष्ट करने का दावा प्रशासन के द्वारा किया जा रहा है. इस संबंध में उत्पाद विभाग के सहायक आयुक्त प्रेम प्रकाश ने बताया कि इस बार अफीम की खेती के विनष्टीकरण के लिए नोडल विभाग एक्साइज को बनाया गया है. प्रत्येक दिन अफीम की खेती का विनष्टीकरण किया जा रहा है.

''अब तक सैकड़ों एकड़ में अफीम की फसल को नष्ट किया जा चुका है. अफीम की फसल वन विभाग, सरकारी और प्राइवेट भूमि में लगाई गई है. खतरनाक स्थानों पर अफीम की फसल लगाई गई है, जिसे प्रतिदिन अभियान चलाकर नष्ट किया जा रहा है.'' - प्रेम प्रकाश, उत्पाद सहायक आयुक्त

गया: बिहार के गया में नक्सल प्रभावित इलाकों में चावल-गेहूं की तरह अफीम की भी अवैध खेती होने लगी है. इसका प्रसार धीरे-धीरे नक्सल इलाकों में बढ़ता जा रहा है. पहले सिर्फ बाराचट्टी के अलावे कुछ प्रखंडों में आंशिक रूप से इसकी खेती होती थी. गया में अफीम की खेती (Opium Cultivation In Gaya) करने का तकरीबन 30 सालों से अधिक समय से बड़ा रिकॉर्ड रहा है.

ये भी पढ़ें: नक्सलियों की आड़ में बिहार-झारखंड के ड्रग्स माफिया बन रहे करोड़पति, तीन दशक से हो रही अफीम की खेती

देखिए कैसे हो रही गया में अफीम खेती : गया जिले के इन इलाकों में हर साल अफीम की फसल लगाई जाती है और फिर प्रशासन अफीम की फसल को नष्ट करने का कोरम पूरा करता है. जिले के कई प्रखंड में अब अफीम की अवैध खेती हो रही है. सबसे ज्यादा अफीम की खेती गया जिले के बाराचट्टी, इमामगंज, डुमरिया के अलावे कुछ अन्य प्रखंडों में भी हो रही है. अफीम की खेती का विस्तारीकरण चिंता का विषय है.

नक्सल इलाके से ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट : ईटीवी भारत ने अफीम की खेती के संबंध में गया के नक्सली इलाके में जाकर ग्राउंड जीरो पर रिपोर्टिंग (ETV Bharat ground report from Naxalite area) की, तो काफी कुछ सनसनीखेज तथ्य सामने आए हैं. कुछ ऐसी भी बातें सामने आई है, जो अफीम की खेती को पूरी तरह से नष्ट करने के प्रशासनिक दावे पर सवाल खड़े कर रही है. इतना ही नहीं, यहां अफीम की फसल नष्ट नहीं करने का बड़ा सौदा भी होता है.

तीन महीने पहले शुरू हुआ था अभियान : करीब 3 महीने पहले नवंबर के अंतिम और दिसंबर महीने की शुरुआत के बीच, गया जिले में अफीम की खेती रोकने के लिए अभियान शुरू कर दिया गया था. सुरक्षा बलों की मदद से अभियान चला और अभी भी चल रहा है. अब 3 महीने होने को हैं और अफीम की खेती के खिलाफ अभियान जारी है. लेकिन आश्चर्य की बात है कि 3 महीने के अभियान के बावजूद अब भी सैकड़ों एकड़ में अफीम की फसल लहलहा रही है.

खेतों में तैयार अफीम की फसल : बड़ी बात यह है, कि सैकड़ों एकड़ भूमि में अब भी अफीम की फसल सही सलामत है. चीरा लगाकर रोजाना अफीम एकत्रित भी किया जा रहा. कुछ स्थान ऐसे भी मिले हैं, जहां जान-बूझकर अफीम की फसल को नष्ट नहीं किया जा रहा या फिर नष्ट करने के नाम पर खानापूर्ति की गई हो. ऐसे जगहों के बारे में ग्रामीण बताते हैं, कि अफीम की फसल नष्ट नहीं करने के लिए सौदा भी होता है. यही वजह है, कि लगातार अभियान के बावजूद कई क्षेत्रों में अफीम की फसल लहलहा रही है. और रोजाना इससे अफीम निकाले जा रहे हैं.

अफीम की फसल से मालामाल हो रहे तस्कर : यह अफीम गया के इलाके से दूसरे राज्यों को तस्करी भी किए जा रहे हैं. इसके पीछे बड़ा रैकेट है. ग्रामीण की माने तो, गया जिले में अफीम की खेती बड़े पैमाने पर नक्सलियों की देखरेख में हुई थी, लेकिन अब इसमें माफिया तत्व हावी हैं. कुछ इलाकों में नक्सलियों की देखरेख में माफिया- तस्कर काम कर रहे हैं. गया से लेकर जिले के सीमावर्ती राज्य झारखंड तक के अफीम तस्कर गया के इलाके में लहलहा रहे अफीम की फसल से मालामाल हो रहे हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि इसका कुछ हिस्सा नक्सली संगठन को भी जाता है.

प्रशासन का दावा, करोड़ों की फसल नष्ट हो गई : अब तक प्रशासन का दावा है कि सैकड़ों एकड़ में लगी अफीम की फसल को नष्ट कर दिया गया है, लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि करोड़ों की अफीम की फसल करीब 1000 एकड़ में नष्ट करने के बाद भी गिरफ्तारी शून्य बनी हुई है. हालांकि प्राथमिकी दर्ज जरूर की जा रही है.

इन इलाकों में अफीम की फसल : गया जिले के बाराचट्टी, धनगाई, भदवर, सोहैल- सलैया, कोठी के सीमावर्ती इलाके, छकरबंधा आदि थाना क्षेत्रों में अफीम की फसल नष्ट जरूर की गई है, लेकिन अभी भी फसल सैकड़ों एकड़ में लहलहा रही है. बाराचट्टी थाना क्षेत्र के दक्षिण इलाकों में आज भी कई एकड़ में अफीम की फसल लहलहा रही है.

इमामगंज प्रखंड में भी लहलहा रही अफीम की फसल : वहीं, इमामगंज प्रखंड के सोहैल-सलैया थाना अंतर्गत इम्नाबाद, बिराज, झिकटिया, भालुआही, नावाडीह, पथलधस्सा, आदि जगहों पर सरकारी, रैयती एवं वन भूमि में अफीम की फसल लहलहा रही है. डुमरिया प्रखंड के छकरबंधा थाना के तारचुआं, छकरबंधा, खड़ाव, मोहलनिया, बरहा, लूटटीटांड़, लालगढ़, पड़ियान कोढ़ा आदि जगहों पर अफीम की फसल की लगी हुई है.

नवंबर से मार्च तक चलता है खेल : ऐसे में सवाल यह है कि, यदि अफीम की फसल को पूरी तरह से नष्ट किया गया होता तो हर साल अफीम की फसल क्यों लगाई जाती है. यही वजह है कि हर साल विनष्टिकरण के दावे के बावजूद हर साल अफीम की फसल लगाई जाती है. यदि इस बार भी ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो फिर वर्ष 2023 में भी ठंड की दस्तक के साथ अफीम की खेती लगेगी और एक बार फिर अफीम की फसल खेतों में लहलहाएगी. बता दें कि अफीम की खेती नवंबर महीने से अफीम की फसल लगाने से शुरू होकर मार्च तक अफीम निकालने तक चलता है.

उत्पाद सहायक आयुक्त का दावा : अब तक 1000 एकड़ से अधिक भूमि में लगे अफीम की फसल नष्ट करने का दावा प्रशासन के द्वारा किया जा रहा है. इस संबंध में उत्पाद विभाग के सहायक आयुक्त प्रेम प्रकाश ने बताया कि इस बार अफीम की खेती के विनष्टीकरण के लिए नोडल विभाग एक्साइज को बनाया गया है. प्रत्येक दिन अफीम की खेती का विनष्टीकरण किया जा रहा है.

''अब तक सैकड़ों एकड़ में अफीम की फसल को नष्ट किया जा चुका है. अफीम की फसल वन विभाग, सरकारी और प्राइवेट भूमि में लगाई गई है. खतरनाक स्थानों पर अफीम की फसल लगाई गई है, जिसे प्रतिदिन अभियान चलाकर नष्ट किया जा रहा है.'' - प्रेम प्रकाश, उत्पाद सहायक आयुक्त

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