मोतिहारी: पूर्वी चंपारण में बंजरिया प्रखंड का तिरुवाह क्षेत्र अल्पसंख्यक पॉकेट के रुप में जाना जाता है. यहां से लगभग 20 गांवों के तिरुवाह क्षेत्र से कई पहाड़ी नदियां गुजरती हैं. लेकिन इस क्षेत्र की मुख्य नदी सिकरहना है. जिसके गोद में तिरुवाह क्षेत्र फैला हुआ है. अल्पसंख्यक बहुल इस क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या बाढ़ है. जिस कारण यह पूरा इलाका तीन महीने तक पानी में डूबा रहता है और खेती करना इस क्षेत्र के लिए सबसे बड़ा जोखिम का काम है.
संकरी गलियां तिरुवाह के मुस्लिम बस्तियों की पहचान है. कहीं पक्के मकान, कहीं खपरैल और कहीं जिंदगी गुजारने के लिए बनी बेतरतीब झोपड़ियां मिल जाती है. शिक्षा की हालत यह है कि इतनी बड़ी आबादी वाले क्षेत्र में मैट्रिक पास करने वाले अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं. स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर एक पीएचसी है. जहां पहुंचने के लिए खराब सड़के सबसे बड़ी बाधा है.
सबसे बड़ी समस्या है बाढ़
सिसवनिया गांव के रहने वाले जहीर देवान ने बताया कि सरकार की ओर से राशन-किरोसन दिया जा रहा है. लेकिन बिजली का पोल नहीं रहने से अपना तार खरीदकर बिजली घर तक लाएं हैं. झोपड़ी के घर में रहने वाली नसीमा खातून ने बताया कि उनको और उनके पति को वृद्धा पेंशन नहीं मिलता है. उन्होंने बताया कि आवास योजना का लाभ उन्हें अब तक नहीं मिला है. अभी तक वह झोपड़ी में रह रही हैं.
अजगरी गांव के रहने वाले लालबाबू खान ने बताया कि बाढ़ के कारण हर साल वे लोग परेशानी झेलते हैं. लेकिन उन्हें देखने कोई नहीं आता है. अब चुनाव का समय आया है तो नेता लोग वोट मांगने आएंगे. वहीं, मो. कमरुज्जमा ने बताया कि पूरा तिरुवाह बाढ़ से त्रस्त रहता है. कोई फसल नहीं हो पाती है. बाढ़ राहत के बदले उस राशी से जल निकासी की व्यवस्था सरकार कर दे, तो लोगों को दो जून की रोटी की कमी नहीं होगी.
अल्पसंख्यकों में शिक्षा के प्रति नहीं है जागरुकता
हाईस्कूल के शिक्षक अकील अहमद तिरुवाह क्षेत्र के रहने वाले हैं. उन्होंने बताया कि तिरुवाह क्षेत्र के अल्पसंख्यक समुदाय के बीच शिक्षा की स्थिति काफी खराब है. जबकि विकास की सबसे बड़ी पूंजी शिक्षा होती है. उन्होंने डाटा के आधार पर समझाते हुए बताया कि सिसवनिया गांव में 10 हजार की आबादी अल्पसंख्यक समाज की है. लेकिन सिर्फ 10 से 12 अल्पसंख्यक समाज के बच्चे मैट्रिक की परीक्षा देते हैं.
'केवल वोट बैंक बनकर रह गए हैं अल्पसंख्यक'
तिरुवाह के रहने वाले उर्दू अखबार के पत्रकार ओजैर अंजूम ने बताया कि उनके वोट से सरकारे बनती और बिगड़ती हैं. लेकिन तिरुवाह के क्षेत्र को उसका लाभ आज तक नहीं मिला है. जबकि वोट लेने सभी आते हैं और चुनाव के समय सभी विकास का दावा करते हैं. लेकिन सब छलावा होता है. इस क्षेत्र के युवा सामाजिक कार्यकर्त्ता तौसिफुर्रहमान ने बताया कि तिरुवाह क्षेत्र में विकास के नाम पर केवल छलावा हुआ है. इस क्षेत्र की स्थिति यह है कि आने जाने का साधन ट्रैक्टर या जीप है. उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र से बीमार लोग अस्पताल पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देते हैं.
चुनाव बाद हलात हो जाते हैं बदतर
तिरुवाह क्षेत्र के वोट बैंक पर सभी पार्टियों की नजर रहती है. सवा लाख की अल्पसंख्यक आबादी वाले तिरुवाह इलाके में 60 हजार मुस्लिम वोट है. तिरुवाह के सिसवनिया, महमदपुर, जटवा, जनेरवा और सुन्दरपुर में 80 से 90 प्रतिशत अल्पसंख्यक समाज के लोग हैं. जबकि गोबरी, खैरी और अजगरवा गांव में 40 से 50 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. इसके अलावा तिरुवाह के अन्य गांव में बीस से तीस प्रतिशत मुस्लिम रहते हैं. जिनके वोट के लिए इस क्षेत्र में नेताओं की धमा चौकड़ी मची रहती है. वादों की बरसात होती है और विकास के सुनहरे सपने दिखाये जाते हैं. लेकिन अपनी समस्याओं के साथ जीने के आदी हो चुके तिरुवाह के लोगों के लिए चुनाव के बाद फिर वही बाढ़, टूटी सड़कें, सरकारी राहत, इलाज के अभाव में मरते लोग और शिक्षा से महरुम नौजवान रह जाते हैं.