गया : बिहार के गया पितृपक्ष मेला में लाखों तीर्थ यात्री अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना से आते हैं. आश्विन कृष्ण तृतीया तिथि यानी पांचवें दिन धर्मारण्य में पिंडदान का विधान है. सोमवार को पितृपक्ष मेले के आश्विन कृष्ण तृतीया को सरस्वती स्नान के बाद धर्मारण्य, मातंग वापी और बोधगया बोधि वृक्ष के नीचे श्राद्ध का विधान है. पितृ दोष और पितरों को प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए जौ, चावल, तिल- गुड़ से पिंड दिया जाता है.
धर्मारण्य वेदी क्षेत्र की अपनी महता : धर्मारण्य वेदी क्षेत्र में सरस्वती, मातंंगवापी और बोधि वृक्ष आते हैं, जहां पांचवें दिन का श्राद्ध करना चाहिए. मान्यता है कि धर्मारण्य क्षेत्र में पिंडदान से पितृ दोष और पितरों को प्रेत बाधा से मुक्ति मिल जाती है. धर्मारण्य क्षेत्र में स्थित कुएं में करोड़ों तीर्थ का जल डाले जाने की मान्यता है. यहां धर्मराज युधिष्ठिर का मंदिर भी है.
धर्मारण्य में पिंडदान का तरीका : यहां पिंडदान के बाद पिंड को कुएं में डाल दिया जाता है. यहां पिंड जौ चावल तिल गुड़ से दिया जाता है. इसी स्थान पर धर्मराज युधिष्ठिर का मंदिर भी है. युधिष्ठिर जब भीमसेन के साथ अपने पिता का श्राद्ध करने गया आए थे, तब यहां पर कुछ दिन उन्होंने तप किया था और स्कंद पुराण के अनुसार साक्षात धर्मराज ने यहां तपस्या की थी.
युधिष्ठिर ने किया था पिंडदान : मान्यता है कि कुरुक्षेत्र में कौरव पांडव के बीच चल महाभारत युद्ध के बाद महाराज युधिष्ठिर ने यहीं धर्मारण्य क्षेत्र में आकर पिंडदान किया था. पितरों को मोक्ष की प्राप्ति कराई थी. यह भी कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध के बाद भगवान कृष्ण स्वय पांडवों को लेकर आए थे और पिंडदान करवाया था.
पांचवेदी तीर्थ के रूप में गणना : धर्मारण्य तीर्थ को पंचवेदी तीर्थ के रूप में गणना की जाती है. यहां जौ चावल तिल गुङ से पितरों को पिंड दिया जाता है, जिससे जहां पितृ दोष दूर होता है, वही प्रेत बाधा से भी पितरों को मुक्ति मिल जाती है. इस तरह पितृपक्ष मेले को लेकर पांचवें दिन यानी अश्वनी कृष्ण तृतीया को धर्मारणय क्षेत्र में सरस्वती स्नान, मातंग वापी धर्मारणय और बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे श्राद्ध करना चाहिए.
देश-विदेशों से आते हैं तीर्थ यात्री : बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 2023 का गुरुवार से शुरुआत हुई है. यह पितृपक्ष मेला 14 अक्टूबर तक चलेगा. 4 दिन के कर्मकांड पूरे हो चुके हैं. पहले दिन 28 सितंबर को पुनपुन में श्राद्ध की शुरूआत होती है, फिर गया में इसकी शुरूआत होती है.
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