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मोतिहारी: बिहार विधानसभा चुनाव में असर डालेगी प्रवासी मजदूरों की भूमिका

कोरोना संक्रमण को लेकर हुए लॉकडाउन के कारण दूसरे प्रदेशों से लौट कर अपने घर पहुंचे प्रवासी मजदूरों की भूमिका विधानसभा चुनाव में अपना असर डालेगी, जबकि अधिकतर प्रवासी मजदूर रोजगार के अभाव में अपने कार्यस्थल पर लौट लए हैं, जो मजदूर घर पर रह गए हैं. उनकी भूमिका चुनाव में महत्वपूर्ण होगी.

प्रवासी मजदूर
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Published : Oct 26, 2020, 1:58 AM IST

मोतिहारी: कोरोना काल में बिहार विधानसभा चुनाव हो रहा है. पूर्वी चंपारण जिले में दूसरे और तीसरे चरण में चुनाव होना है. वहीं कोरोना संक्रमण को लेकर हुए लॉकडाउन के कारण दूसरे प्रदेशों के लौट कर अपने घर पहुंचे प्रवासी मजदूरों की भूमिका विधानसभा चुनाव में अपना असर डालेगी. दूसरे प्रदेशों से आए प्रवासी मजदूरों के अनुसार क्वारंटाईन पीरियड के दौरान सरकारी व्यवस्था ठीक-ठाक थी, लेकिन क्वारंटाईन के बाद सरकार द्वारा घोषित एक भी सुविधा अधिकांश प्रवासी मजदूरों को नहीं मिला है.

दरअसल, घर वापस लौटे अधिकतर प्रवासी मजदूर रोजगार के अभाव में फिर से अपने कार्यस्थल पर लौट गए हैं, जबकि कुछ प्रवासी मजदूर जो अपने घर पर रह गए हैं. किसी तरह कुछ पूंजी का जुगाड़कर छोटे-मोटे धंधे में लगे हुए है. ऐसे प्रवासी मजदूर विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका निभाने को बेताब हैं. जिसका असर चुनाव में पड़ने की बात प्रवासी मजदूर कह रहे हैं.

सरकार के घोषणा के बावजूद नहीं मिला रोजगार
दिल्ली में लगभग 8 बर्षों से साईकिल मरम्मति का काम करके अपने परिवार का पेट पाल रहे हरिशंकर पासवान की जिंदगी मजे में कट रही थी. बीते मार्च महीने में कोरोना संक्रमण को लेकर घोषित हुए लॉकडाउन ने उनका सबकुछ अस्त-व्यस्त कर दिया. खाने के लाले पड़ गए. जिस कारण वो अपने घर मोतिहारी के गोढ़वा लौट आए.

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प्रवासी मजदूर

दिल्ली से लौटने पर उन्हे स्कूल में 14 दिनों के लिए क्वारंटाईन कर दिया गया. वहीं सरकार ने प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की घोषणा की. सरकार की घोषणा के बाद काफी इंतजार और भागदौड़ के बावजूद निराश हरिशंकर ने कुछ पूंजी की व्यवस्था कर सड़क किनारे साईकिल मरम्मति की एक छोटी सी दूकान खोल ली. उनके अनुसार विधानसभा चुनाव में बाहर से आए लोगों के मतदान से काफी असर पड़ेगा.

कई प्रवासी मजदूर चुनाव पूर्व लौटने को तैयार
महाराष्ट्र के चीनी मील में दैनिक मजदूरी करने वाला विजय कुमार लॉकडाउन के बाद काफी परेशानियों को झेलते हुए मोतिहारी पहुंचा था. सरकार के रोजगार देने की घोषणा के बाद उसे कुछ उम्मीदें जगी थी, लेकिन विजय को ना हीं क्वारंटाईन पीरियड का घोषित सरकारी लाभ मिला और ना हीं उसे कोई रोजगार मिला. जिस कारण उसने फिर से महाराष्ट्र लौटने के लिए टिकट बनवा लिया. वहीं चुनाव से पहले जाने की बात पर विजय कहता है कि घर में खाने की लिए कुछ नहीं है. चुनाव में वोट देने का इंतजार करेंगे, तो परिवार के लोगों का पेट कैसे भरेगा.

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क्वारंटाईन पीरियड का नहीं मिला लाभ
वहीं देहरादून में पेंटिंग का काम करने वाला मुन्ना पासवान भी लॉकडाउन के कारण घर लौटा है. लेकिन उसे रोजगार नहीं मिला. उसके घर पर छत नहीं है. चुल्हा दिन में एक शाम जलता है. बावजूद इसके वह चुनाव बाद हैदराबाद लौटेगा. वहीं मुन्ना ने बताया कि वह स्कूल में 14 दिन क्वारंटाईन रहा. उसे क्वारंटाईन पीरियड का पैसा भी नहीं मिला और ना हीं उसे कोई रोजगार मिला है. उसने बताया कि वह चुनाव में वोट देकर हीं देहरादून लौटेगा.

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बिहार में सबसे अधिक पूर्वी चंपारण में आए प्रवासी मजदूर
बहरहाल, कोरोना संक्रमण को लेकर हुए लॉकडाउन के कारण बिहार में सबसे अधिक पूर्वी चंपारण जिले में प्रवासी मजदूर अपने घर लौटे हैं. जिले में कुल 1 लाख 53 हजार प्रवासी मजदूर आए थे. जिनके लिए सरकार ने रोजगार देने की घोषणा की, लेकिन रोजगार के अभाव में अधिकांश प्रवासी मजदूर अपने-अपने कार्यस्थल पर लौट गए, जो प्रवासी मजदूर अपने घर पर रह गए हैं. उनकी भूमिका विधानसभा चुनाव में किस तरह का असर डालती है. यह तो चुनाव के बाद हीं पता चलेगा.

मोतिहारी: कोरोना काल में बिहार विधानसभा चुनाव हो रहा है. पूर्वी चंपारण जिले में दूसरे और तीसरे चरण में चुनाव होना है. वहीं कोरोना संक्रमण को लेकर हुए लॉकडाउन के कारण दूसरे प्रदेशों के लौट कर अपने घर पहुंचे प्रवासी मजदूरों की भूमिका विधानसभा चुनाव में अपना असर डालेगी. दूसरे प्रदेशों से आए प्रवासी मजदूरों के अनुसार क्वारंटाईन पीरियड के दौरान सरकारी व्यवस्था ठीक-ठाक थी, लेकिन क्वारंटाईन के बाद सरकार द्वारा घोषित एक भी सुविधा अधिकांश प्रवासी मजदूरों को नहीं मिला है.

दरअसल, घर वापस लौटे अधिकतर प्रवासी मजदूर रोजगार के अभाव में फिर से अपने कार्यस्थल पर लौट गए हैं, जबकि कुछ प्रवासी मजदूर जो अपने घर पर रह गए हैं. किसी तरह कुछ पूंजी का जुगाड़कर छोटे-मोटे धंधे में लगे हुए है. ऐसे प्रवासी मजदूर विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका निभाने को बेताब हैं. जिसका असर चुनाव में पड़ने की बात प्रवासी मजदूर कह रहे हैं.

सरकार के घोषणा के बावजूद नहीं मिला रोजगार
दिल्ली में लगभग 8 बर्षों से साईकिल मरम्मति का काम करके अपने परिवार का पेट पाल रहे हरिशंकर पासवान की जिंदगी मजे में कट रही थी. बीते मार्च महीने में कोरोना संक्रमण को लेकर घोषित हुए लॉकडाउन ने उनका सबकुछ अस्त-व्यस्त कर दिया. खाने के लाले पड़ गए. जिस कारण वो अपने घर मोतिहारी के गोढ़वा लौट आए.

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दिल्ली से लौटने पर उन्हे स्कूल में 14 दिनों के लिए क्वारंटाईन कर दिया गया. वहीं सरकार ने प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की घोषणा की. सरकार की घोषणा के बाद काफी इंतजार और भागदौड़ के बावजूद निराश हरिशंकर ने कुछ पूंजी की व्यवस्था कर सड़क किनारे साईकिल मरम्मति की एक छोटी सी दूकान खोल ली. उनके अनुसार विधानसभा चुनाव में बाहर से आए लोगों के मतदान से काफी असर पड़ेगा.

कई प्रवासी मजदूर चुनाव पूर्व लौटने को तैयार
महाराष्ट्र के चीनी मील में दैनिक मजदूरी करने वाला विजय कुमार लॉकडाउन के बाद काफी परेशानियों को झेलते हुए मोतिहारी पहुंचा था. सरकार के रोजगार देने की घोषणा के बाद उसे कुछ उम्मीदें जगी थी, लेकिन विजय को ना हीं क्वारंटाईन पीरियड का घोषित सरकारी लाभ मिला और ना हीं उसे कोई रोजगार मिला. जिस कारण उसने फिर से महाराष्ट्र लौटने के लिए टिकट बनवा लिया. वहीं चुनाव से पहले जाने की बात पर विजय कहता है कि घर में खाने की लिए कुछ नहीं है. चुनाव में वोट देने का इंतजार करेंगे, तो परिवार के लोगों का पेट कैसे भरेगा.

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क्वारंटाईन पीरियड का नहीं मिला लाभ
वहीं देहरादून में पेंटिंग का काम करने वाला मुन्ना पासवान भी लॉकडाउन के कारण घर लौटा है. लेकिन उसे रोजगार नहीं मिला. उसके घर पर छत नहीं है. चुल्हा दिन में एक शाम जलता है. बावजूद इसके वह चुनाव बाद हैदराबाद लौटेगा. वहीं मुन्ना ने बताया कि वह स्कूल में 14 दिन क्वारंटाईन रहा. उसे क्वारंटाईन पीरियड का पैसा भी नहीं मिला और ना हीं उसे कोई रोजगार मिला है. उसने बताया कि वह चुनाव में वोट देकर हीं देहरादून लौटेगा.

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बिहार में सबसे अधिक पूर्वी चंपारण में आए प्रवासी मजदूर
बहरहाल, कोरोना संक्रमण को लेकर हुए लॉकडाउन के कारण बिहार में सबसे अधिक पूर्वी चंपारण जिले में प्रवासी मजदूर अपने घर लौटे हैं. जिले में कुल 1 लाख 53 हजार प्रवासी मजदूर आए थे. जिनके लिए सरकार ने रोजगार देने की घोषणा की, लेकिन रोजगार के अभाव में अधिकांश प्रवासी मजदूर अपने-अपने कार्यस्थल पर लौट गए, जो प्रवासी मजदूर अपने घर पर रह गए हैं. उनकी भूमिका विधानसभा चुनाव में किस तरह का असर डालती है. यह तो चुनाव के बाद हीं पता चलेगा.

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